Friday, March 20, 2015

दस महाविद्या

शक्तिपात युक्त - दस महाविद्या दीक्षा
जिसे प्राप्त करना ही जीवन की पूर्णता कहा गया है,इस सृष्टि के समस्त जड़-चेतन पदार्थ अपूर्ण हैंक्योंकि पूर्ण तो केवल वह ब्रह्म ही है जो सर्वत्र व्याप्त है। अपूर्ण रह जाने पर ही जीव को 'पुनरपि जन्मं पुनरपि मरणंके चक्र में बार-बार संसार में आना पड़ता हैऔर फिर उन्हीं क्रिया-कलापों में संलग्न होना पड़ता है। शिशु जब मां के गर्भ से जन्म लेता हैतो ब्रह्म स्वरुप ही होता हैउसी पूर्ण का रूप होता हैपरन्तु गर्भ के बाहर आने के बाद उसके अन्तर्मन पर अन्य लोगों का प्रभाव पड़ता है और इस कारण धीरे-धीरे नवजात शिशु को अपना पूर्णत्व बोध विस्मृत होने लगता है और एक प्रकार से वह पूर्णता से अपूर्णता की ओर अग्रसर होने लगता है।

और इस तरह एक अन्तराल बीत जाता हैवह छोटा शिशु अब वयस्क बन चुका होता है। नित्य नई समस्याओं से जूझता हुआ वह अपने आप को अपने ही आत्मजनों की भीड़ में भी नितान्त अकेला अनुभव करने लगता है। रोज-रोज की भीग-दौड़ से एक तरह से वह थक जाता हैऔर जब उसे याद आती है प्रभु कीतो कभी-कभी पत्थर की मूर्तियों के आगे दो आंसू भी ढुलक देता है।

परन्तु उसे कोई हल मिलता नहीं। चलते-चलते जब कभी पुण्यों के उदय होने पर सदगुरू से मुलाक़ात होती हैतब उसके जीवन में प्रकाश की एक नई किरण फूटती है। ऐसा इसलिए होता हैक्योंकि मात्र सदगुरू ही उसे बोध कराते हैकि वह अपूर्ण था नहीं अपितु बना गया है। गुरुदेव उसे बोध कराते हैंकि वह असहाय नहींअपितु स्वयं उसी के अन्दर अनन्त संभावनाएं भरी पड़ी हैंअसम्भवको भी सम्भव दिखाने की क्षमता छुपी हुई हैगुरु कि इसी क्रिया को दीक्षा कहते हैंजिसमे गुरु अपने प्राणों को भर कर अपनी ऊर्जा को अष्ट्पाश में बंधे जिव में प्रवाहित करते है।

गुरु दीक्षा प्राप्त करने के बाद साधक का मार्ग साधना के क्षेत्र में खुल जाता है। साधनाओं की बात आते ही दस महाविद्या का नाम सबसे ऊपर आता है। प्रत्येक महाविद्या का अपने आप में अलग ही महत्त्व है। लाखों में कोई एक ही ऐसा होता है जिसे सदगुरू से महाविद्या दीक्षा प्राप्त हो पाती है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद सिद्धियों के द्वार एक के बाद एक कर साधक के लिए खुलते चले जाते है।

महाकाली महाविद्या दीक्षायह तीव्र प्रतिस्पर्धा का युग है। आप चाहे या न चाहे विघटनकारी तत्व आपके जीवन की शांतिसौहार्द भंग करते ही रहते हैं। एक दृष्ट प्रवृत्ति वाले व्यक्ति की अपेक्षा एक सरल और शांत प्रवृत्ति वाले व्यक्ति के लिए अपमानतिरस्कार के द्वार खुले ही रहते हैं। आज ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं हैजिसका कोई शत्रु न हो ... और शत्रु का तात्पर्य मानव जीवन की शत्रुता से ही नहींवरन रोगशोकव्याधिपीडा भी मनुष्य के शत्रु ही कहे जाते हैंजिनसे व्यक्ति हर क्षण त्रस्त रहता है ... और उनसे छुटकारा पाने के लिए टोने टोटके आदि के चक्कर में फंसकर अपने समय और धन दोनों का ही व्यय करता हैपरन्तु फिर भी शत्रुओं से छुटकारा नहीं मिल पाता।

