Thursday, January 30, 2014

Katha Gyan (कथा ज्ञान)

समर्पण
कथा महाभारत के युद्ध की है। अश्वत्थामा ने अपने पिता की छलपूर्ण ह्त्या से कुंठित होकर नारायणास्त्र का प्रयोग कर दिया। स्थिति बड़ी अजीब पैदा हो गई। एक तरफ नारायणास्त्र और दुसरी तरफ साक्षात नारायण। अस्त्र का अनुसंधान होते ही भगवान् ने अर्जुन से कहा - गांडीव को रथ में रखकर नीचे उतर जाओ ... अर्जुन ने न चाहते हुए भी ऐसा ही किया और श्रीकृष्ण ने भी स्वयं ऐसा ही किया। नारायणास्त्र बिना किसी प्रकार का अहित किए वापस लौट गया, उसने प्रहार नहीं किया, लेकिन भीम तो वीर था, उसे अस्त्र के समक्ष समर्पण करना अपमान सा लगा। वह युद्धरथ रहा, उसे छोड़कर सभी नारायणास्त्र के समक्ष नमन मुद्रा में खड़े थे। नारायणास्त्र पुरे वेग से भीम पर केन्द्रित हो गया। मगर इससे पहले कि भीम का कुछ अहित हो, नारायण स्वयं दौड़े और भीम से कहा - मूर्खता न कर! इस अस्त्र की एक ही काट है, इसके समक्ष हाथ जोड़कर समर्पण कर, अन्यथा तेरा विध्वंस हो जाएगा।

भीम ने रथ से नीचे उतर कर ऐसा ही किया और नारायणास्त्र शांत होकर वापस लौट गया, अश्वत्थामा का वार खाली गया। यह प्रसंग छोटा सा है, पर अपने अन्दर गूढ़ रहस्य छिपाये हुए है ... जब नारायण स्वयं गुरु रूप में हों, तो विपदा आ ही नहीं सकती, जो विपदा आती है, वह स्वयं उनके तरफ से आती है, इसीलिए कि वह शिष्यों को कसौटी पर कसते है ... कई बार विकत परिस्थियां आती हैं और शिष्य टूट सा जाता है, उससे लड़ते। उस समय उस परिस्थिति पर हावी होने के लिये सिर्फ एक ही रास्ता रहता है समर्पण का ... वह गुरुदेव के चित्र के समक्ष नतमस्तक होकर खडा हो जाए और भक्तिभाव से अपने आपको गुरु चरणों में समर्पित कर दे और पूर्ण निश्चित हो जाए ... धीरे धीरे वह विपरीत परिस्थिति स्वयं ही शांत हो जायेगी ... और फिर उसके जीवन में प्रसन्नता वापस आ जायेगी।

मत सोचो नेगेटिव... होगा सब अच्छा
सभी की जिन्दगी में उतार चढ़ाव आते हैं। कदम-कदम पर मुश्किलें आती हैं। हम सब जानते हैं, मुश्किलों की सबसे बुरी आदत ये ही की वे बिना बुलाए आ जाती है और उससे भी बुरी हमारी आदत नेगेटीव सोचने की। कई बार छोटी सी मुसीबत या परेशानी को हम इतनी बड़ी मान लेते हैं कि परिस्थिति का सामना करने से पहले ही हम हार मान बैठते हैं। ऐसे में जिन्दगी एक बोझ सी बन जाती है और बेमकसद हो जाती है। हम अपने आप को दुनिया का सबसे परेशान और बदकिस्मत व्यक्ति मान लेते हैं। ऐसे में खुद को तो तनावग्रस्त कर ही लेते हैं साथ ही हमसे जुड़े लोगों की जिन्दगी को भी तनाव से भर देते हैं।

एक बच्चे से उसके माता पिता बहुत प्यार करते थे। जैसे की सभी के माता-पिता करते हैं लेकिन उसकी कहानी कुछ अलग थी। उसके पेरेन्टस का प्यार सामान्य नहीं था। असामान्य था क्योंकि वो चाहते थे कि उनके बच्चे को इस बुरी दुनिया का सामना ना करना पड़े। वो चाहते थे कि वह बड़ा होकर बहुत बड़ी शख्सियत बने।इसीलिए उन्होंने अपने बच्चे को बाहरी माहौल से दूर रखा। उसे बाहर के बच्चों के साथ खेलने नहीं देते। बाहर के लोगों से बात नहीं करने देते। किसी रिश्तेदार से उसे मिलने भी नहीं देते। स्कूल भेजने की बजाय घर पर ही उसकी पढ़ाई की व्यवस्था कर दी। अब उस बच्चे की उम्र बड़ी तो माता-पिता दोनों ने सोचा कि अब हमारा बेटा अठारह साल का हो गया है। अब हमारा सपना पूरा होने का समय आ गया है। उन्होंने उसका एडमिशन एक बड़े मेडिकल कालेज में करवा दिया।

अब वह पहली बार कालेज गया उसने अपने आप को बाहरी माहौल में बड़ा असहज महसूस किया। वह दो दिनों में ही बाहरी दुनिया और उसके लोगों से परेशान हो गया। नतीजा ये हुआ कि उसने अपने माता-पिता से कहा कि वो उसे आकर यहां से ले जाए वरना वह होस्टल की बिल्डिंग से कूद कर अपनी जान दे देगा। माता-पिता घबरा गए और उसे घर ले आए।दरअसल उस लड़के को बाहर की दुनिया और आजादी रास नहीं आ रही थी क्योंकि वह तो कैद में रहने का आदी हो चुका था। उसे अपने फैसले खुद लेने की आदत नहीं थी। वह बाहरी दुनिया का तनाव बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। उसके माता- पिता को आज अपनी भूल का एहसास हुआ लेकिन अब वक्त गुजर चुका था।

अगर हमारा नजरिया नकारात्मक होगा तो हमारी जिन्दगी सीमाओं में कैद हो जाएगी। हो सकता है सकारात्मक नजरिया विकसित करने के लिए हमें थोड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़े और बदलाव के कारण अनिश्चितता महसूस हो लेकिन ये निश्चित है कि जब हम हर परिस्थिति को सकारात्मक ढंग से लेने के आदी हो जाएंगे तो एक दिन हम सफल जरुर होंगे।

जब न समझे कोई आपकी तकलीफ को

जब आपकी किसी तकलीफ को कोई समझ ना पाएं तो ये ना सोंचे की आपको कोई नहीं समझता क्योंकि आपकी तकलीफ या परेशानी को सिर्फ वही समझ सकता है जो खुद कभी उस परेशानी से गुजरा हो क्योंकि किसी की तकलीफ को कोई भी तभी समझ सकता है जब उसने भी उन विषम परिस्थितियों का सामना किया हो।

एक कुत्ता बेचने वाला था उसने कई कुत्तों को पाला ताकि वह उन्हे बेचकर अच्छा पैसा कमा सके । धीरे-धीरे कुत्तो की संख्या बढऩे लगी। बढ़ते - बढ़ते इतनी बढ़ गई की उसे उन्हे सम्भालना मुश्किल होने लगा। अब वह परेशान होने लगा उसे लगने लगा कि कोई भी उसके कुत्तों को बस खरीद ले। इसके लिए उसने कुत्तों की सेल लगा दी। उसके पास एक छोटा सा लड़का आया। उसने कहा अंकल मुझे एक कुत्ता चाहिए, लेकिन मेरे पास सिर्फ पचास रुपए ही हैं। क्या आप मुझे इतने पैसों में एक कुत्ता दे पाएंगे। उस बच्चे की मासूम शक्ल देखकर उस आदमी को उस पर प्यार आ गया। वह बोला हां जो तुम्हे पसंद आएगा में तुम्हे वो कुत्ता देने को तैयार हूं।

उस बच्चे ने कहां तो ठीक है आप जो मुझे सफेद रंग का कुत्ता सामने वाले पपी हाउस में मुझे यहां से दिखाई दे रहा दिजिए। वह बोला ठीक है वह आदमी उस कुत्ते को लेने के लिए जाता है तभी दूसरी तरफ एक कुत्ता लुढ़कता हुआ आता है और उसके पैर में आकर गिर जाता है। वह बच्चा दो मिनट तक खड़ा कुछ सोचता रहता है और अपनं पैरों में पड़े उस कुत्ते को उठाकर दूकानदार से कहता है, अंकल मुझे यही कुत्ता चाहिये। वह आदमी उस बच्चे से कहता है कि बेटा तुम इस कुत्ते को मत खरीदा। इसके पैर पूरी तरह से बेकार है, इससे ना तुम ठीक से खेल पाओगे और ना ये तुम्हारे साथ तब वो बच्चा अपने पेंट को उपर चढा़ते हुए। बोलता है अंकल यही पपी मेरा सबसे अच्छा दोस्त बन सकता है। क्योंकि ये मेरी तकलीफ को अच्छे से समझ सकता है और मैं इसकी। जब वो आदमी उस बच्चे के पैरों की तरफ देखता है तो उसके नकली पैरों को देखकर चुप हो जाता है और उसे वही कुत्ता सौंप देता है।

क्योंकि मौके बार बार नहीं आते

सामान्यत: सभी को जीवन में सफलता और सुख के लिए कई मौके मिलते हैं। कुछ लोग सही अवसर को पहचान कर उससे लाभ प्राप्त कर लेते हैं। वहीं कुछ लोग मूर्खतावश सही मौके को समझ नहीं पाते और सफलता, सुख-समृद्धि से मुंह मोड़ लेते हैं।

एक लड़का था, नाम था उसका सुखीराम। वह बहुत परेशान और दुखी था। सुखीराम के पास कोई खुश होने की कोई वजह नहीं थी। वह शिवजी का भक्त था। उसने भगवान की भक्ति से अपनी किस्मत बदलने की सोचा। अब वह दिन-रात भगवान की भक्ति में डूबा रहता। कुछ ही समय में परमात्मा उसकी श्रद्धा से प्रसन्न हो गए और उसके समक्ष प्रकट हो गए।

भगवान को अपने सामने देखकर सुखीराम ने अपने दुखी जीवन की कहानी सुनाना शुरू कर दी। वह विनती करने लगा कि उसे सभी सुख और ऐश्वर्य के साथ-साथ सुंदर और गुणवान पत्नी भी मिल जाए। इस पर शिवजी ने उसे अपनी किस्मत बदलने के लिए तीन मौके देने की बात कही। शिवजी ने कहा कि कल तुम्हारे घर के सामने से तीन गाय निकलेगी। किसी भी एक गाय की पूंछ पकड़ कर उसके पीछे-पीछे चले जाना तुम्हें सभी सुख प्राप्त हो जाएंगे। ऐसा वर पाकर सुखीराम खुश होकर अपने घर लौट आया। वह सुबह उठकर अपने घर के बाहर गाय के निकलने की प्रतिक्षा करने लगा। थोड़ी ही देर में एक सुंदर सुजसज्जित गाय निकली, उसे देखकर सुखीराम सोचने लगा कि दो गाय और आना है, शायद अगली गाय और ज्यादा धन, वैभव और सुख-समृद्धि देने वाली हो। इतना सोचते-सोचते वह पहली गाय उसके सामने से निकल गई। दूसरी गाय आई, वह बहुत ही गंदगी लिए हुए थी, उसके पूरे शरीर पर गोबर लगा हुआ था। उसे देखकर सुखीराम सोचने लगा इतनी गंदी गाय के पीछे कैसे जा सकता हूं? और वह तीसरी गाय का इंतजार करने लगा। तीसरी गाय आई तो उसकी पूंछ ही नहीं थी। सुखीराम सिर पकड़कर बैठ गया और अपनी किस्मत को कोसने लगा।

कहानी का सारंश यही है कि सही मौका मिलते ही उसका लाभ उठाने में ही समझदारी है, अन्य अवसरों की प्रतिक्षा करने से अच्छा है जो भी मौका मिला है उसका फायदा उठा लेना चाहिए।

तरक्की चाहिए तो खुद को बदलो

* सच कड़वा होता है लेकिन इसे स्वीकार करें
* अपने जीवनसाथी की कमजोरी को महसूस करें
हमारे समाज में पुराने ढररे पर चलना आज भी अनेक मामलों में सही माना जाता है चाहे वह शादी हो या कोई प्रथा इन बातों पर आज भी हमारा समाज रूढि़वादियों से घिरा है। लेकिन ये जरूरी नहीं कि उस का वह नियम या कायदा समय के अनुसार हो इसलिए हमें समय के साथ अपने आप को बदल लेना चाहिए।

गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़ा एक पंसग यही संदेश देता है। बुद्ध उस समय वैशाली में थे वे नित्य धर्मोपदेश देते थे और उनके शिष्य भी उनके उपदेशों का प्रचार करते एक दिन उनके शिष्यों का समूह यही काम कर रहा था कि रास्ते में उन्हें भूख से तड़पता हुआ आदमी दिखाई दिया उनके एक शिष्य ने कहा कि तुम भगवान बुद्ध की शरण में आआ और उनके उनके उपदेश सुनो तुमको शांति मिलेगी भिखारी भूख के मारे उठ नहीं पा रहा था जब महात्मा बुद्ध को इस बारे में पता चला तो वे उसी समय उस भिखारी से मिलने आए और उसे भरपेट खाना खिलाया फिर अपने शिष्य से बोले कि इस वक्त भरपेट खाना ही इसकी जरुरत है और उपदेश भी क्योंकि भूखे आदमी को धर्म समझ नहीं आएगा। हमें समय को ध्यान में रखकर ही सारा काम करना चाहिए।

चाह रखने वाले अपनी राह खुद बनाते हैं

किसी का भला करने या मदद करने के लिए के हमें चाहत की जरूरत होती है बहुत से लोग पैसे की कमी या अपनी क्षमता का रोना रोते रहते हैं लेकिन सही मायनों में अअर देखा जाए तो सच्ची लगन और भावना रास्ता अपने आप बना देती है।

एक छात्र डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहा था वह जरूरतमंदों की हमेशा मदद करता। एक दिन उसे रास्ते में एक बच्चा मिला जिसके साथ कोई नहीं था उसने पुलिस को खबर कर उस बच्चे को अनाथालय में छोड़ दिया लेकिन वह उस बच्चे से लगातार मिलने के लिए अनाथालय जाता उसने वहां देखा कि उस अनाथालय में बच्चों की देखरेख और पढ़ाई की व्यवस्था तो अच्छी है पर वहां के स्टाफ में आपस में प्रेम भाव नहीं है जिसे बच्चे खुश रह सकें। उस छात्र ने अपनी पढ़ाई खत्म होने के बाद एक आन्दोलन चलाया कि जिन लोगों की गृहस्थी छाटी है वे अनाथ बच्चों को गोद लें और उनका पालन पोषण करें उसकी इस कोशिश में कई लोगों ने उसका साथ दिया

और अनाथ बच्चों को मां बाप का साथ मिलने लगा वह छात्र नोबेल पुरूस्कार विजेता पैस्टोला था जिन्होंने अपना पूरा जीवन अनाथ बच्चों के लिए समर्पित कर दिया उनका ये काम लोगो के लिए मिसाल बन गया उनके इस काम यही पता चलता है कि जहां चाह होती है वहां राह अपने आप बन जाती है।

समय किसी के लिए नहीं रुकता

अंहकार की अति के चलते स्वयं के आगे किसी को कुछ न समझना और यह मानना कि आपके बिना कुछ नहीं हो सकता की सोच लोगों में हावी होती जा रही है। लेकिन आज सच्चाई कुछ और ही बोलती है आज के समय में किसी के बगैर किसी का काम नहीं रुकता। इसलिए आज आदमी को जरुरत है कि वह अपने आप को इतना महत्वपूर्ण बना ले कि लोग हमारे न होने पर हमारी जरूरत को महसूस करें।

एक गांव में झगड़ालु औरत रहती थी उसके कड़वे स्वभाव की वजह से कोई भी उससे बात करना पसंद नहीं करता था उसका एक ही साथी था और वह था उसका मुर्गा। मुर्गा रोज सवेरे बांग देता और गांव में रोजमर्रा का काम शुरु हो जाता। गांववालों की उपेक्षा के कारण एक दिन उसने गांव छोडऩे का फैसला किया गांव छोडऩे से पहले उसने गांव वालों को कहा कि मैं गांव छोड़ के जा रही हूं अब तुम लोग हमेशा मुसीबत में रहोगे क्योंकि मेरे मुर्गे की बांग से गांव में सवेरा होता है और अब ये गांव हमेशा के लिए अधेंरे में डूब जाएगा। दूसरे गांव पहुंचकर जब अगले दिन वह सोकर उठी तो सवेरा हो चुका था और उसका मुर्गा बांग देने की बजाए जंगल में कहीं चला गया उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि बिना उसके मुर्गे के बांग दिए सवेरा कैसे हो गया तब एक बुजुर्ग ने उस औरत को समझाया कि सूरज के उगने पर मुर्गे बांग देते हैं न कि उनके बांग देने पर सूरज उगता है ये प्रकृ ति का नियम है जो किसी के लिए नहीं बदल सकता।

हर आदमी एक पाठशाला हैयूं तो आज हर जगह अच्छी से अच्छी शिक्षा देने के लिए बड़े बड़े कॉलेज और स्कूल बनाए गए हैं जहां पर मोटी फीस देकर पढऩे का सपना सबको नसीब नहीं होता लेकिन वास्तविकता में ऐसे संस्थान भी विद्यार्थियों को वो व्यावहारिक ज्ञान नहीं दे पाते जिसकी उन्हें सबसे ज्यादा जरुरत होती है जिनसे वे जिदंगी के हर पहलु का सामना समझदारी से कर सकें

संत शेख नासिर हमेशा कहते थे कि मैं हर आदमी से कुछ न कुछ सीखता हूं क्योंकि सभी में कोई न कोई विशेषता जारूर होती है। उनकी इस बात पर कई लोगों ने उनका मजाक बनाते हुए एक नाई की ओर इशारा करते हुए कहा कि क्या इस नाई ने भी आपको कोई पाठ पढ़ाया है। शेख नासिर ने हां करते हुए कहा इस नाई के पास बहुत से लोग हजामत के लिए आते हैं एक दिन मैंने इसे कहा कि खुदा के लिए मेरी हजामत पहले बना दो तब इसने बड़े प्रेम से सबका काम छोड़कर मेरा काम पहले किया उस समय मेरे पास पैसे भी न थे जब मैं थोड़े दिन बाद उसे पैसे देने गया तब वो मुझे बोला कि आपने मुझे खुदा के लिए हजामत बनाने के लिए कहा और मैने ये काम खुदा के लिए किया था पैसे के लिए नहीं। नासिर ने लोगों को समझाते हुए कहा कि मैंने इस नाई से निष्काम ईश्वर भक्ति सीखी है इसलिए मैं कहता हूं कि हर आदमी एक पाठशाला है।

सीखें जिदंगी के हर पहलु सेहम सभी के जीवन में समस्याएं हैं। कभी-कभी हम अपनी समस्याओं को बहुत कठिन और बड़ा बना लेते हैं। इतने भाग्यवादी हो जाते हैं।कि हम जिन्दगी को मुसीबत समझकर समस्याओं से भागने लगते हैं लेकिन इस दौड़ में हम ये भूल जाते हैं कि मुसीबतें भागने से खत्म नहीं होतीं, बिना उनसे जूझे ये सुलझ भी नहीं सकतीं।
एक आदमी हमेशा मुसीबतों से घिरा रहता था। उसका एक कदम ठीक होता तो दूसरा बिगड़ जाता। उसे सुधारने जाता तो तीसरा बिगड़ जाता। तीसरा सुधारने जाता तो कोई नई मुसीबत खड़ी हो जाती। कभी परिवार पर कोई संकट, तो कभी नौकरी पर। उनसे पार पाता तो कोई नई उलझन सामने आ जाती। वह बहुत परेशान हो गया। उसने सोचा कि ये मेरे साथ ही क्यों होता है। ऐसा कब तक चलता रहेगा? क्या जीवन में कभी सुख संतोष होगा? वह इतना निराश हो गया कि उसने आत्महत्या तक करने का प्रयास कर लिया पर किस्मत ने उसका वहां भी साथ नहीं दिया। वह बच गया और परिवार और इष्ट मित्रों ने उसे बहुत ताने सुनाए और उसे जिन्दगी से भागने वाला कहा सभी ने उसे धिक्कारा। उसने सोचा कि स्थान बदलने पर शायद मेरा भाग्य बदल जाएगा।

उसने एक छोटे से कस्बे को पसंद किया। वहां जाने के लिए उसने और उसके परिवार ने तैयारी कर ली। सामान लेकर उसने जैसे ही घर से बाहर कदम रखा तो देखा एक महिला सामने रास्ता रोके खड़ी है। उसने पूछा कौन हो तुम और क्या चाहती हो। महिला ने कहा तुम्हारा साथ। आदमी ने जवाब दिया लेकिन मैं तो शहर छोड़ रहा हूं। महिला ने मुस्कुरा कर कहा तो मैं भी वहां तुम्हारे साथ जाऊंगी। आदमी ने झल्लाकर उसका परिचय पूछा तो वह बोली- मैं तुम्हारी किस्मत हूं। यह सुनकर उसका दिल बैठ गया। उसने कहा जब तुम ही मेरा साथ छोडऩे को तैयार नही हो तो मैं कहीं भी जाकर क्या करुंगा?

