Wednesday, December 14, 2011

18 Chapters of Gita.(गीता के अट्ठारह अध्याय )

श्रीमद्भगवद्गीता हिन्दू मापन प्रणाली
भगवद्‌गीता हिन्दू धर्म की पवित्रतम ग्रन्थों में से एक है । श्री कृष्ण ने गीता का सन्देश अर्जुन को सुनाया था । यह एक महाभारत के भीष्मपर्व के अन्तर्गत दिया गया एक उपनिषद है । इसमें एकेश्वरवाद, कर्म योग, ज्ञानयोग, भक्ति योग की बहुत सुन्दर ढंग से चर्चा हुई है। इसमें देह से अतीत आत्मा का निरूपण किया गया है।

श्रीमद्भगवद्‌गीता की पृष्ठभूमि महाभारत का युद्घ है। जिस प्रकार एक सामान्य मनुष्य अपने जीवन की समस्याओं में उलझकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है और उसके पश्चात जीवन के समरांगण से पलायन करने का मन बना लेता है उसी प्रकार अर्जुन जो महाभारत का महानायक है अपने सामने आने वाली समस्याओं से भयभीत होकर जीवन और क्षत्रिय धर्म से निराश हो गया है, अर्जुन की तरह ही हम सभी कभी-कभी अनिश्चय की स्थिति में या तो हताश हो जाते हैं और या फिर अपनी समस्याओं से उद्विग्न होकर कर्तव्य विमुख हो जाते हैं। भारत वर्ष के ऋषियों ने गहन विचार के पश्चात जिस ज्ञान को आत्मसात किया उसे उन्होंने वेदों का नाम दिया। इन्हीं वेदों का अंतिम भाग उपनिषद कहलाता है। मानव जीवन की विशेषता मानव को प्राप्त बौद्धिक शक्ति है और उपनिषदों में निहित ज्ञान मानव की बौद्धिकता की उच्चतम अवस्था तो है ही, अपितु बुद्धि की सीमाओं के परे मनुष्य क्या अनुभव कर सकता है उसकी एक झलक भी दिखा देता है। उसी औपनिषदीय ज्ञान को महर्षि वेदव्यास ने सामान्य जनों के लिए गीता में संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया है। वेदव्यास की महानता ही है, जो कि ११ उपनिषदों के ज्ञान को एक पुस्तक में बाँध सके और मानवता को एक आसान युक्ति से परमात्म ज्ञान का दर्शन करा सके।

गीता के अट्ठारह अध्याय
१-अर्जुनविषादयोग( दोनों सेनाओं के प्रधान-प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )
इस अध्याय में अर्जुन द्वारा अपने सम्बंधियों को युद्ध में शत्रु दल में अपने सामने खड़ा देख युद्ध से विमुख हो जाने का वर्णन है, जब श्रीकृष्ण अर्जुन के कहने पर रथ को दोनों सेनाओं के बीच में ले जाते है, तो वहाँ अपने पितामह भीष्म, गुरु द्रोण, कृपाचार्य तथा अन्य मित्रों तथा भाईयों को देखकर उसका मन विचलित हो जाता है और वह युद्ध से विमुख होकर रथ के पिछले भाग में जाकर बेठ जाता है।

२-सांख्ययोग( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

३-कर्मयोग(ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की श्रेष्ठता का निरूपण)

४-ज्ञानकर्मसंन्यासयोग( सगुण भगवान का प्रभाव और कर्मयोग का विषय )

५-कर्मसंन्यासयोग( सांख्ययोग और कर्मयोग का निर्णय )

६-आत्मसंयमयोग( कर्मयोग का विषय और योगारूढ़ पुरुष के लक्षण )

७-ज्ञानविज्ञानयोग( विज्ञान सहित ज्ञान का विषय )

८-अक्षरब्रह्मयोग( ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

९-राजविद्याराजगुह्ययोग( प्रभावसहित ज्ञान का विषय )

१०-विभूतियोग( भगवान की विभूति और योगशक्ति का कथन तथा उनके जानने का फल)

११-विश्वरूपदर्शनयोग( विश्वरूप के दर्शन हेतु अर्जुन की प्रार्थना )

१२-भक्तियोग(साकार और निराकार के उपासकों की उत्तमता का निर्णय और भगवत्प्राप्ति के उपाय का विषय)

१३-क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग(ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विषय)

१४-गुणत्रयविभागयोग(ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत्‌ की उत्पत्ति)

१५-पुरुषोत्तमयोग(संसार वृक्ष का कथन और भगवत्प्राप्ति का उपाय)

१६-दैवासुरसम्पद्विभागयोग(फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन)

१७-श्रद्धात्रयविभागयोग(फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन)

१८-मोक्षसंन्यासयोग(त्याग का विषय)