महाकाली दीक्षा 
महाकाली दीक्षा के माध्यम से व्यक्ति शत्रुओं को निस्तेज एवं परास्त करने में सक्षम हो जाता हैचाहे वह शत्रु आभ्यांतरिक हों या बाहरीइस दीक्षा के द्वारा उन पर विजय प्राप्त कर लेता हैक्योंकि महाकाली ही मात्र वे शक्ति स्वरूपा हैंजो शत्रुओं का संहार कर अपने भक्तों को रक्षा कवच प्रदान करती हैं। जीवन में शत्रु बाधा एवं कलह से पूर्ण मुक्ति तथा निर्भीक होकर विजय प्राप्त करने के लिए यह दीक्षा अद्वितीय है। देवी काली के दर्शन भी इस दीक्षा के बाद ही सम्भव होते हैगुरु द्वारा यह दीक्षा प्राप्त होने के बाद ही कालिदास में ज्ञान का स्रोत फूटा थाजिससे उन्होंने 'मेघदूत' , 'ऋतुसंहारजैसे अतुलनीय काव्यों की रचना कीइस दीक्षा से व्यक्ति की शक्ति भी कई गुना बढ़ जाती है।

तारा दीक्षा 
तारा के सिद्ध साधक के बारे में प्रचिलित हैवह जब प्रातः काल उठाता हैतो उसे सिरहाने नित्य दो तोला स्वर्ण प्राप्त होता है। भगवती तारा नित्य अपने साधक को स्वार्णाभूषणों का उपहार देती हैं। तारा महाविद्या दस महाविद्याओं में एक श्रेष्ठ महाविद्या हैं। तारा दीक्षा को प्राप्त करने के बाद साधक को जहां आकस्मिक धन प्राप्ति के योग बनने लगते हैंवहीं उसके अन्दर ज्ञान के बीज का भी प्रस्फुटन होने लगता हैजिसके फलस्वरूप उसके सामने भूत भविष्य के अनेकों रहस्य यदा-कदा प्रकट होने लगते हैं। तारा दीक्षा प्राप्त करने के बाद साधक का सिद्धाश्रम प्राप्ति का लक्ष्य भी प्रशस्त होता हैं।

षोडशी त्रिपुर सुन्दरी दीक्षा  
त्रिपुर सुन्दरी दीक्षा प्राप्त होने से आद्याशक्ति त्रिपुरा शक्ति शरीर की तीन प्रमुख नाडियां इडासुषुम्ना और पिंगला जो मन बुद्धि और चित्त को नियंत्रित करती हैंवह शक्ति जाग्रत होती है। भू भुवः स्वः यह तीनों इसी महाशक्ति से अद्भुत हुए हैंइसीसलिए इसे त्रिपुर सुन्दरी कहा जाता है। इस दीक्षा के माध्यम से जीवन में चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति तो होती ही हैसाथ ही साथ आध्यात्मिक जीवन में भी सम्पूर्णता प्राप्त होती हैकोई भी साधना होचाहे अप्सरा साधना होदेवी साधना होशैव साधना होवैष्णव साधना होयदि उसमें सफलता नहीं मिल रहीं होतो उसको पूर्णता के साथ सिद्ध कराने में यह महाविद्या समर्थ हैयदि इस दीक्षा को पहले प्राप्त कर लिया जाए तो साधना में शीघ्र सफलता मिलती है। गृहस्थ सुखअनुकूल विवाह एवं पौरूष प्राप्ति हेतु इस दीक्षा का विशेष महत्त्व है। मनोवांछित कार्य सिद्धि के लिए भी यह दीक्षा उपयुक्त है। इस दीक्षा से साधक को धर्मअर्थकाम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है।

भुवनेश्वरी दीक्षा  
भूवन अर्थात इस संसार की स्वामिनी भुवनेश्वरीजो 'ह्रींबीज मंत्र धारिणी हैंवे भुवनेश्वरी ब्रह्मा की भी आधिष्ठात्री देवी हैं। महाविद्याओं में प्रमुख भुवनेश्वरी ज्ञान और शक्ति दोनों की समन्वित देवी मानी जाती हैं। जो भुवनेश्वरी सिद्धि प्राप्त करता हैउस साधक का आज्ञा चक्र जाग्रत होकर ज्ञान-शक्तिचेतना-शक्तिस्मरण-शक्ति अत्यन्त विकसित हो जाती है। भुवनेश्वरी को जगतधात्री अर्थात जगत-सुख प्रदान करने वाली देवी कहा गया है। दरिद्रता नाशकुबेर सिद्धिरतिप्रीती प्राप्ति के लिए भुवनेश्वरी साधना उत्तम मानी है है। इस महाविद्या की आराधना एवं दीक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्ति की वाणी में सरस्वती का वास होता है। इस महाविद्या की दीक्षा प्राप्त कर भुवनेश्वरी साधना संपन्न करने से साधक को चतुर्वर्ग लाभ प्राप्त होता ही है। यह दीक्षा प्राप्त कर यदि भुवनेश्वरी साधना संपन्न करें तो निश्चित ही पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है।