उस आदमी ने फैसला किया कि मैं यहीं रहकर अपना भाग्य बदलूंगा। निश्चय ही उसकी मेहनत रंग लाई, जी तोड़ मेहनत से सफलता उसके कदम चुमने लगी। अब वह भी खुश था और परिवार भी उल्लास के माहौल से कष्ट भी आता तो उसका तुरंत समाधान हो जाता।

विश्वास से जीत सकते हैं दुनिया कोकिसी भी काम में मिलने वाली हार को जिन्दगी की सबसे बड़ी हार मानकर निराश होने वाले कभी मंजिल तक नहीं पहुंच सकते। जिन्दगी में मिलने वाली नाकामयाबियां ही इस बात का पैमाना तैयार करती हैं कि व्यक्ति अपने जीवन में कितना सफल होगा क्योंकि जो अपनी जिन्दगी की हर ठोकर से कुछ नया सीखकर आगे बढ़ता है वही आसमान की बुलंदियों को छूता है। किसी ने बहुत सही कहा है कि अगर तुम्हे सफल होना है तो सीढिय़ों की जरुरत नहीं है क्योंकि सीढिय़ां उनके लिए बनी है जिन्हे छत पर जाना हो,आसमान पर हो जिनकी नजर उन्हे तो रास्ता खुद ही बनाना होगा। और किसी के बनाये हुए रास्ते पर चलकर मंजिल तक पहुंचना आसान होता है लेकिन रास्ता अगर खुद ही को बनाना हो तो चोट तो लगना ही है। सफ लता इस बात से नहीं मापी जाती कि हमने जिन्दगी में कितनी उंचाई हासिल की है, बल्कि इस बात से मापी जाती है कि हमने कितनी बार गिर कर उठने की क्षमता दिखाई है।

मशहूर आदमी की जिन्दगी की बड़ी मशहूर कहानी है। यह आदमी इक्कीस साल की उम्र में व्यापार में नाकामयाब हो गया। बाइस साल की उम्र में वह चुनाव हार गया। चौबीस साल में वह व्यापार में असफल हो गया। छब्बीस साल की उम्र में उसकी पत्नी मर गई। सताइस साल की उम्र में उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। चौतीस साल की उम्र में वह कांग्रेस से चुनाव हार गया। पैतालिस साल की उम्र में उसे सीनेट के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। सैतालिस साल की उम्र मैं वह उपराष्ट्रपति बनने में असफल रहा। उनपचास साल की आयु सीनेट के एक ओर चुनाव में कामयाबी मिली, ओर वही आदमी बावन साल की उम्र में अमेरिका का राष्ट्रपति चुना गया। वह आदमी अब्राहम लिंकन था।

ज्ञान की कोई कीमत नहीं होतीइंसान को कभी अपनी शक्तियों और सम्पत्ति पर अभिमान नहीं करना चाहिए क्यों कि माया व्यक्ति को बुद्धिहीन कर देती है। और बुद्धिहीन लोग जीवन में कभी ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाते।

एक बार एक जानश्रुति नाम का राजा था उसे अपनी सम्पत्ती पर बड़ा घमंड था एक रात कुछ हंस राजा के कमरे की छत पर आकर बात करने लगे एक हंस बोला कि राजा का तेज चारों ओर फैला है उससे बड़ा कोई नहीं तभी दूसरा हंस बोला कि तुम गाड़ी वाले रैक्क को नहीं जानते उनके तेज के सामने राजा का तेज कुछ भी नहीं है। राजा ने सुबह उठते ही रैक्क बाबा को ढूढ़कर लाने के लिए कहा राजा के सेवक बड़ी मुश्किल से रैक्क बाबा का पता लगाकर आए। तब राजा बहुत सा धन लेकर साधू के पास पहुंचा और साधू से कहने लगा कि ये सारा धन में आपके लिए लाया हूं कृपया कर इसे ग्रहण करें और आप जिस देवता की उपासना करते हे उसका उपदेश मुझे दीजिए साधू ने राजा को वापस भेज दिया। अगले दिन राजा और ज्यादा धन और साथ में अपनी बेटी को लेकर साधू के पास पहुंचा और बोला हे श्रेष्ठ मुनि मैं यह सब आपके लिए लाया हूं आप इसे ग्रहण कर मुझे ब्रह्मज्ञान प्रदान करें तब साधू ने कहा कि हे मूर्ख राजा तू तेरी ये धन सम्पत्ति अपने पास रख ब्रह्मज्ञान कभी खरीदा नहीं जाता। राजा का अभिमान चूर चूर हो गया और उसे पछतावा होने लगा।

कथा बताती है कि जहां अभिमान होता है वहां कभी ज्ञान नहीं होता ज्ञान को पाने के लिए इंसान को अपना अहंकार को छोडना पड़ता है।

जीत की भूख ही बनाती है सफलमन की शक्ति ही वह ताकत है,जो किसी को भी वो हर काम करने की हिम्मत देती है, जिसे कोई इंसान ये सोचता है कि ये मुझसे नही होगा। हर व्यक्ति हर काम कर सकता है सिर्फ जरुरत है तो अपनी पूरी आंतरिक शक्ति से लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करने की।

राघव क्रिकेट की प्रेक्टिस करने लगातार जाता था। बहुत प्रेक्टिस करने के बाद भी वह टीम में सिलेक्ट नहीं हो पाया। जब वह प्रेक्टिस करता तो उसकी मां मैदान में बैठकर उसका इंतजार करती रहती थी। इस बार जब नया प्रेक्टिस सीजन शुरु हुआ, तो वह चार दिन तक प्रेक्टिस पर नहीं आया। क्वार्टर फाइनल और सेमीफाइनल मैच के दौरान भी नहीं दिखा। राघव फाइनल मैच के दिन आया। उसने अपने कोच के पास जाकर कहा आपने मुझे हमेशा रिजर्व खिलाडिय़ों में रखा और कभी क्रिकेट टीम में खेलने नहीं दिया लेकिन आज मुझे खेलने दीजिए। कोच ने कहा बेटा मुझे दुख है। मैं तुम्हे यह मौका नहीं दे सकता। फाइनल मैच है कालेज की इज्जत का सवाल है। मैं तुम्हें खिलाकर अपनी इज्जत दांव पर नहीं लगा सकता। राघव ने खूब मिन्नतें की। कोच का दिल पिघल गया।कोच ने कहा ठीक है जाओ खेलो लेकिन याद रखना कि मैंने यह निर्णय अपने कर्तव्य के विरुद्ध लिया है, ध्यान रखना मुझे शर्मिंदा ना होना पड़े।

मैच शुरु हुआ लड़का तूफान की तरह खेला उसने छ: गेंद पर छ: छक्के मारे। उस मैच का हीरो बन गया। उस मैच मैं टीम को शानदार जीत मिली। मैच खत्म होने के बाद कोच उस राघव के पास जाकर पूछा मैंने तुम्हे कभी इस तरह खेलते हुए नहीं देखा। यह चमत्कार कैसे हुआ?

राघव बोला कोच आज मेरी मां मुझे खेलते हुए देख रही थीं। कोच ने उस जगह मुड़कर देखा जहां उसकी मां बैठा करती थीं। कोच ने कहा बेटा तुम जब भी मैच की प्रेक्टिस करने आते थे। तब तुम्हारी मां हमेशा उस जगह बैठा करती थीं लेकिन आज मै वहां किसी को नहीं देख रहा हूं। राघव ने बताया कि कोच मैनें आपको यह कभी नहीं बताया कि मेरी मां अंधी थीं। पांच दिन पहले ही उनकी मृत्यु हो गई। आज पहली बार वो मुझे ऊपर से देख रही हैं।

जिंदगी जियो जी भर केबहुत से लोग मौत के डर से भयभीत होकर जिदंगी के बारे में सोचना ही छोड़ देते हैं उन्हें केवल एक ही बात ही सताती है कि उन्हें एक दिन मरना है ऐसे लोग जीने के आंनद को महसूस ही नहीं कर पाते हैं एक राजा ने मरने के डर से एक ऐसा महल बनवाया जिसमें कोई खिड़की ही नहीं थी केवल एक दरवाजा था और एक के बाद एक पहरेदार खड़े कर दिए। थोड़े दिनों के बाद उस राजा का दोस्त उससे मिलने आया जब राजा ने उसे अपना नया महल दिखाया तो उसका मित्र बोला कि मैं भी अपने लिए ऐसा ही महल बनवाऊंगा तभी सामने खड़ा एक भिखारी उनकी बातें सुनकर हंसने लगा और बोला कि तुम इसके अन्दर चले जाओ और एक दरवाजा लगवालो तब तो कोई भीतर आ ही नहीं पाऐगा। यह सुनकर राजा को गुस्सा आया वो भिखारी से बोला कि तुम पागल हो गए हो क्या इस तरह तो यह मेरी कब्र बन जाएगी तब राजा को भिखारी के हंसने का कारण समझ में आया। मृत्यू एक सच है लेकिन एसके डर से जीवन जीने की खुशी को छोड़ देने वाला सबसे बड़ा मूर्ख होता है।

याद रखें वक्त हमेशा बदलता है

दिन के बाद रात और रात के बाद दिन को आना ही होता है आना-जाना जगत का शाश्वत नियम है जो इस नियम को जान लेता है वह जीवन के बन्धनों से मुक्त हो जाता है।

एक नगर में एक सेठ रहता था वह उस नगर का सबसे धनी व्यक्ति था। एक दिन उसे व्यापार में बहुत बड़ा घाटा हुआ और सारी सम्पत्ति चली गई। निराश होकर उसने आत्महत्या करने का विचार किया। वर्षा ऋतु चल रही थी एक अंधेरी रात में वह घर से निकला और नदी पर जा पहुंचा। वह नदी में कूदने के लिए जैसे ही चटटान पर चढ़ा तभी दो मजबूत हाथों ने उसे पकड़ लिया। बिजली की चमक में उसने देखा कि जिसने उसे पकड़ा है वह कोई साधू है। साधू ने उससे आत्महत्या का कारण पूछा तब सेठ ने साधू को अपनी निराशा का कारण बताया। सुनकर साधू हंसने लगे और सेठ से कहने लगे कि तुम यह स्वीकार करते हो कि पहले तुम सुखी थे। वह बोला हां महाराज पहले मेरा भाग्य चमक रहा था क्यों कि तब मेरे पास लक्ष्मी थी लेकिन अब मेरे जीवन में सिर्फ अंधकार है। साधू फिर हंसने लगा और बोला जैसे रात्रि के बाद दिन और दिन के बाद रात्रि का आना निश्चित है। वैसे ही जब अच्छे दिन नहीं रहे तो बुरे दिन भी नहीं रहेगें।

परिर्वतन प्रकृति का नियम है जो इस सच को जान लेता है वह सुख में सुखी नहीं होता और दु:ख में दु:खी नहीं होता उसका जीवन उस चटटान की तरह हो जाता है जो वर्षा और धूप दोनों में समान होती है। इस लिए तुम भी इस नियम को समझ कर इस का पालन करो और अपना कर्म करते रहो। सेठ को साधू की बात समझ में आ गई और वह अपने घर वापस चला आया।

असली खुशी है आज में जीनाअक्सर लोग भविष्य के सुख की चाह में अपने आज से इस तरह समझौता करते हैं कि आने वाला कल भी उनका आज जैसा ही होता है सुख और शांति से जीने की चाह में आदमी अपने आज में इतना खो जाता है कि आने वाले कल में सुख और शांति की परिभाषा ही भूल जाता है और खुशी शांति जैसे शब्द केवल सुनने मात्र को रह जाते हैं।

एक होटल चलाने वाले व्यापारी ने अपने दोस्त से कहा कि मैं पचपन साल तक कमा लूं फिर शांति से जीऊंगा जब वह आदमी पचपन साल का हो गया तब अपने दोस्त से फिर मिला तब उस दोस्त ने उससे पूछा कि क्या चल रहा है तब वह बोला कि मैं बड़ा परेशान हूं घर में मन नहीं लगता मुझे मेरे काम की याद आती है होटल की याद आती है पत्नी को शिकायत रहती है कि जैसा व्यवहार होटल वालों के साथ करते थे वैसा ही हुकुम घरवालों पर चलाते हैं इस पर घर में रोज झगड़ा होता है इसलिए मैंने दोबारा होटल आना शुरु कर दिया। दोस्त बोला तुमने कल जीने की सोच में अपना अच्छा खासा आज बरबाद कर दिया सब चीजों से फ्री होकर जब तुमने शांति से जीना चाहा तो तुम्हें वो भी अच्छा नहीं लगा। अब तुम खुद सोचो कि तुमने क्या पाया और क्या खोया।

बस जरुरत है खुद को पहचानने कीहर इंसान के अन्दर कोई न कोई खूबी जरूर होती है जिसे अगर वह सही जगह पर इस्तेमाल करे तो उसका जीवन सफल बन सकता है लेकिन इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है खुद के उस हुनर को पहचानना।

एक बार की बात है। एक बाप अपने तीन बेटों में संपत्ति बांटना चाहता था लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था कि तीनों में से किस बेटे को अपनी जायदाद दे। तीनों जुड़वा थे उम्र से भी तय नहीं किया जा सकता है। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। तो उसने फकीर से सलाह ली। फकीर ने उसे एक तरीका बताया । उसने बेटों से कहा मैं तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूं और बेटों को उसने कुछ बीज दिए और कहा कि इन बीजों को सम्हाल कर रखना। उसके बाद उनके पिता तीर्थ पर चले गए उसके बाद लम्बे समय के बाद लौटे। वे एक-एक कर तीनों के घर गए। पहले बेटे के घर पहुंचे। पहले बेटे से उन्होंने पूछा बेटा मैंने जो तुम्हे बीज दिए थे उसका तुमने क्या किया? उसने कहा पिताजी कौन से बीज मुझे तो याद ही नही। पिता ने उसे कुछ भी नहीं कहा।

उसके बाद पिता ने अपने दूसरे बेटे के घर जाकर भी यही प्रश्र किया। उसने अपनी तिजोरी की चाबी पिता को दे दी और कहा मैंने आपकी अमानत को तिजोरी में सम्हाल कर रखा है। पिता को फिर निराशा हुई। अब वे तीसरे बेटे के पास गए और वही प्रश्र दोहराया। उसने कहा पिताजी आप को मेरे साथ कहीं चलना होगा। दोनों थोड़ी दूर चले और सामने एक बगीचा था। पुत्र ने कहा पिताजी ये रहे आपके बीज। पिता का दिल खुशी से झुम उठा और उसने खुश होकर अपनी सारी जायदाद अपने तीसरे बेटे के नाम कर दी।

परमात्मा ने हर किसी को हुनर दिया है, सभी को समान शरीर दिया है और संभावनाएं भी। पर फर्क सिर्फ इस बात से पड़ता है कि आप किसी मौके में या अपने आप में कितनी संभावनाऐ देखते है और आप मौका हो या शरीर कितनी बेहतर तरीके से उसका उपयोग करते हैं। पिता ने अपने तीनों बेटों को समान बीज दिए थे पर तीनों ने उसका अपने ढंग से उपयोग किया। वैसे ही परमात्मा ने हम सभी को जीवन और अपने स्तर की संभावनाएं दी हैं। बस सब कुछ इसी पर टिका है कि हम उसका उपयोग कैसे करते हैं

सच्चा प्रेम... जो हर हाल में दे आपका साथ

आज बहुत सारे लोग सच्चे प्यार का दम भरते हैं लेकिन अगर सच्चाई पर गौर किया जाये तो हम देखते हैं कि वे ही लोग जरा सी मुसीबत आते ही अपने फर्ज से मुंह मोड़ लेते हैं और उनके सच्चे प्यार के दावे खोखले रह जाते हैं।

एक व्यक्ति ने अपने परिवार के खिलाफ जाकर एक सुन्दर लड़की से शादी की और रात दिन पत्नी को खुश करने में जुट गया। एक बार वह पत्नी के साथ नौका विहार के लिए गया तभी अचानक तूफान आया और नाव डूबने लगी पत्नी को परेशान देखकर वह कहने लगा कि तुम घबराओ नहीं में तुम्हें डूबने नहीं दूंगा और पत्नी को कंधे पर बिठाकर तैरने लगा।

बहुत देर तक कोई किनारा नहीं आया और वह युवक भी थक चुका था तभी उसके मन में स्वार्थ जागने लगा। वह अपनी पत्नी से बोला कि जब तक संभव हुआ मैंने तुम्हें बचाया लेकिन अब मैं थक चुका हूं और अगर मैं इसी तरह तुम्हें लेकर तैरता रहा तो मैं भी डूब जाऊंगा अब मैं मेरी जान की परवाह करूंगा क्योंकि अगर मैं जिन्दा रहा तो दूसरा विवाह कर सकता हूं।और इतना कह कर वह मझधार में अपनी पत्नी को छोड़कर चला गया।

कथा का सार है कि सच्चे प्यार की पहचान कठिन समय में ही होती है और जो मुसीबत में साथ देता है वही सच्चा साथी होता है।

ऐसे लोग कभी सुखी नहीं होते
कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें किसी भी स्थिति में संतोष और खुशी नहीं मिलती। वे चाहे जिस भी रह लें वे कभी खुश नहीं रह सकते। एक आदमी रोज मंदिर जाता और प्रार्थना करता है, हे भगवान मैं जीवन से बहुत परेशान हूं मुझे दुखों से मुक्ति दे दो। मुझे मोक्ष चाहिये, मुझे मोक्ष दे दो। एक दिन भगवान परेशान हो गए क्योंकि वह रोज सुबह-सुबह पहुंच जाता और गिड़गिड़ता कि मैं दुखी हूं। एक दिन भगवान प्रकट हो गए और बोले तुझे मुक्ती चाहिए तो लो इसी वक्त लो, यह खड़ा है विमान बैठकर चलो। वह आदमी घबरा कर बोला अभी, एकदम कैसे हो सकता है? अभी मेरा लड़का छोटा है। उसकी शादी हो जाए फिर चलूंगा। अब उस व्यक्ति का बेटा जवान हो गया और उसकी शादी हो गई। भगवान फिर प्रकट हुए और बोले चलो मेरे साथ मे तुम्हें मोक्ष के लिए लेने आया हूं। लड़के की तो अभी शादी हुई है। पोते या पोती का सुख देख लूं, फिर मैं बिल्कुल तैयार हूं। भगवान फिर वापस चले गए।

ऐसे करते-करते वह व्यक्ति बूढ़ा हो गया उसके हाथ पैर थक गए। अभी तक जब भी भगवान आते वह उन्हें हर बार बहाना बना कर लौटा देता। अब वह व्यक्ति बूढ़ा हो गया तो भगवान को लगा कि अब तो मुझे इसकी कामना पूरी कर ही देनी चाहिये। भगवान फिर प्रकट हो गए तो अब वह आदमी झुंझला गया और बोला आप तो मेरे पीछे ही पड़ गए आपको और कोई नहीं मिलता क्या? आप कृपया यहां से चले जाइए। भगवान बोले फिर तू मुझसे इतने सालों से क्यों रोज मुक्ति मांगता है। दरअसल वो तो मेरी पुरानी आदत है। वो तो मैं आदतन बोलता हूं। कल मैं फिर आऊंगा और वही प्रार्थना दोहराऊंगा प्रकट मत हो जाना। अक्सर लोगों के साथ आज यही समस्या है वे समझते हैं,मंदिर जाते हुए उम्र कट जाती है लेकिन परमात्मा के अनुरूप नहीं हो पाता क्योंकि वह भगवान को भी अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं।उनकी पूजा का लक्ष्य भगवान को पाना नहीं बल्कि सांसारिक पदार्थों और दुखों से बचना भर है। इसलिए ऐसे लोग मांगने पर ही अपना सारा जीवन बीता देते हैं जो होता है उसका आनंद नहीं उठाते हैं। इसलिए ऐसे लोगों की जिन्दगी का अभाव कभी खत्म ही नहीं हो पाता है। वे हमेशा दुखी ही रहते है, खुद भगवान प्रकट हो जाएं तब भी।

गलतफहमियों की बलि न चढ़ाएं अपने रिश्ते कोजिदंगी में कुछ रिश्ते बड़े ही नाजुक होते हैं इसलिए उन्हें सहेजना और सम्भालना बड़ा मुश्किल हो जाता है। ऐसा ही एक रिश्ता है प्रेम का चाहे वो पति पत्नी का हो या प्रेमी प्रेमिका का। एक दूसरे की भावनाओं को न समझ पाना और कभी अपनी भावनाओं को अपने प्रेमी के सामने न रख पाना और उसका आपकी भवनाओं को न समझ पाना दोनों ही स्थिति में रिश्ते गलतफहमी के शिकार होने लगते हैं, नतीजन रिश्तों में दरार आने लगती है।

ऐसा ही एक किस्सा है मिर्जा और साहिबा का। दोनो एक दूसरे से बेहद प्यार करते लेकिन साहिबा के भाईयों को दोनों का रिश्ता बिल्कुल पसंद नहीं था इसलिए वे लोग उसकी शादी किसी दूसरी जगह करना चाहते थे। मिर्जा युद्धकला में माहिर था वो साहिबा से जी जान से प्यार करता था इसलिए जिस जगह साहिबा की शादी हो रही थी उसी वक्त वो मण्डप में से ही साहिबा को उठा लाया। दोनों भागते भागते जब थकने लगे तो एक पेड़ के नीचे सुस्ताने लगे मिर्जा को नींद आ गई तभी साहिबा ने देखा की उसके भाई दोनों को मारने के लिए आ रहे हैं
साहिबा ने सोचा कि अब तो उसके भाई उन दोनों को अपना लेंगें और अपने भाईयों को वह मना सकती है वह यह भी जानती थी कि अगर लडाई हुई तो मिर्जा उसके भाईयों को मार डालेगा। इस डर से उसने मिर्जा के सारे तीर तोड़ दिए जैसे ही साहिबा के भाईयों ने धावा बोला अचानक मिर्जा की नींद खुली और वह अपने तीर कमान ढूढऩे लगा जब उसे अपने सारे तीर टूटे हुऐ जमीन पर दिखे तो वह समझ गया कि यह सब साहिबा ने ही किया है और साहिबा के भाईयों ने उसे मार डाला मिर्जा ने सोचा कि साहिबा ने उसे धोखा दिया है लेकिन साहिबा की भावना कुछ और थी जो साहिबा मिर्जा को बता नहीं पाई।