हर प्राणी में ईश्वर
श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने प्राणियों में समानता की शिक्षा दी है। आज बंटे हुए समाज में गीता की उपादेयता और भी बढ़ जाती है। दुनिया में समानता का विचार आधुनिक काल की देन माना जाता है, किंतु भारत में श्रीमद्भगवद्गीता में समानता का विचार अद्भुत ढंग से प्रस्तुत हुआ है। इसमें किसी भी भेद के लिए कोई स्थान ही नहीं है।

श्रीमद्भगवद्गीता के पंद्रहवें अध्याय में वे कहते हैं- 'इस संसार में सारे जीव मेरे अंश हैं। वे छह इंद्रियों से घोर संघर्ष कर रहे हैं, जिसमें मन भी सम्मिलित है।' जब सब प्राणी ईश्वर के अंश हैं, तो उनमें भेदभाव कैसे किया जा सकता है। चींटी और हाथी में भेद कैसे किया जा सकता है? श्रीकृष्ण इसे और स्पष्ट करते हैं- 'विनम्र पुरुष अपने वास्तविक ज्ञान के कारण सभी को समान दृष्टि [समभाव] से देखता है।' अर्थात जब हम किसी भी भूखे की भूख मिटाते हैं, तो भगवान की भूख मिटाते हैं। प्रत्येक प्राणी में ईश्वर है। फिर भेद कैसा? किसी भी जीव को प्रताड़ित करना, कष्ट देना ईश्वर को कष्ट पहुंचाना है।

श्रीमद्भगवद्गीता में समानता का यह स्वर सभी जगह मिलता है। छठे अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- 'जब मनुष्य निष्कपट हितैषियों, प्रिय मित्रों, तटस्थों, मध्यस्थों, ईष्र्यालुओं, शत्रुओं तथा मित्रों को समान भाव से देखता है, तो वह और भी उन्नत माना जाता है।' स्पष्ट है कि हमारे सांसारिक संबंध कैसे भी हों, पर हमारे व्यवहार में समानता का भाव होना चाहिए।

यदि ऐसा है, तब भला संसार में कौन छोटा और कौन बड़ा है? फिर हम किसी के साथ छुआछूत कैसे कर सकते हैं? बीमार, अपंग, असहाय और वृद्ध भी ईश्वर का ही रूप हैं। अलग-अलग जाति, धर्म, भाषा वाले लोग एक ही हैं। इसीलिए महात्मा गांधी से लेकर मदर टेरेसा तक सभी ने आम लोगों में ईश्वर को देखा। स्वामी विवेकानंद ने भी अपने कार्य-व्यवहार में ईश्वर की पहचान गरीबों-असहायों के रूप में की।

व्यावहारिक रूप में एक न्यायाधीश और अपराधी में अंतर दिखाई दे सकता है, पर भाव जगत में सब एक हैं। इसीलिए किसी धर्म में अहंकार के लिए जगह नहींहै। अहंकार का नाश करने के लिए तो ईश्वर को अवतार लेना पड़ता है। यह केवल आध्यात्मिक नहीं, व्यावहारिक विचार है। हम देखते हैं कि धनबल, बाहुबल, बुद्धिबल जैसे किसी भी बल के अभिमान का अंत में क्या हाल हुआ। अहंकार का पतन अंत में अवश्य होता है। यदि चींटी बेहद छोटी है, तो इसमें उसका क्या दोष? हाथी यदि बहुत विशाल है, तो इसमें उसका क्या बड़प्पन? श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि किसी विशेषता का अहंकार करना व्यर्थ है, क्योंकि वह ईश्वर की देन है।

जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK

14 comments:

  1. Geeta ke atharah adhyay me Kitane bhag he.

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    1. अठारहवां अध्याय
      मोक्ष-संन्यास योग गीता का अठारहवाँ अध्याय है, इसमें 78 श्लोक हैं। यह अध्याय पिछले सभी अध्यायों का सारांश है। इसमें अर्जुन, श्रीकृष्ण से न्यास यानि ज्ञानयोग का और त्याग यानि फलासक्तिरहित कर्मयोग का तत्त्व जानने की इच्छा प्रकट करते हैं।

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  2. सुन्दर विवेचना है ।

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  3. अतिसुन्दरम

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  4. श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी.....

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  5. कृपया, बताने की कृपा करें कि श्रीमद्भगवद्गीता के अध्यायों का नामकरण किसने किया था।

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    1. आपको बताते चलें कि भागवत गीता के रचयिता वेदव्यास जी है। श्रीमद्भागवत गीता का उपदेश लगभग 5000 ईसा पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को महाभारत के युद्ध में दिया था। जो किसी जाति विशेष के लिए नहीं बल्कि पूरी मानव जाति के कल्याण के लिए है।

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  6. श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी...

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  7. वेद व्यास जी ने महाभारत के श्लोक बोले थे और भगवान श्री गणेश ने लिखा था।

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