छिन्नमस्ता महाविद्या दीक्षा  
भगवती छिन्नमस्ता के कटे सर को देखकर यद्यपि मन में भय का संचार अवश्य होता हैपरन्तु यह अत्यन्त उच्चकोटि की महाविद्या दीक्षा है। यदि शत्रु हावी होबने हुए कार्य बिगड़ जाते होंया किसी प्रकार का आपके ऊपर कोई तंत्र प्रयोग होतो यह दीक्षा अत्यन्त प्रभावी है। इस दीक्षा द्वारा कारोबार में सुदृढ़ता प्राप्त होती हैआर्थिक अभाव समाप्त हो जाते हैंसाथ ही व्यक्ति के शरीर का कायाकल्प भी होना प्रारम्भ हो जाता है। इस साधना द्वारा उच्चकोटि की साधनाओं का मार्ग प्रशस्त हो जाता हैतथा उसे मौसम अथवा सर्दी का भी विशेष प्रभाव नहीं पङता है।

त्रिपुर भैरवी दीक्षा भूत-प्रेत एवं इतर योनियों द्वारा बाधा आने पर जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। ग्रामीण अंचलों में तथा पिछडे क्षेत्रों के साथ ही सभ्य समाज में भी इस प्रकार के कई हादसे सामने आते हैजब की पूरा का पूरा घर ही इन बाधाओं के कारण बर्बादी के कगार पर आकर खडा हो गया हो। त्रिपुर भैरवी दीक्षा से जहां प्रेत बाधा से मुक्ति प्राप्त होती हैवही शारीरिक दुर्बलता भी समाप्त होती हैव्यक्ति का स्वास्थ्य निखारने लगता है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद साधक में आत्म शक्ति त्वरित रूप से जाग्रत होने लगती हैऔर बड़ी से बड़ी परिस्थियोंतियों में भी साधक आसानी से विजय प्राप्त कर लेता हैअसाध्य और दुष्कर से दुष्कर कार्यों को भी पूर्ण कर लेता है। दीक्षा प्राप्त होने पर साधक किसी भी स्थान पर निश्चिंतनिर्भय आ जा सकता हैये इतर योनियां स्वयं ही ऐसे साधकों से भय रखती है।

धूमावती दीक्षा 
धूमावती दीक्षा प्राप्त होने से साधक का शरीर मजबूत व् सुदृढ़ हो जाता है। आए दिन और नित्य प्रति ही यदि कोई रोग लगा रहता होया शारीरिक अस्वस्थता निरंतर बनी ही रहती होतो वह भी दूर होने लग जाती है। उसकी आखों में प्रबल तेज व्याप्त हो जाता हैजिससे शत्रु अपने आप में ही भयभीत रहते हैं। इस दीक्षा के प्रभाव से यदि कीसी प्रकार की तंत्र बाधा या प्रेत बाधा आदि होतो वह भी क्षीण हो जाती है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद मन में अदभुद साहस का संचार हो जाता हैऔर फिर किसी भी स्थिति में व्यक्ति भयभीत नहीं होता है। तंत्र की कई उच्चाटन क्रियाओं का रहस्य इस दीक्षा के बाद ही साधक के समक्ष खुलता है।

बगलामुखी दीक्षा 
यह दीक्षा अत्यन्त तेजस्वीप्रभावकारी है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद साधक निडर एवं निर्भीक हो जाता है। प्रबल से प्रबल शत्रु को निस्तेज करने एवं सर्व कष्ट बाधा निवारण के लिए इससे अधिक उपयुक्त कोई दीक्षा नहीं है। इसके प्रभाव से रूका धन पुनः प्राप्त हो जाता है। भगवती वल्गा अपने साधकों को एक सुरक्षा चक्र प्रदान करती हैंजो साधक को आजीवन हर खतरे से बचाता रहता है।