इसलिए प्यार में भावनाओं को प्रदर्शित करना और समझना दोनों ही जरूरी हैं।

दाम्पत्य का पहला सुख एक दूसरे का साथसुखी जीवन के कई सूत्र होते हैं। वर्तमान में देखने को मिलता है कि शादी के बाद पति पत्नी एक दूसरे को समय नहीं दे पाते नतीजा ये होता है कि एक दूसरे में तकरार और शिकायतें जन्म लेने लगती हैं। रिश्ता बनने से पहले ही बिखरने लगता है इसलिए अगर दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाना है तो सबसे ज्यादा जरूरी है एक दूसरे के साथ रहना। तभी वे एक दूसरे की भावनाओं को अच्छे से समझ पाते हैं क्यों कि एक दूसरे को समझे बिना शादीशुदा जीवन की खुशी महसूस करना मुश्किल होता है।

इसका एक उदाहरण हमें रामायण में देखने को मिलता है। राजतिलक के समय जब माता कैकई ने राम के लिए राजा दशरथ से वनवास मांग लिया तब रामजी ने सीता से कहा कि तुम महल में रहो और मेरी प्रतीक्षा करो। लेकिन सीता जी तो श्रीराम के साथ जाना चाहती थी राम ने सीता जी को बहुत समझाया कि तुम एक राजकुमारी हो राजमहल में पली बडी हो तुम वन के वातारण को नहीं सह पाओगी। सीता जी ने राम से कहा कि एक पत्नी के लिए सबसे बड़ा सुख होता है पति का सानिध्य और यही उसका सबसे बड़ा कर्तव्य भी होता है।  इसलिए मैं आपके साथ रहना चाहती हूं फिर चाहे वो महल हो या वन।

सीता जी की यह बात सुनकर भगवान राम उन्हें अपने साथ वनमें ले गए और चौदह सालों तक वन में एक दूसरे के साथ रहकर जीवन व्यतीत किया।

मुश्किल एक दिन टल ही जाएगी

जिन्दगी में परेशानियां सभी के साथ होती हैं। समस्याओं से हारकर आप जीवन को जीना नहीं छोड़ सकते हैं। भगवान जिन्दगी का हर दिन हमें एक अनमोल सिक्के के रूप में दिया है। अगर आप खर्च करें तो ठीक, नहीं तो वह जिस तरह से देता है उसी तरह वापस भी ले लेता है। जिन्दगी के जो पल हैं उन्हें खुशी से बिताएं क्योंकि जिन्दगी का समय सीमित है और मौत एक सच्चाई ।

एक शहर में चार साधु आए। एक साधु शहर के चौराहे पर जाकर बैठ गया दूसरा घंटाघर में, एक कचहरी में और चौथा साधु शमशान में जाकर बैठ गया। चौराहे परबैठे साधु से लोगों ने पूछा, बाबाजी आप यहां आकर क्यों बैठे हो? क्या कोई अच्छी जगह नहीं मिली? साधु ने कहां यहां चारों दिशा से लोग आते है और चारों दिशाओं मे जाते हैं। किसी आदमी को रोको तो वह कहता है कि रुकने का समय नहीं हैं, जरुरी काम पर जाना है। अब यह पता नहीं लगता कि जरुरी काम किस दिशा में है इसलिए यह जगह बढिय़ा दिखती है।

घंटाघर पर बैठे साधु से लोगों ने पूछा बाबा। यहां क्यों बैठे हो? साधु ने कहा घड़ी की सुइयां दिनभर घूमती है परंतु बारह बजते ही हाथ जोड़ देती है कि बस हमारे पास इतना ही समय है, अधिक कहां से लाएं? घंटा बजता है तो वह बताता है कि तुम्हारी उम्र में से एक घंटा और कम हो गया। जीवन का समय सीमित है। हमें यह जगह बढिय़ा दिखती है।

कचहरी के बाहर बैठे साधु से लोगों ने पूछा बाबा आप यहां क्यों बैठे हो? साधु ने कहा यहां दिन भर अपराधी आते हैं। मनुष्य पाप तो अपनी मर्जी से करता है परंतु दंड दूसरे की मर्जी से भोगना पड़ता है। अगर वह पाप करे ही नहीं तो दंड क्यों भोगना पड़े? इसलिए हमें यह जगह बढिय़ा दिखती है।

शमशान में बैठे साधु से लोगों ने पूछा बाबाजी आप यहां क्यों बैठे हो? साधु ने कहां शहर में कोई भी आदमी हमेशा नहीं रहता। सबको एक दिन यहां आकर उसकी यात्रा समाप्त हो जाती हैं। कोई भी आदमी यहां आने से बच नहीं सकता। हमें जीवन रहते-रहते ही इसे जी लेना चाहिये। जिससे फिर संसार में आकर दुख ना झेलना पड़े इसलिए यह जगह मुझे बैठने के लिए सबसे बढिया दिखती हैं।

कथा बताती है कि जिदंगी को हर हाल में खुशी से जिऐं क्यों कि मौत तो एक दिन सभी को आनी है उसकी चिंता में हम आज की खुशी न गवाएं।

समझें अपने साथी के दर्द कोज्यादातर दाम्पत्य संबंधों में खटास तभी आती है जब पति-पत्नी एक-दूसरे की परेशानियों को नहीं समझ पाते। दोनों एक दूसरे को नजर अंदाज करने लगते हैं। ऐसे में स्थिति बिगड़ती है और फिर रिश्ता टूटने तक की नौबत आ जाती है। अगर दाम्पत्य को जीवनभर खुशहाली भरा रखना है तो इसके लिए एक-दूसरे की परिस्थिति, परेशानी और मनोदशा को समझना, उसे महसूस करना बहुत जरूरी है। महाभारत का यह प्रसंग इस ओर इशारा करता है।

धृतराष्ट्र जन्म से अंधे थे। जब वे जवान हुए तो उनकी दादी सत्यवती और भीष्म को उनकी शादी की चिंता सताने लगी। भीष्म हस्तिपुर से काफी दूर गंधार देश गए, जहां की राजकुमारी गांधारी काफी सुंदर थीं। गांधारी के पिता ने भीष्म को यह कहकर रिश्ते के लिए मनाकर दिया कि वे एक अंधे राजकुमार से अपनी बेटी की शादी नहीं कर सकते। यह बात गांधारी तक पहुंची। गांधारी ने इस बात को बहुत गहराई से लिया, उसने सोचा कि धृतराष्ट्र को अंधे होने के कारण कितना अपमानित होना पड़ रहा है। लेकिन कोई उनकी परेशानी को समझ नहीं सकता। उसने धृतराष्ट्र से ही विवाह करने की ठान ली। गांधारी ने धृतराष्ट्र की परेशानी को महसूस करने के लिए अपनी आंखों पर कपड़े की मोटी पट्टी बांध ली। जो तमाम उम्र बंधी रही।

सोच होगी अच्छी तो.अगर आपका नजरिया सही है तो आप गलत में भी सही को पहचान लेंगे। आज अगर आपने अपनी सोच को सकारात्मक बना लिया तो आप सफलता जरूर प्राप्त करेंगे। एक दिन वन में गुजरते हुए नारदजी ने देखा कि एक मनुष्य ध्यान में इतना मग्न है कि उसके शरीर के चारों ओर दीमक का ढेर लग गया है। नारदजी को देखकर उसने उन्हें प्रणाम किया और पूछा प्रभु। आप कहां जा रहे हैं? नारदजी ने उत्तर दिया मैं वैकुंठ जा रहा हूं। तब उस व्यक्ति ने नारदजी से निवेदन किया आप भगवान से पूछकर आइएं कि मैं कब मुक्ति प्राप्त करुंगा? नारद जी ने हां कह दी थोड़ा आगे जाने पर नारदजी ने एक दूसरे व्यक्ति को देखा अपनी धनु में मस्त उस व्यक्ति ने भी नारदजी को प्रणाम किया और अपनी जिज्ञासा उनके समक्ष रखी- आप जब भगवान के समक्ष जाए तो पूछे कि मैं मुक्त कब होऊंगा? नारदजी ने उसे भी हां कर दी।

लौटते समय दीमक वाले व्यक्ति ने पूछा कि भगवान ने मेरे बारे में क्या कहा? नारदजी ने कहा- भगवान बोले कि मुझे पाने के लिए उसे चार जन्म और लगेंगे। यह सुनकर वह योग विलाप करते हुए कहने लगा- मैंने इतना ध्यान किया कि मेरे चारों ओर दीमक का ढेर लग गया फिर भी चार जन्म और लगेंगे। दूसरे व्यक्ति के पूछने पर नारदजी ने जवाब दिया भगवान ने कहा कि सामने लगे इमली के पेड़ में जितने पत्ते हैं, उसे मुक्ति के लिए उतने ही जन्म प्रयास करने पड़ेंगे। यह सुन वह व्यक्ति आनंद से नृत्य करने लगा और बोला मैं इतने कम समय में मुक्ति प्राप्त कर लूंगा। उसी समय देववाणी हुई मेरे बच्चे तुम इसी क्षण मुक्ति प्राप्त करोगे। इसलिए कहते हैं कि सकारात्मक सभी परेशालियों का हल होती है यदि हम आत्म विश्वास के साथ आशावादी दृष्टिकोण अपना कर निरंतर कर्म करते रहे, तो लक्ष्य जरूर मिलता है। इसलिए हमेशा सकारात्मक सोचें।

ऐसा होता है सच्चा प्यारकहते हैं प्रेम की पहचान के लिए कोई शब्द और साक्ष्य की जरूरत नहीं होती। प्रेम आंखों से ही झलक जाता है। पति-पत्नी हो या प्रेमी-प्रेमिका, वे प्रेम की भावनाओं को आंखों से ही समझ जाते हैं। विद्वान कहते हैं कि वो रिश्ता प्रेम का हो ही नहीं सकता, जिसमें भावनाओं को शब्दों से बताया जाए। प्रेम तो वह होता है जिसमें बिना कुछ बोले और बिना कुछ सुनें हम अपनों की बात समझ जाएं।

पुराणों में नल-दयमंती की प्रेम कहानी ऐसी ही है। दयमंती एक सुंदर राजकुमारी थी। उसके राज्य से बहुत दूर किसी दूसरे राज्य में नल नाम का राजा था। नल बहुत पराक्रमी और सुंदर था। नल के राज उद्यान में दो हंस थे। उन्होंने नल को दयमंती की सुंदरता के बारे में बताया और कहा कि वो दयमंती को अपनी रानी बना ले। दोनों हंसों ने दयमंती को भी जाकर नल की सुंदरता और वीरता का बखान कर दिया। दयमंती ने नल को मन ही मन अपना पति मान लिया। दोनों में संदेशों का आदान-प्रदान होने लगा। कुछ समय के बाद दयमंती का स्वयंवर रखा गया। जिसमें न केवल धरती के राजा, बल्कि देवता भी आ गए।

नल भी स्वयंवर में जा रहा था। देवताओं ने उसे रोककर कहा कि वो स्वयंवर में न जाए। उन्हें यह बात पहले से पता थी कि दयमंती नल को ही चुनेगी। सभी देवताओं ने भी नल का रूप धर लिया। स्वयंवर में एक साथ कई नल खड़े थे। सभी परेशान थे कि असली नल कौन होगा। लेकिन दयमंती जरा भी विचलित नहीं हुई, उसने आंखों से ही असली नल को पहचान लिया। सारे देवताओं ने भी उनका अभिवादन किया। इस तरह आंखों में झलकते भावों से ही दयमंती ने असली नल को पहचानकर अपना जीवनसाथी चुन लिया।

जब समय खराब होता है तो सब गलत होता हैजब समय खराब होता है तो हम बहुत जल्दी अपना धैर्य खो देते हैं और एक गलत दिशा पकड़ लेते हैं। आज के युवा कि ये आम समस्या है कि वह कितना भी समझदार हो लेकिन विपरीत परिस्थितियों में घबराकर बहुत जल्दी अपना आपा खो देता है। महाभारत के वन पर्व में ऐसा ही एक प्रसंग है।

जुए में हारने के बाद पाण्ड़व वन में चले गए। एक दिन धृतराष्ट्र ने विदुर को बलाया और दुखी होकर कहा कि तुम सबका भला सोचते हो इसलिए मेरे व पाण्डवों के हित के बारे में बताओ। विदुर बोले कि किसी भी राज्य का स्थायित्व धर्म पर होता है। आप धर्म के अनुसार काम करें पांडवों को उनका राज्य लौटा दीजिए और दुर्योधन को काबू कीजिए

राजा का सबसे बड़ा कर्तव्य है कि वह अपने धन से संतुष्ट रहे और दूसरों के धन का लालच न करें। यदिआप ऐसा नहीं करेगें तो कौरव कुल का नाश निश्चित है क्यों कि गुस्से से भरे भीम और अर्जुन लौटने पर किसी को जिन्दा नही छोड़ेगें। धृतराष्ट्र विदुर की बातें सुनकर नाराज होते हुए बोले कि तुम केवल पाड़वों का भला चाहते हो इसलिए यहां से चले जाओ। उस समय धृतराष्ट्र केवल पांडवों के हित के बारे में ही सोच रहे थे क्यों कि वे सब उनके सगे बेटे थे। धृतराष्ट्र ने विदुर की बात नहीं मानी और जिसका परिणाम महाभारत का युद्ध था। इसलिए कहते हैं विनाशकाले विपरीत बुद्धि।

अपने कद को बड़ा रखना है तो नम्रता सीखेंजो व्यक्ति जितना ज्यादा नम्र होता है उसका कद उतना ही बड़ा होता है। पतन हमेशा उस इंसान का होता है जिसमें विनम्रता नहीं होती है या जिसे क्षमा करना नहीं आता है। इसीलिए बबुल का पेड़ ठूठ की तरह खड़ा रहता है जबकि फलों से लदा आम का वृक्ष हमेशा झुका रहता है। मानवता को प्राप्त क रना ही मानव का लक्ष्य है इसके लिए जरूरी होता है कि वह सिर्फ आकृति से ही नहीं बल्कि प्रकृति से भी मनुष्य हो।

एक कल्माषपाद नाम का एक राजा हुआ। राजा एक दिन शिकार खेलने वन में गया। वापस आते समय वह एक ऐसे रास्ते से लौट रहा था। जिस रास्ते पर से एक समय में केवल एक ही आदमी गुजर सकता था। उसी रास्ते पर मुनि वसिष्ठ के सौ पुत्रों में से सबसे बड़े पुत्र शक्तिमुनि उसे आते दिखाई दिये। राजा ने कहा तुम हट जाओ मेरा रास्ता छोड़ दो तो कल्माषपाद ने कहा आप मेरे लिए मार्ग छोड़े दोनों में विवाद हुआ तो शक्तिमुनि ने इसे राजा का अन्याय समझकर उसे राक्षस बनने का शाप दे दिया। उसने कहा तुमने मुझे अयोग्य शाप दिया है ऐसा कहकर वह शक्तिमुनि को ही खा जाता है।शक्ति और वशिष्ठ मुनि के और पुत्रों के भक्षण का कारण भी उसकी राक्षसीवृति ही थी। इसके अलावा विश्वामित्र ने किंकर नाम के राक्षस को भी कल्माषपाद में प्रवेश करने की आज्ञा दी। जिसके कारण वह ऐसे नीच कर्म करने लगा। लेकिन इतना होने पर भी महर्षि वसिष्ठ उसे क्षमा करते रहे। एक बार महषि वसिष्ठ अपने आश्रम लौट रहे थे तो उन्हे लगा कि मानो कोई उनके पीछे वेद पाठ करता चल रहा है।

वसिष्ठ बोले कौन है तो आवाज आई मैं आपकह पुत्र-वधु शक्ति की पत्नी अदृश्यन्ती हूं। आपका पौत्र मेरे गर्भ में है वह बारह वर्षो से गर्भ में वेदपाठ कर रहा है वे यह सुनकर सोचने लगे कि अच्छी बात है मेरे वंश की परम्परा नहीं टूटी। तभी वन में उनकी भेट कल्माषपाद से हुई वह वसिष्ठ मुनि को खाने के लिए दौड़ा। उन्होने अपनी पुत्रवधु से कहा बेटी डरो मत यह राक्षस नहीं यह कल्माषपाद है। इतना कहकर हाथ मे जल लेकर अभिमंत्रित कर उन्होने उस पर छिड़क दिया और कल्माषपाद शाप से मुक्त हो गया। वसिष्ठ ने उसे आज्ञा दी की तुम अब कभी किसी ब्राम्हण का अपमान मत करना। महर्षि वसिष्ठ राजा के साथ अयोध्या आए और उसे पुत्रवान बनाया।

कैसे रखें रिश्तों का मान?

आधुनिक कामकाजी दुनिया में इंसान के पास खुद के लिए ही वक्त नहीं है, तो शेष संसार के लिए किसके पास समय होगा। फिर भी समाज में रहते हुए हमें रिश्ते निभाने ही पड़ते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हम किसी जरूरी काम पर निकलते हैं और हमारे अपने लोग ही हमें आराम देना चाहते हैं, ऐसे समय हम कई बार अपने काम की धुन में उनका अपमान कर देते हैं या फिर उन्हें अनदेखा कर देते हैं। यहीं से रिश्तों में बिखराव शुरू होता है। इन रिश्तों को सहेजना सीखें, काम में लगे रहना ठीक है लेकिन रिश्तों का सम्मान भी जरूरी है।

रिश्तों का मान कैसे रखें, यह रामचरित मानस के सुंदरकांड के एक प्रसंग में हनुमान से सीखा जा सकता है। हनुमान समुद्र को पार कर रहे हैं। वे मन में लगातार राम का नाम भी जपते जा रहे हैं। समुद्र भी राम भक्त था, वह एक रिश्ते से राम का पूर्वज भी रहा है। समुद्र ने जब देखा कि हनुमान लगातार उड़ रहे हैं, सौ योजन के समुद्र को एक उड़ान में पार करना कठिन काम है सो सागर ने मैनाक पर्वत जो कि उसी के भीतर रहता था, को कहा कि वो हनुमान को विश्राम दे। मैनाक ने हनुमान से कहा कि तुम राम के काम से जा रहे हो, थको नहीं, कुछ देर मुझ पर विश्राम कर लो। मुझ पर कई मीठे फल वाले वृक्ष भी हैं थोड़ा आहार भी ले लो।

हनुमान जल्दी में थे लेकिन फिर भी उन्होंने मैनाक के इस प्रस्ताव को अनदेखा नहीं किया। उन्होंने उसे छूकर कहा कि भाई मैं तो प्रभु के काम से जा रहा हूं। भगवान के काम किए बगैर में विश्राम कैसे कर सकता हूं। मैनाक को छूकर हनुमान ने उसका भी सम्मान रखा, और बिना रुके आगे चल दिए।

हर समस्या का हल आस-पास ही होता हैकई बार ऐसा होता है हम किसी मुसीबत में होते हैं और दूसरों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। ऐसे समय में कुछ संकेत हमें उन मुसीबतों से निजात दिला सकते हैं लेकिन आवश्यकता है उन्हें समझने की और सही मौके पर उनके उपयोगी की। हर समस्या का हल वहीं आस-पास ही होता है जरुरत है सिर्फ उसे तलाश करने की।

एक व्यक्ति को पक्षी पालने का बड़ा शौक था। उसने अपने पिंजरे में कई तरह के पक्षी पाल रखे थे। वह व्यक्ति पक्षियों की भाषा जानता था तथा और अधिक सीखने का प्रयास करता था। एक बार वह किसी दूसरे देश जा रहा था तो उसने पिंजरे में बंद पक्षियों से कहा कि मैं दूसरे देश जा रहा हूं। वहां मैं दूसरे परिंदों से उनकी भाषा सीखने का प्रयास करूंगा। अगर तुम्हें कोई संदेश वहां के अपने रिश्तेदारों को देना हो तो बता दो। परिंदों ने कहा कि तुम दूसरे देश के हमारे रिश्तेदारों से मिलो तो कहना कि हम स्वतंत्रता के लिए छटपटा रहे हैं। हम स्वतंत्र होना चाहते हैं।

यह सुनकर वह दार्शनिक यात्रा पर निकल गया। एक दिन वह घूमते-घूमते दूसरे देश के जंगल में पहुंच गया। वहां के पक्षियों को देखकर उसने वही संदेश जो पिंजरे में बंद परिदों ने उसे कहा था उन्हें सुनाया। यह सुनकर उन्होंने कहा कि ठीक है जैसा जिसका भाग्य। फिर उन्होंने कहा कि हमारे यहां एक संत प्रवृत्ति का पक्षी भी है आप उसे यह बात बताईए। और उस व्यक्तिने वह संदेश उस संत प्रवृत्ति वाले परिंदे को भी सुनाई।

सुनकर वह परिंदा गिरा और मर गया। दार्शनिक को बड़ा आश्चर्य हुआ। थोड़े दिनों बाद जब दार्शनिक वापस अपने घर लौटा तो उसने यह घटना पिंजरे में बंद परिंदों को सुनाई। यह सुनकर पिंजरे में बंद पक्षी भी नीचे गिर गए। उस व्यक्तिने उन्हें निकालने के लिए जैसे ही पिंजरा खोला तो वे सभी पक्षी उड़कर भाग गए। तब दार्शनिक को समझ आया कि परदेश में जो परिंदा गिर कर मर गया था वह वास्तव में मरा नहीं था उसने इनके लिए एक संदेश दिया था।

दु:ख के बारे में सोचकर सुख को न गवाएंजिंदगी में अच्छा-बुरा समय आता-जाता रहता है। बुरे समय के बारे में सोचकर कुछ लोग आज ही दु:खी हो जाते हैं और सुख के पल भी खो देते हैं। जबकि होना यह चाहिए कि बुरे समय से बचने के लिए हम पहले से ही कुछ ऐसी रणनीति बनाए कि उसका असर हम कम से कम हो।

यह बात व्यवसाय में भी लागू होती है। यदि हम मंदी के बारे में सोच कर अपना व्यवसाय कम कर देंगे तो निश्चित ही उसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा जबकि उससे बचने के लिए हमें कुछ अन्य उपाय भी सोचना चाहिए।

एक आदमी सड़के के किनारे समोसे बेचता था। वह अनपढ़ था इसलिए अखबार नहीं पढ़ता था। ऊंचा सुनने की वजह से रेडियो नहीं सुनता था और आंखे कमजोर होने की वजह से वह टेलीविजन भी नहीं देखता था। इसके बाद भी वह रोज दोगुने जोश के साथ अपना काम करता था। थोड़े ही दिनों में उसका व्यवसाय अच्छा चलने लगा और मुनाफा भी अधिक होने लगा। यह देखकर वह ज्यादा आलू खरीदने लगा। बड़ा चूल्हा खरीद लिया। इससे उसका व्यापार और भी बढ़ गया।

थोड़े दिनों बाद उसका बेटा भी काम में हाथ बटांने लगा। वह पढ़ा-लिखा था। अखबार पढ़ता था और रेडियो भी सुनता था। एक दिन उसने अपने पिता से कहा कि जिस तरह व्यापार जगत में मंदी का दौर आया है इसका असर हम पर भी पड़ेगा। आगे हमें बुरे हालातों का सामना करना पड़ सकता है। यह सुनकर वह व्यक्ति ने सोचा कि उसका बेटा समझदार है और पढ़ा लिखा भी। इसकी बात को गंभीरता से लेना चाहिए।

दूसरे ही दिन उसने आलू की खरीदी कम कर दी और अपना साइनबोर्ड भी नीचे उतार दिया। उसका जोश खत्म हो चुका था। थोड़े ही दिनों में उसकी दुकान पर ग्राहकों की संख्या कम हो गई और मुनाफा भी कम हो गया। तब उस व्यापारी ने अपने बेटे से कहा कि तुमने एकदम सही समय पर मुझे मंदी के बारे में बता दिया नहीं तो अधिक नुकसान हो सकता था।

खुश रहना है तो...अच्छा सोचोमनुष्य की प्रकृति ही ऐसी है कि उसे सामने वाले में गुण छोड़कर दोष ही देखता है और आज के युग में तो लोग इस आदत को लेकर एक दूसरे पर हावी हो रहे हैं। लेकिन अगर इंसान किसी के दोषों को अनदेखा कर केवल खूबियों पर ध्यान दे तो जिदंगी में हर समस्या का समाधान मिल जाएगा।

एक बार देवराज इन्द्र अपनी अपनी सभा में बैठकर देवताओं से चर्चा करते हुऐ कहा कि पृथ्वी पर श्री कृष्ण देवराय सबसे श्रेष्ठ और गुणवान राजा है कुछ देवताओं को राजा की तारीफ सुनना अच्छी नहीं लगी।तब एक देवता राजा कृष्णदेव की परीक्षा लेने के लिए पहुंचे । देवता मरे हुए कुत्ते का रूप धर धरती पर लेट गया उसके शरीर से गंदी बदबू आ रही थी और उसका मुंह फटा हुआ था। तभी उस रास्ते से राजा कृष्णदेव का निकलना हुआ जब राजा ने रास्ते पर पड़े कुत्ते को देखा तो कहने लगे इस कुत्ते के दांत कितने सुन्दर हैं मोती के जैसे चमक रहे है। तभी देवता अपने असली रूप में प्रकट हुआ और राजा से कहने लगा हे राजन तुम सचमुच श्रेष्ठ राजा हो तुम्हें रास्ते पर पड़े कुत्ते के दांत तो दिखाई दिए लेकिन उससे आती दुर्गन्ध पर तुमने गौर ही नहीं किया। संसार में तुम्हारे जैसा इंसान ही हमेशा खुश रह सकता है।

कथा बताती है कि अगर इंसान कमियों को छोड़कर केवल खूबियों पर ध्यान दे तो समस्याऐं कभी पैदा ही नहीं होंगी।

दोस्ती में न तोड़े भरोसा

कहते हैं सच्चा दोस्त वो आईना होता है जिसमें आप अपना अच्छा और बुरा दोनों ही देख सकते हैं। इसलिए समय कैसा भी हो अपने दोस्तों का साथ कभी न छोड़े और न ही दोस्ती में कभी किसी को धोखा दें । क्योंकि दोस्ती वो दौलत है जो हमेशा हमारे साथ रहती है परिस्थिति जैसी भी हो एक सच्चा दोस्त हमेशा हमारे साथ रहता है।

ऐसा ही एक उदाहरण है महाभारत में द्रोणाचार्य और दु्रपद की दोस्ती। दोनों ही भारद्वाज ऋषि के आश्रम में अध्ययन करते थे दोनो ही एक दूसरे के परम मित्र थे। राजपद मिलने से पहले राजा द्रुपद ने अपने मित्र द्रोणाचार्य को यह वादा किया कि उसे जब भी जरूरत होगी तो वह अपना आधा राज्य उसे दे देगा। एक समय द्रोणाचार्य विकट परिस्थितियों से गुजर रहे थे उनके पास न धन था न खाने को खाना तब उन्हें अपने परम मित्र दु्रपद की याद आई और वे अपने परिवार के साथ द्रुपद के महल में पहुंचे। जब द्वारपाल उनका संदेश लेकर दु्रपद के पास पहुंचे तो दु्रपद ने उन्हें पहचानने से ही मना कर दिया। राजा दु्रपद ने द्रोणाचार्य का खूब अपमान भी किया।

काम को बोझ न समझें

हम जो भी काम करते हैं उसे सिर्फ एक औपचारिकता की तरह न करें। यदि काम सिर्फ औपचारिकता बन जाएगा तो न तो आपको उसमें कुछ मजा आएगा और काम सिर्फ बोझ बन कर रह जाएगा। जो भी काम करें, उसका पूरा आनंद लें ताकि काम बोझ न बने।

एक मंदिर का निर्माण हो रहा था। निमार्ण में तीन मजदूर बाहर काम कर रहे थे। वहां एक व्यक्ति आया और तीनों को काम करते हुए देखा। जो महात्मा मंदिर का निर्माण करवा रहे थे, उस व्यक्ति ने उनसे पूछा कि किसी भी काम को किस तरीके से करना चाहिए? महात्मा बोले- मैं तेरे इस प्रश्न का जबाव अवश्य दूंगा लेकिन पहले तू ये जो तीन मजदूर काम कर रहे रहे हैं इनसे पूछकर आ कि तुम क्या कर रहे हो?

वह आदमी गया और उसने पहले मजदूर से पूछा जो पत्थर तोड़ रहा था कि तुम क्या कर रहे हो तो उसने गुस्से में बोला दिखता नहीं पत्थर तोड़ रहा हूं। दूसरे से पूछा, उसने कहा भैया नौकरी कर रहा हूं । पापी पेट के लिए, बच्चों को पालने के लिए काम करना ही पड़ता है। तीसरे से जाकर पूछा तो उसने कहा - पूजा कर रहा हूं, आनंद मना रहा हूं। ये पत्थर मंदिर में लगेंगे यह जानकर मुझे बड़ी मस्ती आ रही है।

तीनों का उत्तर लेकर वह महात्मा के पास गया। महात्मा ने कहा काम का यही फर्क है। तुम अपने काम को उन दो मजदूरों की तरह बना सकते हो। जो गुस्से में या मजबूरी में यह काम कर रहे हैं या उस व्यक्ति की तरह कर सकते हो जो मजा ले रहा है, आनंद लेकर पत्थर तोड़ रहा है। यह सिर्फ अपना-अपना नजरिया है कि हम अपना काम किस तरह कर रहे हैं।

लक्ष्य पाना है तो दूसरी बातों पर ध्यान न दें

हर किसी के जीवन में अपना एक लक्ष्य होता है। कुछ लोग लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं जबकि कुछ लोग इधर-उधर की बातों पर ध्यान देकर अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं। ऐसा लोगों की संख्या अधिक है जो अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाते। चूंकि वे अपने लक्ष्य को देखते तो हैं लेकिन उसके आस-पास जो भी होता है उसे पर भी ध्यान देते हैं। जबकि जो लोग लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं उन्हें हर समय सिर्फ अपना लक्ष्य ही दिखाई देता है और वे कठिन प्रयास कर आखिरकार अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं।

कौरवों व पाण्डवों के गुरु द्रोणाचार्य ने एक बार अपने शिष्यों की परीक्षा लेनी चाही। उन्होंने एक नकली गिद्ध एक वृक्ष पर टांग दिया। उसके बाद उन्होंने सभी राजकुमारों से कहा कि तुम्हे बाण से इस गिद्ध के सिर पर निशान लगाना है। पहले द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर को बुलाया और निशाना लगाने के लिए कहा। फिर उन्होंने युधिष्ठिर से पूछा तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है। युधिष्ठिर ने कहा मुझे वह गिद्ध, पेड़ व मेरे भाई आदि सबकुछ दिखाई दे रहा है। यह सुनकर द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर को निशाना नहीं लगाने दिया। इसके बाद उन्होंने दुर्योधन आदि राजकुमारों से भी वही प्रश्न पूछा और सभी ने वही उत्तर दिया जो युधिष्ठिर ने दिया था।

सबसे अंत में द्रोणाचार्य ने अर्जुन को गिद्ध का निशाना लगाने के लिए कहा और उससे पूछा कि तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है। तब अर्जुन ने कहा कि मुझे गिद्ध के अतिरिक्त कुछ और दिखाई नहीं दे रहा है। यह सुनकर द्रोणाचार्य काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने अर्जुन को बाण चलाने के लिए। अर्जुन ने तत्काल बाण चलाकर उस नकली गिद्ध का सिर काट गिराया। यह देखकर द्रोणाचार्य बहुत प्रसन्न हुए।

ऐसा होता है आपका सच्चा दोस्त

कबीरदास जी ने कहा है कि निंदक नियरे राखिये आंगन कुटि छवाय बिन साबुन बिना निर्मल करे सुभाय कहते हैं सच्चा दोस्त उस निदंक की तरह होता है जो अच्छाईयों पर आपकी तारीफ के साथ साथ आपकी बुराईयों को सामने लाकर उनको दूर करने में आपकी मदद करता है। ऐसा ही एक किस्सा है कृष्ण और अर्जुन की दोस्ती का द्वारिका में एक ब्राह्मण के घर जब भी कोई बालक जन्म लेता तो वह तुरंत मर जाता एक बार वह ब्राह्मण अपनी ये व्यथा लेकर कृष्ण के पास पहुंचा परन्तु कृष्ण ने उसे नियती का लिखा कहकर टाल दिया। उस समय वहां अर्जुन भी मौजूद थे।अर्जुन को अपनी शक्तियों पर बड़ा गर्व था। अपने मित्र की मदद करने के लिए अर्जुन ने ब्राह्मण को कहा कि मैं तुम्हारे पुत्रों की रक्षा करूंगा। तुम इस बार अपनी पत्नी के प्रसव के समय मुझे बुला लेना ब्राह्मण ने ऐसा ही किया लेकिन यमदूत आए और ब्राह्मण के बच्चे को लेकर चले गए। अर्जुन ने प्रण किया था कि अगर वह उसके बालकों को नहीं बचा पाएगा तो आत्मदाह कर लेगा।

जब अर्जुन आत्म दाह करने के लिए तैयार हुए तभी श्री कृष्ण ने अर्जुन को रोकते हुए कहा कि यह सब तो उनकी माया थी उन्हें ये बताने के लिए कि कभी भी आदमी को अपनी ताकत पर गर्व नहीं करना चाहिए क्यों कि नीयती से बड़ी कोई ताकत नहीं होती।

सबसे सुखी कौन...?दुनिया में हर आदमी के पास अपनी जरूरत और सुख के हिसाब से सब कुछ है फिर भी आज हर आदमी दुखी है। अगर हर आदमी को अपना जीवन सही मायनों में सुखी बनाना है तो अपनी चाहतों पर नियंत्रण रखना होगा तभी वह अपने जीवन को सुखी बना सकता है।

एक संत की सभा में एक आदती ने पूछा महाराज आपकी सभा मे सबसे सुखी है। महात्मा ने पीछे बैठे एक आदमी की ओर इशारा किया तब वह आदमी बोला कि इसका प्रमाण क्या है कि सही सबसे सुखी है। संत ने सभा में बैठे राजा से पूछा कि राजन आपको क्या चाहिए राजा बोला मेरे पास तो सबकुछ है बस राज्य को चलाने वाला एक पुत्र चाहिए। फिर एक धनपति से पूछा तुम्हें क्या चाहिए तब धनपति बोला मैं इस नगर का सबसे ज्यादा धनी व्यक्ति बनना चाहता हूं। इस प्रकार सभी ने अपनी अपनी इच्छाऐं महात्मा जी को बता दी ।
आखिर में महात्मा जी ने उस व्यक्ति से पूछा कि तुम्हेंक्या चाहिए तब वह व्यक्ति बोला कि मुझे तो कुछ नहीं चाहिए। अगर आप मुझे कुछ देना ही चाहते हैं तो कृपा करके बस मुझे इता आर्शीवाद दीजिए कि मेरे जीवन में कोई चाह नहीं हो तब पूरी सभ में मौन छा गया और महात्मा जी बोले कि है महानुभावों इस दुनिया में सबसे सुखी वही है जिसने अपनी चाहतों को खत्म कर दिया है।

सबसे बड़ा धन है आपका हुनरकहते हैं आपका हुनर ही आपकी सबसे बड़ी पूंजी है। अगर आप में हुनर है तो आप किसी भी मुसीबत का सामना कर सकते है। एक बूढ़ा संगीतकार किसी जंगल से गुजर रहा था। उसके पास बहुत सी स्वर्ण मुद्राएं थीं। रास्ते में कई डाकुओं ने उसे पकड़ लिया। उन्होंने उसका सारा धन तो छीन ही लिया साथ ही वाइलिन भी। वह अपने संगीत से व उस वाइलिन से बहुत प्यार करता था। संगीतकार ने डाकुओं से बड़ी ही नम्रता से अपना वाइलिन मांगा। वे डाकू बड़े चकित हुए। उन्होंने सोचा कैसा पागल आदमी है। धन वापस ना मांगकर ये बाजा मांग रहा है। डाकुओं ने सोचा कि यह बाजा हमारे किस काम का और उसे वापस लौटा दिया।

वह संगीतकार उसे पाकर नाचने लगा और उसे वहीं बैठकर बजाने लगा। अमावस्या की अंधेरी रात सुनसान वन ऐसे वाइलिन का मीठा स्वर शुरू में तो डाकु अनमने मन से सुनते रहे फिर उनकी आंखों मे भी नमी आ गई। वे भाव विभोर हो उठे और उन्होंने न सिर्फ उसका सारा धन लौटा दिया बल्कि उसे वन के बाहर तक सुरक्षित भी पंहुचाया ।

लाइफ का फंडा संगीत उस संगीतकार का मूल स्वभाव भी था और हुनर भी, सो उसने डाकुओं से अपना हुनर, अपना साधन मांग लिया। यही हुनर उसके काम आया और डाकुओं ने उसके संगीत से प्रभावित होकर सारा धन भी लौटा दिया। लाइफ का फंडा यह है कि आप जब भी परेशानी में घिरें तो अपने स्वभाव और अपने हुनर पर भरोसा रखें, उसी को बचाएं, अगर हुनर बचा रहा तो धन-दौलत फिर मिल जाएंगे।

बदला लेना नहीं... माफ करना सीखिएकभी कभी बदले की भावना में आदमी इतना अंधा हो जाता है कि उसे ये ध्यान भी नहीं होता कि ऐसी भावना कहीं न कहीं उसे ही नुकसान पहुंचाएगी ।क्यों कि किसी के लिए प्रतिशोध की भावना कभी अच्छा फल नहीं देती।

एक आदमी ने बहुत बड़े भोज का आयोजन किया परोसने के क्रम में जब पापड़ रखने की बारी आई तो आखिरी पंक्ति के एक व्यक्ति के पास पहुंचते पहुंचते पापड़ के टुकड़े हो गए उस व्यक्ति को लगा कि यह सब जानबूझ करउसका अपमान करने के लिए किया गया है ।इसी बात पर उसने बदला लेने की ठान ली।

कुछ दिनों बाद उस व्यक्ति ने भी एक बहुत बड़े भोज का आयोजन किया और उस आदमी को भी बुलाया जिसके यहां वह भोजन करने गया था। पापड़ परोसते समय उसने जानबूझकर पापड़ के टुकड़े कर उस आदमी की थाली में रख दिए जेकिन उस आदमी ने इस बात पर अपनी कोई प्रतिक्रि या नहीं दी। तब उसने उससे पूछा कि मैने तुम्हें टूआ हुआ पापड़ दिया है तुम्हें इस बात का बुरा नहीं लगा तब वह बोला बिल्कुल नहीं वैसे भी पापड़ को तो तोड़ कर ही खाया जाता है आपने उसे पहले से ही तोड़कर मेरा काम आसान कर दिया है। उस व्यक्ति की बात सुनकर उस आदमी को अपने किये पर बहुत पछतावा हुआ।

क्या आपकी दोस्ती सच्ची है...?इंसान को दोस्ती बडी ही सोच समझ कर करनी चाहिए । एक सच्चा दोस्त वही है जो आपकी खुशी मे खुश होने के साथ साथ आपके दुखों को भी अपना बना ले। जो मुसीबत में एक मांझी की तरह तरह आपकी नैया को पार लगाने में आपकी मदद करे।

ऐसा ही एक उदाहरण है कृष्ण और द्रोपदी की दोस्ती।एक बार पाण्डवों ने राजसूय यज्ञ में श्री कृष्ण को प्रथम पद प्रदान किया। शिशुपाल ने इस बात पर अपना विरोध जताया और श्री कृष्ण को खूब भला बुरा कहा। तब श्री कृष्ण ने अपने सुर्दशन चक्र से शिशुपाल का वध कर दिया। इस काम में असावधानी के कारण उनकी उंगली से खून बहने लगा सब घबराकर इधर उधर देखने लगे उसी समय द्रोपदी ने अपनी साड़ी को फाड़ कर पटटी बांधी।

एक बार पाण्डव द्रोपदी को जुए में दाव पर लगाकर हार गए। सारे कौरवों ने भरी सभा में द्रोपदी का खूब अपमान किया। दुशाषन जब द्रोपदी की साड़ी खींचने लगा तब उसकी लाज बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने स्वयं द्रोपदी की चीर बड़ाकर उसकी लाज बचाई। इसलिए कहते हैं कि मुसीबत के समय जो आपके साथ होता है वही आपका सच्चा दोस्त होता है।

अहंकार ही पतन का कारण हैकुछ लोगों को अपने बल का बहुत अहंकार होता है। अपने ताकत के नशे में किसी का सम्मान नहीं करते और सभी का उपहास उड़ाते रहते हैं या अपमान करते हैं। इन लोगों के पतन का कारण इनका अहंकार ही बनता है। इसलिए ध्यान रखें कि यदि आप बलशाली हैं या आपके पास कोई विशेष योग्यता है तो इसका दुरुपयोग न करें तथा किसी अन्य का अपमान न करें।

भगवान श्रीराम के पूर्वज सूर्यवंशी राजा सगर की दो पत्नियां थीं केशिनी और सुमति। केशिनी का एक ही पुत्र था जिसका नाम असमंजस था, जबकि सुमति के साठ हजार पुत्र थे। असमंजस बहुत ही दुष्ट था। उसको देखकर सगर के अन्य पुत्र भी दुराचारी हो गए। उन्हें अपने बल पर बहुत ही घमंड था। घमंड में चूर होकर वे किसी का सम्मान नहीं करते थे।

एक बार सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया। तब इंद्र ने उस यज्ञ के घोड़े को चुराकर पाताल में कपिलमुनि के आश्रम में छुपा दिया। जब अश्व नहीं मिला तो सगर के पुत्रों ने पृथ्वी को खोदना प्रारंभ किया। तब पाताल में उन्हें कपिलमुनि के आश्रम में यज्ञ का घोड़ा दिखाई दिया। यह देखकर घमण्ड में चूर सगर के सभी पुत्रों ने समाधि में लीन कपिल मुनि को भला-बुरा कहा। सगर पुत्रों की बात सुनकर जैसे ही कपिल मुनि ने आंखें खोली सभी सगर पुत्र वहीं भस्म हो गए।

दूसरों के कहने पर निर्णय न लें, खुद भी सोचेंकई बार ऐसा होता है कि हम दूसरों के कहने पर ही हर काम कर लेते हैं और अपनी बुद्धि का उपयोग ही नहीं करते। और जब तक बात हमारे समझ में आती है बहुत देर हो चुकी होती है। जबकि होना यह चाहिए कि दुसरों की बात को पहले हम अपनी कसौटी पर कसे और फिर निर्णय लें कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं? ऐसा करने से हम कभी धोखा नहीं खाएंगे और न ही कभी नुकसान उठाना पड़ेगा।

एक आदमी मछली बेचने का व्यापार करता था। उसकी एक दुकान थी जिस पर बोर्ड लगा था और उस बोर्ड पर लिखा था- फ्रेश फीश सोल्ड हियर। एक दिन उसके यहां एक मित्र आया वो बोला- जब तुम फ्रेश फीश ही बेचते हो तो लिखने की क्या आवश्यकता है। तब उस मछली बेचने वाले ने बोर्ड पर से फ्रेश हटा दिया।

थोड़े दिन बाद कोई दूसरा मित्र मिलने वाला आया वह बोला- तुम मछली यहां ही बेचते हो या और कहीं भी बेचते हो? तो वह बोला- सिर्फ यही बेचता हूं। तो वह मित्र बोला- तो इसमें लिखने की क्या आवश्यकता है। तो दुकानदार ने हियर भी हटा दिया। अब बचा सिर्फ फीश सोल्ड।