मातंगी दीक्षा
आज के इस मशीनी युग में जीवन यंत्रवतठूंठ और नीरस बनकर रह गया है। जीवन में सरसताआनंदभोग-विलासप्रेमसुयोग्य पति-पत्नी प्राप्ति के लिए मातंगी दीक्षा अत्यन्त उपयुक्त मानी जाती है। इसके अलावा साधक में वाक् सिद्धि के गुण भी जाते हैं। उसमे आशीर्वाद व् श्राप देने की शक्ति आ जाती है। उसकी वाणी में माधुर्य और सम्मोहन व्याप्त हो जाता है और जब वह बोलता हैतो सुनने वाले उसकी बातों से मुग्ध हो जाते है। इससे शारीरिक सौन्दर्य एवं कान्ति में वृद्धि होती हैरूप यौवन में निखार आता है। इस दीक्षा के माध्यम से ह्रदय में जिस आनन्द रस का संचार होता हैउसके फलतः हजार कठिनाई और तनाव रहते हुए भी व्यक्ति प्रसन्न एवं आनन्द से ओत-प्रोत बना रहता है।

कमला दीक्षा 
धर्मअर्थकाम और मोक्ष इन चार प्रकार के पुरुषार्थों को प्राप्त करना ही सांसारिक प्राप्ति का ध्येय होता है और इसमे से भी लोग अर्थ को अत्यधिक महत्त्व प्रदान करते हैं। इसका कारण यह है की भगवती कमला अर्थ की आधिष्ठात्री देवी है। उनकी आकर्षण शक्ति में जो मात्रु शक्ति का गुण विद्यमान हैउस सहज स्वाभाविक प्रेम के पाश से वे अपने पुत्रों को बांध ही लेती हैं। जो भौतिक सुख के इच्छुक होते हैंउनके लिए कमला सर्वश्रेष्ठ साधना है। यह दीक्षा सर्व शक्ति प्रदायक हैक्योंकि कीर्तिमतिद्युतिपुष्टिबलमेधाश्रद्धाआरोग्यविजय आदि दैवीय शक्तियां कमला महाविद्या के अभिन्न देवियाँ हैं।

प्रत्येक महाविद्या दीक्षा अपने आप में ही अद्वितीय हैसाधक अपने पूर्व जन्म के संस्कारों से प्रेरित होकर या गुरुदेव से निर्देश प्राप्त कर इनमें से कोई भी दीक्षा प्राप्त कर सकते हैं। प्रत्येक दीक्षा के महत्त्व का एक प्रतिशत भी वर्णन स्थानाभाव के कारण यहां नहीं हुआ हैवस्तुतः मात्र एक महाविद्या साधना सफल हो जाने पर ही साधक के लिए सिद्धियों का मार्ग खुल जाता हैऔर एक-एक करके सभी साधनों में सफल होता हुआ वह पूर्णता की ओर अग्रसर हो जाता है।

यहां यह बात भी ध्यान देने योग्य हैकि दीक्षा कोई जादू नहीं हैकोई मदारी का खेल नहीं हैकि बटन दबाया और उधर कठपुतली का नाच शुरू हो गया।

दीक्षा तो एक संस्कार हैजिसके माध्यम से कुस्नास्कारों का क्षय होता हैअज्ञानपाप और दारिद्र्य का नाश होता हैज्ञान शक्ति व् सिद्धि प्राप्त होती है और मन में उमंग व् प्रसन्नता आ पाती है। दीक्षा के द्वारा साधक की पशुवृत्तियों का शमन होता है ... और जब उसके चित्त में शुद्धता आ जाती हैउसके बाद ही इन दीक्षाओं के गुण प्रकट होने लगते हैं और साधक अपने अन्दर सिद्धियों का दर्शन कर आश्चर्य चकित रह जाता है।

जब कोई श्रद्धा भाव से दीक्षा प्राप्त करता हैतो गुरु को भी प्रसनता होती हैकि मैंने बीज को उपजाऊ भूमि में ही रोपा है। वास्तव में ही वे सौभाग्यशाली कहे जाते हैजिन्हें जीवन में योग्य गुरु द्वारा ऐसी दुर्लभ महाविद्या दीक्षाएं प्राप्त होती हैंऐसे साधकों से तो देवता भी इर्ष्या करते हैं।


जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है...मनीष

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