एक दिन और कोई परिचित आया वह बोला- सोल्ड लिखा है तो बेचते ही हो फ्री तो देते नहीं हो तो इसे भी हटाओ। अब बोर्ड पर लिखा रह गया सिर्फ फिश। कुछ दिनों बाद फिर कोई आया तो उसने कहा बदबू के कारण दूर-दूर तक पता चलता है कि यहां मछली बिकती है तो यह लिखने की क्या जरुरत है। उसने फिश भी मिटा दी। और फिर एक दिन किसी ने कहा कि जब कुछ लिखा ही नहीं है तो बोर्ड भी हटा दो। तो इस तरह उस दुकान पर लगा बोर्ड भी हट गया।

विपरीत समय में भी लें सही निर्णयमनुष्य के जीवन में कई ऐसे अवसर आते हैं जब उसे तुरंत निर्णय लेने पड़ते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि वह लालच में आकर गलत निर्णय ले लेता है जो परेशानी का कारण बन जाते हैं। इसलिए जब भी विपरीत समय में कोई निर्णय लेने का अवसर आए तो उसके उसके दूरगामी परिणाम के बारे में भी अवश्य सोचें।
किसी गांव में एक लालची व्यापारी रहता था। वह अपने गांव से दूर देश समुद्र की यात्रा करते हुए व्यापार करने जाता था। एक दिन उसके दोस्तों ने उससे पूछा कि क्या तुम्हें तैरना आता है? तो व्यापारी ने कहा- नहीं। दोस्तों ने कहा तुम समुद्र में यात्रा करते हो तो तैरना तो आना ही चाहिए। व्यापारी ने भी सोचा कि सभी ठीक कहते हैं। उसने सोचा क्यों न तैरना सीख लिया जाए लेकिन काम-काज में व्यस्तता के कारण उसके पास समय नहीं रहता था।

इस कारण जब वह तैरना नहीं सीख सका तो उसने अपने दोस्तों से पूछा कि अब क्या करुं? उसके दोस्तों ने उसे सुझाव दिया कि जब वह कश्ती में जाए तो अपने साथ खाली पीपे (डिब्बे) रख ले और अगर कभी तुफान में कश्ती डुबने लगे तो खाली पीपे शरीर पर बांधकर समुद्र में कूद जाए। ऐसा करने से उसकी जान बच जाएगी। व्यापारी ने ऐसा ही किया। अपनी कश्ती में खाली पीपे रख लिए। संयोग से उसी यात्रा के दौरान समुद्र में तुफान आ गया। जिन लोगों को तैरना आता था वे तो कूद गए।

कुछ ने उससे भी कहा कि खाली पीपे बांधकर कूद जाओ पर व्यापारी सोच रहा था कि अगर में खाली पीपे बांधकर समुद्र में कूद गया तो ये जो दूसरे पीपे जिनमें धन रखा है ये भी सब डूब जाएंगे। धन के लालच में व्यापारी खाली पीपे के स्थान पर धन से भरे पीपे शरीर पर बांधकर समुद्र में कूद गया। इस तरह धन के लालच में उसने अपने प्राण गवां दिए।

मंजिल पाने के लिए सही रास्ता ही चुनें
जीवन में कई ऐसे अवसर आते हैं जब आपको लगता है कि गलत रास्ते पर चलकर आप जल्दी अपनी मंजिल तक पहुंच सकते हैं जबकि सही रास्ता कठिनाइयों भरा लगता हैं। ऐसे में अक्सर लोग गलत रास्ते को चुनते हैं लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि आगे जाकर इसकी नतीजा क्या होगा। इसलिए हम जब भी कोई निर्णय लें तो उसके दूरगामी परिणाम के बारे में भी अवश्य सोचें।

किसी गांव में दो मित्र रहते थे। उनका नाम सोहन और मोहन था। सोहन बहुत ही चतुर व चालाक था, वह जल्द से जल्द अमीर बनना चाहता था। जबकि मोहन बहुत ही सीदा-सादा था, वह अपनी काबिलियत और मेहनत पर ही विश्वास करता था। एक बार दोनों दोस्तों ने शहर जाकर पैसा कमाने का सोचा। दोनों मित्र कुछ पैसे लेकर शहर आ गए। शहर में आकर सोहन को जुए की लत लग गई। शुरु में उसने जुएं में बहुत पैसा कमाया। इस पैसे से उसने शहर में ही एक घर ले लिया और ऐशो-आराम से रहने लगा। मोहन ने उसे काफी मना किया लेकिन वह नहीं माना।

मोहन ने शहर में एक छोटी सी दुकान खोली। वह दिन-रात मेहनत करता और ईमानदारी से अपना हर काम करता। थोड़े ही दिनों में उसकी दुकान ठीक से चलने लगी। मोहन ने भी शहर में ही एक छोटा सा घर ले लिया। सोहन अक्सर मोहन को देखकर उसका मजाक उड़ाता था लेकिन मोहन उसे कुछ भी नहीं कहता।
एक समय ऐसा भी आया जब सोहन जुएं की लत के कारण कंगाल हो गया और सड़क पर आ गया। तब मोहन ने उसे सहारा दिया और अपने घर में रहने की जगह दी। मोहन के स्वभाव को देखकर सोहन का मन भी पिघल गया और उसने मोहन से अपने किए पर माफी मांगी और आगे से सही रास्ते पर चलने की कसम खाई। इस तरह दोनों दोस्त मिलकर दुकान चलाने लगे। इससे दुकान और भी अच्छी चलने लगी और उनकी आमदनी भी बढ़ गई। इस तरह दोनों दोस्त खुशी-खुशी रहने लगे।


दुनिया में हर चीज अनमोल हैकुछ लोग अपनी जिंदगी में कुछ खास को ही महत्वपूर्ण मानते हैं और बाकी सब उनके लिए महत्वहीन हो जाता है। लेकिन वे ये नहीं समझते कि इस दुनिया में हर चीज अपना एक अलग महत्व रखती है।
एक शिष्य ने पढ़ाई खत्म करने के बाद घर जाते समय अपने गुरु को स्वर्ण मुद्राएं गुरु दक्षिणा में दी। तब गुरुदेव बोले ये तो तुम्हारे काम की है मुझे तो गुरुदक्षिणा में वो चीज दो जो तुम्हारे काम की न हो। इतना सुनकर शिष्य अपने हाथों में मिटटी भर कर ले आया और बोला ये मेरे किसी काम की नहीं है आप इसे अपने पास रख लीजिए । इतने में मिटटी बोली कि मुझे बेकार समझा है अगर मैं न रहूं तो अनाज कैसे पैदा होगा तुम भूखे मर जाओगे। फिर शिष्य पत्थर के टुकड़े ले आया और गुरु को देने लगा तभी पत्थर बाले कि हम नहीं होगें तो मकान कैसे बनाओगे कहां रहोगे।फिर वह गंदगी ले आया और बोला ये तो किसी काम की नहीं है। आप इसे अपने पास रख लीजिए तभी गन्दगी बोली मुझे व्यर्थ समझते हो अगर मैं नहीं रहूंगी तो खाद कैसे बनेगी।
तब गुरु ने कहा कि यह भी व्यर्थ नहीं है तब गुरुदेव ने समझाया कि इस जगत में कोई भी चीज व्यर्थ नहीं है आदमी केवल अपने अहम के कारण कई चीजों को व्यर्थ समझने लगता है । तब उस शिष्य ने अपना अहम ही गुरु को दक्षिणा में देकर एक आदर्श शिष्य बना।

फर्ज निभाऐं कुछ इस तरह कि...

आज के समय में यह एक आम समस्या है कि जब भी किसी व्यक्ति को कोई काम या जिम्मेदारी दी जाती है तो वे कुछ न कुछ शिकायत करते ही रहते हैं। जीवन में किसी भी काम को पूरा करने के लिए लगन के साथ साथ समर्पण भाव का होना बड़ा जरूरी है। अगर व्यक्ति बिना शिकायत अपनी जिम्मेदारी को निभाए तो निश्चित ही अच्छे परिणाम सामने होंगे।

बहुत पुरानी बात है, एक राज्य में जोरदार बारिश के कारण नदी में बाढ़ आ गई। सारा शहर बाढ़ की चपेट में आ गया। लोग जान बचाकर ऊंचे स्थानों की ओर भागे। बहुत से लोगों की जान गई। राज्य का राजा परेशान हो उठा। एक पहाड़ी से उसने नगर का नजारा देखा। सारा शहर पानी में डूब चुका था। राजा ने अपने मंत्रियों से बचाव कार्य पर चर्चा की। किसी भी तरह से बाढ़ का पानी नगर से निकाला जाए, बस सबको यही चिंता थी। राजा ने सिद्ध संतों से पूछा क्या कोई ऐसी विधि है जो नदी को उल्टा बहा सके, जिससे बाढ़ का पानी निकल जाए। पंडितों ने कहा ऐसी कोई विधि नहीं है।

तभी वहां एक वेश्या आई, उसने राजा से कहा वह नदी को उल्टी बहा सकती है। राजा को हंसी आ गई। मंत्रियों और ब्राह्मणों ने उसे दुत्कार दिया, जहां बड़े-बड़े सिद्ध पुरुष हार मान गए, वहां तू क्या है।वेश्या ने राजा से कहा मुझे एक बार अवसर तो दें। राजा ने सोचा जहां इतने लोग कोशिशें कर रहे हैं, यह भी कर तो बुराई ही क्या है। राजा ने उसे आज्ञा दे दी। वेश्या ने आंखें बंद कर थोड़ी देर कुछ बुदबुदाया।

वह ध्यान की स्थिति में ही बैठी रही, तभी अचानक चमत्कार हो गया। नदी का बहाव उलटी दिशा में लौटने लगा और देखते ही देखते, सारा पानी बह गया। संकट टल गया। राजा ने उस वेश्या के पैर पकड़ लिए। उससे पूछा ऐसी सिद्धि तुझमें कहां से आई? वेश्या ने कहा यह मेरी गुरु की शिक्षा का असर है। जिस महिला ने मुझे इस निंदित कार्य में धकेला था, उसने मुझे एक शिक्षा दी थी कि शायद भगवान ने तुझे इसी कार्य के लिए बनाया है। तू कभी अपनी किस्मत को मत कोसना। जो भी जिम्मेदारी हो उसे हमेशा पूरे मन से निभाना। और मैंने यही किया। मैंने कभी भगवान से शिकायत नहीं की, न ही किस्मत को कोसा। मेरा कर्तव्य ही मेरी तपस्या बन गया और मैंने आज भगवान से उस तपस्या का फल मांग लिया।

मौका चुकोगे तो पछताना पड़ेगा

इंसान की जिंदगी में कई ऐसे अवसर आते हैं जिसकी वह तलाश में रहता है। लेकिन कई बार वह इसे पहचान नहीं पाता। उसकी यही गलतियां उसे आगे जाकर पछताने पर मजबूर कर देती है। जीवन में अगर कोई अच्छा अवसर मिले तो उसका लाभ उठाना चाहिए। नहीं तो आगे जाकर पछताना पड़ता है। किसी गांव में हरिया नाम का एक आदमी रहता था। वह भगवान पर बहुत श्रद्धा रखता था। वह रोज भगवान की पूजा करता। वह भगवान भक्ति में इतना डूब गया कि अंधविश्वासी हो गया। वह हर बात को भगवान से जोड़कर ही देखता।

एक दिन गांव में बाढ़ आ गई। सब गांव वाले जान बचाकर भागने लगे लेकिन हरिया नहीं भागा। तभी हरिया के पास गांव का ही एक आदमी आया और बोला कि बाढ़ का पानी गांव को डुबा दे इसके पहले यहां से भाग चलो। लेकिन हरिया तो भगवान की भक्ति में अंधविश्वासी हो गया था। उसने कहा जब भगवान मुझे बचाने नहीं आएंगे मैं नहीं जाऊंगा। वह व्यक्ति चला गया। धीरे-धीरे गांव में पानी भराने लगा। हरिया घर की छत पर चढ़ गया। फिर उसके पास गांव का दूसरा आदमी आया और वहां से चलने को कहा। हरिया ने फिर वही जबाव दिया।

थोड़ी देर में बाढ़ के पानी ने पूरे गांव को डुबा दिया। हरिया एक बड़े पेड़ पर चढ़ गया। सब दूर पानी ही पानी हो गया। तभी नाव में बैठकर एक और गांव वाला हरिया को बचाने आया। हरिया ने उसे भी मना कर दिया। बाढ़ का पानी बढऩे से हरिया उसमें डूब कर मर गया। जब हरिया भगवान के पास पहुंचा तो गुस्से में बोला कि मैंने आपकी बहुत सेवा की और आप मुझे बचाने नहीं आए। भगवान मुस्कुराए और बोले- अरे मूर्ख। मैं एक नहीं तीन बार तुझे बचाने आया था लेकिन तुने मुझे पहचाना ही नहीं।

अगर प्यार हो सच्चा तो मिलेगा जरूर
हमारे यहां कई प्रेम कहानियां अधूरी रह गई हैं। लेकिन कहते हैं अगर आपका प्यार सच्चा है तो एक न एक दिन आपको जरूर मिलता है। हमारे पुराणों में ऐसी ही एक प्रेम कहानी है राजा नल और दयमंती की।
एक बार राजा नल अपने भाई से जुए में अपना सब कुछ हार गए। उनके भाई ने उन्हें राज्य से बाहर कर दिया। नल और दयंमती जगह जगह भटकते फिरे। एक रात राजा नल चुपचाप कहीं चले गए। साथ उन्होने दयमंती के लिए एक संदेश छोड़ा जिसमें लिखा था कि तुम अपने पिता के पास चली जाना मेरा लौटना निश्चित नहीं हैं। दयमंती इस घटना से बहुत दुखी हुई उसने राजा नल को ढ़ूढऩे का बड़ा प्रयत्न किया लेकिन राजा नल उसे कहीं नहीं मिले। दुखी मन से दयंमती अपने पिता के घर चली गई।

लेकिन दयमंती का प्रेम नल के लिए कम नहीं हुआ। और वह नल के लौटने का इंतजार करने लगी। राजा नल अपना भेष बदलकर इधर उधर काम कर अपना गुजारा करने लगे। बहुत दिनों बाद दयमंती को उसकी दासियों ने बताया कि राज्य में एक आदमी है जो पासे के खेल का महारथी है। दयमंती समझ गई कि वह व्यक्ति कोई और नहीं राजा नल ही है। वह तुरंत उस जगह गई जहां नल रूके हुए थे लेकिन नल ने दयमंती को पहचानने से मना कर दिया लेकिन दयमंती ने अपने सच्चे प्रेम के बल पर राजा नल से उगलवा ही लिया कि वही राजा नल है। फिर दोनों ने मिलकर अपना राज पाट वापस हासिल कर लिया। कथा कहती है कि आपका समय कैसा भी हो अगर आपका प्यार सच्चा है तो आपके साथी को आपके वापस लौटा ही लाता है।


जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है...मनीष

Wednesday, January 15, 2014

Learn from the Ramayana(जानिए रामायण को)

रामायण जीवन प्रबंधन का श्रेष्ठ ग्रंथ
आज के युग में हर क्षेत्र में प्रबंधन का महत्व बढ़ता जा रहा है। सामान्यत: प्रबंधन व्यवसाय से ही जोड़ा जाता है परंतु हमारे जीवन का भी प्रबंधन किया जाना चाहिए। जीवन प्रबंधन का मतलब है कि हमें कैसा जीवन जीना है, समाज में, हमारे परिवार में कैसे रहना है, यही मुख्य बिंदू रामायण में बखुबी बताए गए हैं। रामायण में श्रीराम के गुणों और उनके जीवन प्रबंधन के सूत्र से हम भी अपना जीवन स्तर ऊंचा बना सकते हैं-

1. आदर्श नेता- राम आदर्श नेता हैं। सोलह गुणों से परिपूर्ण। सभी को साथ लेकर चलना और सभी का सम्मान कैसे करना है, उन्हीं से सीखा जा सकता है।

2. धर्म प्रमुख - चार पुरुषार्थ में धर्म, अर्थ और काम की रामायण में खूब चर्चा है। उल्लेख है धर्म मूल है। अर्थ और काम भी धर्म का उल्लंघन किए बगैर हासिल हों तो उनका कोई मूल्य नहीं है।

3. भक्त प्रमुख- भक्त भगवान से भी बड़ा है। तभी तो भगवान अपने भक्तों के लिए स्वयं कष्टï सहने को तैयार रहते हैं।

4. शरणागति- जो भगवान की शरण आया उसे भगवान स्वीकार करते हैं। फिर वह चाहे किसी भी जाति, वर्ण या रूप का हो। भगवान सभी को समभाव से देखते हैं और सभी पर समान कृपा बरसाते हैं।

5. नारी प्रधानता- मान्यता है रामायण राम की कथा है, लेकिन वह सीता का चरित्र है। रामायण में नारियां एक से बढ़कर एक हैं। सभी गुणों से भरी हुईं। फिर चाहे सीता हो, मंदोदरी या तारा। आज की महिलाएं इनसे बहुत कुछ सीख सकती हैं।

रामायण: नारी की महानता का ग्रंथ
वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण एक ऐसा ग्रंथ है जिसे सामान्यत: राम की जीवन गाथा कहा जाता है। रामायण राम की जीवन गाथा तो है ही साथ ही रामायण में ऐसी बातें और सूत्र भी मौजूद है जो नारी को महान बनाती हैं।

रामायण में ऐसी कई महिलाएं हैं जिन्होंने अपना नारी धर्म पूरी निष्ठा के साथ निभाया और इसी वजह से वे आज भी पूजनीय है। रामायण की प्रमुख महिला पात्र सीता, कैकेयी, कौशल्या, सुमित्रा, अहिल्या, उर्मिला, अनसूया, शबरी, मन्दोदरी, त्रिजटा और शूर्पणखा, लंकिनी, मंथरा हैं। इन सभी महिलाओं में सीता, उर्मिला, अनसूया और मंदोदरी इन महिलाओं को सदैव पूजनीय माना गया है क्योंकि इन्होंने अपना पतिव्रत धर्म कभी नहीं छोड़ा। इनके अतिरिक्त भक्ति-भावना की प्रतिमूर्ति शबरी भी है। लंका में सीता की रखवाली करने वाली त्रिजटा भी है जो राक्षसी होते हुए भी सीता की सेवा कर खुद को अनुगृहीत मानती है।

राम से बड़ा राम का नाम
भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है। हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार राम सिर्फ एक नाम नहीं अपितु एक मंत्र है, जिसका नित्य स्मरण करने से सभी दु:खों से मुक्ति मिल जाती है। राम शब्द का अर्थ है- मनोहर, विलक्षण, चमत्कारी, पापियों का नाश करने वाला व भवसागर से मुक्त करने वाला। रामचरित मानस के बालकांड में एक प्रसंग में लिखा है-

नहिं कलि करम न भगति बिबेकू।
राम नाम अवलंबन एकू।।

अर्थात कलयुग में न तो कर्म का भरोसा है, न भक्ति का और न ज्ञान का। सिर्फ राम नाम ही एकमात्र सहारा हैं।स्कंदपुराण में भी राम नाम की महिमा का गुणगान किया गया है-

रामेति द्वयक्षरजप: सर्वपापापनोदक:।
गच्छन्तिष्ठन् शयनो वा मनुजो रामकीर्तनात्।।
इड निर्वर्तितो याति चान्ते हरिगणो भवेत्।
स्कंदपुराण/नागरखंड

अर्थात यह दो अक्षरों का मंत्र(राम) जपे जाने पर समस्त पापों का नाश हो जाता है। चलते, बैठते, सोते या किसी भी अवस्था में जो मनुष्य राम नाम का कीर्तन करता है, वह यहां कृतकार्य होकर जाता है और अंत में भगवान विष्णु का पार्षद बनता है।इसमें कोई संदेह नहीं है कि जो शक्ति भगवान की है उसमें भी अधिक शक्ति भगवान के नाम की है।

नाम जप की तरंगें हमारे अंतर्मन में गहराई तक उतरती है। इससे मन और प्राण पवित्र हो जाते हैं, बुद्धि का विकास होने लगता है, सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, मनोवांछित फल मिलता है, सारे कष्ट दूर हो जाते हैं, मुक्ति मिलती है तथा समस्त प्रकार के भय दूर हो जाते हैं।

मर्यादा सीखें रामायण से 
रामायण में ऐसे कई गूढ़ रहस्य छिपे हैं जो वर्तमान समय में हमें जीने की सही राह दिखाते हैं। रामायण में मर्यादाओं के पालन पर विशेष जोर दिया गया है। रामायण में ऐसे कई प्रसंग आते हैं जहां भगवान श्रीराम ने मर्यादाओं के पालन के लिए त्याग कर आदर्श उदाहरण पेश किया। श्रीराम ने मर्यादा के पालन के लिए 14 साल का वनवास भी सहज रूप से स्वीकार कर लिया। इसीलिए उन्हें मर्यादापुरुषोत्तम कहा गया।
रामायण में ऐसे भी कई प्रसंग आते हैं जहां मर्यादा का पालन न करने पर पराक्रमी व बलशाली को भी मृत्यु का वरण करना पड़ा। जब भगवान राम ने किष्किंधा के राजा बालि का वध किया तो उसने भगवान से प्रश्न पूछा-

मैं बेरी सुग्रीव प्यारा
कारण कवन नाथ मोहि मारा,

प्रति उत्तर में जो बात राम ने कही वह मर्यादा के प्रति समर्पण को दर्शाती है-अनुज वधू, भग्नी, सुत नारी,सुन सठ ऐ कन्या सम चारीअर्थात अनुज की पत्नी, छोटी बहन तथा पुत्र की पत्नी। यह सभी पुत्री के समान होती है। तुमने अपने अनुज सुग्रीव की पत्नी को बलात अपने कब्जे में रखा इसीलिए तुम मृत्युदंड के अधिकारी हो।
ऐसे ही मानवीय संबंधों को मर्यादाओं में बांधा गया है। इस प्रकार मर्यादाएं व्यक्ति के मन पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालती है। वर्तमान समय में जहां पाश्चात्य सभ्यता हमारे बीच घर करती जा रही हैं वहीं रामायण एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो हमें मर्यादाओं की शिक्षा दे रहा है।

क्या है रामायण के सात कांडों की कथा
इस रामकथा को सात कांडों में विभक्त किया गया है। इन सात कांडों में राम का संपूर्ण जीवन है। 1. बालकांड: इस कांड में वाल्मीकि को रामकथा के लिए ब्रह्मा की आज्ञा, दशरथ का पुत्रेष्टि यज्ञ, राम जन्म, राम विवाह आदि।2. अयोध्या कांड: राम का वनगमन, चित्रकूट यात्रा, दशरथ मरण, भरत की चित्रकूट यात्रा, राम का चित्रकूट से प्रस्थान।3. अरण्यकांड: दण्डकारण्य प्रवेश, शूर्पणखा का विरूपीकरण, सीताहरण, जटायुवध, सीताखोज, शबरी प्रसंग।4. किष्किंधाकांड: सुग्रीव से मैत्री, बालिवध, वानरों का प्रेषण, वानरों की खोज।5. सुंदरकांड: लंका में हनुमान का प्रवेश, रावण-सीता संवाद, हनुमान-सीता संवाद, लंका दहन, हनुमान का प्रत्यावर्तन।6. युद्धकांड: लंका का अभियान, विभीषण की शरणागति, सेतुबंध, कुंभकरणवध, लंका दहन, रावण वध, अग्नि परीक्षा, अयोध्या प्रवेश।7. उत्तरकांड: सीता त्याग, अश्वमेद्य यज्ञ का आयोजन, स्वर्गगमन।यह जीवन के सिद्धांतों पर आधारित काव्य है। मानव जीवन बालू की भीत के समान शीघ्र ही ढहकर गिर जाने वाली वस्तु नहीं है। इसमें स्थायित्व है तथा आने वाली पीढिय़ों को राह दिखाने की क्षमता है।

जीवन के आदर्शों की कहानी रामायण
रामायण जीवन मूल्यों और आदर्शों की कहानी है। भगवान राम के जीवनकाल पर आधारित यह कहानी हमें अमूल्य आदर्शों की शिक्षा देती है। राम के ही जीवन काल में उनके समकालीन ब्रह्मर्षि वाल्मीकि ने इस कथा की रचना की थी। यह कथा बताती है कि हमारे आदर्श कैसे हों। आदर्श पिता-माता, पत्नी, भ्राता, इतना ही नहीं महर्षि वाल्मीकि ने अपनी रामकथा में संपूर्ण भारतीय सभ्यता की प्रतिष्ठा गृहस्थाश्रम में स्थापित की है। यह संपूर्ण गृहस्थी और परिवार का ग्रंथ है। रामायण को आदिकाव्य तथा महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि की संज्ञा दी गई है। रामायण सात अध्यायों में है। इसके अध्यायों को कांड की संज्ञा दी गई है। इन कांडों के नाम बाल कांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधा कांड, सुंदर कांड, युद्ध कांड और उत्तरकांड हैं। इसमें राम के जन्म से लेकर उनके महाप्रयाण तक की संपूर्ण कथा है।

सीता स्वयंवर में शिव का धनुष क्यों रखा गया?
राजा जनक द्वारा अपनी कन्या सीता के विवाह हेतु स्वयंवर आयोजित किया गया। स्वयंवर में शिवजी का धनुष रखा गया और शर्त रखी गई कि जो इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा सीता उसे ही वरमाला पहनाएगी। इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना इसलिए खास था क्योंकि यह धनुष स्वयं शिवजी का था और बहुत अधिक वजनी था।

धनुष के वजन के संबंध में तुलसीदास ने लिखा है कि स्वयंवर में उपस्थित हजारों राजा एक साथ मिलकर भी उस धनुष को हिला तक नहीं पाए थे। वहीं श्रीराम ने शिव धनुष को खेल ही खेल में प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए उठाकर तोड़कर दिया और सीता ने श्रीराम को वरमाला पहना दी।

स्वयंवर में इतनी कठिन शर्त क्यों रखी गई, इसके पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं:
शास्त्रों के अनुसार विश्वकर्मा ने दो दिव्य धनुष बनाए थे एक विष्णु के लिए और एक शिव के लिए। शिव ने इस धनुष से एक दैत्य का संहार किया और इसे परशुराम को भेंट में दिया था। परशुराम ने इस धनुष और फरसे से 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहिन कर दिया और जनक के पूर्वज देवराज के यहां इस धनुष को रखवा दिया था।

धनुष इतना भारी था कि कोई इसे हिला भी नहीं सकता था। जब राजा जनक के यहां सीता आई और सीता बचपन में सीता धनुष को उठाकर खेलती थी। यह देखकर जनक समझ गए कि सीता कोई साधारण कन्या नहीं है अत: इसका विवाह भी किसी असाधारण वर से किया जाना उचित है। इसी वजह से जनक ने सीता के स्वयंवर के समय इस धनुष को रखा।

क्या सीता और रावण में पिता-पुत्री का संबंध था?
रामायण के पात्रों, घटनाक्रम और कथानक को लेकर कई ग्रंथ रचे गए हैं। रामायण के कई पहलू आज भी शोध का विषय हैं और दुनियाभर के विद्वान इन विषयों का लगातार अध्ययन भी कर रहे हैं। इन विषयों में एक विषय है सीता और रावण के संबंध का। कई विद्वानों का मानना है कि सीता और रावण पिता-पुत्री थे। हालांकि रामायण के सबसे प्रामाणिक ग्रंथ वाल्मीकि रामायण में इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता है।

राम के जीवना पर करीब 125 अलग-अलग रामायण लिखी जा चुकी हैं। कई ग्रंथों को विद्वान प्रामाणिक भी मानते हैं। सीता और रावण के संबंध में कई कथाएं भी प्रचलित हैं। ऐसी ही एक रामायण है जिसका नाम है अद्भुत रामायण। यह रामायण 14वीं शताब्दी में लिखी मानी जाती है। यह मूलत: कथानक न होकर दो प्रमुख ऋषियों वाल्मीकि और भारद्वाज ऋषि के बीच का वार्तालाप है।

इस रामायण में यह उल्लेख है कि सीता का जन्म मंदोदरी के गर्भ से हुआ था। इस रामायण में पूरे घटनाक्रम का उल्लेख भी है। जिसमें रावण एक स्थान पर कहता है कि अगर में अनजाने में भी अपनी ही कन्या को स्वीकार करूं तो मेरा नाश हो जाए। अदभुत रामायण में कथा आती है कि एक बार दण्डकारण्य मे गृत्स्मद नामक ब्राह्मण, लक्ष्मी को अपनी पुत्री रूप मे पाने के लिए हर दिन एक कलश में कुश के अग्र भाग से मंत्रोच्चारण के साथ दूध की बूदें डालता था। एक दिन उसकी अनुपस्थिति मे रावण वहां पहुंचा और ऋषियों का रक्त उसी कलश मे एकत्र कर लंका ले गया। कलश को उसने मंदोदरी के संरक्षण मे दे दिया-यह कह कर कि यह तीक्ष्ण विष है,सावधानी से रखे।

इसके बाद रावण विहार करने सह्याद्रि पर्वत पर चला गया। रावण की उपेक्षा से दुखी होकर मन्दोदरी ने आत्महत्या की इच्छा से, जहर समझकर उस घड़े में भरा वह रक्त पी लिया। इससे अनजाने में ही मंदोदरी गर्भवती हो गई। लोकापवाद और अशुभ के डर से उसने राजा जनक के राज्य में स्थित एक स्थान पर उन भ्रूण का निकालकर जमीन में दबा दिया। धरती में गढ़ा हुआ यही भ्रूण परिपक्व होकर सीता के रूप में प्रकट हुआ, जो हल चलाते समय मिथिला के राजा जनक को प्राप्त हुआ।

इस कथा के आधार पर कई विद्वान यह मानते हैं और दावा करते हैं कि सीता और रावण में पिता-पुत्री का संबंध था। हालांकि अन्य भी कई ग्रंथों में कई अन्य कथाएं भी प्रचलित हैं।

रावण ने सीता को राजमहल में क्यों नहीं रखा...
देवराज इंद्र की सभा में यूं तो कई अप्सराएं हैं। सभी एक से बढ़कर एक सुंदर... वहीं एक अप्सरा रंभा जिसकी सुंदरता की कोई सीमा नहीं... पलभर में कोई भी उसके मोह में पड़ सकता है। रंभा एक बार सज-धजकर कुबेरदेव के पुत्र नलकुबेर से मिलने जा रही थी। रास्ते में रावण ने उसे देखा और रंभा के रूप और सौंदर्य को देखकर मोहित हो गया। रावण ने रंभा को बुरी नियत से रोक लिया। इस पर रंभा ने रावण से उसे छोडऩे की प्रार्थना की और कहा कि आज मैंने आपके भाई कुबेर के पुत्र नलकुबेर से मिलने का वचन दिया है अत: मैं आपकी पुत्रवधु के समान हूं अत: मुझे छोड़ दीजिए। परंतु रावण था ही दुराचारी वह नहीं माना और रंभा के शील का हरण कर लिया।

रावण द्वारा रंभा के शील हरण का समाचार जब कुबेर देव के पुत्र नलकुबेर का प्राप्त हुआ तो वह रावण पर अति क्रोधित हुआ। क्रोध वश नलकुबेर ने रावण को श्राप दे दिया कि आज के बाद यदि रावण किसी भी स्त्री को बिना उसकी स्वीकृति जबरजस्ती करेगा या अपने राजमहल में रखेगा तो उसी दिन वह भस्म हो जाएगा। इसी श्राप के डर से रावण ने सीता को राजमहल में न रखते हुए अशोक वाटिका में रखा।

किन लोगों का विरोध ना करें
रामचरित मानस के अनुसार जब रावण सीता हरण करने के लिए आया और उसने अपनी योजना अनुसार वह मारीच को स्वर्ण मृग बनने के लिए आदेश दिया। तब मारीच ने रावण से कहा कि श्रीराम कोई साधारण मानव नहीं है। एक बार ऋषि विश्वामित्र के यज्ञ के समय उन्होंने एक बिना फर का बाण मुझे मारा था और मैं कई सौ योजन दूर जा गिरा था। जिसमें इतनी शक्ति हो उसके पास जाकर छल करना अर्थात् मृत्यु को ही गले लगाने जैसा है। श्रीराम ने ही पलभर में ताड़का, सुबाहु, खर-दूषण, त्रिशिरा का वध कर दिया। श्रीराम ने ही शिवजी का धनुष एक खिलौने की भांति तोड़ दिया। वे कोई सामान्य मनुष्य नहीं है। उनसे वैर लेना मतलब मृत्यु के मुंह में खुद ही जाना है।

मारीच की ऐसी बातें सुनकर रावण क्रोधित हो गया और मारीच से अपने पराक्रम की महिमा गाने लगा। तब मारीच समझ गया कि रावण अब काल वश हो चला है अत: इससे विरोध करने पर यह अभी मुझे खत्म कर देगा। मारीच सोचने लगा कि शस्त्रधारी, भेद जानने वाला, समर्थ स्वामी, मूर्ख, धनवान, वैद्य, भाट, कवि और रसोइया से कभी विरोध नहीं करना चाहिए। रावण से विरोध करके इसके हाथों मरने से अच्छा है मैं श्रीराम के हाथों मर कर इस भव सागर से पार हो जाऊंगा।

इंद्रजीत का कटा सिर भी हंस पड़ा
राम-रावण के युद्ध अपने चरम पर था। रावण बड़े-बड़े योद्धा मारे जा चुके थे। वहीं रावण पुत्र मेघनाद श्रीराम की सेना पर कहर बरपा रहा था और लक्ष्मण को भी मूर्छित कर दिया था। हनुमान द्वारा संजीवनी बुटि लेकर आने के बाद लक्ष्मण की मुर्छा टूट गई और फिर से लक्ष्मण और इंद्रजीत आमने-सामने आ गए। इस बार लक्ष्मण का पलड़ा भारी था और उनके एक बाण ने मेघनाद का एक हाथ काट दिया और बाण कटे हाथ सहित रावण में महल में इंद्रजीत की पत्नी सुलोचना के समक्ष जा गिरा। पति के कटे हाथ को देखकर सुलोचना को एहसास हो गया था कि अब उसके पति परमगति को प्राप्त हो गए हैं। परंतु फिर भी उसे संदेह था तो उसने कटे हाथ से कहा यदि मैंने अपना पतिव्रत धर्म पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाया है तो मुझे बताओं कि मेरे जीवित हैं या नहीं? यह सुनते ही कटे में कुछ हरकत हुई और इशारों में इंद्रजीत की मृत्यु का समाचार दे दिया। पति की मृत्यु से उसे गहरा दुख हुआ और वह तुरंत रावण के पास गई और अपने पति के शीश के दर्शन की अभिलाषा व्यक्त की। इस पर रावण ने कहा तनिक रुको मैं अपने दुश्मनों के शीश सहित मेरे पुत्र को शरीर भी ले आउंगा। परंतु सुलोचना को तुरंत ही पति के शीश के दर्शन करने थे ताकि वह दर्शन कर खुद के प्राण त्याग सके।

अत: वह श्रीराम के पास जा पहुंची और अपने पति के शीश के दर्शन की प्रार्थना करने लगी साथ ही पूरी बात बताई उसे कैसे पता लगा कि उसके पति को परमगति प्राप्त हो गई है। सुलोचना की यह अवस्था देखकर भक्त वत्सल श्रीराम ने उससे कहा- हे देवी यदि तुम चाहो तो हम तुम्हारे पति को ही जीवित कर देते हैं। परंतु सुलोचना ने कहा भगवन् आपके हाथों उन्हें परमगति प्राप्त हुई है और अब वे आपके धाम में निवास करेंगे अत: मुझे भी आज्ञा दें कि मैं भी आपके धाम में ही पति की सेवा करूं। श्रीराम ने सुग्रीव को इंद्रजीत के शीश को लेकर आने की आज्ञा दी और सुग्रीव संदेह के साथ मेघनाद का शीश सुलोचना को सौंप दिया। सुग्रीव ने कहा यह कैसे हो सकता है कि कोई कटा हाथ किसी प्रकार हरकत करें। यदि वह बात सत्य है तो हे देवी इंद्रजीत के कटे शीश को हंसाकर दिखाओं। सुलोचना ने पति के कटे शीश से प्रार्थना की कि यदि मैंने मेरा पतिव्रत पूर्ण निष्ठा से निभाया है तो स्वामी आप एक बार हंसकर दिखाएं। यह सुनते ही इंद्रजीत का शीश हंस पड़ा। सभी ने सुलोसना को प्रणाम किया और उसके पतिव्रत धर्म की सराहना की।

समझिए, भगवान क्या चाहता है
हम भगवान से हमेशा वो मांगते हैं जो हम चाहते हैं। कभी ये भी सोचिए कि भगवान क्या चाहता है। जब भी कोई घटना आपके खिलाफ घट जाए तो धर्य मत खोइए, उसमें अपने लिए सकारात्मक ढूंढ़िए, संभव है जिसे आप अब तक अनदेखा कर रहे थे, वो ही आपके लिए श्रेष्ठ हो। कभी परमात्मा के किए का विरोध न करें।

कई बार जीवन में जो हम चाहते हैं वह नहीं होता और ईश्वर क्या चाहते हैं यह हम समझ नहीं पाते हैं। जो लोग धार्मिक होते हैं वे ऐसी स्थिति में और परेशान हो जाते हैं। अधार्मिक लोग तो ऐसी स्थितियों में अपने तरीके से उत्तर ढूंढ लेते हैं। परंतु धार्मिक लोग मनचाहा हो इसे अपना हक मानते हैं। कई लोग तो शब्दों की इस गरिमा को भी लांघ जाते हैं कि जब इतना सब भगवान, ईश्वर, परमात्मा को मानते-पूजते हैं तो फिर भी चाहा काम न हो तो क्या मतलब? पूजापाठ, धर्मकर्म का? इसे समझना होगा। जिसने चाह बदल ली वह धार्मिक नहीं होता, धार्मिक वह होता है जिसने चाह समझ ली।

आइए राजा दशरथ के जीवन के एक प्रसंग से समझें। उनकी इच्छा थी राम अवध की राजगादी पर बैठें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिन्हें राम जैसी मूल्यवान संतान प्राप्त हो गई हो, उनके मन की मुराद भी पूरी नहीं हुई। बहुत बारीकी से देखें तो हम कहीं दशरथ में नजर आ जाएंगे। दशरथ की चाह थी राम राजा बनें पर चाहत में कैकयी थीं। दशरथ के धार्मिक होने में कोई संदेह नहीं है लेकिन उनका कैकयी से आचरण विलासी हो गया था। भक्ति और वासना एकसाथ कैसे हो सकते हैं। राम और काम साथ-साथ रखने का परिणाम राम राज्य चौदह वर्ष के लिए दूर हो जाना।

इसलिए धार्मिक लोग अपनी चाह को ईश्वर से जोड़ें और सावधानी, शुद्धता से जोड़ें। होने दें जो हो रहा है। आपकी इच्छा का हो जाना बढ़िया है पर यदि न हो तो वह परमात्मा की मर्जी का हो जाना मानें वह उससे श्रेष्ठ हुआ मानें।

तब लक्ष्मण को खाली हाथ लौटा दिया था रावण ने
कई लोग प्रबंधन से जुड़े होने के बावजूद भी परिस्थिति के अनुसार व्यवहार करना नहीं जानते। वे हर समय अपने ही प्रभाव में होते हैं। परिस्थितियों के अनुसार व्यवहार करना, अपनी भूमिका को समझना और सामने वाले से कोई काम निकलवाना। ये सब मैनेजमेंट के गुर होते हैं, जो हर व्यक्ति को पता नहीं होते। हम हैं भले एक ही लेकिन परिस्थिति के मुताबिक हमारी भूमिकाएं बदलती रहती है, हमें अपनी भूमिका के मुताबिक व्यवहार को सीखना चाहिए।

रामायण युद्ध की एक घटना इस बात की शिक्षा देती है। राम ने रावण की नाभि में तीर मार कर चित कर दिया था। वह रथ से धरती पर गिर पड़ा। अंतिम समय नजदीक था, रावण आखिरी सांसें ले रहा था। सभी उसके आसपास जमा होने लगे। ऐसा माना जाता है कि उस समय राम ने लक्ष्मण को आदेश दिया कि रावण महापंडित है, राजनीति का विद्वान है। जाओ उससे राजनीति के कुछ गुर सीख लो, वह युद्ध हार चुका है, अब हमारा शत्रु नहीं है। लक्ष्मण ने राम की बात मानी और रावण के नजदीक सिर की ओर जाकर खड़े हो गए, रावण से राजनीति पर कोई उपदेश देने की प्रार्थना की। रावण ने लक्ष्मण को देखा और उसे बिना शिक्षा दिए, यह कहकर लौटा दिया कि तुम अभी मेरे शिष्य बनने लायक नहीं हो।

लक्ष्मण ने राम के पास जाकर यह बात बताई। राम ने कहा तुम कहां खड़े थे, लक्ष्मण ने कहा रावण के सिर की ओर। राम ने कहा तुमने यहीं गलती की, तुम अभी योद्धा या युद्ध में जीते हुए वीर नहीं जो मरने वाले शत्रु के सिर के पास खड़े हो, अभी तुम एक विद्यार्थी हो, जो राजनीति सीखना चाहते हो, अबकी बार जाओ और रावण के पैर की ओर खड़े होकर प्रार्थना करना। लक्ष्मण ने ऐसा ही किया, रावण ने प्रसन्न होकर लक्ष्मण को राजनीति की कई बातें बताई। उसके बाद प्राण त्याग दिए।

रावण ने कैसे बनाया समय को गुलाम ?
रावण एक महान तपस्वी, महान योद्धा ही नहीं महान विद्वान भी था। लेनिक उसकी ये सारी महानताएं और योग्यताएं उसकी एक गलती अथवा अंहकार की भैंट चढ़ गईं। इसीलिये अनुभवी लोग कहते हैं कि, एक सफल व्यक्ति को गलतियों के प्रति सावधान रहने की अधिक आवश्यकता होती है। क्योंकि सफलता के शिखर से गिरने में जरा सी भी देर नहीं लगती। जबकि जो नीचे पड़ा है यानि कि असफल है उसे इतनी सावधानी की आवश्यकता नहीं क्योंकि वो गिर कर जाएगा भी कहां।

रावण ने अपने कठिन पुरुषार्थ और दुर्धश जीवटता के बल पर ही एक से बढ़कर एक उपलब्धियां और सफलताएं अर्जित की थीं। दस सिर,बीस हाथ, नाभि में अमृत,अनेक अद्भुत अस्त्र-शस्त्र, सोने की लंका, एकक्षत्र राज तथा और भी बहुत कुछ। रावण ने योग्यता और पराक्रम के बल पर देवताओं तक को अपना गुलाम और सेवक बना रखा था। देवताओं के साथ ही रावण ने काल यानि कि समय को भी अपना बंधक या गुलाम बना रखा था।

किसी के मन में यह संदेह हो सकता है कि समय जैसी अदृश्य वस्तु को कोई कैद करके अपना गुलाम कैसे बना सकता है। यहां जरूरत है प्रखर मस्तिष्क एवं गहन चिंतन की। समय दुनियां की सबसे अनमोल वस्तु है। जिसने समय को जीत लिया यानि नियंतित्र कर लिया अथवा कंट्रोल कर लिया, समझो उसने दुनिया की जंग जीत ली। रावण का भी समय के ऊपर पूरा नियंत्रण था। किसी कार्य के होने में जितने समय की आवश्यकता होती हे, उसके हजारवे भाग में ही रावण उस कार्य को सम्पन्न कर देता था। इतना ही नहीं रावण की कार्य करने की गति समय की गति से भी अधिक थी। तभी तो हजारों वर्ष बीतने के बाद भी रावण की इस उपलब्धि को याद किया जाता है।

राम के इकत्तीस बाणों से मरा रावण
राम-रावण के युद्ध में जब रावण के सारे यौद्धा मारे जा चुके थे। तब रावण खुद श्रीराम से युद्ध करने के लिए अपने दिव्य रथ और भयंकर अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर रणभूमि में आया। रावण ने आते ही तरह-तरह की माया कई बार रची और वानर सेना के छक्के छुड़ाने लगा। तब श्रीराम ने रावण द्वारा रची गई माया को हर बार पलभर में समाप्त कर वानर सेना की रक्षा की।

फिर जब श्रीराम-रावण आमने-सामने आ गए तो बड़ा भयंकर युद्ध हुआ। दोनों ने दिव्य और प्रलयकारी बाणों का अनुसंधान कर एक-दूसरे की ओर छोड़े। तब राम ने 30 शक्तिशाली बाण रावण की ओर छोड़े जिससे उसके दसों शीश और बीस हाथों को काट गिराया, परंतु रावण नहीं मरा और उसके सभी मुख और हाथ पुन: आ गए। ऐसा ही कई बार राम बाण छोड़ते पर रावण मरता ना था।

अंतत: विभीषण ने श्रीराम को बताया कि रावण की नाभि में अमृत है जिससे वह मर नहीं रहा है। तब राम में 31 बाणों का संधान किया और रावण की छोड़ दिए। 1 प्रमुख बाण रावण की नाभि पर जा लगा जिसने रावण का सारा अमृत सुखा दिया तत्पश्चात दस बाणों से उसके दसों शीश, बीस अन्य बाणों से रावण की बीसों भुजाएं कट गई और रावण मृत्यु को प्राप्त हुआ।

रिश्तों का आदर्श ग्रंथ है रामचरितमानस

रामचरित मानस 15 वी शताब्दी में महाकवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखा गया एक महाकाव्य है। रामचरितमानस वाल्मिकी रामायण से प्रेरित है। रामचरित मानस त्रैता युग की कहानी है जिसके नायक मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम है। तुलसीदास ने सवंत् 1631 के प्रारंभ में रामनवमी के दिन रामचरित मानस की रचना प्रारंभ की। तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना उस समय की जब चारों ओर कृष्ण भक्ति का माहौल था। कृष्ण भक्ति का रंग संपूर्ण भारत पर छाया हुआ था। ऐसे समय में तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना कर समाज को भक्ति के एक नए रंग में रंग दिया। वह रंग था रामभक्ति का।

रामचरितमानस के बहुत अधिक लोकप्रिय होने का मुख्य कारण इस काव्य का अवधि में होना था। अवधि में होने के कारण इसका प्रसार बहुत तेजी से जनसामान्य में हुआ। इसकी रचना मूल रुप से चौपाई और दोहे के रूप में की गई है। रामचरित मानस में राम जैसा एक आदर्श नायक हैं जो पूरी तरह से आदर्श पति, राजा, पुत्र व भाई हैं। राम की पत्नी सीता एक आदर्श नारी, पतिव्रता स्त्री और बहु है। लक्ष्मण और भरत जैसे निष्ठावान भाई हैं। रामचरित मानस का हर एक किरदार समाज के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करता है। रामचरित मानस में कुल सात कांड यानी अध्याय है पहला बाल कांड, दूसरा अयोध्या कांड, अरण्य कांड, किष्किधां कांड, सुन्दर कांड, लंका कांड, और उत्तर कांड।

क्या है रामचरित मानस के सात कांड में?
हम आपको बताने जा रहे हैं कि रामायण के किस कांड में राम के जीवन की कौन सी घटना का वर्णन है।
रामचरितमानस की में कुल सात अध्याय यानी कांड हैं।

1.बालकांड- इसमें रामचरितमानस मानस की भूमिका, राम के जन्म के पूर्व घटनाक्रम, राम और उनके भाइयों का जन्म, ताड़का वध, राम विवाह का प्रसंग आदि।

2. अयोध्या कांड- राम का वैवाहिक जीवन, राम को अयोध्या का युवराज बनाने की घोषणा, राम को वनवास, राम का सीता लक्ष्मण सहित वन में जाना, दशरथ की मौत आदि।

3. अरण्य कांड- राम का वन में संतों से मिलना, चित्रकुट से पंचवटी तक सफर, शुर्पनखा से युद्ध , सीता हरण।

4.किष्किंधा कांड- राम लक्ष्मण का सीता को खोजना, राम व सुग्रीव की मैत्री, बालि का वध, वानरों के द्वारा सीता की खोज।

5. सुन्दर कांड- हनुमान का समुद्र लांघना, विभीषण से मुलाकात, अशोक वाटिका में माता सीता से भेंट, रावण के पुत्रों से हनुमान वाटिका में हनुमान का युद्ध हनुमान का वापस लौटना, हनुमान द्वारा राम को सीता का संदेश सुनाना, लंका पर चढ़ाई की तैयारी, वानरसेना का समुद्र तक पहुंचना, राम का समुद्र से रास्ता मांगना।

6. लंका कांड- नील द्वारा समुद्र पर सेतु बनाना, वानर सेना का समुद्र पार कर लंका पहुंचना, अंगद को शांति दूत बनाकर रावण की सभा में भेजना, राम व रावण की सेना में युद्ध, रावण व कुंभकरण द्वारा रावण का वध, राम का सीता लक्ष्मण सहित अयोध्या लौटना, अयोध्या में राम का राजतिलक।

7. उत्तर कांड- अयोध्या में रामराज्य, सीता को वनवास, लवकुश जन्म, राम के द्वारा अश्वमेघ यज्ञ, लव कुश से राम सेना का युद्ध, अयोध्या में लव कुश का रामायण गायन, राम का लवकुश और सीता से मिलना, सीता का धरती में समाना, राम द्वारा लक्ष्मण का त्याग, राम के द्वारा जलसमाधि लेना।

क्या अंतर है तुलसी की रामचरितमानस और वाल्मीकि रामायण में?
कई लोगों के लिए यह एक सवाल ही है कि वाल्मीकि की रामायण और तुलसीदास की रामचरित मानस में क्या अंतर है। कई लोग तुलसीदास की रामचरित मानस को ही मूल रामायण मानते हैं। वास्तव में वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास की रामचरित मानस में बहुत अंतर है। आज हम आपको दोनों ग्रंथों में मूल रूप से क्या अंतर है, यह बता रहे हैं।

मौलिकता - रामचरितमानस गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखा गया रामायण से प्रेरित एक महाकाव्य है। दोनों के ही नायक राम है लेकिन ऐसा माना जाता है कि महर्षि वाल्मीकि ने रामायण को राम के जीवनकाल में ही लिखा था और खुद भगवान राम ने इसे सुना भी था। रामायण को राम द्वारा प्रमाणित ग्रंथ माना गया है वहीं रामचरितमानस तुलसीदास द्वारा सत्रहवी शताब्दी में लिखा गया काव्य है।

भाषा- रामचरितमानस की भाषा अवधि है जो कि भारत की प्रमुख लोक भाषा है। इसलिए रामचरितमानस आज वाल्मीकि रामायण से ज्यादा लोकप्रिय है। वाल्मीकि रामायण संस्कृत में लिखी गई है। जो कि आज नियमित पढऩा मुश्किल है।

कथा - राम के जीवन की कई ऐसी घटनाओं का वर्णन भी किया गया है जो रामचरितमानस में नहीं बताई गई हैं यानी रामचरितमानस पूर्णत: एक आदर्श ग्रंथ हैं। जिसका केन्द्रीय किरदार राम है। रामचरित मानस में राम एक ऐसे नायक हैं जो समाज के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करते हैं। रामायण महर्षि वाल्मिकी द्वारा लिखा गया भगवान श्री राम का जीवन वृतांत है।

सूत्रधार - वहीं गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस के चार सूत्रधार है। यहां एक और भगवान शंकर मां पार्वती को राम की गाथा सुना रहे हैं। ऋषि कागभुशंडी पक्षीराज गरूड़ को सुना रहे हैं। याज्ञवल्क्य ऋषि भारद्वाज को रामकथा कह रहे हैं। इस तरह रामचरितमानस के माध्यम से तुलसीदास जी यह संदेश दे रहे है कि यह पशु-पक्षी, संत और गृहस्थ सभी के लिए रामचरितमानस एक आदर्श ग्रंथ है।

जीवन के हर क्षेत्र में श्रेष्ठ हैं रामचरितमानस के आदर्श
रामचरित मानस रिश्तों का एक आदर्श ग्रंथ है। इस ग्रंथ में जीवन की हर समस्या का समाधान है।रामचरित मानस हमें हर रिश्ते को निभाना सिखाती है। हम समाज में किस तरह रहें, परिवार में किस तरह रहें, अपने कार्य क्षेत्र में कैसे रहें, मित्रों के साथ हमारा व्यवहार कैसा हो आदि सभी बातें हम इस ग्रंथ से सीख सकते हैं।

रिश्ते- रामचरितमानस के नायक राम हैं। जो हर तरह से आदर्श हैं वे एक आदर्श भाई, एक अच्छे पति और एक राजा होने के साथ ही दृढ़ व्यक्तित्व हैं। वहीं उनकी पत्नी सीता भी एक श्रेष्ठ पत्नी है जो रावण की लंका में रहने के बाद भी अपने पतिव्रत को बनाये रखती है। लक्ष्मण ऐसे भाई हैं जिन्होने चौदह वर्ष तक नि:स्वार्थ भाव से राम की सेवा की।

परिस्थिति- राम कठिन परिस्थितियों में भी किसी व्यक्ति को विचलित ना होने का संदेश देते हैं। रामचरितमानस में जिन राम का एक दिन पहले राजतिलक होने जा रहा था। उन्हे सुबह वनवास पर भेज दिया जाता है। वे इस घटना से भी बिल्कुल विचलित नहीं होते हैं बल्कि इसे अपनी पिता की आज्ञा मानकर वन को चले जाते है। वो आदर्श नायक के साथ ही आदर्श पुत्र भी हैं।

नेतृत्व- राम एक आदर्श नेतृत्वकर्ता भी हैं। अंगद के समुद्र लांघने के समय उसमें आत्मबल की कमी होने की बात को समझकर उसका उत्साह बढ़ाने के लिए उसे अंगद को लंका भेजते हैं। इससे वे अंगद का उत्साह तो बढ़ाते ही हैं साथ ही रावण तक यह संदेश भी पहुंचाते हैं कि उनकी साथ केवल एक हनुमान ही नही हैं, कई और पराक्रमी वीर भी हैं। कुशल नेतृत्व के ऐसे कई उदाहरण रामचरितमानस में मिलते हैं।

समाज- समाज के लिए भी रामचरितमानस में कई आदर्श उदाहरण है। राम का समाज के नियमों के पालन के लिए सीता का त्याग करना यह सीखाता है कि हमें समाज में किस तरह से रहना चाहिए। आदर्श समाज की रचना के लिए अपने सुखों का त्याग और न्याय की समानता का आदर्श भी प्रस्तुत करते हैं।

रामचरित मानस का हर किरदार ऐसा है जो जनसामान्य के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करता है। अपनी जिन्दगी की किसी भी कठिन परिस्थिति में निर्णय कैसे लें? यह भी हम रामचरितमानस से सीख सकते हैं।

जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK

Friday, January 10, 2014

Learn to Mahabharat(जानिए महाभारत को)

महाभारत का सबसे बड़ा संदेश है कर्म
महाभारत कई मायनों में धर्म प्रधान होते हुए भी कर्म प्रधान ही है। स्वयं श्रीकृष्ण भी कर्म की प्रधानता अर्जुन को गीता उपदेश के समय समझाते हुए कहते है कि कर्म करो फल की चिंता मत करो।अर्जुन युद्ध के मैदान में जब अपने ही परिजनों को समक्ष देखकर घबरा जाते हैं तब श्रीकृष्ण उन्हें कहते हैं कि एक तरफ तो आप यह कहते हैं कि ये मेरे भाई-बंधु है, मुझे इनसे युद्ध नहीं करना चाहिए और मेरे बड़ों पर मैं अस्त्र-शस्त्र नहीं उठाऊंगा तथा दूसरी तरफ तुम हे अर्जुन, जिन लोगों के विषय में नहीं सोचना चाहिए उनके विषय में तू सोचता है और ज्ञानियों की तरह बातें करते हो।

महाभारत केवल युद्धकथा नहीं, जीवन जीने की शैली है
महाभारत का नाम सुनते ही मस्तिष्क में भयंकर संहारक युद्ध का नजारा आंखों के सामने घूमने लगता है। अधिकतर लोग समझते हैं कि महाभारत एक युद्धकथा है, जिसमें राज्य के लिए पांडवों और कौरवों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। किंतु अगर बारिकी से देखा जाए तो महाभारत में श्रेष्ठ जीवन के कई सूत्र छिपे हैं। यह कथा हमें सिखाती है कि पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन में कैसे जीया जाए।

यह कथा एक संपूर्ण जीवन शैली है।महाभारत की रचना महर्षि कृष्णद्वैपायन व्यास (वेद व्यास) ने की है। महाभारत के विषय में कहा जाता है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चार पुरुषार्थों के विषय में जो महाभारत में कहा गया है वह ही सब ओर है, और जो इसमें नहीं है वह कहीं नहीं है।इसे पांचवा वेद भी कहते हैं। महाभारत का नाम जय, भारत और उसके बाद महाभारत हुआ। इसमें एक लाख श्लोक हैं।यह बहुनायक प्रधान ग्रंथ है। जिसे किसी भी पात्र के दृष्टिकोण से देखा जाए वही नायक प्रतीत होता है। महाभारत के एक लाख श्लोकों को अठारह खंडों (पर्वों) में विभाजित किया हुआ है। इन पर्वों का नाम रखा गया है- आदि, सभा, वन, विराट, उद्योग, भीष्म, द्रोण, कर्ण, शल्य, सौप्तिक, स्त्री, शांति, अनुशासन, अश्वमेद्य, आश्रमवाती, मौसल, महाप्रस्थानिक तथा अंतिम स्वर्गारोहण पर्व है।

चिकित्सा का आश्चर्य भी है महाभारत में
महाभारत केवल एक धर्म शास्त्र या कोई युद्ध कथा नहीं है। यह भारतीय जीवन शैली का प्रामाणिक लेख है। नीति और धर्म की शिक्षा का सबसे बड़ा ग्रंथ है। जीवन का सार जो भगवान कृष्ण ने महाभारत युद्ध के पहले अजरुन को दिया था, वह भी इसी ग्रंथ का एक हिस्सा है। बहुत कम लोग जानते हैं कि महाभारत में चिकित्सा क्षेत्र का वह चमत्कार भी है, जिस पर अब लगभग सारे ही देशों में काम चल रहा है। वह है टेस्ट टच्यूब बेबी का। क्या आप जानते हैं हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों लाखों साल पहले ऐसे चमत्कार कर दिखाए हैं जो अब भी कई जगह आश्चर्य का विषय माने जाते हैं।

दुनिया के हर कोने में टेस्ट टच्यूब बेबी द्वारा बच्चों के प्रजनन पर प्रयोग चल रहे हैं। महाभारत में यह प्रयोग हजारों वर्ष पहले ही सफलता पूर्वक किया जा चुका है। महाभारत के रचियता और इस कथा के मुख्य पात्र महर्षि वेद व्यास ने यह प्रयोग किया था। वे चिकित्सा पद्धति के विख्यात विद्वान भी रहे हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि महर्षि वेद व्यास ने दुर्योधन और उसके 99 भाइयों और एक बहन को इसी पद्धति से पैदा किया था। महाभारत में कथा आती है कि दुर्योधन की माता गांधारी को महर्षि वेद व्यास ने ही सौ पुत्र होने का वरदान दिया था। गांधारी जब गर्भवती हुईं तो दो साल तक गर्भस्थ शिशु बाहर नहीं आया। वह लोहे के एक गोले जैसा सख्त हो गया। गांधारी ने लोकापवाद के भय से इस गोले को फेंकने का निर्णय लिया। जब वह इसे फेंकने जा रही थी तभी वेद व्यास आ गए और उन्होंने उस लोहे के गोले के सौ छोटे-छोटे टुकड़े किए और उन्हें सौ अलग-अलग मटकियों में कुछ रसायनों के साथ रख दिया। एक टुकड़ा और बच गया था, जिससे दुर्योधन की बहन दुशाला का जन्म हुआ। इस तरह एक सौ एक मटकियों में सभी कौरवों का जन्म हुआ। महर्षि वेद व्यास ने ऐसे ही कई और चमत्कारिक प्रयोग किए हैं।

एक श्लोक में महाभारत पाठ
महाभारत ऐसा दिव्य ग्रंथ है, जिसमें मानवीय जीवन के संघर्ष में विजय पाने के वह सभी सूत्र है, जिनकी अज्ञानता में कोई व्यक्ति प्रतिकूल स्थितियों तनावग्रस्त और बैचेन रहकर जीवन का अनमोल समय गंवा देता है।

आदौ देवकीदेवी गर्भजननं गोपीगृहे वर्द्धनम् ।
मायापूतन जीविताप हरणम् गोवर्धनोद्धरणम् ।।
कंसच्छेदन कौरवादि हननं कुंतीतनुजावनम् ।
एतद् भागवतम् पुराणकथनम् श्रीकृष्णलीलामृतम् ।।

भावार्थ यह है कि मथुरा में राजा कंस के बंदीगृह में भगवान विष्णु का भगवान श्रीकृष्ण के रुप में माता देवकी के गर्भ से अवतार हुआ। देवलीला से पिता वसुदेव ने उन्हें गोकुल पहुंचाया। कंस ने मृत्यु भय से श्रीकृष्ण को मारने के लिए पूतना राक्षसी को भेजा। भगवान श्रीकृष्ण ने उसका अंत कर दिया। यहीं भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव के दंभ को चूर कर गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊं गली पर उठाकर गोकुलवासियों की रक्षा की। बाद में मथुरा आकर भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी कंस का वध कर दिया। कुरुक्षेत्र के युद्ध में कौरव वंश का नाश हुआ। पाण्डवों की रक्षा की। भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता के माध्यम से कर्म का संदेश जगत को दिया। अंत में प्रभास क्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण का लीला संवरण हुआ।

महाभारत में भीष्म से सीखिए निष्ठा
महाभारत एक बहुनायक प्रधान रचना है। इस कथा में कई नायक हैं, जिनके जीवन पर कई किताबें लिखी जा चुकी हैं। हर पात्र का एक विशेष गुण है और वह हमें इसी का संदेश भी देता है। महाभारत का पहला ऐसा पात्र है भीष्म। भीष्म पितामह जैसी निष्ठा महाभारत के अन्य पात्रों में कम ही दिखाई देती है। पितामह भीष्म का नाम देवव्रत था उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य की जो भीष्म प्रतिज्ञा की इस कारण उनका नाम भीष्म पढ़ गया। हस्तिनापुर राज्य के राजा का पद अस्वीकार कर दो पीढिय़ों के बाद उन्हीं की मौजूदगी में हुए भीषण नरसंहारकारी महायुद्ध के वे दृष्टा बने। उन्हें यह ज्ञात होने पर भी कि कौरवों ने अधर्म और छल से पांडवों को राज्य से हटा दिया फिर भी वे निष्ठा पूर्वक कौरवों का साथ निभाते रहें। जबकि हृदय से तो वे पांडवों के साथ ही थे।

भीष्म की ही निष्ठता का प्रमाण है कि उन जैसे वीर ने दस दिन तक लगातार युद्ध कर पांडवों की सेना को समाप्त कर ही रहे हैं किंतु कृष्ण के द्वारा अर्जुन को भीष्म के पास भेजे जाने पर उन्होंने स्वयं अपनी ही पराजय का गुप्त राज अर्जुन को बताया था। यह सत्य के प्रति उनकी निष्ठा थी।हमें भीष्म जैसे व्यक्तियों से जो कि नि:संतान होते हुए भी पितामह कहलाए जिनका श्राद्ध आज भी हर सनातन धर्म का अनुयायी करता है।हमें भी उनके जीवन के आदर्शों को अपने जीवन में उतारकर जीवन को विभिन्न आनंदों के साथ जीना चाहिए। जीवन में बहुत सी घटनाएं हमें हमारी प्रतिज्ञाओं से अलग हटा देती है। भीष्म पर भी कई बार दुविधा के क्षण आए किंतु वे अपनी प्रतिज्ञा से हटे नहीं।

कर्ण ने दिया मित्रता का संदेश
जीवन मित्रों के बिना अधूरा है। महाभारत काल में यदि मित्रता का प्रसंग हो और दुर्योधन और कर्ण की मित्रता की बात न हो ऐसा कभी नहीं हो सकता। कर्ण-दुर्योधन की मित्रता का परिचय हमें इस घटना से मिलता है जब श्रीकृष्ण संधि दूत बनकर हस्तिनापुर गए थे तो लौटते समय उन्होंने कर्ण को अपने रथ पर बैठाकर बताया कि वे सूतपुत्र नहीं बल्कि कुंती पुत्र हैं और कहा कि यदि तुम पांडवों की ओर से युद्ध करोगे तो राज्य तुम्हें ही मिलेगा। कर्ण ने इस बात पर जो कहा वह उनकी दोस्ती की सच्ची मिसाल है। उन्होने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पांडवों के पक्ष में श्रीकृष्ण आप है तो विजय तो पांडवों की निश्चय ही है। परंतु दुर्योधन ने मुझको आज तक बहुत मान-सम्मान से अपने राज्य में रखा है तथा मेरे भरोसे ही वह युद्ध में खड़ा है। ऐसी संकट की स्थिति में यदि मैं उसे छोड़ता हूं तो यह अन्याय होगा। तथा मित्र धर्म के विरुद्ध होगा। श्रीकृष्ण अर्जुन के परम सखा थे।

द्रोपदी की साड़ी इतनी लंबी कैसे हो गई...?
महाभारत में द्युत क्रीड़ा के समय युद्धिष्ठिर ने द्रोपदी को दांव पर लगा दिया और दुर्योधन की ओर से मामा शकुनि ने द्रोपदी को जीत लिया। उस समय दुशासन द्रोपदी को बालों से पकड़कर घसीटते हुए सभा में ले आया। वहां मौजूद सभी बड़े दिग्गज मुंह झुकाएं बैठे रह गए। देखते ही देखते दुर्योधन के आदेश पर दुशासन ने पूरी सभा के सामने ही द्रोपदी की साड़ी उतारना शुरू कर दी। सभी मौन थे, पांडव भी द्रोपदी की लाज बचाने में असमर्थ हो गए। तब द्रोपदी द्वारा श्रीकृष्ण का आव्हान किया गया और श्रीकृष्ण ने द्रोपदी की लाज उसकी साड़ी को बहुत लंबी करके बचाई।

श्रीकृष्ण द्वारा द्रोपदी की लाज बचाई गई। इसके पीछे द्रोपदी का ही एक ऐसा पुण्य कर्म है जिसकी वजह से द्रोपदी पूरी सभा के सामने अपमानित होने से बच गई। वह पुण्य कर्म यह था कि एक बार द्रोपदी गंगा में स्नान कर रही थी उसी समय एक साधु वहां स्नान करने आया। स्नान करते समय साधु की लंगोट पानी में बह गई और वह इस अवस्था में बाहर कैसे निकले? इस कारण वह एक झाड़ी के पीछे छिप गया। द्रोपदी ने साधु को इस अवस्था में देख अपनी साड़ी से लंगोट के बराबर कोना फाड़कर उसे दे दिया। साधु ने प्रसन्न होकर द्रोपदी को आशीर्वाद दिया।

एक अन्य कथा के अनुसार जब श्रीकृष्ण द्वारा सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया गया, उस समय श्रीकृष्ण की अंगुली भी कट गई थी। अंगुली कटने पर श्रीकृष्ण का रक्त बहने लगा। तब द्रोपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर श्रीकृष्ण की अंगुली पर बांधी थी। इस कर्म के बदले श्रीकृष्ण ने द्रोपदी को आशीर्वाद दिया था कि एक दिन अवश्य तुम्हारी साड़ी की कीमत अदा करुंगा।
इन कर्मों की वजह से श्रीकृष्ण ने द्रोपदी की साड़ी को इस पुण्य के बदले ब्याज सहित इतना बढ़ाकर लौटा दिया और द्रोपदी की लाज बच गई।

सर्वश्रेष्ठ गुरुभक्त एकलव्य
एक भील बालक जिसका नाम एकलव्य था। उसे धनुष-बाण चलाना बहुत प्रिय था। वह धनुर्विद्या सीखना चाहता था। इसीलिए वह गुरु द्रोणाचार्य के पास पहुंचा। परंतु जब द्रोणाचार्य को मालूम हुआ कि यह बालक भील है तब उन्होंने उसे शिक्षा देने से इंकार कर दिया।

एकलव्य निराश होकर वहां से लौट आया परंतु उसने हार नहीं मानी और गुरु द्रोण की मूर्ति बनाई और उसके आगे अभ्यास करने लगा।एक दिन गुरु द्रोण और पांडव जंगल से गुजर रहे थे। उनके साथ उनका एक कुत्ता भी था। कुत्ता भौंकते हुए आगे-आगे चल रहा था। कुत्ता भौंकते हुए थोड़ी आगे चला गया और जब वह वापस आया तो उसका मुंह बाणों से भरा हुआ था। यह देखकर गुरु आश्चर्यचकित रह गए कि बाण इतनी कुशलता से मारे गए थे कि कुत्ते मुंह से रक्त की बूंद भी नहीं निकली।

द्रोणाचार्य ने सभी शिष्यों को उस कुशल धनुर्धर की खोज करने की आज्ञा दी। जल्द ही उस धनुर्धर को खोज लिया गया। धनुर्धर वही भील बालक एकलव्य था, उसने बताया कि गुरु द्रोणाचार्य द्वारा धनुर्विद्या सीखाने से इंकार करने के बाद मैंने इनकी मूर्ति बनाकर उसी से प्रेरणा पाई है। द्रोणाचार्य चूंकि अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाना चाहते थे, इसलिए अर्जुन को भी पीछे छोडऩे वाले एकलव्य से उन्होंने गुरु दक्षिणा में अंगूठा मांग लिया। एकलव्य ने बिना विचार किए अपने गुरु को गुरुदक्षिणा में अंगूठा काटकर दे दिया।
आज भी एकलव्य की गुरुभक्ति से बढ़कर ओर कोई उदाहरण दिखाई नहीं देता।

ऐसे हुई कौरवों की उत्पत्ति
धृतराष्ट्र के सौ पुत्र थे। उनमें दुर्योधन सबसे ज्येष्ठ था। दुर्योधन का जन्म कैसे हुआ तथा उसके शेष भाइयों का नाम क्या था?
महाभारत के आदिपर्व में इस संदर्भ में विस्तृत उल्लेख मिलता है।

धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी दो वर्ष तक गर्भवती रही लेकिन संतान का जन्म न हुआ। भयभीत होकर गांधारी ने गर्भ गिरा दिया। उसके पेट से लोहे के गोले के समान मांस-पिण्ड निकला। यह बात जब महर्षि व्यास को पता चली तो उन्होंने गांधारी से कहा कि एक सौ एक कुण्ड बनवाकर उन्हें घी से भर दो तथा इस मांस पिण्ड पर ठंडा जल छिड़को।

जल छिड़कने पर उस पिण्ड के एक सौ एक टुकड़े हो गए। व्यासजी की आज्ञानुसार गांधारी ने प्रत्येक कुण्ड में मांस पिण्ड के टुकड़े डाल दिए। समय आने पर उन्हीं मांस-पिण्डों से पहले दुर्योधन और बाद में शेष पुत्र व एक पुत्री का जन्म हुआ।

धृतराष्ट्र के शेष पुत्रों के नाम युयुस्तु, दु:शासन, दुस्सह, दुश्शल, जलसंध, सम, सह, विंद, अनुविंद, दुद्र्धर्ष, सुबाहु, दुष्प्रधर्षण, दुर्मर्षण, दुर्मुख, दुष्कर्ण, कर्ण, विविंशति, विकर्ण, शल, सत्व, सुलोचन, चित्र, उपचित्र, चित्राक्ष, चारुचित्र, शरासन, दुर्मद, दुर्विगाह, विवत्सु, विकटानन, ऊर्णानाभ, सुनाभ, नंद, उपनंद, चित्रबाण, चित्रवर्मा, सुवर्मा, दुर्विमोचन, आयोबाहु, महाबाहु, चित्रांग, चित्रकुण्डल, भीमवेग, भीमबल, बलाकी, बलवद्र्धन, उग्रायुध, सुषेण, कुण्डधार, महोदर, चित्रायुध, निषंगी, पाशी, वृन्दारक, दृढ़वर्मा, दृढ़क्षत्र, सोमकीर्ति, अनूदर, दृढ़संध, जरासंध, सत्यसंध, सद:सुवाक, उग्रश्रवा, उग्रसेन, सेनानी, दुष्पराजय, अपराजित, कुण्डशायी, विशालाक्ष, दुराधर, दृढ़हस्त, सुहस्त, बातवेग, सुवर्चा, आदित्यकेतु, बह्वाशी, नागदत्त, अग्रयायी, कवची, क्रथन, कुण्डी, उग्र, भीमरथ, वीरबाहु, अलोलुप, अभय, रौद्रकर्मा, दृढऱथाश्रय, अनाधृष्य, कुण्डभेदी, विरावी, प्रमथ, प्रमाथी, दीर्घरोमा, दीर्घबाहु, महाबाहु, व्यूढोरस्क, कनकध्वज, कुण्डाशी और विरजा। धृतराष्ट्र की पुत्री का नाम दुश्शला था।

गंगापुत्र भीष्म कौन थे पिछले जन्म में?
गंगापुत्र भीष्म महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक थे। उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था अर्थात उनकी इच्छा के बिना यमराज भी उनके प्राण हरने में असमर्थ थे। वे बड़े पराक्रमी तथा भगवान परशुराम के शिष्य थे। भीष्म पिछले जन्म में कौन थे तथा उन्होंने ऐसा कौन सा पाप किया जिनके कारण उन्हें मृत्यु लोक में रहना पड़ा? इसका वर्णन महाभारत के आदिपर्व में मिलता है।

उसके अनुसार-गंगापुत्र भीष्म पिछले जन्म में द्यौ नामक वसु थे। एक बार जब वे अपनी पत्नी के साथ विहार करते-करते मेरु पर्वत पहुंचे तो वहां ऋषि वसिष्ठ के आश्रम पर सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाली नंदिनी गौ को देखकर उन्होंने अपने भाइयों के साथ उसका अपहरण कर लिया। जब ऋषि वसिष्ठ को इस घटना के बारे में पता चला तो उन्होंने द्यौ सहित सभी भाइयों को मनुष्य योनि में जन्म लेने का शाप दे दिया। जब द्यौ तथा उनके भाइयों को ऋषि के शाप के बारे में पता लगा तो वे नंदिनी को लेकर ऋषि के पास क्षमायाचना करने पहुंचे। ऋषि वसिष्ठ ने अन्य वसुओं को एक वर्ष में मनुष्य योनि से मुक्ति पाने का कहा लेकिन द्यौ को अपने कर्मों का फल भुगतने के लिए लंबे समय तक मृत्यु लोक में रहने का शाप दिया।

द्यौ ने ही भीष्म के रूप में भरत वंश में जन्म लिया तथा लंबे समय तक धरती पर रहते हुए अपने कर्मों का फल भोगा।

भगवान कृष्ण का महानिर्वाण
धर्म के विरुद्ध आचरण करने के दुष्परिणामस्वरूप अन्त में दुर्योधन आदि मारे गये और कौरव वंश का विनाश हो गया। महाभारत के युद्ध के पश्चात् सान्तवना देने के उद्देश्य से भगवान श्रीकृष्ण गांधारी के पास गये। गांधारी अपने सौ पुत्रों के मृत्यु के शोक में अत्यंत व्याकुल थी। भगवान श्रीकृष्ण को देखते ही गांधारी ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दिया कि तुम्हारे कारण जिस प्रकार से मेरे सौ पुत्रों का नाश हुआ है उसी प्रकार तुम्हारे यदुवंश का भी आपस में एक दूसरे को मारने के कारण नाश हो जायेगा। भगवान श्रीकृष्ण ने माता गांधारी के उस श्राप को पूर्ण करने के लिये यादवों की मति फेर दी।

एक दिन अहंकार के वश में आकर कुछ यदुवंशी बालकों ने दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया। इस पर दुर्वासा ऋषि ने शाप दे दिया कि यादव वंश का नाश हो जाए। उनके शाप के प्रभाव से यदुवंशी पर्व के दिन प्रभास क्षेत्र में आये। पर्व के हर्ष में उन्होंने अति नशीली मदिरा पी ली और मतवाले हो कर एक दूसरे को मारने लगे। इस तरह भगवान श्रीकृष्ण को छोड़ कर एक भी यादव जीवित न बचा।
इस घटना के बाद भगवान श्रीकृष्ण महाप्रयाण कर स्वधाम चले जाने के विचार से सोमनाथ के पास वन में एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ कर ध्यानस्थ हो गए। जरा नामक एक बहेलिये ने भूलवश उन्हें हिरण समझ कर विषयुक्त बाण चला दिया जो उनके पैर के तलुवे में जाकर लगा और भगवान श्री कृष्णचन्द्र स्वधाम को पधार गये। इस तरह गांधारी तथा ऋषि दुर्वासा के श्राप से समस्त यदुवंश का नाश हो गया।

रिश्तों की कश्मकश से भरी किताब
इंसानी रिश्तों पर कई किताबें, ग्रंथ रचे गए हैं। इंसानी रिश्ते जितने सुलझे दिखाई देते हैं, भीतर से उतने ही उलझे हुए होते हैं। हिंदू संस्कृति में रिश्तों पर सबसे बड़ा ग्रंथ अगर कोई है तो वह निर्विवाद रूप से महाभारत है। एक परिवार या कुटुंब में जितने रिश्तों पर लिखा जा सकता है, वह सारे रिश्ते महाभारत में मिलते हैं। लोग महाभारत को युद्ध पर आधारित ग्रंथ मानकर छोड़ देते हैं लेकिन यह रिश्तों का ग्रंथ है।

महाभारत की खासियत यह है कि इसमें हर रिश्ते के सारे पहलू मौजूद हैं। पिता-पुत्र के आदर्श रिश्ते भी हैं तो ऐसे पिता पुत्र भी हैं जिनके बीच सिर्फ कपट है। महाभारत रिश्ते बनाना तो सिखाती भी है, उसे निभाने के लिए कितना समर्पण चाहिए यह भी बताता है। इस ग्रंथ में सारे जायज और नाजायज रिश्ते हैं। कई रिश्ते तो ऐसे जो आज के दौर में समझना मुश्किल है। शायद इन्हीं रिश्तों के कारण महाभारत को घर में रखने से मना किया गया है। इन रिश्तों की पवित्रता और पारदर्शिता को केवल इस ग्रंथ को पढ़कर ही समझा जा सकता है।

पांचवा वेद
महाभारत को पांचवा वेद माना गया है। महर्षि वेद व्यास ने इसे इसी के कालखंड में लिखा था और खुद वेद व्यास महाभारत की कथा की शुरुआत से आखिरी तक एक पात्र के रूप में मौजूद भी हैं। वेदों का सारा ज्ञान वेद व्यास ने इस ग्रंथ में डाल दिया है। हिंदू धर्म ग्रंथों में यह आकार और घटनाक्रम दोनों के अनुसार सबसे बड़ा और रोचक ग्रंथ है।

महाभारत लिखकर भी खुश नहीं थे वेद व्यास
महाभारत को हिंदू धर्म का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। महाभारत की रचना से कई रोचक बातें जुड़ी हुई हैं, जो हर व्यक्ति नहीं जानता। महाभारत की कहानी इतनी विस्तृत थी कि वेद व्यासजी कई सालों तक केवल इसी बात पर शोध करते रहे कि इसकी रचना का सूत्र धार किसे बनाया जाए। आइए जानते हैं महाभारत की रचना से जुड़ी कुछ रोचक बातें। यह भी एक रोचक बात है कि इतना बड़ा और कालजयी ग्रंथ लिखने के बाद भी वेद व्यास इससे खुश नहीं थे।

- महाभारत की रचना एक लाख श्लोकों से की गई थी।

- इसके लेखन के लिए भगवान गणपति को प्रसन्न किया। गणेश ने एक शर्त रखी कि मैं लगातार लेखन करूंगा, अगर बीच में रुके तो लिखना बंद कर दूंगा।

- वेद व्यास ने गणेशजी की शर्त मान ली और खुद भी एक शर्त रख दी कि गणेश लिखने से पहले हर श्लोक को समझकर ही लिखेंगे। गणपति ने यह बात मान ली। वेद व्यास जल्दी-जल्दी श्लोक बनाकर बोलने लगे। हर 10-15 श्लोक के बाद वे एक ऐसा श्लोक बोलते जिसे समझने के लिए गणपति को भी थोड़ी देर ठहरना पड़ता। इसी दौरान वेद व्यास नए श्लोक बना लेते।

- महाभारत की रचना वेद व्यास ने महाभारत की घटना के पहले ही कर ली थी। वे स्वयं भी उस कथा के एक पात्र थे।

- महाभारत की रचना से पहले वेद व्यास ने वेद के चार भाग किए थे और उनके शिष्यों ने उन्हीं चार वेदों के आधार पर उपनिषदों की रचना की।

- महाभारत में वेद व्यास ने सृष्टि के आरंभ से लेकर कलयुग तक का वर्णन है।

- महाभारत की रचना के बाद भी वेद व्यास खुश नहीं थे। वे उसकी रचना से संतुष्ट नहीं हुए। उन्हें कथा में कोई कमी खल रही थी। एक दिन वे उदास बैठे थे और उधर से नारदजी गुजरे। नारदजी ने उन्हें सुझाया कि आपकी कथा संसार पर आधारित है। इसलिए इसकी रचना के बाद आप दु:खी हैं। आप ऐसा ग्रंथ रचें जिसके केंद्र में भगवान हों।

- इसके बाद ही वेद व्यास ने श्रीमद् भागवत की रचना की।

महाभारत सिखाती है लाइफ मैनेजमेंट....
महाभारत की कहानी केवल कोई पौराणिक कथा भर नहीं है। यह जीवन का सार है। अगर आधुनिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो मैनेजमेंट के सारे सूत्र महाभारत में मौजूद है। महाभारत हमें कर्म की शिक्षा और व्यवहारिक जीवन का ज्ञान दोनों बातें बताती हैं। महाभारत की घटनाओं से हम कई महत्वपूर्ण बातें सीख सकते हैं। हिंदू धर्म के चार प्रमुख ग्रंथ हमें चार बातें सिखाते हैं, रामायण रहना, महाभारत करना, गीता जीना और भागवत मरना सिखाती है।

आज हम महाभारत से कर्म और लाइफ मैनेजमेंट के कुछ सूत्र सीख सकते हैं।
- महाभारत का सबसे बड़ा सूत्र है सकारात्मक दृष्टिकोण। जो भी हो रहा है उसमें सकारात्मक दृष्टि से देखें। उसमें अपने लिए कुछ नई संभावनाएं तलाशें। जब युधिष्ठिर और दुर्योधन के बीच राज्य का बंटवारा हुआ तो दुर्योधन को हस्तिनापुर का राज्य मिला और पांडवों को वीरान जंगल खांडवप्रस्थ, लेकिन पांडव दु:खी नहीं हुए उन्होंने भगवान कृष्ण की मदद से उसे इंद्रप्रस्थ बना दिया।

- संयमित भाषा, महाभारत सिखाती है कि शत्रुओं से भी संयमित भाषा से बात करनी चाहिए। जिससे हमारे भावी संकट टल सकते हैं। इंद्रप्रस्थ में द्रोपदी ने दुर्योधन को अंधे का बेटा कहकर मजाक उड़ाया और खुद अपमानित हुई।

- शांति का रास्ता सबसे श्रेष्ठ होता है। महाभारत सिखाती है कि जीवन में सबसे मुश्किल से केवल शांति ही मिलती है। भगवान कृष्ण ने शांति के लिए मथुरा छोड़ द्वारिका बसाई। महाभारत युद्ध के पहले भी वे खुद शांति दूत बने थे।

- आज के प्रतिस्पर्धा के दौर में सबसे कठिन है प्रतियोगिता में टिकना। भगवान कृष्ण के जीवन से सीखा जा सकता है कि जब तक आपको अपने शत्रु की कमजोरियों का पता न हो, उससे दूर ही रहना चाहिए। जब हमें दुश्मन को हराने का सूत्र मिल जाए तभी किसी से मुकाबले में उतरना चाहिए।

- पांडवों में एकता का सूत्र द्रोपदी थी, जो कि प्रेम का प्रतीक थी और सौ कौरव भाइयों में एकता का उद्देश्य राज्य का लालच था। हमारे संबंधों के केंद्र में जैसी भावनाएं होंगी, उसका परिणाम भी वैसा ही होगा। पांडव प्रेम से अंत तक साथ रहे, कौरव युद्ध में मारे गए।

जानिए महाभारत के हर पहलू को...
महाभारत को लेकर हमेशा लोगों में कई तरह की जिज्ञासाएं रही हैं। हिंदू धर्म ग्रंथों में यह सबसे बड़ा और विस्तृत ग्रंथ है। इस कहानी में वेदों और उपनिषदों का सारा ज्ञान मौजूद है, इसलिए इसे पांचवा वेद भी कहा जाता है। महाभारत महर्षि वेद व्यास की रचना है। वे इस कथा के रचनाकार भी हैं और खुद इस कथा में एक पात्र भी है। वेद व्यास का असली नाम कृष्णद्वैपायन व्यास था।

इस ग्रंथ में ज्ञान का अथाह भंडार है। चारों वेद, अठारह पुराण, 108 उपनिषद और शेष धर्म सूत्रों का ज्ञान भी अकेले इस ग्रंथ में है।इसमें मौजूद ज्ञान के भंडार के बारे में खुद वेद व्यास ने महाभारत में लिखा है कि - यन्नेहास्ति न कुत्रचित। यानी जिस विषय की चर्चा इस ग्रंथ में नहीं की गई है, उसकी चर्चा अन्य कहीं भी उपलब्ध नहीं है इसीलिए महाभारत को पांचवा वेद कहा गया है। अठारह अध्यायों (पर्वों) में लिखे गए इस ग्रंथ में कुल एक लाख श्लोक हैं। इसी कारण इसे शतसाहस्त्री संहिता भी कहते हैं। इस ग्रंथ के नायक भगवान श्रीकृष्ण हैं। महाभारत में अठारह पर्व क्रमश: आदिपर्व, सभापर्व, वनपर्व, विराटपर्व, उद्योगपर्व, भीष्मपर्व, द्रोणपर्व, कर्णपर्व, शल्यपर्व, सौप्तिकपर्व, स्त्रीपर्व, शांतिपर्व, अनुशासनपर्व, अश्वमेधिकपर्व, आश्रमवासिकपर्व, मौसलपर्व, महाप्रास्थानिकपर्व तथा स्वर्गारोहणपर्व है।

जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK