Monday, November 28, 2011

Dharm Gyan ( धर्म ज्ञान) Part 6

कभी न बोलें ऐसे 5 तरह के बोल, वरना..
मन और कर्म ही नहीं बल्कि उसके साथ वचन यानी बोल या शब्दों में संयम व अनुशासन जीवन में सुख-दु:ख नियत करने वाले माने गए हैं। धर्म और व्यवहार दोनों ही नजरिए से वाणी की पावनता व मधुरता भी इंसान की सफलता का सूत्र माना गया है। क्योंकि वचन में सत्य और मिठास ही विश्वसनीय बनाकर आगे बढऩे के अवसर देती है।

धर्मग्रंथों में भी यशस्वी और कामयाब जीवन के लिए शब्द शक्ति का महत्व बताते हुए सत्य वचन के प्रति हमेशा संकल्पित और वचन दोष से सावधान रखने की सीख दी गई है। किंतु व्यावहारिक जीवन में अक्सर स्वार्थ या हितपूर्ति व असंयम के चलते इंसान ऐसे कटु शब्द व वाणी के उपयोग का अभ्यस्त हो जाता है, जो आखिकार बुरे नतीजों का कारण बनते हैं।

हिन्दू धर्मग्रंथों में जीवन के लिए बाधक व घातक बनने वाली ऐसी ही पांच तरह की बातों से बचना स्वयं के साथ दूसरों के लिए भी हितकारी बताया गया है। ये 5 वाचिक पाप भी कहे गए हैं। जानते हैं बातचीत के दौरान कैसे 5 तरह के बोल से किनारा कर लें -

- अनियन्त्रित प्रलाप यानी विषय से हटकर या अनावश्यक रूप से या आपत्ति के बाद भी लगातार अपनी बात ही बोलते चले जाना। ऐसे बोल दूसरों की परेशानी या कष्ट का कारण बनते हैं।

- अप्रिय यानी कटु, कठोर या अपशब्दों से भरे बोल बोलकर दूसरों को आहत करना।

- असत्य यानी किसी भी स्वार्थ, गलत कामों के दुराव-छुपाव या हानि पहुंचाने के लिए झूठ बोलना।

- परनिन्दा यानी ईर्ष्या, द्वेष, स्वार्थसिद्धि या मानहानि के उद्देश्य से दूसरों में दोष दर्शन।

- पिशुनता या चुगली - लक्ष्य व स्वार्थ सिद्धि व किसी की हानि की मंशा से एक व्यक्ति से जुड़ी बातों को तोड़-मरोड़, बढ़ा-चढ़ाकर या शिकायत के रूप में दूसरों तक पहुंचाना।

शास्त्र कहते हैं कि बातचीत के दौरान शब्दों को इन 5 गलत तरीकों व भावनाओं से उजागर करना मन व विचारों में हमेशा दोष व अशांति बनाए रखते हैं। इनसे तत्कालिक या क्षणिक लाभ हो सकता है, किंतु लंबे वक्त के लिए ऐसे शब्द अपयश व पतन का कारण बनते हैं।

सिर्फ चोरी नहीं, ऐसे काम करने वाला भी होता है चोर..!
सामान्यत: चोर शब्द का अर्थ धन या वस्तु की चोरी करने वाले व्यक्ति के संदर्भ में लिया जाता है। किंतु हिन्दू धर्मशास्त्रों में मन व कर्म में पैदा हर दोष को पाप की जड़ मानकर जीवन व मृत्यु के बाद भी पीड़ादायी बताया गया है। इसी कड़ी में चोरी भी मानसिक व व्यावहारिक दोष से हुआ पापकर्म माना गया है, जो खासतौर पर आलस्य, दरिद्रता या कर्महीनता से जन्मे अभाव या स्वार्थ के हावी होने से होता है।

भविष्य पुराण के मुताबिक चोरी के अलावा व्यावहारिक जीवन में आचरण या जिम्मेदारियों व कर्तव्यों की पूर्ति में दोष की दृष्टि से कुछ अन्य कामों को करने वाला भी स्तेयी यानी चोर कहा गया है। यह भी कहा गया है कि ऐसे काम करने वाला व्यक्ति नरक में जाता है। जानते हैं चोरी के अलावा कौन-से हैं वे कर्म, जो चोर बना देते हैं -

- अन्याय या गलत तरीकों से धन अर्जित करने वाला।

- अन्याय या गलत कामों से दूसरों का धन हड़पने वाला।

- देव उपासना, स्मरण या परोपकार से दूर रहने वाला।

- माता-पिता, बुजूर्गों या गुरु की सेवा-सुश्रूषा न करने वाला।

- मदद या उपकार करने वाले के प्रति अच्छा व्यवहार न करने वाला।

- धर्मग्रंथों, रत्न-आभूषण, सोना, जमीन, पशु जैसे घोड़े, गाय को चुराने वाला।

- योग्य या अपात्र होने पर वर्जित धन को भी स्वीकार करने या पाने वाला।

चोर बना देने वाले ऐसे कामों से बचने की सीख के पीछे सुखी जीवन का एक सूत्र यह भी मिलता है कि दुर्भाव व स्वार्थवश वस्तु या धन की चोरी करने के बजाए सेवा, सद्भाव, धर्म पालन व परोपकार से हृदय का हरण करने वाला ही यशस्वी व सफल जीवन को प्राप्त कर सकता है।

अगर घर में न हों ये आसान धर्म-कर्म..तो चला जाएगा सुख-चैन
घर-परिवार के सौंदर्य का पैमाना बाहरी रंग-रोगन या बनावट से नहीं बल्कि सुख-शांति है। सुख-शांति के लिए अहम है सुदृढ व्यवस्था। ऐसे प्रबंधन में परिजनों के कार्य, व्यवहार में सच्चाई के साथ, कर्तव्य व मर्यादा का पालन जरूरी है। इनमें दोष आते ही सुख-चैन छिन जाता है व शांति भी भंग हो जाती है। नतीजतन घर में रहते भी जीवन नारकीय महसूस होने लगता है।

हिन्दू धर्मग्रंथों में जीवन को ऐसी उथल-पुथल या अशांति से दूर रखने के लिए घर में ऐसे छोटे-छोटे धार्मिक कामों को नियमित या विशेष घडिय़ों में करना जरूरी बताया गया है, जो सकारात्मक ऊर्जा देने के साथ घर के माहौल में सुख-शांति व मेल-जोल बनाए रखते हैं। कौन-से है ये सुखदायी धार्मिक कर्म जानते हैं -

लिखा गया है कि -

न विप्रपादोदककमर्दमानि न वेदशास्त्रप्रतिगर्जितानि।

स्वाहास्वधस्वस्तिविवर्जितानि श्मशानतुल्यानि गृहाणि तानि।।

सरल शब्दों में अर्थ है कि जिस घर में ब्राह्मणों का सेवा-सम्मान न हो, वेद-शास्त्रों का अध्ययन व स्मरण न हो, या स्वाहा, स्वधा और स्वस्ति के स्वर न गूंजे ऐसा घर श्मसान की तरह होता है।

व्यावहारिक नजरिए से इस श्लोक में साफ संकेत है कि घर में किए जाने वाले धर्म-कर्म ईश्वर में आस्था को मजबूत रख मनोबल व आत्मविश्वास ऊंचा रख निर्भय व निश्चिंत रखने के साथ परिवार को जोड़ते हैं। जिसके लिए धार्मिक दृष्टि से ब्रह्म अंश माने गए ब्राह्मण या फिर विद्वान व गुणी लोगों का सम्मान, दान, सेवा, धर्म से जुड़ी ज्ञान की चर्चा, देव महिमा या स्मरण से जुड़ी स्तुतियों व मंत्रों का नित्य पाठ, स्वाहा, स्वधा, स्वस्ति यानी यज्ञ-हवन, पितृपूजा कर्म व विवाह, संस्कारों से जुड़े मंगल कार्यों को करने का महत्व बताया गया है।

इन 3 मीठी बातों के जादू से जीवनभर पाएं सुखद नतीजे
वाणी या बोल का महत्व धर्मशास्त्रों के नजरिए से जाने तो यह इंद्रिय संयम के द्वारा सुखी जीवन पाने का अहम सूत्र है। यह वाचिक तप भी कहलाता है। कहा गया है कि सांसारिक जीवन में मीठी वाणी के अभाव में तो पूजन, दान या अध्ययन भी निरर्थक हो जाते हैं। क्योंकि कड़वे बोल हृदय, प्राण, मर्म और अस्थि को गहरा दु:ख पहुंचाते हैं।

इस बात पर व्यावहारिक रूप से भी गौर करें तो मिठासभरे शब्दों से न केवल व्यक्तिगत सुकून प्राप्त होता है, बल्कि यह दूसरों का मन भी मोह या जीत लेते हैं। इस तरह मीठी वाणी का जादू भी सफलता का सूत्र है। लेकिन वाणी के सदुपयोग करते हुए वे मीठे शब्द कैसे होने चाहिए? और क्या ऐसे खास शब्द हैं, जिनका हर इंसान जीवनभर मेल-मिलाप या व्यवहार के दौरान उपयोग कर जीवनभर सुख बंटोर सके या मुश्किलों से पार पाए?

इन सवालों का जवाब भविष्यपुराण में बताई वाणी की अहमियत व मिठास से जुड़ी इन बातों में मिल सकता है -

लिखा गया है कि -

न हीदृक् स्वर्गयानाय यथा लोके प्रियं वच:।

इहामुत्र सुखं तेषां वाग्येषां मधुरा भवेत्।।

अमृतस्यनन्दिनीं वाचं चन्दनस्पर्शशीतलाम्।

धर्माविरोधिनीमुक्त्वा सुखमक्षय्यमाप्रुयात्।।

सरल शब्दों में सार है कि मीठी वाणी चंदन की भांति ठंडक देती है, जो लोक-परलोक यानी जीवन और मृत्यु के बाद भी सुख देने वाली होती है। जिसके लिए तीन खास बातों को अपनाना जरूरी है -

- पहली अतिथि के आने पर कुशलक्षेम यानी खैरियत पूछना चाहिए और जाने पर - यात्रा व कार्य मंङ्गलमय हो ऐसा बोलना चाहिए।

- दूसरे किसी से मिलने, अभिवादन या स्वागत के वक्त स्वस्ति यानी शुभ कामनाओं व प्रसन्नता से भरे वचन व शब्द बोलें।

- किसी भी कार्य के संबंध में शब्दों से यही भावना व्यक्त करें कि - आपका नित्य कल्याण हो। जिससे व्यावहारिक रूप से समझे तो किसी को भी किसी कार्य के संबंध में सकारात्मक टिप्पणी, विचार या सलाह ही दें।

शिव कृपा के साफ संकेत हैं मन में ऐसे बदलाव
वेद-पुराणों शिव के अनादि, अनंत प्रकृति स्वरूप की महिमा प्रकट करते हैं। जिनके मुताबिक प्रकृति के कण-कण में शिव का अस्तित्व है। इसलिए शिव के निर्गुण हो या सगुण दोनों ही स्वरूप की भक्ति व पूजा जीवन को कलहमुक्त बनाने वाली मानी गई है। अक्सर सांसारिक जीवन में भक्ति के प्रभाव या देव कृपा का पैमाना बाहरी तौर पर मिलने वाले भौतिक सुखों को मान लिया जाता है। जबकि देव कृपा अंदर से मन और स्वभाव में बदलाव लाकर बाहरी रूप से सुख देती है।

इसी तरह शिव भक्ति भी सभी सांसारिक इच्छाओं को जल्दी पूरा करने वाली जरूर है, लेकिन शिव भक्ति से मिलने वाली शिव कृपा या प्रसन्नता जानना है तो सुख-सुविधाओं से पहले मन में आने वाले कुछ भावों या सुखद बदलावों पर गौर करें। क्या है ये शिव कृपा के भाव रूपी संकेत जानते हैं?

दरअसल, शिव का अर्थ है मंङ्गल या कल्याण यानी जो मंङ्गलमय और कल्याणकारी है, वही शिव है। यही कारण है शिव कृपा को जानने की शुरुआत मन की पाावनता से करें। ऐसा तभी संभव है जब विकार या दोष का अभाव हो।

मन को पावन रखने के लिए ही श्रद्धा और विश्वास सबसे अहम है। क्योंकि श्रद्धा मन का विषय है। चूंकि मन चंचल होता है, जो थोड़ी से चूक से भटक जाता है। लेकिन जब सात्विक गुण-विचार का संग हो तो उसी मन में श्रद्धा पनपती है। यह श्रद्धा ही विश्वास को मजबूत रखती है। चूंकि शास्त्र में शिव श्रद्धा स्वरूप ही माने गए हैं। नीचे लिखी गोस्वामी तुलसीदास की बात इस बात को बल देती है -

भवानी शंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वास रूपिणौ।। यानी मैं श्रद्धा व विश्वास के रूप शक्ति और शंकर की वंदना करता हूं।

यही कारण है कि शिव का मार्ग श्रद्धा से ही तय करना संभव माना गया है। मन में श्रद्धा व शिवतत्व की पहचान पवित्र भाव और शुद्ध संकल्प से ही होती है। अगर शिव भक्ति व सेवा से आप के मन भी ऐसे ही भाव जीवन के हर विषय या रिश्तों को लेकर उमड़ते हैं, तो समझें आप शिव कृपा के भागी बन रहें है।

ऐसी शिव कृपा पाने के लिए यानी श्रद्धा और विश्वास बढ़ाने के लिए व्यावहारिक जीवन में सरल तरीका यह भी है कि शुद्ध आहार-विहार, माहौल को अपनाएं। जिसके लिए अच्छी संगति, सत्संग और धर्मग्रंथों के ज्ञान को पढ़ें।

जानें, कैसे दया भी है बड़ी सफलता का जरिया?

अक्सर बेकाबू लालसा या कामनाएं जीवन में अशांति और असफलता का कारण बनती है। शास्त्रों के नजरिए से ऐसे भटकाव से परे रहने का बेहतर सूत्र या शक्ति दया भाव है। चूंकि व्यावहारिक जीवन में अक्सर आगे बढऩे की होड़ में दया भाव को परे कर स्वार्थसिद्धि ही लक्ष्य मान लिया जाता है। जबकि यहां बताई जा रही धर्मशास्त्रों की बात पर गौर करें तो अहं और कटुता से दूर रहकर भी दया या रहम को भी सफलता का ऊंचा मुकाम पाने का अहम जरिया बनाया जा सकता है।

दया या रहम से सुख-शांति पाने के लिए सबसे पहले दया का स्वरूप व परिभाषा को जेहन में उतारना जरूरी है। पुराणों में दया की परिभाषा यह मिलती है कि -

अपरे बन्धुवरों वा मित्रे द्वेष्टरि वा सदा।

आत्मवद्वर्तनं यत् स्यात् सा दया परिकीर्तिता।।

इस श्लोक के मुताबिक दया का अर्थ है अपने-पराये, मित्र और शत्रु में अपनी तरह व्यवहार करना और दूसरों का हर दु:ख मिटाने की कामना रखना है।

व्यावहारिक जीवन के नजरिए से दया के इस स्वरूप में ही दया को बड़ी सफलता का जरिया बनाने के संकेत भी छुपे हैं। दरअसल, दया का मूल प्रेम है और प्रेम का सत्य। हृदय में प्रेम क्षमा भाव को जन्म देता है और क्षमा ही इंसान को दया भाव से जोड़ती है।

इस तरह दया से जुड़े प्रेम, सत्य, क्षमा के ये भाव अपने-परायों का विश्वास जीतकर यशस्वी और सफलतम बनाने की डगर बेहद आसान बना देते हैं। क्योंकि दयालु इंसान सारी दुनिया के लिए अपनापन रखता है। जिससे वह कर्तव्य और जिम्मेदारियों को उठाने के लिए संकल्पित रहता है और ऐसी संकल्प शक्ति ही लक्ष्य भेदन में सफल बनाती है।

राह चलते ये लोग सामने आएं तो बिना देरी दें रास्ता..!
हिन्दू धर्मग्रंथों में सुखद व सफल जीवन के लिए जरूरी चार पुरुषार्थ के अहम लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए नियम, संयम, अनुशासन, मर्यादा, ज्ञान, कर्तव्य व संस्कार को अपनाना अहम माना गया है, जो जन्म से लेकर मृत्यु कर्मों तक के लिए नियत किए गए हैं। इसी लिहाज से जीवन में उठते- बैठते अनेक ऐसी छोटी-छोटी बातों का भी ध्यान रखने का महत्व बताया गया है, जो सुनने-पढऩे में दिलचस्प भी हैं, लेकिन उनका पालन अनुशासन, सम्मान व आपसी सद्भाव बढ़ाने वाला है। जानते हैं ऐसी रोचक बातें -

भविष्य पुराण की यहां बताई जा रही बात का संबंध राह में चलते वक्त किसी व्यक्ति विशेष के सामने आने पर किए जाने वाले व्यवहार से जुड़ी है। लिखा गया है कि -

चक्रिणो दशमीस्थस्य रोगिणो भारिण: स्त्रिया:।

स्नातकस्य तु राज्ञश्च पन्था देयो वरस्य च।।

एपां समागमे तात पूज्यौ स्नातकपार्थिवौ।

आभ्यां समागमे राजन् स्नातको नृपमानभाक्।।

सरल शब्दों में अर्थ व संदेश यही है कि नीचे बताए लोगों के सामने आने पर तुरंत सद्भाव पूर्वक जल्द राह दे दें -

- रथ आदि यान पर सवार, आधुनिक संदर्भों में किसी भी वाहन पर बैठा व्यक्ति,

- अतिवृद्ध यानी ज्यादा उम्र या बुजूर्ग इंसान

- रोगी

- भारयुक्त यानी किसी भी रूप में बोझ उठाकर ले जा रहा व्यक्ति।

- स्त्री

- स्नातक यानी जिसका समावर्तन संस्कार यानी गुरु शिक्षा-दीक्षा प्राप्त कर केशांत कर आचार्य उपाधि प्राप्त कर आने वाला। आधुनिक संदर्भ में विद्वान या धर्माचार्य, शिक्षित भद्र व्यक्ति।

- राजा

- वर यानी दूल्हा

अगर इन सभी का सामने से एक साथ आना हो जाए तो राजा और स्नातक। दोनो में भी पहले स्नातक को रास्ता देना चाहिए।

व्यावहारिक रूप से इस बात में छुपे संदेश समझें तो बुजूर्ग, रोगी, भारयुक्त, स्त्री को रास्ता देने में मूलत: सम्मान, सेवा, संवेदना, मर्यादा वहीं राजा या दूल्हे को मार्ग छोडऩा अनुशासन व सद्भाव को अपनाने की सीख देते हैं। वहीं स्नातक की राह छोडऩा धर्म व ज्ञान के प्रति सम्मान का प्रतीक है। इस दिलचस्प बात पर सतही तौर पर भी विचार करें तो ऐसा व्यवहार स्वयं के साथ दूसरों को भी शरीर, प्राण, प्रतिष्ठा या चरित्र हानि से बचाने वाला है।

सफल जीवन की राह बताते हैं साईं के ये 4 सबक
त्यागमूर्ति साईं बाबा ने मानव धर्म का पालन ही सर्वोपरि बताया। इंसानियत की अहमियत उजागर करती साईं की यह सीख धर्म पालन की नासमझी से पैदा कट्टरता की गलत सोच के बंधनों में जकड़े हर इंसान को मानवीय रिश्तों में संवेदना व भावनाओं को ऊपर रख खुले विचारों के साथ व्यवहार और कर्मों को साधने की कला सिखाती है।

हिन्दू धर्म मान्यताओं के नजरिए से विचार करें तो परब्रह्म के त्रिगुण स्वरूप ब्रह्मा, विष्णु और महेश की रचना, पालन व बुरी शक्तियों के संहार के गुण साईं चरित्र में भी प्रकट होते हैं। दरअसल ब्रह्मदेव की ज्ञान शक्ति से रचना या बनाने का भाव, विष्णु की सत्व शक्ति यानी शांति से पालन और शिव का वैराग्य से सुख प्राप्ति का गुण साईं बाबा के ज्ञानी, त्यागी व शांत चरित्र में भी उजागर होता है।

यही कारण है कि साईं बाबा द्वारा बताई 4 अहम बातें व्यावहारिक जीवन में हर व्यक्ति को धर्म और मानवीयता से जोड़ जीने की राह बताती है। इसलिए साईं भक्ति में इन चार बातों से जीवन में जुडऩे की मुरादें मांगना भी अहम माना गया है। जानते हैं क्या बताया साईं ने -

बुराई से बचें - साईं बाबा ने सुख-शांति से जीवन बिताने के लिए हमेशा तन की मलिनता, मन के बुरे भाव, कर्म में आलस्य या धन के लिए गलत तरीके अपनाना जैसी हर तरह की बुराईयों से दूर रहने पर जोर दिया।

अहं - साईं बाबा ने विनम्रता व उदारता को सुखद जीवन का अहम सूत्र माना। जिसके लिए अहं भाव को मन में स्थान न देने का संदेश दिया।

धन के साथ बुद्धि - साईं ने यह भी सिखाया कि ईश्वर से धन की कामना बुरी नही, किंतु उसके साथ बुद्धि की कामना भी जरूर करें, ताकि धन का संग पाकर मन व जीवन में भटकाव न आए। बल्कि परोपकार में धन का उपयोग हो।

न्यायप्रिय वचन - साईं बाबा ने इस खास सूत्र द्वारा वचन की पवित्रता से सफलता की राह बताई। साईं ने सिखाया कि सत्य और न्यायप्रिय बोल की ही सार्थकता है। अन्यथा बुरे, अप्रिय या अन्याय से भरे शब्दों का कोलाहल जीवन को अशांत कर देता है।

खबरदार! शरीर से न हों ये 4 काम, वरना..
मन का स्वभाव चंचल होता है। अस्थिर मन से पैदा मानसिक पाप शरीर पर हावी होते हैं। जिससे कर्म भी दूषित होते हैं। गलत काम के दु:खद नतीजे जीवन को भी अस्थिर कर अहम लक्ष्यों से भटकाते हैं।

शास्त्रों में जीवन को असंतुलन व भटकाव से दूर रखने के लिए ही मन को अच्छी सोच, बातों और माहौल से जोड़ने के अलावा खासतौर पर शरीर को भी चार कर्मों से दूर रखने की हिदायत दी गई है। जिनको कायिक पाप भी पुकारा गया है। जानते हैं, कौन-से हैं वे चार काम, जो देह के पाप हैं -

- अभक्ष्य भक्षण यानी दूषित, किसी भी जीवित प्राणी को मारकर मांसाहार या ऐसे भोजन को खाना जो शरीर के लिए घातक हो।

- हिंसा यानी किसी भी प्राणी पर अस्त्र-शस्त्रों से वार कर शरीर हानि करना या प्राण हरना।

- मिथ्या काम सेवन यानी बुरे विचारों के साथ संयमहीन शारीरिक सुखों को भोगते हुए जीवन बिताना।

- परधन हरण यानी चोरी या अन्य किसी भी गलत तरीके से किसी के धन, सपंत्ति पर अधिकार करना।

धार्मिक दृष्टि से इन कामों से नरक प्राप्त होता है, जिसमें व्यावहारिक संकेत समझे तो नरक भोगना यानी ये काम बड़े मानसिक व शारीरिक दु:ख, रोग व कष्टों का कारण बनते हैं, जो न केवल व्यक्ति बल्कि परिवार व समाज पर भी बुरा असर डालते हैं।

बस, ध्यान रहें ये 2 बातें..तो मजबूत रहेगी गृहस्थी की बुनियाद
शास्त्रों में बताए आश्रम-व्यवस्था रूपी जीवन के चार चरणों में गृहस्थाश्रम को बाकी तीन आश्रमों का मूल बताते हुए सबसे श्रेष्ठ बताया गया है। क्योंकि धार्मिक और व्यावहारिक रूप से भी यह सत्य है कि धर्म से जुड़कर ही अर्थ और काम संयमित रहते हैं। जिसके द्वारा जीवन रहते सुख और बाद मोक्ष मिलता है। इसलिए इसे गृहस्थ धर्म भी कहा गया है।

यह तो हुई जीवन को गृहस्थ धर्म के पालन से साधने की बात, किंतु गृहस्थी की नींव को मजबूत बनाए रखने के लिए किस तरह धर्म से जीवन को जोडऩा चाहिए? इस संबंध में शास्त्रों में गृहस्थी में मुखिया से लेकर परिवार के हर सदस्यों के लिए खासतौर पर दो बातों को कर्म, व्यवहार और स्वभाव में स्थान देना अहम माना है। जानें कौन-सी है ये दो खास बातें -

प्रेम - जी हां, प्रेम के बिना धर्म पालन मुश्किल है। चूंकि प्रेम का मूल है सत्य। इसलिए गृहस्थी में परिजनों के काम, बोल और कर्म में सच्चाई एक-दूसरे के बीच अटूट प्रेम और विश्वास बनाए रखती है।

सहयोग - शास्त्रों के नजरिए से सहयोग या सहकार में भी परोपकार, प्रेम, दया, क्षमा के भाव मौजूद होते हैं। परिवार में सुख-शांति रखने के लिए भी सदस्यों में आपसी सहयोग, मेलजोल और तालमेल अहम है। जिनको कायम रखने के लिए प्रेम और उससे पैदा क्षमा का भाव होना बेहद जरूरी है। क्योंकि क्षमा मन को द्वेष परे रख अपनत्व, दया, करुणा, संवेदना और भावनाओं से जोड़े रखती है।

गीता जयंती निष्काम कर्म करने की शिक्षा देता है यह ग्रंथ
मार्गशीर्ष (अगहन) मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को गीता जयंती का पर्व मनाया जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार इसी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का शिक्षा दी थी। इस बार गीता जयंती का पर्व 6 दिसंबर, मंगलवार को है।

जब महाभारत का युद्ध प्रारंभ होने वाला था। तब अर्जुन ने कौरवों के साथ भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य आदि श्रेष्ठ महानुभावों को देखकर तथा उनके प्रति स्नेह होने पर युद्ध करने से इंकार कर दिया था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था जिसे सुन अर्जुन ने न सिर्फ महाभारत युद्ध में भाग लिया अपितु उसे निर्णायक स्थिति तक पहुंचाया।

गीता को आज भी हिंदू धर्म में बड़ा ही पवित्र ग्रंथ माना जाता है। गीता के माध्यम से ही श्रीकृष्ण ने संसार को धर्मानुसार कर्म करने की प्रेरणा दी। वास्तव में यह उपदेश भगवान श्रीकृष्ण कलयुग के मापदंड को ध्यान में रखते हुए ही दिया है। कुछ लोग गीता को वैराग्य का ग्रंथ समझते हैं जबकि गीता के उपदेश में जिस वैराग्य का वर्णन किया गया है वह एक कर्मयोगी का है। कर्म भी ऐसा हो जिसमें फल की इच्छा न हो अर्थात निष्काम कर्म।

गीता में यह कहा गया है कि निष्काम काम से अपने धर्म का पालन करना ही निष्कामयोग है। इसका सीधा का अर्थ है कि आप जो भी कार्य करें, पूरी तरह मन लगाकर तन्मयता से करें। फल की इच्छा न करें। अगर फल की अभिलाषा से कोई कार्य करेंगे तो वह सकाम कर्म कहलाएगा। गीता का उपदेश कर्मविहिन वैराग्य या निराशा से युक्त भक्ति में डूबना नहीं सीखाता वह तो सदैव निष्काम कर्म करने की प्रेरणा देता है।

जानें, क्या हैं सफल जीवन के लिए शिव, शम्भु व शंकर नाम के मायने?
पुराणों में शिव महिमा उजागर करती है कि काल पर शिव का नियंत्रण है, न कि शिव काल के वश में। इसलिए शिव महाकाल भी पुकारे जाते हैं। ऐसे शिव स्वरूप में लीन रहकर ही काल पर विजय पाना भी संभव है।

सांसारिक जीवन के नजरिए से शिव व काल के संबंधों से जुड़ा गूढ़ संकेत यही है कि काल यानी वक्त की कद्र करते हुए उसके साथ बेहतर तालमेल व गठजोड़ ही जीवन व मृत्यु दोनों ही स्थिति में सुखद है। जिसके लिए शिव भाव में रम जाना ही अहम है। शिव भाव से जुडऩे के लिए वेदों में आए शिव के अलावा अन्य दो नामों शम्भु व शंकर के मायनों को भी समझना जरूरी है-

वेदों के मुताबिक शम्भु मोक्ष और शांति देने वाले हैं। वहीं शंकर शमन करने वाले और शिव मंगल और कल्याण कर्ता। इस तरह शम्भु नाम यही भाव प्रकट करता है कि शांति की चाहत के लिए अशुभ से परे रहें और शुभ से जुड़े। जिसके लिए क्षमा की तरह अच्छे भाव व कर्मों को अपनाए। जिससे मन दोषरहित होने से भय-रोगों से मुक्त रहेगा और मनचाहे लक्ष्य को पाना संभव होगा।

शंकर का मतलब है शमन करने वाला। यह नाम स्मरण यही भाव जगाता है कि मन को हमेशा शांत, संयमित व संकल्पित रखें, ठीक शंकर के योगी स्वरूप की तरह। संकल्पों से मन को जगाए रखने से ही सारे कलहों का शमन यानी शांति होती रहेगी और सफलता का रास्ता भी साफ दिखाई देगा।

शंभु व शंकर के साथ शिव नाम का अर्थ व भाव है - मंगल या कल्याणकारी। इसके पीछे कर्म, भाव व व्यवहार में पावनता का संदेश है। जिसके लिए जीवन में हर तरह से पवित्रता, आनन्द, ज्ञान, मंगल, कुशल व क्षेम को अपनाएं ताकि स्वयं के साथ दूसरों का भी शुभ हो। क्योंकि शिव नाम के साथ मंगल भावों से जुडऩे से मन की अनेक बाधाएं, विकार, कामनाएं और विकल्प नष्ट हो जाते हैं।

इस तरह शिव, शंभु हो या शंकर नाम हमेशा जीवन में निर्मलता, सफलता और महामंगल ही लाने वाले हैं।

कर्बला-कुरुक्षेत्र की जंग - 'करो या मरो' के जज्बे ने सिखाए सफल जीवन के ये सूत्र
युद्ध मानवता और शांति के नजरिए से अस्वीकार्य है। किंतु धर्म इतिहास उजागर करता है कि हिन्दू धर्म मान्यताओं में कुरुक्षेत्र और इस्लामी मान्यताओं में कर्बला की जंग के महानायकों ने कर्म के साथ जीने तो धर्म रक्षा के लिए मर मिटने के जो सूत्र सिखाए वह हमेशा सारी दुनिया को इंसानियत व अमन के साथ रहकर जीवन को सफल बनाने का जज्बा देते हैं।

इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक मुहर्रम के दिन कर्बला के मैदान में इमाम हुसैन व परिजनों द्वारा इंसानियत के लिए दी गई शहादत को याद किया जाता है। माना जाता है कि यजीद की सेना इतनी ताकतवर थी कि बाकी दुनिया की सारी सेना के मिल जाने पर भी उसकी ताकत का भी मुकाबला न कर पाए। किंतु यह जानते हुए भी इमाम हुसैन ने धर्म निभाते हुए मानवता का गला घोंट रहे यजीद के जुल्मों से आहत लोगों व धर्म की रक्षा के लिये ही छोटे-से दल-बल के साथ कर्बला की ओर कूच किया। जहां कर्बला के मैदान में यजीद द्वारा उपयोग की गई तमाम शक्ति व प्रलोभनों के आगे न झुकते हुए सिर्फ अल्लाह की रहमत, इंसानियत व नेकदिली की राह पर ही अडिग रहकर शहादत दे दी।

वहीं हिन्दू धर्म मान्यताओं के मुताबिक कुरुक्षेत्र का मैदान तो असल में योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने ही जीता। क्योंकि भगवान कृष्ण ने गीता के उपदेशों से निष्काम कर्मयोग का जो संदेश दिया। वह हर प्राणी के लिये सुखी, शांत व सफल जीवन का नायाब सूत्र माना जाता है।

इस तरह जहां कर्बला में इमाम हुसैन ने धर्म पालन यानी प्रेम, परोपकार, दया आदि के मजबूत संकल्पों के साथ तो कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म और पुरुषार्थ के जरिए धर्म अपनाने व सफल जीवन के बेहतरीन सूत्र सिखाए।

शेषनाग पर सोते हैं भगवान विष्णु क्योंकि...
भगवान विष्णु को सभी देवताओं में प्रधान माना गया है। विष्णु ही वे भगवान है जिनके सबसे ज्यादा अवतार लिए जाने का वर्णन हमारे धर्मशास्त्रों में मिलता है। भगवान विष्णु के भयानक और कालस्वरूप शेषनाग पर आनंद मुद्रा में शयन करते हुए भी दर्शन किए जा सकते हैं। भगवान विष्णु के इसी स्वरूप के लिए शास्त्रों में लिखा गया है

- शान्ताकारं भुजगशयनं यानि शांतिस्वरूप और भुजंग यानि शेषनाग पर शयन करने वाले देवता भगवान विष्णु।

साधारण नजरिए से यह अनूठा देव स्वरूप अचंभित करता है कि काल के साये में रहकर भी देवता बिना किसी बैचेनी के शयन करते हैं। किंतु भगवान विष्णु के इस रूप में मानव जीवन से जुड़ा छुपा संदेश है - जिंदगी का हर पल कर्तव्य और जिम्मेदारियों से जुड़ा होता है। इनमें पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक दायित्व अहम होते हैं। किंतु इन दायित्वों को पूरा करने के साथ ही अनेक समस्याओं, परेशानियों, कष्ट, मुसीबतों का सिलसिला भी चलता रहता है, जो कालरूपी नाग की तरह भय, बेचैनी और चिन्ताएं पैदा करता है।

जिनसे कईं मौकों पर व्यक्ति टूटकर बिखर भी जाता है। भगवान विष्णु का शांत स्वरूप यही कहता है कि ऐसे बुरे वक्त में संयम, धीरज के साथ मजबूत दिल और ठंडा दिमाग रखकर जिंदगी की तमाम मुश्किलों पर काबू पाया जा सकता है। तभी विपरीत समय भी आपके अनुकूल हो जाएगा। ऐसा व्यक्ति सही मायनों में पुरूषार्थी कहलाएगा। इस तरह विपरीत हालातों में भी शांत, स्थिर, निर्भय व निश्चिंत मन और मस्तिष्क के साथ अपने धर्म का पालन यानि जिम्मेदारियों को पूरा करना ही विष्णु के भुजंग या शेषनाग पर शयन का प्रतीक है।

स्त्री से ऐसा बर्ताव रखता है गृहस्थी को खुशहाल
धार्मिक मान्यता है कि स्वर्ग देवताओं की नगरी है। वहां देवत्व भाव की प्रधानता है। देवत्व का संबंध शुभ, मंगल, सुख, पवित्र भाव, विचार व कर्मों से जुड़ा है। इसलिए भी सांसारिक जीवन में हर सुखद अनुभव या स्थान को स्वर्ग नाम से जोड़ा जाता है।

इसी कड़ी में शास्त्रों के मुताबिक गृहस्थी भी जीवन में सुख, शांति और लक्ष्यों को प्राप्त करने का अहम पड़ाव है। इस गृहस्थ जीवन की धुरी स्त्री को माना जाता है। वह शक्तिस्वरुपा भी कहलाती है। क्योंकि स्त्री रचना की विलक्षण शक्ति की स्वामिनी है। इसलिए वह जननी भी पुकारी जाती है।

यही कारण है कि गृहस्थी को स्वर्ग बनाने यानी सुख-समृद्ध बनाने के लिए घर-परिवार या समाज में स्त्री के प्रति बोल, वचन और व्यवहार से जुड़ा एक अहम सूत्र लिखा गया है। यह सूत्र है -

यत्र नार्यस्तु पूज्यंते तत्र रमन्ते देवता।

अर्थ है कि जहां नारी की पूजा यानी सम्मान होता है, वहां देव कृपा या देव वास होता है। इस बात का व्यावहारिक संकेत यही है कि अगर घर-परिवार में स्त्री अपमानित या उपेक्षित हो तो स्वाभाविक है कि इसका बुरा असर न केवल स्त्री की मनोदशा पर बल्कि गृहस्थी की व्यवस्था, संस्कार व जीवनमूल्यों पर भी होता है।

इस वजह से घर-परिवार के वातावण में घुली अशांति व कलह दरिद्रता, रोग, संकट या शोक का कारण बनते हैं। किंतु इसके विपरीत जननी के रूप में स्त्री का आदर गृहस्थी का माहौल सुखद, व्यवस्थित तनावरहित व प्रेरणादायी बना रहता है। साथ ही पीढ़ी दर पीढ़ी अच्छे संस्कार, आचरण व गुण फलते-फूलते हैं। जिनसे मिलने वाली खुशियां, समृद्धि व शांति स्वर्ग सा आनंद ही देती है।

बोध होने के बाद गौतम बुद्ध ने धारण किया था मौन। क्या था इस मौन का महत्व..?
बुद्ध को जब बोध प्राप्त हुआ, तो कहा जाता है कि वे एक सप्ताह तक मौन रहे। उन्होंने एक भी शब्द नहीं बोला। पौराणिक कथाएं कहती हैं कि सभी देवता चिंता में पड गए। उनसे बोलने की याचना की। मौन समाप्त होने पर वे बोले, जो जानते हैं, वे मेरे कहने के बिना भी जानते हैं और जो नहीं जानते, वे मेरे कहने पर भी नहीं जानेंगे। जिन्होंने जीवन का अमृत ही नहीं चखा, उनसे बात करना व्यर्थ है, इसलिए मैंने मौन धारण किया था। जो बहुत ही आत्मीय और व्यक्तिगत हो उसे कैसे व्यक्त किया जा सकता है?
देवताओं ने उनसे कहा, जो आप कह रहे हैं वह सत्य है, परंतु उनके बारे में सोचें जिनको पूरी तरह से बोध भी नहीं हुआ है और पूरी तरह से अज्ञानी भी नहीं हैं। उनके लिए आपके थोडे से शब्द भी प्रेरणादायक होंगे। तब आपके द्वारा बोला गया हर शब्द मौन का सृजन करेगा।

बुद्ध के शब्द निश्चित ही मौन का सृजन करते हैं, क्योंकि बुद्ध मौन की प्रतिमूर्ति हैं। मौन जीवन का स्रोत है। जब लोग क्रोधित होते हैं, तो पहले वे चिल्लाते हैं और फिर मौन हो जाते हैं। जब कोई दुखी होता है, तब वह भी मौन की शरण में जाता है। जब कोई ज्ञानी होता है, तब भी वहांपरमौन होता है।

शुरुआत से ही बुद्ध ने संतुष्ट जीवन का निर्वाह किया। हर सुख-सुविधा किसी भी समय उनकी इच्छानुसार उनके सामने हाजिर हो जाती थी। एक दिन उन्होंने कहा कि मुझे बाहर जाकर यह देखना है कि दुनिया क्या है। जब उन्होंने एक बीमार, एक वृद्ध और एक मृत व्यक्ति को देखा, तो उन्होनेजीवन के बारे में विचार करना शुरू किया। ये दृश्य यह ज्ञान देने में पर्याप्त थे कि जीवन में दु:ख है।

बुद्ध ने अकेले सत्य की तलाश शुरू की। इसके लिए उन्होंने अपना महल, पत्‍‌नी और बेटे को छोड दिया। उन्होंने वह सब कुछ किया, जो लोगों ने उन्हें बताया। इसके बाद ही वे चार सत्य जान पाए। पहला सत्य है कि दुनिया में दु:ख है। जीवन में सिर्फ दो संभावनाएं हैं- पहली यह कि अपने आसपास के संसार में औरों के दु:ख के अनुभव को देखकर समझ जाना। दूसरी यह कि स्वयं उसका अनुभव करके समझना कि संसार दु:ख है। दूसरा सत्य यह है कि दु:ख के लिए कोई कारण होता है। आप बिना किसी कारण सुखी रह सकते हैं, परंतु दु:ख का कोई कारण अवश्य होता है। तीसरा सबसे महत्वपूर्ण सत्य यह है कि दु:ख का निवारण संभव है। चौथा सत्य यह है कि दु:ख से बाहर निकलने के लिए एक पथ है।

उस समय इतनी अधिक समृद्धि थी कि बुद्ध ने अपने मुख्य शिष्यों को भिक्षा का पात्र पकडा दिया और उनसे भिक्षा मांगने को कहा! उन्होनेंराजाओं के शाही वस्त्र उतरवाकर उनके हाथ में भिक्षा का कटोरा दे दिया। यह इसलिए नहीं था कि उन्हें भोजन की आवश्यकता थी, परंतु वे उन्हें कुछ होने से कुछ नहीं होने के पाठ की सीख देना चाहते थे। यह बताना चाहते थे कि आप कुछ नहीं हैं। आप इस विश्व में निरर्थक हैं। जब उस समय के राजाओं और ज्ञानियोंको भिक्षा मांगने को कहा गया, तो वे करुणा की मूर्ति बन गए।
अपने सच्चे स्वभाव को देखें कि वह क्या है? वह शांति, करुणा, प्रेम, मित्रता, और आनंद है। मौन में इन सब का उदय होता है। दुख, पछतावेऔर कष्ट को मौन निगल लेता है और आनंद, करुणा और प्रेम को जन्म देता है।

क्यों खोला था शिव ने अपना तीसरा नेत्र, क्या है तीसरे नेत्र का रहस्य?
रामचरित मानस के अनुसार तारका नाम का एक असुर हुआ उसने सभी देवताओं को हराकर तीनों लोकों को जीत लिया। वह अमर था। इसीलिए देवता उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते थे। आखिर में सभी देवता उसके आतंक से परेशान होकर ब्रह्माजी के पास पहुंचे। तब ब्रह्माजी ने देवताओं को बताया कि इस असुर का संहार सिर्फ शिव पुत्र के द्वारा ही हो सकता है। तब सभी देवता चिंतित हो गए क्योंकि सती के देह त्याग के बाद से शिव समाधि में बैठे थे। तब ब्रह्माजी बोले कि सती ने देह त्याग के बाद हिमाचल के यहां जन्म लिया है।

उन्होंने पार्वती के रूप में शिव को पाने के लिए बहुत तप किया लेकिन वे तो समाधि लगाकर बैठे हैं। इसलिए आप लोग जाकर कामदेव को शिवजी के पास भेजो ताकि उनके मन में काम का भाव उत्पन्न हो। इसके अलावा कोई उपाय नहीं है। देवताओं ने जब कामदेव को जाकर सारी बात बताई। तब कामदेव फूलों का धनुष लेकर निकल पड़े। उनके प्रभाव से सभी पशु-पक्षी काम के बस में हो गए। लेकिन जब कामदेव शिव के पास पहुंचे तो वे डर गए।

उन्होंने शिव को मनाने के लिए बसंत को भेजा लेकिन शिव की समाधि नहीं टूटी। जब कामदेव सारी कोशिश कर हार गए। तब उन्होंने शिव पर काम के पांच बाण चलाए। क्रोध के कारण शिव का तीसरा नेत्र खुल गया और जैसे ही उन्होंने कामदेव को देखा तो वे जलकर भस्म हो गए। साधारण रूप में देखें तो शिव ईश्वर हैं और बुरे लोगों को अपने तीसरे नेत्र की अग्नि से जलाकर भस्म कर देते है और यदि अलग तरह से देखने का प्रयत्न करें तो शिव का तीसरा नेत्र ज्ञान पुंज है जो अज्ञान का नाश करता है!

इन उपायों से न होगा घमण्ड से जीवन का बेड़ागर्क
धर्म के नजरिए से पांच तत्वों से बनी इस देह में मन और बुद्धि के साथ अहंकार की प्रकृति भी होती है। जब भी व्यक्ति के मन में स्वयं का महत्व सबसे ऊपर हो जाता है और अपनी बात, विचार और कामों के साथ ही वह स्वयं को ही बड़ा मानने लगता है। उसमें काम या कर्तव्य को पूरा करते यह भाव आ जाना कि सिर्फ मैं ही इस कार्य को करने में समर्थ हूं। यह स्थिति ही अहंकार की होती है।

अनेक बार एक मनुष्य को दूसरे का अहंकार दिखाई देता है पर स्वयं का नहीं। जबकि सच यह है कि अहंकार कभी न कभी किसी में आता है या यूं कहें कि यह सभी में रहता है। पौराणिक प्रसंग भी बताते हैं कि देव, दानव हो या मानव अहं से बच न पाए।

दरअसल, अहंकार मन को अशांत कर देता है। जिससे पैदा तमाम दोष पारिवारिक, सामाजिक जीवन पर बुरा असर डालते हैं। जिससे अहंकार व इससे पैदा दोषों से ग्रसित इंसान की बदहाली टलना मुश्किल हो जाता है। श्रीमद्भगद्गीता में कहा गया है कि -

'निर्ममो निरहंकार: स शान्ति मधिगच्छति' यानी ममता या अहंकाररहित मन ही शांति प्राप्त करता है। इसलिए जानें कि कुछ व्यावहारिक उपायों से कैसे अहंकार से बच शांत व सुखी रहा जा सकता है -

- हमेशा विनम्रता से व्यवहार करने की कोशिश करें। विनम्रता अहं के अंत की सबसे अच्छी औषधी है। जिसने आप पर उपकार किया, उसे न भूलें, न अपमानित करें ।

- अपेक्षा न रखें, यह सभी कहते हैं, लेकिन इससे दूर रहना कठिन कार्य है। यह अपेक्षा ही अहं और टकराव का कारण बनती है, इसलिए मन में हमेशा देने का भाव रखें, तो अपेक्षा नहीं सताएगी, न ही अहंकार।

- धर्म के नजरिए से हर व्यक्ति को अपनी मृत्यु का ध्यान रखना चाहिए। एक दिन मौत आने पर है बल, धन, सौंदर्य, ज्ञान सब कुछ यहीं छूट जाता है। फिर क्यों उसके पहले मेरा-तेरा की भावना रख या दूसरों को कमतर बताकर क्लेश का जीवन जीते रहें।

- अपनी इच्छाओं को दबाएं नहीं लेकिन काबू में रखें। इससे आपकी मानसिक बल मिलता है, यह आपकों अहं से दूर रखने में मदद करेगा।

- सच यही है कि जब तक व्यक्ति स्वयं अहंकार का एहसास नहीं करता, तब तक वह अहंकार से बाहर नहीं आ सकता।

- सबसे आसान उपाय है कि हमेशा खुद को ऊपर रखकर बातें करना बंद करें। न ही किसी ओर से अपनी झूठी तारीफ सुनें। इसके स्थान पर अपनी अच्छाई-बुराई के बारें में ईमानदारी से सोचें।

- जब आप अहंकार के विसर्जन के इन कुछ उपायों को अपनाएंगे, तब आचरण और व्यवहार में मर्यादा अपने आप स्थान बना लेगी। जिससे आप दिल और दिमाग से अधिक संयमित और अनुशासित बनेगें। ऐसा होने पर ही अहं से मिले दु:खों से दूर होकर आपका जीवन सुख, शांति और आनंद से बीतेगा।

भगवान विष्णु के अवतार हैं दत्तात्रेय
मार्गशीर्ष (अगहन) मास की पूर्णिमा को दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। धर्मशास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान दत्त का अवतार हुआ था। इस बार दत्त जयंती का पर्व 10 दिसंबर, शनिवार को है। भगवान दत्तात्रेय को विष्णु का अवतार माना जाता है। इसकी कथा अनेक ग्रंथों में उल्लेखित हैं। उसके अनुसार-

एक बार माता लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती को अपने पातिव्रत्य पर अत्यंत गर्व हो गया। भगवान ने इनका अंहकार नष्ट करने के लिए लीला रची। उसके अनुसार एक दिन नारदजी घूमते-घूमते देवलोक पहुंचे और तीनों देवियों को बारी-बारी जाकर कहा कि मुनि अत्रि की पत्नी अनुसूईया के सामने आपका सतीत्व कुछ भी नहीं। तीनों देवियों ने यह बात अपने स्वामियों को बताई और उनसे कहा कि वे अनुसूईया के पातिव्रत्य की परीक्षा लें। तब भगवान शंकर, विष्णु व ब्रह्मा साधुवेश बनाकर अत्रिमुनि के आश्रम आए। महर्षि अत्रि उस समय आश्रम में नहीं थे।

तीनों ने देवी अनुसूईया से भिक्षा मांगी मगर यह भी कहा कि आपको निर्वस्त्र होकर हमें भिक्षा देनी होगी। अनुसूईया पहले तो यह सुनकर चौंक गई लेकिन फिर साधुओं का अपमान न हो इस डर से उन्होंने अपने पति का स्मरण किया और बोला कि यदि मेरा पातिव्रत्य धर्म सत्य है तो ये तीनों साधु छ:-छ: मास के शिशु हो जाएं। और तुरंत तीनों देव शिशु होकर रोने लगे। तब अनुसूईया ने माता बनकर उन्हें गोद में लेकर स्तनपान कराया और पालने में झूलाने लगीं। जब तीनों देव अपने स्थान पर नहीं लौटे तो देवियां व्याकुल हो गईं।

तब नारद ने वहां आकर सारी बात बताई। तीनों देवियां अनुसूईया के पास आईं और क्षमा मांगी। तब देवी अनुसूईया ने त्रिदेव को अपने पूर्वरूप में कर दिया। प्रसन्न होकर त्रिदेव ने उन्हें वरदान दिया कि हम तीनों अपने अंश से तुम्हारे गर्भ से पुत्ररूप में जन्म लेंगे। तब ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शंकर के अंश से दुर्वासा और विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ।

ऐसा हो प्रेम तो भक्ति व रिश्तों में आता है भरपूर आनंद
धर्मशास्त्रों के मुताबिक प्रेम, धर्म का प्रमुख अंग है। सरल शब्दों में समझें तो अच्छाई को अपनाना व अच्छे परिणाम पाने के लिए प्रेम भाव निर्णायक होता है। इसी कारण माना जाता है कि बोल, व्यवहार और आचरण में प्रेम का भाव नहीं उतरता तो सुखों की आस पूरी नहीं हो सकती। किंतु आज के भागमभाग भरे दौर में अनेक अवसरों पर रिश्ते हो या भक्ति, दोनों में सच्चे प्रेम के स्थान पर स्वार्थ या हावी दिखाई देता है।

ऐसे में आखिर सच्चे प्रेम को कैसे जाने और अपनाएं? शास्त्रों में लिखी कुछ बातें इस सवाल का बेहतर जवाब देती है -

नारद भक्ति सूत्र में लिखा है - अनिर्वचनीयं प्रेम स्वरूपम्।

इसका व्यावहारिक मतलब है कि प्रेम महसूस किया जा सकता है, लेकिन बोलकर बताया नहीं जा सकता। प्रेम का भाव अटूट, अदृश्य, अनुभव योग्य, इच्छाओं और अपेक्षाओं से परे होता है।

इस तरह कहा जा सकता है कि स्वार्थ, गुणों या इच्छा के वशीभूत होने पर पैदा भाव प्रेम नहीं होता, बल्कि आकर्षण होता है। इसके विपरीत नि:स्वार्थ प्रेम कभी कम नहीं होता, न अपेक्षा रखता है। वह अमर और अंतहीन होता है। ऐसा प्रेम ही सांसारिक जीवन में मन-मस्तिष्क और व्यवहार में रिश्तों में नजदीकी बनाए रखता है। वहीं भक्ति में ऐसे प्रेम से भक्त का मन भगवान के ही चिंतन और मनन में डूब जाता और उसे दूसरों में भी भगवान के अलावा कोई नजर नहीं आता।

क्यों थी कृष्ण के पास सोलह हजार रानियां?

एक बार की बात है। भगवान् अपनी रानियों के साथ बैठे हुए विचार कर रहे थे और उसी समय उनको सूचना दी गई कि कुछ लोग आपसे मिलना चाहते हैं। विशेष रूप से कुछ स्त्रियां हैं और उनके साथ कुछ पुरूष हैं और वो बहुत परेशान हैं। भगवान् ने कहा-ठीक है। भगवान् की सभा का नाम था सुधर्मा सभा। भगवान् ने कहा उनको भेजा जाए। वो लोग आए।

उन्होंने भगवान् को प्रणाम किया। उन स्त्रियों ने भगवान् से कहा आपका उदय हो गया है। हमने सुना है आप सबके रखवाले हैं, आपने कंस का वध किया है।आप बार-बार घोषणा करते हैं कि आप स्त्री शक्ति, मातृ शक्ति के रक्षक हैं। क्या आप जानते हैं कि आज प्राज्ञज्योतिपुर नाम के नगर में एक राजा है नरकासुर। उसने सोलह हजार स्त्रियों को अपनी कैद में कर रखा है। उन सारी स्त्रियों को वो उठा लाया जो किसी की मां हैं, बहन हैं, पत्नी हैं, बेटी हैं और उसने अपने कारावास में उनको बन्दी बना लिया है। उस कारावास में बन्दियों की क्षमता पांच हजार है। उस पांच हजार की क्षमता वाले कारावास में उसने सोलह हजार स्त्रियों को बन्दी करके रखा है।

पशु की भांति जीवन बिता रही हैं वो सब। नरकासुर जिस दिन चाहता है कारावास का दरवाजा खोलकर स्त्रियों को उठाकर ले जाता है। उसके वे मंत्री इतने कुटिल, अत्याचारी व कामी हैं कि हमारा कोई रक्षण नहीं है। आज हम आपके पास आए हैं। नरकासुर को कोई जीत नहीं सकता। आज की राजनीति, आज की राज सत्ताएं आपके आसपास हैं। हम कब तक कैद में रहेंगे? यह सुनकर भगवान् के चेहरे पर बल पड़ गए। भगवान् ने कहा-मैं आपकी रक्षा का वचन देता हूं। उसके बाद श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया। कारावास में बंद सभी स्त्रियों को कृष्ण ने स्वीकार किया। इसीलिए कहा जाता है कि कृष्ण सोलह हजार रानियां थी।

अध्यात्म की राह पकड़ते ही ये बुराईयां छूटने लगती है पीछे
अक्सर धार्मिक या आध्यात्मिक होने का अर्थ धार्मिक क्षेत्र, ज्ञान, या विषयों से जुड़े किसी खास इंसान से जोड़ा जाता है। जबकि शास्त्रों के मुताबिक सांसारिक जीवन में जब कोई व्यक्ति अध्यात्म की ओर बढ़ता है, तब उसे किसी ऊपरी दिखावे या बनावटी बातों की जरूरत नहीं होती। क्योंकि अध्यात्म का संबंध आत्मा से होता है। इसलिए वह भलाई, भद्रता और विनम्रता के रूप में बाहर दिखाई देता है। जरूरी नहीं कि ऐसा इंसान धार्मिक कर्मकांड या पाठ-पूजा में रमा हो।

श्रीमद्भगवद्गीता में भी अर्जुन के पूछने पर अध्यात्म के बारे में पूछने पर श्रीकृष्ण ने कहा है कि -

'स्वभावोध्यात्ममुच्यते' यानी अपना स्वरूप या जीवात्मा ही अध्यात्म है। इसलिए जरूरी है कि आत्मा से नाता जोडऩे या खुद से पहचान के लिए शरीर, मन व कर्म शुद्धि पर भी दृष्टि जरूरी है।

यहां जानते हैं उन लक्षणों को, जो अध्यात्म से जुड़े हुए व्यक्तित्व की पहचान होते हैं। जिसे सही मायनों में उदारता और सांसारिक जीवन के नजरिए से साफ दिल का इंसान भी कहा जाता है -

- व्यक्ति किसी भी तरह की हानि या नुकसान होने पर भी आवेश, बदले की भावना से दूर होता है और उल्टे ऐसी हालात में स्नेह और क्षमा को महत्व देता है।

- दु:ख हो या सुख उसका व्यवहार और विचार संतुलित होते हैं। वह विपरीत हालात में घबराता नहीं है और नहीं सुख में अति उत्साहित होता है।

- वह दूसरों की गलतियां देखने, बुराई या ओछे विचारों से दूर रहता है और केवल गुणों और अच्छाईयों को ढूंढता और अपनाने की कोशिश करता है।

- व्यक्ति इतना सरल, सहज और निस्वार्थ हो जाता है कि वह अधिकारों के स्थान पर सिर्फ कर्तव्यों को याद रखता है।

- वह निर्भय होता है। वह मानसिक रुप से इतना जुझारू होता है कि इच्छाशक्ति से अपने लक्ष्य को पा लेता है।

- ऐसा व्यक्ति बहुत ही धैर्य और संयम रखने वाला होता है। जिसके कारण वह बुरी लतों और गलत कामों से स्वयं को भटकाता नहीं है।

- कर्तव्यों की ही सोच होने से वह हर तरह की इच्छाओं यानि वासना पर काबू कर लेता है। इससे वह अपनी मानसिक शक्तियों का उपयोग भजन, संगीत, रचनात्मक कामों जैसे चित्रकारी, लेखन, साहित्य के पठन-पाठन में लगाता है।

अगर आपकी या किसी नजदीकी व्यक्ति की जिंदगी में कुछ ऐसे ही बदलाव नजर आ रहे है तो समझे ऐसे कदम वास्तविक सुख और शांति की ओर बढ़ रहे हैं।

हर युवा सीखे श्री हनुमान से सफलता के ये 4 खास सूत्र
जीवन में किसी भी लक्ष्य को भेदना शक्ति के बिना संभव नहीं है। यह शक्ति अनेक रूपों में प्रकट होती है। सांसारिक जीवन में भी इंसान अनेक लक्ष्यों को पाने के लिये शक्ति का संचय किसी न किसी रूप में करता है और अलग-अलग तरह की गुण और शक्तियों के द्वारा सफलता की ऊँचाईयों को छूता भी है।

शक्ति साधना के इन उपायों में साक्षात शक्ति स्वरूप श्री हनुमान का स्मरण भी भी अचूक माना जाता है। क्योंकि श्री हनुमान शक्ति व पुरुषार्थ के साक्षात स्वरूप हैं। समुद्र लांघना, माता सीता की खोज, लंका दहन, रावण व मेघनाथ जैसे महावीरों से सामना और अद्भुत युद्ध कौशल में उजागर जुझारु और शूरता के साथ राम भक्ति व सेवा से भरा व्यक्तित्व व चरित्र ही उन्हें रामायण रूपी महामाला का रत्न बनाती है।

वैसे श्री हनुमान चरित्र व नाम स्मरण बच्चों से लेकर बुजूर्गों को भी ऊर्जावान व जाग्रत बना देता है। किंतु खासतौर पर आज के दौर में ऊर्जा व जोश से भरे सफलता के आकांक्षी युवा अपनी शक्तियों को किसी तरह सकारात्मक दिशा में मोड़े, इस संबंध में श्री हनुमान का चरित्र खासतौर पर चार सूत्रों को उजागर करता है।

हनुमान चरित्र पर गौर क रे तो शक्ति यानी बल के ऐसे ही चार रूप जो हर इंसान विशेष तौर पर युवाओं के लिये सुखी, शांत और कामयाब जीवन के लिए बहुत जरूरी है। जिनको पाना, बढ़ाना या बनाए रखना हर इंसान का लक्ष्य होना ही चाहिए -

देह बल - निरोगी, ऊर्जावान, तेजस्वी शरीर सफल जीवन की पहली जरूरत है। यह खान-पान, रहन-सहन के संयम और अनुशासन के द्वारा ही संभव है। श्री हनुमान की व्रज के समान मजबूत, तेजस्वी देह, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन व पावनता, इंद्रिय संयम व पुरुषार्थ तन को हष्ट-पुष्ट और स्वस्थ रखने की अहमियत बताता है।

बुद्धि बल - बुद्धि बल व कौशल सफल, सुखी और शांत जीवन के लिए सबसे बड़ी ताकत बन जाता है। क्योंकि बुद्धि के अभाव में शरीर से बलवान और धनवान भी दुर्बल हो जाता है। संदेश है कि ज्ञानवान व दक्ष बनें। श्री हनुमान भी ज्ञानियों में अग्रणी पुकारे गए हैं। क्योंकि शास्त्र भी हनुमान के बुद्धि चातुर्य से बाधाओं को दूर करने के अनेक प्रसंग उजागर करते हैं।

देव बल - ईश्वर का स्मरण एक ऐसी शक्ति है, जो अदृश्य रूप में भी शक्ति, ऊर्जा, एकाग्रता और आत्मविश्वास को बढ़ाने वाली होती है। शास्त्रों में भगवान के मात्र नाम का ध्यान भी देवकृपा करने वाला माना गया है। श्री हनुमान की श्रीराम भक्ति, नाम स्मरण और सेवा इसका श्रेष्ठ उदाहरण है। इस तरह जागते और सोते वक्त देव स्मरण व उपासना आस्था से ऊर्जावान व शक्ति संपन्न बने रहे।

धन बल - शास्त्र पुरुषार्थ के रूप में सुखी जीवन के लिए अर्थ या धन की अहमियत बताते हैं। जहां धन का अभाव व्यक्ति को तन, मन और विचारों से कमजोर बनाता है। वहीं सेवा, कर्म और समर्पण से धन संपन्नता व्यक्ति के आत्मविश्वास और सोच को मजबूत बनाती है। श्री हनुमान चरित्र में माता सीता के आशीर्वाद से अष्ट सिद्धियों व नो निधियों को प्राप्त करने का प्रसंग इस बात की ओर भी संकेत करता है।

ऐसे व्यक्ति का संग सुनिश्चित करता है सुख-सफलता व यश
सांसारिक जीवन में सुख-सफलता पाने के लिये हर इंसान का अलग-अलग तरीका हो सकता है, लेकिन चाहत एक समान होती है। जिसे पूरा करने के लिए अपनाए गए सही या गलत तरीके ही सुख व सफलता का स्वरूप या अवधि भी तय कर देते हैं। गलत कामों से अर्जित सुख अंतत: अपयश, किंतु सद्कर्मों से बंटोरे सुखों से हमेशा सफल व यशस्वी जीवन प्राप्त होता है।

हिन्दू धर्मग्रंथ महाभारत में इंसान की सुख-सफलता व यश पाने की इसी कामना को पूरा करने के लिए एक ऐसा सूत्र बताया गया है। जिसे कोई भी इंसान अपनाए तो आजीवन सुख व यश कमा सकता है। जानते हैं यह अहम सूत्र -

लिखा गया है कि -

येषां त्रीण्यवदातानि विद्या योनश्च कर्म च।

तान् सेवेत्तै: समास्या हि शास्त्रेभ्योऽपि गरीयसी।।

सरल अर्थ है कि ऐसे सज्जन पुरुष जो विद्या, कर्म और कुल से पवित्र हो, के साथ उठना, बैठना या उनकी सेवा करना स्वाध्याय से भी बेहतर है।

यहां व्यावहारिक जीवन के नजरिए साफ संकेत है कि जीवन में अच्छी संगति यानी सज्जन का संग सुख और सुकून लाता है। खासतौर पर जब कोई इंसान ज्ञान, कुल और कर्म से पावन हो। क्योंकि ऐसे शुद्ध चरित्र, व्यक्तित्व और वातावरण के साये में हर इंसान को पावनता की प्रेरणा मिलने के साथ ज्ञान भी प्राप्त होता है। जिससे सुधरे कर्म व्यक्ति को सुख-सफलता और यश की राह पर ले जाते हैं। सरल शब्दों में इंसान का चरित्र ज्ञान व कर्म से पावन हो जाता है, जो शास्त्रों में बताई सुखद जीवन के लिये जरूरी ज्ञान को पढने से भी बेहतर साबित होता है।

सज्जनता की ऐसी ताकत के आगे कहीं नहीं टिकती दुर्जनता

अक्सर सज्जनता को कमजोरी, दब्बूपन या कायरता से जोड़कर देखा जाता है। जबकि धर्मदृष्टि से सज्जन व्यक्ति स्वभाव से निर्भय और दृढ़ होता है। यहां तक कि वह हालात और नीति के मुताबिक जरूरत होने पर अपनी शारीरिक ताकत का उपयोग भी करता है।

असल में सज्जनता सभ्य होने की पहचान है। इसलिए सज्जन दब्बू या कमजोर नहीं होता बल्कि निडर और पक्के इरादों वाला होता। धर्मशास्त्रों में लिखी यह बात सज्जनता की शक्ति को उजागर भी करती है। इस ताकत का सही उपयोग दुर्जन को भी पस्त कर देता है -

उपकर्तुं प्रियं वक्तुं कर्तुं स्नेह कृत्रिमम्।

सुजनानां स्वभावो यं केनेन्दु: शिशिरी कृत

सरल शब्दों में अर्थ है कि उपकार करना, मीठा बोलना और सच्चा स्नेह करना ये 3 लक्षण सज्जनों के स्वभाव की खासियत है। इन 3 खूबियों में समाई सज्जनता कैसे व्यावहारिक जीवन में शक्ति बनकर प्रकट होती हैं? जानते हैं -

- सज्जन व्यक्ति मात्र अधिकार ही नहीं बल्कि अपने कर्तव्यों को भी याद रखता है। क्योंकि वह जानता है कि अधिकार के साथ जिम्मेदारियां भी आती है। जिनको पूरा करने के लिए अपनी सारी ऊर्जा और शक्तियों को जोडऩा जरूरी है। ऐसा कर्तव्य भावना से ही संभव है।

- सज्जन व्यक्ति न्याय को महत्व देता है। वह किसी भी विषय पर राग या द्वेष के भाव रखने के बजाय सही और गलत का फर्क कर ही फैसला करता है।

- सज्जन और सभ्य व्यक्ति बंटोरने की नहीं बल्कि बांटने यानि दान की मानसिकता रखता है। क्योंकि वह समझता है कि दूसरों की जरूरतों के मायने भी उतने हैं जितने स्वयं की।

- वासना या इच्छाओं से कोई मनुष्य परे नहीं होता है। इसलिए सज्जन व्यक्ति भी इससे मुक्त नहीं होता। किंतु सभ्य व्यक्ति की यही खूबी होती है कि वह वासनाओं और इच्छाओं पर काबू करना जानता है। मानसिक और शारीरिक वासनाओं पर संयम रखने के लिए वह आसान उपाय अपनाता है। यह उपाय होता है वह खुद को समाज कार्यों या जरूरतमंद लोगों की मदद में, नया हुनर सीखनें, अध्ययन और ज्ञान बढ़ाने में व्यस्त रखता है। जिससे खाली समय में आने वाली व्यर्थ की वासनाओं की ओर उसका ध्यान नहीं जाता।

- सभ्य और सज्जन व्यक्ति की खासियत होती है कि वह हठधर्मिता या बेकार की अकड़ नहीं रखता। वह किसी भी उलझन या विवाद में व्यावहारिक समस्याओं को सुलझाने पर ध्यान देता है। जिससे कटुता या संबंध बिगडऩे की संभावना नहीं रहती।

- इस तरह सभ्यता और सज्जनता ही कमजोरी न होकर ऐसी शक्ति है जो अधिकार और कर्तव्य, शरीर और आत्मबल, विवेक और बुद्धि का संतुलन सिखाने के साथ ही भले और बुरे का ज्ञान कराती है।

सज्जनता की इन खूबियों को अपनाकर हर इंसान आसानी से उन वास्तविक खुशियों को पा सकता है, जो आज सुख-सुविधाओं की चाहत में चल रही गलाकाट प्रतियोगिता के दौर में ईमान खोकर या अनैतिक कामों से मिले सुखों में भी नहीं मिलती।

जानें, क्यों रुद्राक्ष है साक्षात् शिव?
रुद्राक्ष शिव का साक्षात् स्वरूप माना जाता है। रुद्राक्ष दो शब्दों रुद्र और अक्ष से मिलकर बना है। जिसका सरल अर्थ ही है रुद्र यानी शिव के नेत्र। वहीं रुद्राक्ष शब्द के पीछे छुपी गूढ़ता जानें तो रुद्र का अर्थ है रुत् यानी दु:खों का नाश करने वाले वहीं अक्ष का अर्थ है आंखे यानी रुद्राक्ष शिव के नेत्रों से निकला पीड़ा हरण करने वाला है।

इस संबंध में शिव पुराण में लिखा भी है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिव के आंसुओं से हुई है। इसके अलावा भी अन्य पुराण रुद्राक्ष के शिव अंश होने की पुष्टि करते हैं। जानते हैं रुद्राक्ष के शिव का साक्षात् स्वरूप होने से जुड़े ऐसे ही पुराण प्रसंग -

शिव पुराण के मुताबिक सती से वियोग होने से आहत शिव के आंसुओं की बूंदे जमीन जगह-जगह पर गिरने से रुद्राक्ष वृक्ष पैदा हुआ। श्रीमद देवी भागवत् में उल्लेख है कि राक्षस त्रिपुर के नाश के लिये जब लंबे वक्त तक भगवान के नेत्र खुले रहे तो उनसे थकावट के कारण आंसू निकल भूमि पर गिरे। इससे ही रुद्राक्ष का वृक्ष प्रकट हुआ।

इसी तरह पद्मपुराण में लिखा है कि सतयुग में जब ब्रह्मदेव के वरदान से शक्तिसंपन्न बना दानवराज त्रिपुर जब पूरे जगत को पीडि़त करने लगा, तो देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शंकर ने अपनी तेजस्वी दृष्टि से त्रिपुर का अंत किया। त्रिपुर से युद्ध के दौरान महादेव की देह से निकली पसीने की बूंदों से रुद्राक्ष के पेड़ की उत्पत्ति हुई।

रुद्र शिव का संहारक स्वरूप माना गया है। वहीं, वेद भी संपूर्ण प्रकृति को ही शिव का स्वरूप बताते हैं। इसलिए भी शिव के ही प्राकृतिक स्वरूप में रुद्राक्ष अनिष्ट, पाप व दु:ख नाशक माना गया है। यहीं नहीं, शिव उपासना की भांति रुद्राक्ष धारण करना भी कामनासिद्धि कर आयु, धन, वैभव, पुण्य और मुक्ति देने वाला माना गया है।

सिर्फ, इन 3 सीधे-सादे उपायों से साधें और सुधारें जीवन
जीवन की राह के टेढ़ेपन से निकालकर सीधे रास्ते पर लाना ही धार्मिक और आध्यात्मिक बातों का लक्ष्य है व निचोड़ भी। जिनका संबंध जिंदगी को सही तरीकों से गुजारने से हैं। जिनमें सधी जीवनशैली और दिनचर्या की अहम भूमिका हैं। इन दो बातों पर ही जीवन में सुख और सफलता निर्भर है।

यही कारण है कि जब भी जीवन साधने व सुधारने की बात हो तो एक छोटे-से शब्द का अक्सर इस्तेमाल किया जाता है। वह है-सीधा। यह शब्द छोटा जरूर है, किंतु सफल जीवन के लिये खास और गहरे अर्थ से भरे सूत्र सिखाता है। जिनका संबंध जीवनशैली से ही है। ये तीन सूत्र हैं - सीधे रास्ते चलना, सीधा बोलना और सीधे बैठना।

इन तीन बातों को ही सामने रखकर सोचें तो यह समझना आसान है कि सीधापन जिंदगी के लिए कितना अहम है। क्योंकि इनके बिना धर्म पालन भी मुश्किल है -

पहली बात - सीधी राह चलना। जिसका मतलब भी सीधा है कि आप जिंदगी में हमेशा उन उपायों को अपनाएं, जिनसे आप बिना किसी उलझन और भ्रम के अपने नियत लक्ष्य तक पहुंचने में कामयाबी हासिल करें। यह उपाय शारीरिक, मानसिक और व्यावहारिक होते हैं। जैसे शरीर के स्तर पर स्वास्थ्य का ध्यान रखें, मन के स्तर पर एकाग्रता बनाए रखें, व्यर्थ की बातों और विषयों में समय न बिताएं। व्यावहारिक स्तर पर सभी के मेलजोल और सहयोग की भावना रखें।

दूसरी बात - सीधा बोलना। आम जिंदगी में अक्सर लोग सीधा बोलने और कटु बोलने के बीच की महीन रेखा को समझने में चूक कर जाते हैं। इसका परिणाम कई मौकों पर संबंधों की खटास के रुप में सामने आता है। असल में सीधे बोलने का मतलब यही होता है कि आप अपनी बात बुद्धि और तर्क के साथ इस तरह रखें कि किसी भी विषय पर आपका पक्ष साफ और स्पष्ट रहे। न आप और न सुनने वाला भ्रम या उलझन की स्थिति में ही न रहे। आपकी सीधी बात में इतना खुलापन हो कि दिल और रिश्तों के दरवाजे खुले रहें।

तीसरी बात- सीधे बैठना। यह बात सुनने में बहुत सामान्य सी लगती है, किंतु दैनिक जीवन में इसी क्रिया में चूक अनेक शारीरिक कष्टों का कारण बन जाता है। धर्म के नजरिए से पंचतत्वों से बना मानव शरीर पुरूषार्थ को पाने का माध्यम है। इसके लिए शरीर का निरोगी होने आवश्यक है। मानव शरीर के स्वास्थ्य में रीढ़ की हड्डी का बहुत योगदान होता है। क्योंकि रीढ़ न केवल शरीर को संतुलित करती है, बल्कि इसके साथ जुड़ा तंत्रिका तंत्र दिमाग का शरीर के बाकी अंगों से संबंध जोडऩे के साथ ही नियंत्रण भी करता है। इसलिए सीधे बैठकर रीढ़ के स्वास्थ्य के साथ शरीर भी स्वस्थ रखा जा सकता है।

इस तरह का सीधापन जिंदगी को सही दिशा देता है। लेकिन इस सीधेपन के साथ लचीलापन भी रखें। वरना जरूरत से अधिक सीधा होना अकड़ में तब्दील हो जाता है और ऐसी अकड़ जिंदगी, पीठ और चेहरे का रूप-रंग बदल सकती है।

पाना है ऊंचा मक़ाम तो हर रोज हो माता-पिता, गुरु से ऐसा व्यवहार
हिन्दू धर्म ग्रंथ श्री रामचरितमानस में व्यावहारिक जीवन के लिए यही संदेश छुपा है कि मर्यादाओं के पालन से साधारण इंसान भी समाज में ऊंचा दर्जा पा सकता है। सरल शब्दों में कहें तो यह आम जन को जीने के सलीके सिखाता है। स्वयं भगवान द्वारा अवतरित होकर मानव योनि में जन्म लेना और मानव जीवन की महत्ता और श्रेष्ठता को स्थापित करना भी इस ग्रंथ के प्रति गहरी आस्था और श्रद्धा का कारण है।

आज, जबकि यह देखा जाता है कि जरूरतों, सुविधाओं की पूर्ति या मान-सम्मान के मसले पर दो पीढिय़ों के वैचारिक मतभेद या यूं कहें कि माता-पिता और संतान में भी टकराव के हालात पैदा हो रहे हैं। जिससे बनी संवादहीनता की स्थिति रिश्तों में दूरियां और अलगाव पैदा कर दु:खों का सिलसिला शुरू कर देती है। रामचरित मानस में ऐसी ही समस्याओं को दूर करने के सूत्र बताए गए हैं। राम और मानस की गहराई में उतरकर जानते हैं कुछ ऐसे ही सूत्र -

रामचरित मानस में चौपाई है -

प्रात:काल उठि कै रघुनाथ। मात-पिता-गुरु नावइं माथा।।

इस चौपाई के माध्यम से भगवान राम की माता-पिता और गुरु के लिए गहरी आस्था और सम्मान का भाव बताया गया। किंतु इसके पीछे व्यक्तित्व और चरित्र विकास का सूत्र है। जिससे माता-पिता से ही नहीं आपके प्रेरक, मार्गदर्शक से भी गहरे और मधुर संबंध ताउम्र रखे जा सकते हैं।

इस चौपाई का माता-पिता और गुरु को प्रणाम करने की परंपरा निभाना मात्र ही अर्थ नहीं है। बल्कि मूल भाव यह है कि आप हमेशा ही माता-पिता और गुरु (जिससे आपने कुछ सीखा या ज्ञान लिया हो) के लिए पूरा सम्मान, प्रेम और भरोसा रखें। जिससे उनका आपके प्रति विश्वास और उम्मीदें बनी रहेगी। जिससे उनके चेहरे, नजरों और शब्दों में पैदा हुए खुशी और आत्मीयता के भाव हर स्थिति में खासतौर पर मुश्किल हालातों में आपका संबल बनेंगे।

माता-पिता के लिए ऐसी भावना और मधुर रिश्ते आपके आत्मविश्वास को जिंदा रखेंगे। जिससे आप खुले दिल और जोश के साथ जिंदग़ी के हर इम्तिहान में सफल होंगे। आपका चरित्र और व्यक्तित्व दिन-ब-दिन बेहतर होगा।


यीशु के जन्म की खुशियां मनाने का त्योहार है क्रिसमस

क्रिसमस ईसाई धर्म का सबसे बड़ा त्योहार है। यह पर्व प्रभु यीशु के जन्म उत्सव के रूप में 25 से 31 दिसंबर तक मनाया जाता है, जो 24 दिसंबर की मध्यरात्रि से ही आरंभ हो जाता है। क्रिसमस शब्द का जन्म क्राईस्टेस माइसे अथवा क्राइस्टस् मास शब्द से हुआ माना जाता है।

24 दिसंबर की रात से ही नवयुवकों की टोली जिन्हें कैरल्स कहा जाता है, यीशु मसीह के जन्म से संबंधित गीतों को प्रत्येक मसीही के घर में जाकर गाते हैं।

इसी रात को गिरिजाघरों में प्रभु यीशु के जन्म से संबंधित झांकियां भी सजाई जाती है। इस अवसर पर ईसाई धर्मावलंबी बड़ी संख्या में गिरजाघरों में एकत्रित होकर एक-दूसरे को प्रभु के जन्म की बधाई देते हैं। 25 दिसंबर की सुबह गिरजाघरों में विशेष आराधना होती है, जिसे क्रिसमस सर्विस कहा जाता है। इस आराधना में ईसाई धर्मगुरु यीशु के जीवन से संबंधित प्रवचन कहते हैं। आराधना के बाद सभी लोग एक-दूसरे को क्रिसमस की बधाई देते हैं।

दुनिया को प्रेम का संदेश देता है क्रिसमस
क्रिसमस ईसाई समुदाय के लोगों का महापर्व है। यह पर्व हर वर्ष 25 दिसम्बर को मनाया जाता है। ईसाई धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन ईसा मसीह का जन्म हुआ था। ईसाई समुदाय के लोग ईसा मसीह की शिक्षा को ही अपने धर्म का मूल आधार मानाते हैं। ईसा मसीह को जीसस क्राइस्ट भी कहते हैं।

ईसाई मानते हैं की ईश्वर ने इस संसार की रचना की है तथा अपने दूतों के माध्यम से लोगों को संदेश देते हैं। ईश्वर के पुत्र जीसस इस धरती पर लोगों को जीवन की शिक्षा देने के लिये आये थे। जीसस ने कहा था कि ईश्वर सभी व्यक्तियों से प्यार करते हैं तथा हमें प्रेम को जीवन में अपनाकर ईश्वर की सेवा करनी चाहिए।

ईश्वर की सेवा का सबसे उत्तम मार्ग दीन-दुखियों की सेवा करना है। क्रिसमस का त्योहार सभी लोगों को भाईचारा, मानवता व परोपकार का पावन संदेश देता है। यह उत्सव सुख, शांति व समृद्धि का सूचक है।

जानें, यीशु की वह 1 बात! जिससे अधूरा नहीं रहता कोई काम या सपना
क्रिसमस का दिन ईसा मसीह के जन्म की शुभ घड़ी मानी जाती है। यह घड़ी उत्साह, उमंग, उल्लास, स्नेह से भरपूर होती है। इस दिन क्रिसमस ट्री के दमकते सितारे हो या सेंटा क्लॉज के उपहार उम्मीदों की रोशनी से जीवन की राह आसान बनाने वाले होते हैं।

जीवन के सकारात्मक पक्ष से जोडऩे वाली इन सभी भावनाओं के उजागर होने के पीछे मन का ही एक भाव अहम होता है। यह भाव है - क्षमा। प्रभु ईसा ने इसी भाव को न केवल उपदेशों द्वारा बल्कि स्वभाव, व्यवहार में अपनाकर वास्तविक सुख व शांति पाने का श्रेष्ठ व अहम सूत्र बताया।

दरअसल, व्यावहारिक रूप से क्षमा भाव तभी संभव होता है, जब मन, वचन, विचार या स्वभाव में प्रेम का भाव समाया हो। जिसके लिये भी सत्य से जुडऩा जरूरी है। प्रभु यीशु के द्वारा जीवन को खुशहाल बनाने के लिये दी गई ऐसी ही एक सीख में इंसान या ईश्वर से रिश्ता बनाने में क्षमा के साथ प्रेम और सत्य की अहमियत भी उजागर होती है।

जीसस के उपदेशों के एक बेहतरीन ग्रंथ सर्मन आन दी माऊण्ट में क्षमा कहा गया है कि -

अगर तू ईश्वर के सामने अर्पण हेतु कुछ लाता है और वहां पर तुझे अपने भाई से विरोध और वैमनस्यता का स्मरण होता है तो तू वापस लौट जा और पहले अपने भाई से विरोध समाप्त कर ले, घृणा समाप्त कर ले, वैमनस्यता कर ले, क्षमा करना सीख ले और जब ऐसा कर सके तब ईश्वर के समक्ष आ, तभी तेरा अर्पण ईश्वर को स्वीकार होगा।

इस बात से साफ है कि जीवन में किसी भी लक्ष्य या सपना को पूरा करने के लिए क्षमा भाव से मन को नियंत्रित रखें। मन में दूसरों के प्रति दुर्भावना या कटुता को बिल्कुल जगह न दें। संबंधों को विनम्रता और क्षमाशीलता द्वारा सहज, सरल और सुगम बनाये रखें। जिससे मन स्वस्थ रहेगा और सुख, सफलता व शांति की आस पूरी होगी। इसलिये ईसा को याद कर बस, क्षमा करना सीखें।

हिमालय में नजर आए वह दिव्य पुरुष थे ईसा मसीह..!
ईसाई धर्म के पवित्र ग्रंथ बाइबल के मुताबिक प्रेम ही ईश्वर का स्वरूप है। प्रभु यीशु भी प्रेम की साक्षात् मूर्ति माने जाते हैं। प्रभु यीशु का यही सबक था कि शांति व हर प्राणी में बसे प्रेम रूपी इसी ईश्वर से जुड़े बिना किसी भी धर्म का पालन करना संभव नहीं। उनका जन्मदिवस क्रिसमस डे भी प्रेम और शांति का ऐसा ही पैगाम लेकर आता है।

प्रभु यीशु यानी ईसा मसीह द्वारा सिखाए गए मानव धर्म और प्रेम के संदेशों से जुड़ा प्रसंग हिन्दू धर्मग्रंथों में भी मिलता है। जिसके मुताबिक ईसा मसीह हिमालय के शिखरों पर दिखाई दिए व धर्म व प्रेम से जुड़ी बातों को उजागर किया।

जी हां, हिन्दू धर्मग्रंथ भविष्य पुराण की कथा के मुताबिक प्रतापी राजा विक्रमादित्य के बाद जब बाहरी शासक हिमालय के रास्ते भारत में आकर आर्य संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट करने लगे। उस वक्त विक्रमादित्य के पौत्र शालिवाहन ने उनको पराजित किया। साथ ही रोम, कामरूप आदि देशों के अत्याचारियों को पकड़ दण्डित भी किया। राजा ने ऐसे दुराचारियों यानी म्लेच्छों के लिये सिन्धु नदी के उस पार का क्षेत्र नियत किया। वहीं, आर्यों के लिये सिंधु प्रदेश।

इसी दौरान एक बार जब राजा शालिवाहन हिमालय क्षेत्र में पहुंचे तो वहां उन्हें एक गोरा, सुन्दर, सफेद वस्त्र पहनें दिव्य पुरुष दिखाई दिया। उनसे परिचय पूछने पर उन्होंने स्वयं को ईश्वर का पुत्र बताया। साथ ही बताया कि वह कुंवारी मां के गर्भ से जन्मे धर्म प्रचारक व सत्य व्रत का पालन करने वाले हैं।

राजा द्वारा उनका धर्म पूछने पर ईशपुत्र ने बताया कि मैं म्लेच्छ प्रदेश में सत्य व मर्यादा का नाश हो जाने से धर्म स्थापना के लिए आया हूं। यही नहीं, उस दिव्यात्मा ने धर्म पालन के लिए मन और तन की मलीनता को दूर करने, सत्य व न्याय को अपनाने व ईश्वर प्रेम को जरूरी बताया।

इस पौराणिक कथा के मुताबिक धर्म, सत्य और प्रेम से भरे आचरण से ही उस दिव्य पुरुष के हृदय में ईश्वर का वास हुआ। जिससे वह ईसा मसीह के रूप में प्रसिद्ध हुए। राजा शालिवाहन ने धर्म संदेश सुन उनको प्रणाम किया, म्लेच्छों के कल्याण के लिए स्थान बताया और अपने राज्य में आकर अश्वमेध यज्ञ किया।

जानें कि कौन-से 4 अचूक मंत्रों से फौरन होती है शनि कृपा?
शास्त्रों में शनि की विपरीत दशा में पीड़ा और मृत्यु भय मिटाकर स्वास्थ्य, धन, अन्न, विद्या, बल और पराक्रम देने वाले कुछ मंत्र विशेष का विधान बताया गया है। यह मंत्र व्रती को मोक्ष देने वाले भी माने गये हैं।

इन मंत्रों में महामृत्युंजय मंत्र, शनि वैदिक मंत्र और शनि का पौराणिक मंत्र प्रमुख है। जिनकी अलग-अलग जप संख्या नियत है।

महामृत्युंजय मंत्र - इस मंत्र का पाठ सवा लाख जप शनि अमावस्या, शनिवार, शनि जयंती या शनि की दशा में शुरू करने चाहिए। यह मंत्र पूर्ण विधि-विधान से करना चाहिए। जो किसी कर्मकांडी ब्राह्मण से भी कराया जा सकता है। यह मंत्र प्रतिदिन 10 माला के हिसाब से 125 दिन तक करने से शनि ग्रह दोष से शांति मिलती है।

ॐ त्र्यंम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्धनम् ।

उर्वारुकमिव बन्धनान्म्त्योर्मुक्षीय याऽमृतात ।।

शनि का पौराणिक मंत्र - इन मंत्रों का 21 दिन में 23000 जप करने का विधान है।

ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।

बस, रोज करें ये 5 काम..तो शनि भी संवार देगें पूरा जीवन
शनि न्यायाधीश माने जाते हैं। शास्त्रों के मुताबिक शनि का न्याय शनि की ढैय्या, साढ़े साती या महादशा में सौभाग्य या दुर्भाग्य के रूप में मिलता है, जो कि शनि द्वारा प्राणियों के पाप-पुण्य कर्मों के आधार पर तय होता है। इस तरह देखा जाए तो सद्कर्म व अच्छे विचार ही जीवन में सुख-सौभाग्य की बुनियाद है।

यही कारण है कि शास्त्रों में भी शनि भक्ति व पाठ-पूजा के शुभ फल पाने के लिए दैनिक जीवन में खासतौर पर बोल, व्यवहार और कर्म में 5 अच्छी बातों को अपनाना भी जरूरी बताया गया है। धर्मशास्त्रों के नजरिए से भी ये बातें हर इंसान का जीवन सफल बनाती हैं। माना जाता है कि ऐसे व्यक्ति का जीवन शनि बिना धार्मिक कर्मकांड या उपासना के भी संवार देते हैं।

जानते हैं शनि कृपा के लिए दैनिक जीवन में धर्म पालन से जुड़ी ये खास 5 बातें -

परोपकार - दूसरों पर दया खासतौर पर गरीब, कमजोर को अन्न, धन या वस्त्र दान या शारीरिक रोग व पीड़ा को दूर करने में सहायता शनि की अपार कृपा देने वाला होता है। क्योंकि परोपकार धर्म का अहम अंग है।

दान - अहं व विकारों से मुक्त इंसान से शनि प्रसन्न होते हैं। जिसके लिये दान का महत्व बताया गया है। दान उदार बनाकर घमण्ड को भी दूर रखता है। इसलिए यथाशक्ति शनि से जुड़ी सामग्रियों या किसी भी रूप में दान धर्म का पालन करें।सेवा - हमेशा माता-पिता या बड़ों का सम्मान व सेवा करने वाले पर शनि की अपार कृपा होती है। क्योंकि मान्यता है कि शनिदेव जरावस्था या बुढ़ापें के स्वामी है। इसलिए इसके विपरीत वृद्ध माता-पिता या बुजुर्गों को दु:खी करने वाला शनि के कोप से बहुत पीड़ा पाता है।

सहिष्णुता - शनि का स्वरूप विकराल है। वहीं शनि को कसैले या कड़वे पदार्थ जैसे सरसों का तेल आदि भी प्रिय माना गया है। किंतु इसके पीछे भी सूत्र यही है कि कटुता चाहे वह वचन या व्यवहार की हो, से दूर रहें व दूसरों के ऐसे ही बोल व बर्ताव को द्वेषता में न बदलें यानी सहनशील बनें।

क्रोध का त्याग - शनि का स्वभाव क्रूर माना गया है, किंतु वह बुराईयों को दण्डित करने के लिए है। इसलिए शनि कृपा पाने व कोप से बचने के लिए क्रोध जैसे विकार से दूर रहना ही उचित माना गया है।


छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ।।

शनि का वैदिक मंत्र - इन मंत्रों की सुबह-शाम दो माला करने से शनि की प्रसन्नता और कृपा प्राप्त होती है।

ॐ शत्रोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शंयोरभिस्र वन्तु न:।

शनि ग्रह पीड़ा नाशक मंत्र - ॐ शं शनैश्चराय नम:।

जानें, कैसी है शिव के 11 रुद्रों की अद्भुत शक्ति?
वेदों का ज्ञान कुदरत के कण-कण में शिव के अनेक रूपों का दर्शन कराता है। इन रूपों में ही एक हैं - रुद्र। रुद्र का शाब्दिक अर्थ होता है - रुत यानी दु:खों को अंत करने वाला। यही कारण है कि शिव को दु:खों का नाश करने वाले देवता के रुप में पूजा जाता है। शास्त्रों के मुताबिक शिव ग्यारह अलग-अलग रुद्र रूपों में दु:खों का नाश करते हैं। यह ग्यारह रूप एकादश रुद्र के नाम से जाने जाते हैं।

व्यावहारिक जीवन में भी कोई दु:खों को तभी भोगता है, जब तन, मन या कर्म किसी न किसी रूप में अपवित्र होते हैं। इसी कारण धर्म और आध्यात्म के धरातल पर दस इन्द्रियों और मन को मिलाकर ग्यारह यानी एकादश रुद्र माने गए है। जिनमें शुभ भाव और ऊर्जा का होना ही शिवत्व को पाने के समान है। शिव के रुद्र रूप की आराधना का महत्व यही है कि इससे व्यक्ति का चित्त पवित्र रहता है और वह ऐसे कर्म और विचारों से दूर होता है, जो मन में बुरे भाव पैदा करे। जानते हैं ऐसे ही ग्यारह रूद्र रूपों को–

शम्भू - शास्त्रों के मुताबिक यह रुद्र रूप साक्षात ब्रह्म है। इस रूप में ही वह जगत की रचना, पालन और संहार करते हैं।

पिनाकी - ज्ञान शक्ति रूपी चारों वेदों के स्वरूप माने जाने वाले पिनाकी रुद्र दु:खों का अंत करते हैं।

गिरीश - कैलाशवासी होने से रुद्र का तीसरा रुप गिरीश कहलाता है। इस रुप में रुद्र सुख और आनंद देने वाले माने गए हैं।

स्थाणु - समाधि, तप और आत्मलीन होने से रुद्र का चौथा अवतार स्थाणु कहलाता है। इस रुप में पार्वती रूप शक्ति बाएं भाग में विराजित होती है।

भर्ग - भगवान रुद्र का यह रुप बहुत तेजोमयी है। इस रुप में रुद्र हर भय और पीड़ा का नाश करने वाले होते हैं।

भव - रुद्र का भव रुप ज्ञान बल, योग बल और भगवत प्रेम के रुप में सुख देने वाला माना जाता है।

सदाशिव - रुद्र का यह स्वरुप निराकार ब्रह्म का साकार रूप माना जाता है। जो सभी वैभव, सुख और आनंद देने वाला माना जाता है।

शिव - यह रुद्र रूप अंतहीन सुख देने वाला यानी कल्याण करने वाला माना जाता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए शिव आराधना महत्वपूर्ण मानी जाती है।

हर - इस रुप में नाग धारण करने वाले रुद्र शारीरिक, मानसिक और सांसारिक दु:खों को हर लेते हैं। नाग रूपी काल पर इन का नियंत्रण होता है।

शर्व - काल को भी काबू में रखने वाला यह रुद्र रूप शर्व कहलाता है।

कपाली - कपाल रखने के कारण रुद्र का यह रूप कपाली कहलाता है। इस रुप में ही दक्ष का दंभ नष्ट किया। किंतु प्राणीमात्र के लिए रुद्र का यही रूप समस्त सुख देने वाला माना जाता है।

शरीर और दिमाग को शांत और खुश रखता है गीता का यह सटीक उपाय
इच्छाओं और जरूरतों को पूरा करने की आपाधापी में आज की व्यस्त दिनचर्या और तेज जीवनशैली अनचाहे तनाव व दबाव का कारण बनती है। हर व्यक्ति मानसिक बेचैनी में डूबा होता है, किंतु सतही तौर पर वह सामान्य दिखाई देता है। कभी-कभी व्यग्रता इतनी बढ़ जाती है कि वह गुस्से या हिंसा के रूप में बाहर निकलती है, लेकिन बात में पछतावा देती है।

धर्मशास्त्रों में ऐसे ही मानसिक असंतुलन से बचने का बेहतर उपाय है- ध्यान। सरल शब्दों में ध्यान का मतलब होता है कि मन को साधना यानी मन को चिंताओं, बेचैनी और बुरे विचारों से हटाकर सकारात्मक सोच पर केन्द्रित या एकाग्र करना। विचारों की गति पर नियंत्रण और संयम से दिल-दिमाग को सुकून पहुंचाने का अभ्यास भी ध्यान है।

हिन्दू धर्मशास्त्र श्रीमद्भगवदगीता में मन के संयम से सुख-सुकून पाने के लिए ही ध्यान की अहमियत बताई गई है। जिसमें लिखा गया है -

वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता

इसमें व्यावहारिक जीवन के लिए संकेत यही है कि मन को काबू करने से ही सभी इन्द्रियां भी नियंत्रित हो जाती है, जिससे बुद्धि और विवेक को भी सही दिशा मिलती है। इस तरह मन पर वश होने पर दुनिया भी वश में हो सकता है। ऐसा करने के लिए ध्यान ही श्रेष्ठ उपाय है। इस तरह अध्यात्मिक और धार्मिक की दृष्टि से ध्यान से आत्मिक लाभ मिलता है यानी यह सोई हुई शक्तियों को जगाता है और ईश्वरीय सत्ता को महसूस कराता है। वहीं व्यावहारिक जीवन के नजरिए से ध्यान मन की प्रसन्नता, एकाग्रता, मानसिक ऊर्जा और स्फूर्ति देता है। इसका फायदा यह होता है कि हम बेहतर तरीके से काम को अंजाम देते हैं। जिसके कामयाबी के रूप में सुखद नतीजे मिलते हैं। कामयाबी हर भौतिक सुख की राह आसान बनाती है।

नववर्ष में साधें ये 5 लक्ष्य तो साल ही नहीं जीवन हो जाएगा सफल
हिन्दी हो या अंग्रेजी नव वर्ष, यह नया दिन, नई उम्मीदें, नए सपनें, नई सोच के साथ सब कुछ नया और ताजगी लेकर आता है। ऐसे सुखद माहौल में शारीरिक, मानसिक और वैचारिक रूप से तरोताजा होकर नए साल की पहली सुबह की ऐसी शुभ शुरुआत होनी चाहिए कि सुख की कामना की जाने वाली हर कोशिश कामयाबी की नई बुलंदियों तक पहुंचा दे?

ऐसी ही ऊंचाईयों को पाने के लिए संकल्प शक्ति का अहम मानी जाती है। नववर्ष का आगाज़ नए संकल्पों के साथ करना आने वाले कल को बेहतर बना सकता है। किंतु ऐसे कौन से संकल्प हो सकते हैं, जो साल-दर-साल जिंदग़ी को बेहतर बनाए? जानते हैं -

शास्त्रों के नजरिए से इंसानी जिंदग़ी को बेहतर बनाने वाली अनेक बातों में से खासतौर पर 5 बातें बेहद अहम हैं। जिनको पांच तरह की संपत्ति भी कहा गया है। इन संपत्तियों को बंटोरने का संकल्प ही हर व्यक्ति को जीवनभर यश व सफलता देगा। ये पांच संपत्तियां हैं -

- स्वास्थ्य,

- धन,

- विद्या,

- चतुरता व,

- सहयोग

जानें, कैसे पूरा साल सफल बनाएगा निरोगी काया का संकल्प?
कहा गया है कि पहला सुख निरोगी काया यानी सुखी जीवन के लिए सबसे जरूरी है- सेहतमंद होना। कमजोर, रोगी, सौंदर्यहीन तन आपकी खुशियों और कामयाबी में रोड़ा बन जाता है। खासतौर पर युवावस्था तो शरीर को हष्ट-पुष्ट रखने और दीर्घायु बनने का अहम पड़ाव है। इस संबंध में शास्त्रों में लिखा भी गया है कि -

यावत्स्वस्थमिदं कलेवर गृहं यावज्जरा दूरत:

यावच्चेन्द्रिय शक्तिरप्रतिहता यावत्क्षयो नायुष: ।

आत्मश्रेयसि तावदेव विदुषा कार्य: प्रयत्नो महान्

संदीप्ते भवने तु कूपखननं प्रत्युद्यम: कीदृश: ॥

अर्थ है कि जब तक घर रूपी तन अच्छी स्थिति यानी स्वस्थ है, बुढ़ापा दूर हो, इंद्रिय बल कमजोर न हो, स्वास्थ व आयु की हानि न हो, तब तक बुद्धिमान व ज्ञानी व्यक्ति को बेहतर जीवन के लिए हर प्रयास करते रहना चाहिए। वक्त निकलने पर सारी कोशिशें घर में आग लगने पर कुआं खोदने की तरह बेमानी हैं।

सरल शब्दों में कहें तो बेहतर स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि जीवनशैली और दिनचर्या को नियमित और अनुशासित रखें। व्यर्थ के शौक या मौज की मानसिकता शारीरिक और मानसिक बल को नष्ट करती है।

इस तरह शक्ति का दुरुपयोग और समय गंवाना शरीर और मन को रोगी बना सकता है। इसलिए नव वर्ष में ऐसी बातों और आचरण से बचने और अच्छे स्वास्थ्य का संकल्प लें। तभी आप व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में अच्छे नतीजे पाएंगे।

जानें, नए साल में खूब धन कमाने का क्यों और कैसा लें संकल्प?
शास्त्रों की सीखों को सामने रख सुखी जीवन की चाह से नए साल में लिये जाने वाले संकल्पों की कड़ी में बेहतर सेहत के साथ ही धन अर्जन यानी पैसा कमाने का संकल्प भी अहम माना गया है। इसलिए जानते हैं नववर्ष में क्यों और कैसा धन कमाने का संकल्प जीवन के लिये सार्थक हो सकता है?

दरअसल, शास्त्रों के नजरिए से भी धन जीवन के लिए नियत चार पुरुषार्थों में एक है, जो यह सिखाता है कि व्यावहारिक रूप से जरूरतों और जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए धन की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। ऐसा धन पाने के लिए जरूरी है कर्म या परिश्रम की मानसिकता। निष्क्रिय व आलस्य से भरा जीवन मात्र दरिद्रता लाता है, जो दु:खों का कारण बनता है। इस संबंध में शास्त्रों में लिखा भी गया है कि -

मित्राण्यमित्रतां यान्ति यस्य न स्यु: कपर्दका:।

सरल शब्दों में अर्थ है कि जिनके पास धन न हो उसके मित्र भी दूर होने लगते हैं।

यही कारण है कि अगर कोई व्यक्ति धन के अभाव में उपेक्षा भरे जीवन से दूर होना चाहता है, तो वह नए वर्ष में मेहनत और कर्मठता के साथ जरूरतों की पूर्ति और कर्तव्यों को पूरा करने के लिए पैसा कमाने का सुखद संकल्प लें।

पौराणिक मान्यताओं पर भी गौर करें तो आनंद स्वरूप भगवान विष्णु की पत्नी महालक्ष्मी को ऐश्वर्य और वैभव की देवी बताया गया है। प्रतीक रूप में संकेत है कि वैभव, ऐश्वर्य के साथ आनंद और सुख का अटूट रिश्ता है, जो यह भी सिखाता है कि प्राप्त धन का वास्तविक आनंद तभी प्राप्त होता है, जब वह ईमान और अच्छे कामों से कमाया जाए।

प्रेम सच्चा है या दिखावा! बताती हैं ये 4 बातें
प्रेम केवल मानव ही नहीं महसूस करता बल्कि प्रेम की अनुभूति कुदरत की हर रचना में अलग-अलग रूपों में उजागर होती है। इसलिए हर धर्म में प्रेम को ईश्वर से साक्षात्कार के लिए अहम माना गया है। व्यावहारिक नजरिए से भी प्रेम ऐसा जीवन मूल्य है़, जो सच, भलाई, सेवा, त्याग की तरह जिंदगी में वास्तविक सुखों को पाने के लिए बहुत जरूरी है। असल में प्रेम ऐसा अहसास है जिसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता है, क्योंकि यह कोई सोच नहीं है। अलग-अलग व्यक्ति में और उम्र के हर पड़ाव पर प्रेम का अहसास भी अलग-अलग होता है। सरल शब्दों में कहें तो यह कहा जा सकता है कि प्रेम करने वाले या प्रेम पाने वाले दोनों आत्मा में सुकून पाते हैं। यहां जानते हैं धर्मशास्त्रों के नजरिए से जीवन में प्रेम किन-किन रूपों में प्रकट होता है -

लौकिक प्रेम - प्रेम का यह रूप साधारण मानव की जिंदगी में दिखाई देता है। जहां मानव का दौलत, प्रतिष्ठा, सौंदर्य, स्वाद के प्रति आसक्ति या लगाव के रूप में प्रेम दिखाई देता है। यह लौकिक प्रेम कहलाता है। इसमें कई अवसरों पर मानव हित और स्वार्थ के चलते भी संबंध बनाता है। जिसे स्वार्थ पर आधारित प्रेम कहते हैं।

अलौकिक प्रेम - अध्यात्म में डूबकर ईश्वरीय सत्ता पर भरोसा, पूरी प्रकृति को ईश्वर की रचना मान प्रेम, ईश्वर को जेहन में रख आदर्श और मर्यादा पालन अलौकिक प्रेम कहलाता है।

मोहजन्य प्रेम - माता-पिता और संतान, पति-पत्नी या अन्य मानवीय रिश्तें में एक-दूसरे से लिए प्रेम मोहजन्य प्रेम कहलाता है।

नि:स्वार्थ प्रेम - प्रेम का यह रूप सेवा भावना में दिखाई देता है। जिसमें व्यक्ति कुछ देने के बदले लेने का भाव नहीं रखता। बिना किसी हितपूर्ति के वह समर्पण भाव से दूसरों के लिए हरसंभव मदद करता है। ऐसा प्रेम पावन-पवित्र और श्रेष्ठ माना जाता है। क्योंकि यह प्रेम करने और पाने वाले दोनों को आत्मिक सुख देता है।

नए साल में संवारना है भविष्य तो अपनाएं ये गुण...
शास्त्र कहते हैं कि विद्या यानी हर तरह से ज्ञान और दक्षता को पाना, हर इंसान के सफल जीवन के लिये निर्णायक साबित होता है। व्यावहारिक रूप से विद्या पाने का मतलब मात्र किताबी ज्ञान ही नहीं, बल्कि तन, मन, विचार और व्यवहार से संपूर्ण व कुशल बन जाने से हैं।

असल में विद्या बुद्धि, चरित्र और व्यक्तित्व को संवारती है। यही कारण है कि अच्छे भविष्य की चाहत के लिये नए साल में विद्यावान यानी अधिक से अधिक ज्ञान और कला को पाने का संकल्प उठाने का महत्व शास्त्र में बताई यह बात भी उजागर करती है -

विदेशेषु धनं विद्या व्यसनेषु धनं मति:।

परलोके धनं धर्म: शीलं सर्वत्र वै धनम्।।

इसमें सरल शब्दों में सीख है कि स्वदेश से बाहर विद्या संपत्ति के समान है। दुर्भाग्य या बुरे हालात में बुद्धिमानी ही धन है। परलोक में धर्म या नैतिक मूल्य धन के समान है। किंतु अच्छा चरित्र तो हर स्थिति में धन के समान है, जो विद्या और ज्ञान से पावन बना रहता है।

इस तरह साफ है कि ज्ञान व्यक्ति को दूरदर्शी, बुद्धिमान, विवेकवान बनाकर जीवन से जुड़े अहम फैसले लेने में मददगार साबित होता है। विद्या व्यक्ति को गुणी, अहंकाररहित और विनम्र बना देती है, जिनसे व्यक्ति धर्म और कर्म के माध्यम से सभी सुख प्राप्त करने लायक बनता है। इसलिए नववर्ष में ध्यान रहे कि असफलता से बचने के लिए विद्या और ज्ञान को ही ढाल बनाएं।

रखें इन 5 अंगों का ऐसा ख़्याल..तो साल क्या, आजीवन पाएंगे भरपूर सुख...
हर धर्म में सुखी जिंदगी के लिए संयम की अहमियत बताई गई है। खासतौर पर अक्सर धर्म उपदेशों और प्रवचनों में इन्द्रिय सुखों और संयम के बारे में सुना या पढ़ा जाता है। दरअसल, संयम का सरल अर्थ मन को काबू करने से होता है। मन का संबंध इंद्रियों से होता है। इसलिए जैसी मनोदशा होती है, बाहरी तौर पर इंद्रियों पर भी वैसा ही असर दिखाई देता है।

शास्त्रों में लिखा भी गया है कि -

इन्द्रियान्येव संयम्य तपो भवति नाऽन्यथा ।

यानी इन्द्रिय संयम से ही तप संभव है, किसी अन्य तरीके से नहीं

मानव शरीर में भी पांच ज्ञानेन्द्रियां हैं। यह हैं - आंख, कान, नाक, जीभ और त्वचा। इनसे ही कोई व्यक्ति सौंदर्य, रस, गंध, स्पर्श, स्वाद महसूस करता है। इन इन्द्रियों पर भी व्यक्ति का जीवन, चरित्र और व्यक्तित्व का विकास निर्भर होता है। इसलिए हर इंसान के लिए जरूरी है कि बाहरी तौर पर भी इंद्रियों की क्रियाओं पर नियंत्रण रखें।

यहां जानते हैं इंद्रियों को वश में रखने व बुरे प्रभाव बचाने के सरल तरीके-

आंख - इनका उपयोग सुंदर ओर मनोरम दृश्यों को देखने में करें। थकान से बचाएं और उचित आराम दें।

जीभ - इसका उपयोग मात्र स्वाद के लिए ही नहीं, बल्कि इससे मधुर वाणी और सच बोलने का भी अभ्यास करें।

कान - बुरी बातों को सुनने से बचें।

नाक - इस पर गंध ही नहीं सांस भी निर्भर है, जो जिंदगी के लिए जरूरी है। इसलिए जहां तक संभव हो साफ वातावरण को महत्व दें। प्राणायम करें।

त्वचा - यह मात्र वस्तुओं का नहीं भावनाओं के अहसास का भी माध्यम है। इस पर सौंदर्य भी निर्भर करता है। इसलिए इसकी सुरक्षा और स्वच्छता का खास ध्यान रखें।

इस तरह इन पांच इंद्रियों के संयम पर ही शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक सुख टिके होते हैं। इसलिए लंबी, कामयाबी और सुखी जिंदगी के लिए थोड़ी देर मन पर काबू करने पर भी ध्यान लगाएं।

जब प्रलय आने वाला होगा तो ऐसे मिलेंगे इशारे...
महाभारत के अनुसार एक बार की बात है,युधिष्ठिर ने मार्कण्डेय मुनि से कहा कि आपने तो अनेक युगों के बाद प्रलय देखा है। आप सारी सृष्टी के कारण से संबंध रखने वाले हैं मैं आपसे प्रलय कथा सुनना चाहता हूं। तब मार्कण्डेयजी ने कहा ये जो हम लोगों के पास भगवान कृष्ण बैठे हैं ये ही समस्त सृष्टि का निर्माण और संहार करने वाले हैं। ये अनंत हैं इन्हें वेद भी नहीं जानते। जब चारों युगों की समाप्त हो जाते हैं। तब ब्रह्मा का एक दिन समाप्त हो जाता है।

यह सारा संसार ब्रह्म के दिनभर में रहता है। दिन समाप्त होते ही संसार नष्ट हो जाता है। जब सहस्त्र युग समाप्त हो जाते हैं तब सभी मनुष्य मिथ्यावादी हो जाते हैं। ब्राह्मण शुद्रों के कर्म करते हैं। शुद्र वैश्यों की भांति धन संग्रह करने लगते हैं या क्षत्रियों के कर्म से अपनी जीविका चलाने लगते हैं। शुद्र गायत्री जप को अपनाते हैं। इस तरह सब लोगों का व्यवहार विपरित हो जाता है। मनुष्य नाटे कद के होने लगते हैं। आयु, बल, वीर पराक्रम सब घटने लगता है। सभी लोगों की बातों में सच का अंश बहुत कम होने लगता है। उस समय स्त्रियां भी नाटे कद वाली और बहुत से बच्चे पैदा करने वाली होती हैं।

गांव-गांव में अन्न बिकने लगता है।ब्राह्मण वेद बेचने लगते हैं। वेश्यावृति बढऩे लगती है। वृक्षों पर फल-फूल बहुत कम लगते हैं। गृहस्थ अपने ऊपर भार पढऩे पर इधर-उधर से कर की चोरी करने लगते हैं। मदिरा पीते हैं और गुरुपत्नी के साथ व्याभिचार करते हैं। जिनसे शरीर में मांस व रक्त बढ़े उन लौकिक कार्यों को करते हैं। स्त्रियां पति को धोखा देकर नौकरों के साथ व्याभिचार करती हैं। वीर पुरुषों की स्त्रियां भी अपने स्वामी का परित्याग करके दूसरों का आश्रय लेती हैं। इस तरह सहस्त्र युग पूरे होने लगते हैं। इसके बाद सात सूर्यों का बहुत प्रचण्ड तेज बढ़ता है और प्रलय की शुरुआत होती है।

घर-परिवार पर चाहें लक्ष्मी कृपा तो न करें ये 4 काम
शास्त्रों में विद्या, धन, सुख और वैभव से संपन्न लक्ष्मी को 'श्री' कहा गया है। इसलिए सांसारिक जीवन में भी जब किसी स्थान या व्यक्ति के संग से किसी भी तरह का सुख या ज्ञान मिलता है तो उसे 'श्री' संपन्न कहकर भी पुकारा जाता है। इस तरह लक्ष्मी का श्री स्वरूप प्रेरणा यही देता है कि जहां ज्ञान रूपी प्रकाश होता है, वहां लक्ष्मी प्रसन्न होकर ठहरने पर विवश हो जाती है। संकेत है कि विद्वानता, बुद्धिमत्ता, पावनता से भरा आचरण ज्ञान, गुण व धन से समृद्ध होता है।

वहीं इसके विपरीत अज्ञान व दरिद्रता रूपी अंधेरा या कलह से लक्ष्मी दूरी बनाए रखती है। इस संबंध में शास्त्रों में कहा भी गया है कि- अर्थ है किसी भी रूप में दरिद्रता से सारे गुणों का अंत हो जाता है।

यही कारण है कि शास्त्रों में इंसान के लिए धर्म को व्यवहार में उतार दैनिक जीवन में कुछ ऐसे कामों से दूरी बनाए रखने की सीख दी गई है, जो तन, मन, विचार को दरिद्र बनाकर लक्ष्मी कृपा से वंचित रखतें है। जानिए 'श्री' संपन्न बनने के लिए किन 4 बातों से फासलें रखें -

माता-पिता या गुरु का अपमान - शास्त्रों में सेवा को ईश्वर पूजा की तरह माना गया है। जन्म देने वाले माता-पिता और ज्ञान देने वाले गुरु को भी ईश्वर का दर्जा दिया गया है। इसलिए इन तीनों की सेवा से मुंह मोडऩे या अपमान करने वाले पर लक्ष्मी कृपा नहीं होती।

आलस्य और अज्ञान - शास्त्रों में कर्म और ज्ञान ही तमाम सुखों का मूल माना गया है। लक्ष्मी भी ऐसे ही व्यक्ति पर प्रसन्न होती है जो परिश्रमी और सक्रिय होता है। न कि आलस्य से घिरा व ज्ञान, कर्म और पुरुषार्थ से दूर रहने वाले पर।

पराया धन और परस्त्री - लक्ष्मी हर तरह से पावनता का संग करती है। इसलिए चरित्र की पावनता बनाए रखने के लिए परायी स्त्री या दूसरों के कमाए धन पर कब्जा और चोरी करने से भी बचें।

इंद्रिय असंयम - इंद्रियों का असंयम अपवित्रता का कारण बनता है। जिससे लक्ष्मी रुष्ट होती है। सुबह सोते रहना, शाम के समय सहवास करना, भोजन में अपवित्रता जैसे खाना बनाते समय स्त्री द्वारा खा लेना, बार-बार भोजन करना या रजस्वला होने पर भी भोजन छूने जैसे काम लक्ष्मी कृपा से वंचित करते हैं।

इन तरीकों से बोली के साथ सूरत व सीरत भी बने आकर्षक व असरदार
शास्त्रों में मीठी वाणी भी सफल जीवन का अहम सूत्र बताई गई है। व्यावहारिक रूप से भी सोचें तो सुख, शांति और सुकूनभरे जीवन के लिए धन व साधन ही जरूरी नहीं, बल्कि अच्छे बोल के साथ व्यवहार की भी बड़ी अहमियत है। क्योंकि बोल के साथ बोलने का तरीका ही दूसरों के मन में आपकी पहली छबि बनाता है।

हिन्दू धर्मग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता में भी वाणी के तप के रूप में वाणी साधने का महत्व उजागर करते हुए लिखा गया है -

अनुद्बेगकरं वाकयं सत्यं प्रियहितं च यत् ।

स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ् मयं तप उच्यते।।

सरल अर्थ है कि कलह, पीड़ा न देने वाली वाणी, मीठे, हितकारी व सत्य वचन, स्वाध्याय या वेद-शास्त्र पढऩा और ईश्वर नाम लेना ये सभी वाणी का तप है। संकेत यही है कि मीठी वाणी के साथ सूरत और सीरत का जादू दूसरों पर तभी संभव है, जब बोलने का तरीका भी बेहतर व मर्यादित बनाया जाए।

जानिए शास्त्रों में बताए बोलचाल के ऐसे ही कुछ सही तरीके, जिनको अपनाकर कोई भी बातों से रुतबा बना सकता है -

- बोलें कम सुने ज्यादा यानी अपनी बात को कम शब्दों में सही ढंग से रखने का अभ्यास करें।

- साफ और संतुलित आवाज में आत्मविश्वास के साथ बोलें यानी न अधिक कम न अधिक ऊंची आवाज में बात करें।

- झूठ बोलने, तीखा बोलने से बचें। साथ ही बुराई या विरोधी बातें न करें।

- गुरु या बड़ों के सामने जानकार होने पर भी अहं रखकर विद्वानता न बताएं बल्कि उनके लिए सम्मान का भाव रखते हुए अपनी बात रखें।

- धर्म की नजर में जब दो व्यक्ति अकेले में बैठे बातें कर रहे हो, वहां जाना समझदारी नहीं बताया गया है।

- दो व्यक्तियों की बातचीत के दौरान अनावश्यक बोलना भी अनुचित है।

- बातचीत के दौरान अकेले ही न बोलते रहें, बल्कि दूसरों को भी बोलने का मौका दें।

- किसी व्यक्ति को पद और रिश्तों की मर्यादा के अनुसार संबोधित करें।

- बातों ही बातों में किसी को ताना न मारें या ऐसी मजाक न करें जहां व्यक्तिगत् जीवन से जुड़े विषय की हंसी उड़ाई जाए और दूसरा व्यक्ति दु:खी हो।

- निंदा करने के लिए गुपचुप या इशारों में ऐसी बातें न करें, जो दूसरों को समझ न आए। इससे आपकी छबि नकारात्मक बनेगी।

- गैर जरूरी सवाल करना, चलती राह में अपरिचित से अनावश्यक बातें करना परेशानी का कारण बन सकता है।

- घर आए मेहमान या अतिथि को बैठाकर, जलपान करने के बाद ही बातचीत करना सभ्यता मानी जाती है।

- आधुनिक समय में एक-दूसरे को नाम से संबोधन प्रचलित है। किंतु हिन्दी भाषा में बड़ों को 'आप' और छोटी आयु के व्यक्ति को 'तुम' कहा जाता है।

- भाषा भेद होने पर ही दूसरी भाषा में बातचीत करना उचित होता है। किंतु बोली या भाषा जानने पर भी अन्य या अंग्रेजी भाषा में बात करना अनुचित और अभद्र माना जाता है।

इस तरह मीठे बोल के साथ बातचीत के इन तरीकों को व्यवहार में उतारने पर आपकी छबि भी उजली बन सकती है।

शिव पूरी करे श्रीकृष्ण की तरह इंसान की भी ये 16 इच्छाएं!
भक्ति प्रेम, समर्पण और त्याग का ही रूप है। धार्मिक आस्था है कि जब ऐसी भक्ति से ईश्वर को याद किया जाता है, तो ईश्वर भी उस प्रेम के वशीभूत हो दृश्य या अदृश्य रूप से भक्त पर कृपा करते हैं।

भक्ति से कामनापूर्ति की बात हो तो भगवान शिव की भक्ति सबसे आसान और जल्द मुरादें पूरी करने वाली मानी जाती है। इसलिए भगवान शिव को भक्त आशुतोष, ओढरदानी या भोलेनाथ भी पुकारते हैं। पौराणिक प्रसंग बताते हैं कि शिव भक्ति से दानव, मानव ही नहीं बल्कि देवताओं ने भी अपने मनोरथ पूरे किए।

इसी कड़ी में महाभारत के मुताबिक भगवान शिव ने स्वयं कहा है - श्री कृष्ण मेरी भक्ति करते हैं, इसलिए मुझे श्रीकृष्ण सबसे प्रिय है। भगवान श्रीकृष्ण ने शिव की उपासना शिव के हजार नामों के उच्चारण और बिल्वपत्रों को अर्पित कर सात माह तक कठोर तप के साथ की। महाभारत के अनुशासन पर्व में बताया गया है कि श्रीकृष्ण ने शिव की भक्ति से 16 कामनाओं को पूरा किया।

जानिए श्री कृष्ण की ही ये 16 मुरादें और इंसानी जीवन के नजरिए से इन इन इच्छाओं के मायने। जिनको हर इंसान शिव भक्ति द्वारा पूरा करने का प्रयास करें -

- धर्म में मेरी दृढ़ता रहे यानी सत्य, प्रेम परोपकार जैसा धर्म पालन।

- युद्ध में शत्रुघात यानी विरोधियों और जीवन के संघर्ष में विपरीत हालात पर काबू पा लेना।

- जगत में उत्तम यश यानी प्रसिद्धि, सम्मान,

- परम बल यानी हर तरह से शक्ति संपन्न

- योग बल यानी संयम और संतोष

- सर्व प्रियता यानी सबसे मधुर संबंध और व्यवहार

- शिव का सानिध्य यानी भगवान, धर्म और कर्म से जुड़े रहना।

- दस हजार पुत्र यानी संतान और कुटुंब सुख

- ब्राह्मणों में कोपाभाव यानी पवित्रता और शुचिता प्राप्त हो।

- पिता की प्रसन्नता यानी पिता का प्रेम और आशीर्वाद

- सैकड़ों पुत्र यानी दाम्पत्य सुख

- उत्कृष्ट वैभव योग यानी सुख-समृद्धि

- कुल में प्रीति यानी परिवार और संबंधियों में मेलजोल

- माता का प्रसाद या अनुग्रह यानी माता से प्रेम और आशीर्वाद

- शम प्राप्ति यानी हर तरह से शांति मिलना

- दक्षता यानी कार्य कुशलता या हुनरमंद होना।

इस दिलचस्प काम से होता है सबका भला!
धर्मशास्त्रों के नजरिए से विचार करें तो सहयोग या मदद में छुपा है परोपकार और भलाई का भाव। दरअसल, सहयोग की इस भावना के पीछे एक सकारात्मक पहलू दूसरों की ही नहीं खुद की मदद से भी जुड़ा है।

इशारा यही है कि अपनी कमियों, दोषों और कमजोरियों को पहचान उनमें पूरी सच्चाई और अनुशासन से सुधार करें। तभी आप दूसरों की भी सच्चे ह्रदय से मदद के लिए तैयार कर पाएंगे। कह सकते हैं कि व्यक्ति मदद की शुरुआत खुद से करें तो उसका फायदा दूसरों तक भी जल्द पहुंचता है।

असल में परोपकार व्यावहारिक रूप से आपकी शक्ति बन जाता है। क्योंकि जो इंसान स्वयं विनम्र, मधुभाषी, उदार, दयालु, सेवाभावी बन और अहं से दूर रहकर दूसरों की मदद को तैयार रहता है, तो अन्य लोग भी उस व्यक्ति के वशीभूत हो जाते हैं। ऐसे व्यक्ति की भी हर कोई किसी भी वक्त मदद को तैयार रहता है।

परोपकार के इसी भाव के संबंध में शास्त्रो में एक दिलचस्प बात कही गई है। जिसमे छुपी सीख यही है कि दूसरों के लिए ज़िंदगी बिताना ही वास्तविक जीवन है। लिखा गया है कि -

परोपकार: सतां व्यसनम् यानी परोपकार सज्जन लोगों की लत या व्यसन है।

पुराणों प्रसंगों में भी भगवान विष्णु के दस अवतार भी परोपकार और भलाई की ही प्रेरणा देते हैं। इस तरह भलाई और इससे जुड़े सेवा भाव से इंसान हर स्थिति में न केवल दूसरों को प्रेम, शांति, सम्मान का पात्र बनाता है बल्कि स्वयं भी स्नेह, यश और सम्मान का हकदार बन सुख-समृद्धि पाता है। ऐसे लोग जहां भी पहुंचते हैं, वहां पर उनके अनेक मित्र, सहयोगी और प्रेमी बन जाते हैं।

क्रमश:...

जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK

Monday, November 21, 2011

Aisha-Kyun (ऐसा क्यूँ) Part (4)

अगहन मास को मार्गशीर्ष भी क्यों कहते हैं?
हिंदू वर्ष का नवा महीना अगहन के नाम से जाना जाता है। इसे मार्गशीर्ष भी कहते हैं। अगहन मास को मार्गशीर्ष कहने के पीछे भी कई तर्क हैं। भगवान श्रीकृष्ण की अनेक स्वरूपों में व अनेक नामों से पूजा की जाती है। इन्हीं स्वरूपों में से एक मार्गशीर्ष भी श्रीकृष्ण का ही एक रूप है।

मार्गशीर्ष मास को मार्गशीर्ष ही क्यों कहा जाता है? इस संबंध में शास्त्रों में कहा गया है कि इस माह का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 27 नक्षत्र बताए गए हैं। इन्हीं 27 नक्षत्रों में से एक है मृगशिरा नक्षत्र। इस माह की पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र से युक्त होती है। इसी वजह से इस मास को मार्गशीर्ष मास कहा गया है।

इस माह को मगसर, अगहन या अग्रहायण मास भी कहा जाता है। भागवत के अनुसार श्रीकृष्ण ने कहा है मासानां मार्गशीर्षोहम् अर्थात् सभी महिनों में मार्गशीर्ष श्रीकृष्ण का ही स्वरूप है। मार्गशीर्ष मास में श्रद्धा और भक्ति से प्राप्त पुण्य के बल पर हमें सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस माह में नदी स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है।

श्रीकृष्ण के बाल्यकाल में जब गोपियां उन्हें प्राप्त करना ध्यान लगा रही थी तब श्रीकृष्ण ने मार्गशीर्ष मास की महत्ता बताई थी। उन्होंने कहा था कि मार्गशीर्ष माह में यमुना स्नान से मैं सहज ही सभी को प्राप्त हो जाऊंगा। तभी से इस माह में नदी स्नान का खास महत्व माना गया है।

जानिए गीता को भगवद्गीता क्यों कहते हैं
मार्गशीर्ष (अगहन) मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 6 दिसंबर, मंगलवार को है। जानिए, गीता को भगवद्गीता क्यों कहते हैं-

एक-दूसरे के प्राणों के प्यासे कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत शुरू होने से पहले योगिराज भगवान श्रीकृष्ण ने अठारह अक्षौहिणी सेना के बीच मोह में फंसे और कर्म से विमुख अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को छंद रूप में यानी गाकर उपदेश दिया, इसलिए इसे गीता कहते हैं।

चूंकि उपदेश देने वाले स्वयं भगवान थे, अत: इस ग्रंथ का नाम भगवद्गीता पड़ा। भगवद्गीता में कई विद्याओं का उल्लेख आया है, जिनमें चार प्रमुख हैं - अभय विद्या, साम्य विद्या, ईश्वर विद्या और ब्रह्मा विद्या। माना गया है कि अभय विद्या मृत्यु के भय को दूर करती है। साम्य विद्या राग-द्वेष से छुटकारा दिलाकर जीव में समत्व भाव पैदा करती है।

ईश्वर विद्या के प्रभाव से साधक अहंकार और गर्व के विकार से बचता है। ब्रह्मा विद्या से अंतरात्मा में ब्रह्मा भाव को जागता है। गीता माहात्म्य पर श्रीकृष्ण ने पद्म पुराण में कहा है कि भवबंधन से मुक्ति के लिए गीता अकेले ही पर्याप्त ग्रंथ है। गीता का उद्देश्य ईश्वर का ज्ञान होना माना गया है।

इसे घर में रख दो फिर न आएगा सांप, न आएगा उसका डर क्योंकि...
सांप एक ऐसा जीव है जिसे सामने देखते ही साहसी इंसानों के भी पसीना आ जाता है। सांप का विष पलभर में ही किसी की भी जीवन लीला समाप्त कर देता है। इनके आने-जाने पर प्रतिबंध लगा पाना किसी के लिए भी काफी मुश्किल है। सांप आसानी से किसी के घर में प्रवेश कर सकते हैं। इनसे बचने के लिए शास्त्रों में ही सटीक उपाय बताया गया है।

सांपों के डर को समाप्त करने के लिए सबसे अच्छा और सरल उपाय है घर में मोर पंख रखा जाए। मोर पंख घर में ऐसे स्थान पर रखें जहां से आसानी से दिखाई दे। मोर पंख की सुंदरता आपके घर की सजावट बढ़ाने का काम भी करेगी। इससे आपके घर में सांप नहीं आएंगे। मोर पंख सांपों को हमारे घर से दूर रखता है। इसके अतिरिक्त शास्त्रों में इसके कई अन्य महत्व भी बताए गए हैं। मोर पंख का संबंध भगवान श्रीकृष्ण से भी है।

श्रीकृष्ण के चित्रों में देखा जा सकता है कि उनके मस्तष्क पर मोर पंख लगा रहता है। मोर पंख की उपयोगिता और पवित्रता इसी बात से बढ़ जाती है कि वह भगवान के मस्तष्क पर भी स्थान पाता है। घर में मोर पंख लगाने के बहुत सारे अन्य लाभ भी है। इसे घर में रखने से वातावरण में मौजूद नकारात्मक शक्तियां नष्ट हो जाती हैं और सकारात्मक ऊर्जा अधिक सक्रिय हो जाती है। इससे हमारी सोच पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं।

सांप मोर पंख से डरते हैं क्योंकि मोर ही इसे मार कर खा जाता है। अत: सांप उस क्षेत्र में जाता है ही नहीं है जहां मोर या मोर पंख दिखाई देता है।

घर में पैसा कहां और क्यों रखना चाहिए?
सभी के घरों में पैसा या अन्य कीमती सामान रखने के लिए विशेष रहता है। इस प्रकार की बहुमूल्य वस्तुएं किसी सुरक्षित स्थान पर ही रखी जाती है। घर में पैसा या सोना-चांदी आदि बहुमूल्य धातुएं कहां और क्यों रखनी चाहिए, इस संबंध में लाल किताब में बताया गया है कि सभी मूल्यवान वस्तुएं घर के किसी अंधेरे कमरे में ही रखनी चाहिए।

ऐसा माना जाता है कि घर के अंधेरे कमरे में पैसा, सोना-चांदी रखने से परिवार की सुख-समृद्धि बनी रहती है। पैसों की तंगी कभी भी घर में प्रवेश नहीं कर पाती। परिवार के सभी सदस्यों को पर्याप्त धन कमाने के सुअवसर प्राप्त होते हैं और बरकत बनी रहती है। खर्चों में कमी आती है। लाल किताब के अनुसार इस उपाय से शनि के दोषों का भी निवारण हो जाता है।

इसका एक अन्य फायदा भी है कि इस प्रकार किसी अंधेरे कमरे में धन आदि रखने से उसके चोरी होने की संभावनाएं भी लगभग समाप्त हो जाती है। जिससे हमारी सभी मूल्यवान वस्तुएं सुरक्षित रहती हैं। इसके साथ इस प्रकार धन रखने से धन देव महालक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती हैं। जिस स्थान पर भी पैसा आदि रखा जाता है वह स्थान कभी पैसों से खाली नहीं होता। इन्हीं सब लाभों को देखते हुए पुराने समय भी सभी राजा-महाराजाओं द्वारा अपनी अमूल्य धन संपदा को किसी तहखाने में ही छिपाकर रखा जाता था। जिससे उनके परिवार और राज्य में सदैव धन की वर्षा होती थी।

रात के समय ऐसा दीपक लगाने से पैसा खुद आएगा आपके घर, क्योंकि...
वेद-पुराणों के अनुसार इस सृष्टि का निर्माण भगवान शिव की इच्छा मात्र से ही हुआ है। अत: इनकी भक्ति करने वाले व्यक्ति को संसार की सभी वस्तुएं आसानी से प्राप्त हो जाती हैं। शिवजी अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पलभर में ही पूरी कर देते हैं। नियमित रूप से शिवलिंग का पूजन करने वाले व्यक्ति के जीवन में दुख कम ही महसूस होते हैं।

शिवजी के पूजन से श्रद्धालुओं की धन संबंधी समस्याएं भी दूर हो जाती हैं। शास्त्रों में एक सटीक उपाय बताया गया है जिसे नियमित रूप से अपनाने वाले व्यक्ति अपार धन-संपत्ति प्राप्त हो सकती है। इस उपाय के संबंध में शिवपुराण में एक कथा दी गई है। कथा के अनुसार अतिप्राचीन काल काल में गुणनिधि नामक व्यक्ति बहुत गरीब था और वह भोजन की खोज में लगा हुआ था। इस रात हो गई और वह एक शिव मंदिर में पहुंच गया। गुणनिधि ने सोचा कि उसे रात्रि विश्राम इसी मंदिर में कर लेना चाहिए। रात के समय अत्यधिक अंधेरा वहां हो गया। इस अंधकार को दूर करने के लिए उसने शिव मंदिर में अपनी कमीज जलायी थी। रात्रि के समय भगवान शिव के समक्ष प्रकाश करने के फलस्वरूप से उस व्यक्ति को अगले जन्म में देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देव का पद प्राप्त हुआ।

इस कथा के अनुसार ही शाम के समय शिव मंदिर में दीपक लगाने वाले व्यक्ति को अपार धन-संपत्ति एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं। अत: नियमित रूप से रात्रि के समय किसी भी शिवलिंग के समक्ष दीपक लगाना चाहिए।

श्रीराम सपनों में बताएंगे आपका भविष्य क्योंकि...
शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु इस सृष्टि के पालनहार हैं और जब-जब धरती पर धर्म की हानि होती है, पाप अत्यधिक बढऩे लगता है तब भगवान श्रीहरि धरती पर अवतार लेते हैं। भगवान का अवतार ही धरा से समस्त पापियों का नाश करता है। अभी भगवान विष्णु के नौ मुख्य अवतार हो चुके हैं, ऐसी मान्यता है। इन्हीं नौ प्रमुख अवतारों में से एक है भगवान श्रीराम।

श्रीराम अपने भक्तों को सभी सुख प्रदान करने वाले देवता हैं। इनकी भक्ती मात्र से ही किसी भी व्यक्ति के समस्त दुख और कष्ट स्वत: ही शांत हो जाते हैं। प्राचीन काल से ही भगवान श्रीराम के दर्शन प्राप्त करने के लिए कई भक्तों द्वारा कठिन तप किया जाता रहा है। भगवान के दर्शन प्राप्त करने का शास्त्रों में एक सबसे सरल मार्ग बताया गया है।

ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति रामायाण या श्रीरामचरित मानस का पाठ 108 बार कर लेता है उसे भगवान श्रीराम दिखाई देने लग जाते हैं। इस दौरान का भक्त का मन पूरी तरह भगवान श्रीराम में ही लगा होना चाहिए। अन्य बातों से हटकर जब किसी व्यक्ति का मन केवल भगवान श्रीराम में लग जाता है तो निश्चित ही वह प्रभु के दर्शन अवश्य प्राप्त कर सकता है। संभव है कि भगवान श्रीराम भक्तों को सपनों में दर्शन दें। यदि ऐसा होता है तो समझ लें कि आपकी किस्मत के सितारे चमक गए हैं। फिर हर कदम भाग्य आपका साथ देगा। इस प्रकार जब कोई व्यक्ति 108 बार श्रीरामचरित मानस या रामायण का पाठ कर लेता है तो श्रीराम स्वयं ही भक्त का भूत, भविष्य और वर्तमान बता सकते हैं।

कपड़े पहनते समय सिक्के गिरे तो होगा कुछ अच्छा, क्योंकि...
काफी लोगों के साथ ऐसा होता है कि कहीं जाते वक्त या कपड़े पहनते समय पैसे गिर जाते हैं। ज्योतिष के अनुसार इसे शकुन माना जाता है और निकट भविष्य में इसके शुभ फल प्राप्त होते हैं।

शकुन और अपशकुन को ज्योतिष में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। किसी भी महत्वपूर्ण कार्य को करने से पहले कुछ ना कुछ शकुन या अपशकुन अवश्य होते हैं उन्हें समझना पड़ता है। इन्हीं छोटी-छोटी घटनाओं में कार्य की सफलता या असफलता के संकेत छुपे होते हैं। आजकल ऐसी बातों को अंधविश्वास भी माना जाता है लेकिन ज्योतिष एक विज्ञान ही है और इसके अनुसार ऐसी घटनाओं का संबंध हमारे भविष्य से जुड़ा होता है।

अगर आप कहीं जा रहे हैं या आप कपड़े पहन रहे हैं और जेब से पैसे गिरें तो इसे शुभ संकेत मानना चाहिए। ऐसा होने पर निकट भविष्य में आपको धन प्राप्ति के योग बनते हैं। इसी प्रकार यदि किसी लेन-देन के समय आपके हाथ से पैसा छूट जाए तो भी इसे शुभ माना जाता है। साथ ही यदि कपड़े बदलते वक्त भी ऐसा हो तो शुभ होता है। इन घटनाओं का फल कितने समय में मिलेगा इसका कोई निश्चित दिन नहीं है लेकिन शुभ फल अवश्य ही प्राप्त होता है।

जब शनि का साया होगा तो झेलना पड़ेगा ऐसा दर्द, क्योंकि...
कई बार छोटी-छोटी लापरवाहियों या किसी और की गलती के कारण हमें चोट लग जाती है। वैसे तो यह एक सामान्य सी बात है लेकिन इस प्रकार की चोट यदि लौहे से लगती है तो ये बात गंभीर हो जाती है। ज्योतिष के अनुसार लौहे से चोट लगने के पीछे शनि का प्रभाव होता है।

शनिदेव सभी नौ ग्रहों में विशेष स्थान रखते हैं क्योंकि इन्हें न्यायाधिश का पद प्राप्त है। शनि महाराज ही व्यक्ति के सभी अच्छे-बुरे कर्मों का फल प्रदान करते हैं। साढ़ेसाती और ढैय्या के काल में शनि राशि विशेष के लोगों को उनके कर्मों का फल देते हैं। यदि किसी व्यक्ति ने जाने-अनजाने कोई गलत कार्य किया है तो शनि उसे वैसी ही सजा देते हैं। इसी वजह से इन्हें क्रूर ग्रह भी माना जाता है।

यदि आपको बार-बार लौहे की वस्तुओं से चोट लगती रहती है तो ध्यान रखें ज्योतिष के अनुसार यह गंभीर बात है। इसका सीधा इशारा यही है आपसे जाने-अनजाने कोई गलती हो गई है। ऐसे में लौहे से चोट लगाने के पीछे शनि का ही प्रभाव बताया जाता है। चूंकि लौहा शनि की प्रिय धातु है अत: इससे हमें किसी प्रकार का नुकसान होना शनि के नाराज होने की सूचना मात्र समझना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति के साथ ऐसा बार-बार होता है तो उसे शनि के निमित्त विशेष पूजन आदि कार्य किया जाना चाहिए। प्रति शनिवार तेल का दान करें और भगवान शनि के दर्शन करें। कार्यों में पूरी तरह सावधानी रखें।

ये घर में होगी तो शनि, वास्तु और सब रहेगा पॉजिटिव, क्योंकि...
शास्त्रों में गाय को माता कहा है। गाय एक बहुपयोगी पशु है जो कि कई रूपों में फायदेमंद भी है। पुराने समय में सभी के घरों में गाय अनिवार्य रूप से होती थी। आज भी गांव में रहने वाले या ग्रामीण परिवेश से संबंधित लोगों के यहां गाय रहती है।

प्राचीन काल से गाय को माता का दर्जा प्राप्त है। गाय बहुत ही पवित्र और पूजनीय मानी गई है। ऐसा माना जाता है कि गाय की पूजा करने से सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त हो जाती है। इसी वजह से आज भी गाय को पूजा जाता है। पहले गाय को घर में रखना अनिवार्य था इसके पीछे कई कारण हैं।

- गाय जहां रहती है वहां किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा सक्रिय नहीं हो पाती और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती रहती है।

- गाय से निकलने वाली गंध से वातावरण में मौजूद कई हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।

- गाय का दूध भी कई बीमारियों में औषधि का ही काम करता है।

- गाय को घर में रखने से सभी प्रकार के ज्योतिष दोष और वास्तु दोष भी नष्ट हो जाते हैं।

- गाय का मूत्र कई बीमारियों में औषधि के रूप काम लिया जाता है।

- गौमूत्र से कैंसर का इलाज हो जाता है। गाय के प्रभाव में रहने वाले व्यक्ति को कभी ऐसी कोई भी बीमारी नहीं होती।

- गाय का गोबर भी कई कामों में उपयोग किया जाता है।

इनके अतिरिक्त कई फायदे हैं गाय को घर पर रखने के। इन्हीं सब की वजह से गाय को अपने घरों पर रखा जाता था।

पैसों की किल्लत दूर करने के लिए रोज सुबह क्या और क्यों करें?
पैसा या धन की चाहत प्राचीन काल से ही बनी हुई है। आज भी जैसे-जैसे आधुनिक सुविधाओं का विकास हो रहा है ठीक वैसी पैसों की आवश्यकता भी बढ़ती जा रही है। अधिकांश लोग परेशानियों के साथ जीवन यापन कर रहे हैं और पैसों की तंगी से जुझ रहे हैं। दिन-रात कड़ी मेहनत के बाद भी पर्याप्त धन अर्जित नहीं कर पाते। यदि आप भी पैसों की तंगी से त्रस्त हैं तो प्रतिदिन एक छोटा सा उपाय अपनाएं।

शास्त्रों के अनुसार गाय को बहुत पवित्र और पूजनीय माना गया है। इसी वजह से गौमाता से प्राप्त होने वाली सभी चीजों का वैद-पुराणों में काफी महत्व बताया गया है। अत: गाय का गोबर भी कई समस्याओं को समाप्त करने में सक्षम है। प्रतिदिन घर के बाहर किसी साफ और स्वस्थ स्थान पर गोबर से छोटा सा चौकर (लिपें) बनाएं। इस चौकार स्थान पर धन की देवी महालक्ष्मी के पैरों का निशान बनाएं। महालक्ष्मी के पैरा पर कंकू, चावल चढ़ाएं। इस प्रकार प्रतिदिन करें। ऐसा करने से आपके घर से पैसों की तंगी भाग जाएगी और महालक्ष्मी का वास हो जाएगा।

ध्यान रखें कि यह उपाय ऐसे स्थान पर करें जहां किसी के पैर न लगे। अन्यथा उपाय का प्रभाव कम हो जाएगा। इसके साथ अपनी मेहनत पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ करें। किसी भी प्रकार के अधार्मिक कर्मों से खूद को दूर रखें।

ये सुखा पौधा घर में न रखें वरना हो सकती है गड़बड़, क्योंकि...
अधिकांश हिंदू घरों में तुलसी का पौधा अवश्य ही होता है। तुलसी घर के आंगन में लगाने की प्रथा हजारों साल पुरानी है। तुलसी को दैवी का रूप माना जाता है। साथ ही मान्यता है कि तुलसी का पौधा घर में होने से घर वालों को बुरी नजर प्रभावित नहीं कर पाती और अन्य बुराइयां भी घर और घरवालों से दूर ही रहती है।

तुलसी का पौधा होने से घर का वातावरण पूरी तरह पवित्र और कीटाणुओं से मुक्त रहता है। कभी-कभी किसी कारण से यह पौध सूख भी जाता है ऐसे में इसे घर में नहीं रखना चाहिए बल्कि इसे किसी पवित्र नदी में प्रवाहित करके दूसरा तुलसी का पौधा लगा लेना चाहिए। सुखा हुआ तुलसी का पौधा घर में रखना कई परिस्थितियों में अशुभ माना जाता है। इससे विपरित परिणाम भी प्राप्त हो सकते हैं। घर की बरकत पर बुरा असर पड़ सकता है। इसी वजह से घर में हमेशा पूरी तरह स्वस्थ तुलसी का पौधा ही लगाया जाना चाहिए।

तुलसी का धार्मिक महत्व तो है ही लेकिन विज्ञान के दृष्टिकोण से तुलसी एक औषधि है। आयुर्वेद में तुलसी को संजीवनी बुटि के समान माना जाता है। तुलसी में कई ऐसे गुण होते हैं जो बड़ी-बड़ी जटिल बीमारियों को दूर करने और उनकी रोकथाम करने में सहायक है। तुलसी का पौधा घर में रहने से उसकी सुगंध वातावरण को पवित्र बनाती है और हवा में मौजूद बीमारी के बैक्टेरिया आदि को नष्ट कर देती है। तुलसी की सुंगध हमें श्वास संबंधी कई रोगों से बचाती है। साथ ही तुलसी की एक पत्ती रोज सेवन करने से हमें कभी बुखार नहीं आएगा और इस तरह के सभी रोग हमसे सदा दूर रहते हैं। तुलसी की पत्ती खाने से हमारे शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता काफी बढ़ जाती है।

किसी को नींद से जगाने से पहले ध्यान रखें ये खास बात, क्योंकि...
सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे सभ्य और सुसंस्कारी हों। इसलिए उन्हें सभी बुरी आदतों और बातों से दूर रखने के प्रयास किए जाते हैं। फिर भी लाख कोशिशों के बाद भी कुछ माता-पिता की संतान गलत आदतों का शिकार हो जाती है। ऐसे में उन्हें पुन: सही मार्ग पर लाने के लिए कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

बच्चों की बुरी आदतें कैसी सुधारी जाएं इस संबंध में शास्त्रों में कई उपाय बताए गए हैं, जो कि परंपरागत रूप से चले आ रहे हैं। आज भी विद्वान और बुजूर्ग लोग इन परंपराओं का निर्वहन करते हैं। शास्त्रों के अनुसार सुबह उठते समय भगवान का नाम लेने या सुनने से व्यक्ति के सभी बुरे विचार नष्ट हो जाते हैं। इसी वजह से सुबह-सुबह भगवान की आरती के स्वर सुनाए जाने चाहिए।

बच्चों को नींद से जगाने से पहले दो मिनट हल्की आवाज से हरे रामा हरे कृष्णा रामा रामा हरे... इस मंत्र का गायन करें। इससे बच्चों में सदाचार का विकास होता है। नाम से या चिखकर बच्चों को न उठाएं। यदि ऐसा संभव न हो तो आजकल मार्केट में भगवान के मंत्रों की इलेक्ट्रानिक बेल मिलती है उसे हर सुबह चलाया जा सकता है। मोबाइल में भगवान के भजन आदि का आलार्म सेट किया जा सकता है। इस प्रकार नींद से जागते ही भगवान का नाम लिया जाए या सुना जाए तो गलत आदतें छुट जाती हैं।

आपने सांप मारा या मारते हुए देखा तो होगी अनहोनी, क्योंकि...
सांप एक ऐसा जीव है जिससे लगभग हर व्यक्ति डरता है। इसकी वजह से सांप का विष या जहर। अगर सांप किसी को डंस ले तो उस व्यक्ति के प्राणों का संकट खड़ा सकता है। सामन्यत: ये जीव किसी भी स्थान पर कब और कैसे आ जाए कोई नहीं जानता। यदि भूलवश आपने कभी सांप को मारा है या किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा मारते हुए देखा है तो इसके कई बुरे परिणाम आपको झेलना पड़ सकते हैं।

शास्त्रों के अनुसार सांप को नाग देवता माना जाता है। नाग का संबंध भगवान शिव से है, भोलेनाथ इस जीव को आभूषण की तरह धारण किए हुए हैं। इसी वजह से नाग को पूजनीय और पवित्र देवता माना गया है। भगवान शंकर के अतिरिक्त सृष्टि के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु भी शेषनाग की शय्या पर विश्राम करते हैं।

ध्यान रहें सांप कभी भी अनावश्यक रूप से किसी को नहीं डंसता है। जब तक सांप को छेड़ा नहीं जाता वह कुछ नहीं करता लेकिन भूलवश ही यदि उसे छेड़ दिया जाए तो वह खुद के प्राण बचाने के लिए हम पर हमला कर सकता है। कई बार जाने-अनजाने कुछ लोगों से सांप की हत्या हो जाती है। वहीं कुछ लोग अन्य लोगों द्वारा अनावश्यक रूप से सांप को मारते हुए देखते रहते हैं तो यह शास्त्रों के अनुसार पाप की श्रेणी में ही आता है।

वेद-पुराण के अनुसार किसी भी जीव की हत्या करना या देखना पाप ही है। सांप की हत्या करने वाले या सांप को मारते हुए देखने वाले को भी कई प्रकार के कष्ट उठाने पड़ सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति के साथ ऐसी घटनाएं हुई हैं तो संभव है कि उसके जीवन में कुछ परेशानियां सामने आती हैं। ज्योतिष में कालसर्प योग बताया गया है, इस योग के बुरे प्रभाव से व्यक्ति को मृत्यु के समान कष्ट भोगने पड़ सकते हैं। ठीक ऐसी ही परेशानियों सांप को अनावश्यक रूप से मारने या उसकी हत्या होते हुए देखने से भी झेलना पड़ सकती है।

यदि भूलवश किसी व्यक्ति के द्वारा ऐसा हो जाता है तो उसे भगवान शिव से क्षमा याचना करते हुए प्रति सोमवार शिवलिंग पर दूध चढ़ाना चाहिए और नाग की मृत्यु से लगे दोष का उचित उपचार करवाना चाहिए।

समझो तब मौत आ गई जब माथे पर चंदन जल्दी ना सूखे, क्योंकि...
शास्त्रों में जीवन का अंतिम और अटल सत्य मृत्यु को ही बताया गया है। किसी भी व्यक्ति के लिए मृत्यु ही अंतिम चरण है। इसके बाद व्यक्ति की आत्मा देह त्याग देती है, आजाद हो जाती है। सभी ये बात जानते है लेकिन फिर भी मौत का डर सदैव बना ही रहता है।

मृत्यु कब और कैसे होगी? यह बता पाना किसी भी इंसान के अधिकार में नहीं है। ज्योतिष के माध्यम से भी केवल संभावनाएं व्यक्त की जा सकती हैं। कई विद्वानों ने ऐसी बातें बताई गई हैं जो मृत्यु के आने सूचना दे देती हैं। इन्हीं बातों में से एक है यदि कोई व्यक्ति मरणासन में है तो उसके माथे पर यदि चंदन लगाया जाए तो वह जल्दी नहीं सूखेगा।

चंदन को बहुत ही पवित्र माना जाता है इसी वजह से सभी प्रकार के पूजन में इसका विशेष स्थान है। जब भी भगवान की आराधना की जाती है तो श्रद्धालु के मस्तक पर इसका तिलक लगाया जाता है। प्राय: चंदन का तिलक लगाने के बाद तुरंत ही सूख जाता है।

कई बार लोगों के साथ ऐसा होता है कि डॉक्टर्स द्वारा किसी व्यक्ति के लिए बोल दिया जाता है कि अब उसका जीवन कुछ ही समय का शेष है। ऐसे में कुछ विद्वानों के अनुसार जब किसी व्यक्ति का मृत्यु का समय निकट आ जाता है तो उसके माथे पर चंदन का तिलक लगाना चाहिए। यदि यह तिलक जल्दी सूख जाता है तब तो समझना चाहिए कि उस व्यक्ति का जीवन अभी शेष है। इसके विपरित यदि वह तिलक जल्दी नहीं सूखता है तो दुर्भाग्यवश विपरित परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। यानि व्यक्ति की मृत्यु की संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं क्योंकि मृत्यु के समय व्यक्ति के माथे की गर्मी सबसे पहले समाप्त हो जाती है, मस्तक एकदम ठंडा हो जाता है। इस वजह से चंदन जल्दी नहीं सूख पाता। यदि ऐसा होता है तो संबंधित व्यक्ति के स्वास्थ्य के संबंध में पूरी सावधानी बरतनी चाहिए। डॉक्टर्स आदि की सलाह लेकर बीमार व्यक्ति का उचित ध्यान रखें। इसके पश्चात अनहोनी टल सकती है।

बेड को कूड़े का डिब्बा न समझें, ये सामान तुरंत हटा दें क्योंकि...
आजकल काफी लोगों के घरों में यह एक आम बात है कि बेड के अंदर फालतू, खराब सामान रख दिया जाता है। वैसे तो यह एक सामान्य बात है लेकिन शास्त्रों के अनुसार इसके कई बुरे प्रभाव प्राप्त हो सकते हैं।

जो लोग अपने बेड के अंदर पुराने कपड़े, पुराने बिस्तर आदि ऐसे सामान रखते हैं जिनका उपयोग नहीं होता है तो इसके कई अशुभ प्रभाव झेलना पड़ सकते हैं। इसी वजह से बेड के अंदर इस प्रकार के सामान नहीं रखना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि फिजूल सामान को बेड में रखने से जो व्यक्ति उस पर सोता है उसे कई प्रकार की बीमारियां होने का खतरा बना रहता है। यदि कोई बीमार व्यक्ति ऐसे बेड पर सोता है तो उसका जल्दी स्वस्थ होना बहुत मुश्किल होता है। इसके अलावा ऐसे लोगों को धन संबंधी परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है। वास्तु के अनुसार भी ऐसी स्थिति परेशानियां पैदा करने वाली ही होती हैं। बेड के अंदर फालतू और अनुपयोगी सामान भरने से घर में नकारात्मक ऊर्जा अधिक सक्रिय हो जाती है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव कम होता जाता है।

यदि आपने भी अपने बेड के अंदर अनुपयोगी सामान भर रखा है तो उसे तुरंत हटा दें। इन सभी बातों को देखते हुए पुराना बेकार सामान आपके लिए हानिकारक हो सकता है।

घर में बांस से बनी ये चीज रखें, फिर कुछ भी नहीं होगा नेगेटिव क्योंकि...
घर में सुख-समृद्धि बनी रहे इसके लिए सभी कई प्रकार के उपाय करते हैं। कुछ उपाय धर्म से संबंधित होते हैं तो कुछ ज्योतिष के और कुछ वास्तु से संबंधित। इन सभी उपायों को अपनाने से संभवत: घर से नेगेटिव ऊर्जा दूर हो जाती है। यदि आपके घर में कुछ नेगेटिव हो रहा है तो यह परंपरागत उपाय अपनाएं।

पुराने समय से ही घर में सुख-समृद्धि और धन की पूर्ति बनाए रखने के लिए एक सटीक परंपरागत उपाय अपनाया जाता रहा है। यह उपाय है घर में बांसूरी रखना। जिस घर में बांसूरी रखी होती है वहां के लोगों में परस्पर तो बना रहता है साथ ही श्रीकृष्ण की कृपा से सभी दुख और पैसों की तंगी भी दूर हो जाती है।

शास्त्रों के अनुसार बांसूरी भगवान श्रीकृष्ण को अतिप्रिय है। वे सदा ही इसे अपने साथ ही रखते हैं। इसी वजह से इसे बहुत ही पवित्र और पूजनीय माना जाता है। साथ ही ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण जब भी बांसूरी बजाते तो सभी गोपियां प्रेम वश प्रभु के समक्ष जा पहुंचती थीं। बांसूरी से निकलने वाला स्वर प्रेम बरसाने वाला ही है। इसी वजह से जिस घर में बांसूरी रखी होती है वहां प्रेम और धन की कोई कमी नहीं रहती है।

सामान्यत: घर में बांस की हुई बांसूरी ही रखना चाहिए। वास्तु के अनुसार इस बांसूरी से घर के वातावरण में मौजूद समस्त नेगेटिव एनर्जी समाप्त हो जाती है और सकारात्मक ऊर्जा सक्रिय हो जाती है। परिवार के सदस्यों के विचार सकारात्मक होते हैं जिससे उन्हें सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।

इससे बंद हो जाते हैं आपकी किस्मत के दरवाजे, क्योंकि...
कई बार हम पूरी मेहनत के बाद भी असफल हो जाते हैं। कुछ लोगों के घर-परिवार में सब कुछ अच्छा होते हुए भी सुख नहीं मिल पाता ऐसे में संभवत: उस घर में कोई दोष हो सकता है। इस दोष की वजह से ही परिवार को खुशियां प्राप्त नहीं हो पाती है।

कुछ सामान्य सी ऐसी बातें हैं जिन पर ध्यान नहीं दिया जाता लेकिन इनके दुष्परिणाम काफी अधिक रहते हैं। घर में रखी हर वस्तु का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। यदि कोई वस्तु नकारात्मक विचार को अधिक बल प्रदान करने वाली होती है तो उसकी वजह से कार्यों में असफलता मिलती है। इसी वजह से ऐसी वस्तुओं को घर से दूर ही रखना चाहिए।

घर में नेगेटिव ऊर्जा को सक्रिय करने वाली चीजों में बंद ताला भी शामिल है। जिस घर में कोई खराब बंद ताला होता है वहां पॉजीटिव विचारों में कमी आती है। परिवार के सदस्यों को नकारात्मकता का सामना करना पड़ता है। किसी भी कार्य में पहले असफलता ही नजर आती है। आत्मविश्वास की कमी हो जाती है। ऐसा माना जाता है कि बंद ताले से व्यक्ति की किस्मत के दरवाजे भी बंद हो जाते हैं। अत: यदि आपके घर में कोई खराब बंद ताला हो तो उसे तुरंत ही हटा दें। अन्यथा बुरे परिणाम झेलने पड़ सकते हैं।

बिल्ली रोते हुए दिखे तो सावधान हो जाएं, हो सकती है अनहोनी
यदि आप किसी जरूरी कार्य के लिए घर से निकल रहे हैं और उसी समय कोई काली बिल्ली रोते हुए दिख जाए तो सावधान हो जाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार कई प्रकार के शकुन और अपशकुन बताए गए हैं। सभी का महत्व भविष्य से जुड़ा हुआ है।

प्राचीन काल से ही कई छोटी-छोटी घटनाओं को भविष्य में होने वाली घटनाओं से जोड़ कर देखा जाता रहा है। ये सभी घटनाएं इशारा करती हैं कि आने वाले कल में क्या होने वाला है, कैसा रहेगा हमारा आने वाला कल? इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर शकुन और अपशकुन में छिपे हुए रहते हैं। जिन्हें समझने की आवश्यकता होती है।

शास्त्रों में बिल्ली से जुड़े कई अपशुकन बताए गए हैं। सामान्यत: हमारे घर के आसपास काली बिल्ली नहीं दिखाई देती है लेकिन यह बिल्ली आपको रोते हुए दिख जाए तो यह इशारा है कि आपके साथ कुछ गड़बड़ हो सकती है। अत: सावधान हो जाना चाहिए। यदि घर से निकल रहे हों तो कुछ देर घर में रुके, पानी पीएं और फिर कार्य के लिए निकलना चाहिए।

आजकल शकुन-अपशकुन के संबंध में काफी लोगों का मानना है कि ये बातें केवल अंधविश्वास ही है। वहीं पुराने समय में इन सभी बातों का काफी अधिक महत्व माना जाता था। इसी वजह से वे लोग हर कार्य इन बातों का ध्यान रखते हुए करते थे।

क्या आप जानते हैं, छींक से भी क्यों और कैसे जुड़ा है आपका भविष्य?
भविष्य में होने वाली संभावित घटनाओं के संबंध में हमें पहले जानकारी मिल जाए इसलिए कुछ शकुन और अपशकुन बनाए गए हैं। जिससे हमें मालूम हो जाए कि वे घटनाएं शुभ फल देने वाली है या अशुभ।
इन्हीं शकुन-अपशकुन में छींक भी शामिल है। ऐसा माना जाता है कि जब भी किसी शुभ कार्य के लिए जाते समय यदि छींक सुनाई दे तो निकट भविष्य में कुछ बुरा होने वाला है।
घर से निकलते वक्त या कोई नया काम शुरू करते समय छींक सुनाई दे तो इसे शुभ नहीं माना जाता है। इस संबंध में पुराने समय से ही मान्यता है कि ऐसा होने पर हमें कुछ देर रुक जाना चाहिए और पानी पीकर फिर अपने लक्ष्य की ओर आगे बढऩा चाहिए। यह व्यवस्था इसलिए लागू की गई है कि इससे हम कुछ देर रुक जाएं और यदि कुछ बुरा होने वाला हो तो वह समय टल जाए। इसी संभावना के चलते ऐसी परंपरा बनी है कि छींक सुनने के बाद कुछ क्षण रुकें और पानी पीएं। छींक एक संकेत मात्र है किसी अशुभ घटना से बचने के लिए।

कब आती है छींक?
छींक वैसे तो एक सामान्य क्रिया है। इस संबंध विज्ञान यह कहता है कि जब हमारी श्वास लेने की क्रिया में कोई रुकावट आ जाए या नाक में कोई कीटाणु, जीवाणु या कचरा फंस जाए तो हमें छींक आ जाती है। छींक कब आएगी? यह बता पाना संभव नहीं है, यह ऐसी क्रिया है जो कि अचानक घट जाती है। जब छींक आती है तो कुछ क्षण से हमारे शरीर का पूरा सिस्टम प्रभावित हो जाता है। छींक का इतना प्रभाव होता है कि हम छींकते समय आंख खोलकर नहीं रख सकते, आंखें भी बंद हो जाती है।

झूठे हाथों से ऐसा काम करो तो गायब हो जाता है पर्स से पैसा, क्योंकि...

शास्त्रों में कई ऐसे कार्य बताए गए हैं जिन्हें करने पर देवी-देवताओं का क्रोध झेलना पड़ता है। यदि किसी व्यक्ति से भगवान क्रोधित हो जाते हैं तो उसे कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। देवी-देवताओं में धन की देवी महालक्ष्मी का महत्वपूर्ण स्थान है। इनकी कृपा के बिना कोई भी व्यक्ति जीवन में सुख की कल्पना भी नहीं कर सकता है।

महालक्ष्मी के रुठ जाने पर व्यक्ति को पैसों की तंगी झेलना पड़ती है। ऐसे में लाख मेहनत करने के बाद भी उचित धन प्राप्त नहीं हो पाता है। यदि व्यक्ति पहले से ही धनी हो और उससे लक्ष्मीजी रुठ जाए तो उसका समस्त धन भी नष्ट हो सकता है। अत: शास्त्रों द्वारा वर्जित कार्य हमें नहीं करना चाहिए।

महालक्ष्मी को क्रोधित करने वाले कार्यों में प्रमुख है झूठे हाथों से देवी-देवताओं की प्रतिमा या चित्रों को छूना। यदि कोई व्यक्ति कुछ खाने के बाद झूठे हाथों से ही भगवान को स्पर्श करता है तो उसे देवी-देवताओं का कोप सहना पड़ता है। घर की बरकत चली जाती है। कड़ी मेहनत के बाद भी व्यक्ति के पास पैसा नहीं आता। इसके अलावा पर्स में रखा पैसा भी अनावश्यक कार्यों में तुरंत ही खर्च होने लगता। अत: इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी परिस्थिति में झूठे हाथों से भगवान को स्पर्श न करें। भगवान के सामने जाने से पहले पूरी तरह पवित्र होकर ही जाना चाहिए। प्रसाद ग्रहण करने के बाद तुरंत हाथ धो लेना चाहिए।

घर की छत पर ये चीजें हो तो बढ़ती है गरीबी, क्योंकि...
अक्सर घर के अंदर और बाहर की साफ-सफाई पर तो ध्यान दिया जाता है लेकिन छत पर गंदगी पड़ी रहती है। वास्तु के अनुसार घर की छत पर पड़ी गंदगी का भी पैसों की तंगी को बढ़ा सकती है। परिवार की बरकत पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

यह जरूरी है कि घर की साफ-सफाई अंदर और बाहर अच्छी तरह से ही की जाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि यदि घर की छत पर फालतू सामान, गंदगी पड़ी रहती है तो इसके दुष्प्रभाव परिवार की आर्थिक स्थिति पर पड़ते हैं। इसके साथ ही स्वास्थ्य की दृष्टि से भी हानिकारक ही है। किसी भी प्रकार की गंदगी का हमारे जीवन पर काफी गहरा प्रभाव पड़ता है।

जिन लोगों के घरों की छत पर ऐसे अनुपयोगी सामान रखे होते हैं वहां नकारात्मक शक्तियां अधिक सक्रिय रहती हैं। उस घर में रहने वाले लोगों के विचार नेगेटिव अधिक रहते हैं। वे किसी भी कार्य में सकारात्मक रूप से सोच भी नहीं पाते हैं। इसी वजह से कार्यों में सफलता और तनाव मिलता है। परिवार में भी मन-मुटाव की स्थितियां निर्मित होती हैं।

शास्त्रों के अनुसार धन की देवी महालक्ष्मी का वास ऐसे ही घरों में होता है जहां पूरी तरह से साफ-सफाई और स्वच्छता बनी रहती है। जहां गंदगी होती है वहां से लक्ष्मी चली जाती है और दरिद्रता का वास हो जाता है।

ऐसा बल्ब घर में रखने से बढ़ती है पैसों की तंगी, क्योंकि...
अक्सर घर में कई ऐसे सामान होते हैं जिनका कोई उपयोग नहीं होता है या जो खराब हो जाते हैं। ऐसे सामानों को घर में नहीं रखना चाहिए। इस प्रकार की छोटी-छोटी चीजों का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यहां तक कि यदि घर में फ्यूज बल्ब या खराब ट्यूब लाइट रखी जाती है तो इससे भी अशुभ प्रभाव प्राप्त होते हैं।

शास्त्रों के अनुसार घर को पूरी तरह स्वच्छ और साफ रखना चाहिए। किसी भी प्रकार से घर में फैली अशुद्धता पैसों से जुड़ी परेशानियों को जन्म दे सकती है। वास्तु के अनुसार घर में रखी हर वस्तु का अपना अलग प्रभाव होता है। यह सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा के सिद्धांत पर कार्य करता है। अत: घर में रखी खराब चीजों से नकारात्मक ऊर्जा को अधिक बल प्राप्त होता है और सकारात्मकता समाप्त होती है।

यदि घर के वातावरण में नकारात्मक प्रभाव अधिक रहेगा तो परिवार के सदस्यों के विचार भी इसी प्रकार के हो जाते हैं। जिससे अन्य कार्यों में मन नहीं लगता है। मानसिक तनाव बना रहता है। घर में रखा फ्यूज बल्ब भी वातावरण को नकारात्मक बनाता है। अत: इस प्रकार के बल्ब को भी घर में नहीं रखना चाहिए, तुरंत हटा देना चाहिए। नकारात्मक बढऩे से घर की आर्थिक स्थिति पर भी विपरित प्रभाव पड़ते हैं।

जब आपकी हथेली में खुजली चले तो अचानक मिलेगा पैसा, क्योंकि...
पैसा या धन की आवश्यकता सभी को हमेशा से ही रही है। अधिक से अधिक पैसा कमाने के लिए कई प्रकार के जतन करते हैं। कड़ी मेहनत के बाद जब भी आपको उम्मीद से अधिक धन प्राप्त होने वाला होता है तो कुछ शुभ शकुन होते हैं।

शास्त्रों के अनुसार कई प्रकार के शकुन और अपशकुन बताए गए हैं। जिनका हमारे भविष्य से गहरा संबंध होता है। किसी भी शुभ या अशुभ कार्य से पहले कुछ घटनाएं होती हैं। इन छोटी-छोटी घटनाओं को समझने के बाद हम समझ सकते हैं कि निकट भविष्य में कैसा समय आने वाला है। इसी प्रकार के शुभ शकुन में से एक है दाएं हाथ की हथेली में खुजली चलना।

यदि किसी व्यक्ति के हाथ की हथेली में खुजली चलती है तो ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति अचानक ही ज्यादा पैसा प्राप्त होने वाला है। इस प्रकार की खुजली अचानक से ही चलती है। यदि किसी व्यक्ति को बिना किसी बीमारी या एलर्जी के ऐसी खुजली चलती है तो इसे शुभ शकुन माना जाता है।

शकुन-अपशकुन को लेकर सभी लोगों के विचार अलग-अलग होते हैं। कुछ लोग इन्हें अंधविश्वास मानते हैं तो कुछ लोग इन्हें भविष्य से जोड़ कर देखते हैं।

घर से निकलते ही ये लोग दिख जाए तो समझ लें, चमक जाएगी आपकी किस्मत
हिंदू धर्म शास्त्रों में कई ऐसे संकेत बनाए गए हैं जिनसे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आपको मनोवांछित कार्य में सफलता मिलेगी या नहीं। इन संकेतों को शकुन-अपशकुन कहा जाता है।

शास्त्रों के अनुसार आप जब भी किसी खास कार्य के लिए जा रहे होते हैं ठीक उसी समय कई प्रकार की घटनाएं घटती हैं। इन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। छोटी-छोटी शुभ-अशुभ घटनाएं ही शकुन या अपशकुन होती हैं। हालांकि काफी लोग इन बातों को कोरा अंधविश्वास ही मानते हैं लेकिन कई लोग इन बातों पर विश्वास भी करते हैं।

यदि आप काफी खास कार्य के लिए जा रहे हैं तो घर से निकलते ही आपको कोई ब्राह्मण दिख जाए तो समझना चाहिए कि आप कार्य बिना किसी परेशानी के सफल हो जाएगा। ब्राह्मण परंपरागत वेशभूषा में होना चाहिए।

कहीं जाते समय किसी पतिव्रता सुहागन स्त्री को लाल साड़ी में देखना भी काफी शुभ माना जाता है। इसका भी यही संकेत है आपके कार्य सफल होंगे और दिन अच्छा बितेगा।

घर से निकलते ही कोई सफाईकर्मी दिख जाए तो समझो आपका दिन बहुत अच्छा बितेगा और धन, ऐश्वर्य, मान-सम्मान भी मिलेगा।

पैर पर पैर रखकर नहीं बैठना चाहिए क्योंकि...
हमारे स्वभाव, हाव-भाव और व्यवहार में क्या-क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए? इस संबंध में शास्त्रों में कई महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं। इन परंपराओं का निर्वहन आज भी बड़ी संख्या में लोगों द्वारा किया जाता है।

जब भी कोई व्यक्ति घर में पैर पर पैर रखकर बैठते हैं तो अक्सर जानकार वृद्धजनों द्वारा ऐसा नहीं करने की सलाह दी जाती है। पुराने समय से ही कई ऐसी बातें चली आ रही हैं जिनका संबंध हमारे जीवन में प्राप्त होने वाले सुख और दुख से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि पैर पर पैर रखकर बैठने से स्वास्थ्य को नुकसान होता है साथ ही इसे धर्म की दृष्टि से भी अशुभ समझा जाता है।

यदि किसी पूजन कार्य में या शाम के समय पैर पर पैर रखकर बैठते हैं तो महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त नहीं होती है। धन संबंधी कार्यों में विलंब होता है। पैसों की तंगी बढ़ती है। शास्त्रों के अनुसार शाम के समय धन की देवी महालक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण पर रहती हैं ऐसे में यदि कोई व्यक्ति पैर पर पैर रखकर बैठा रहता है तो देवी उससे नाराज हो जाती हैं। लक्ष्मी की नाराजगी के बाद धन से जुड़ी परेशानियां झेलना पड़ती हैं। अत: बैठते समय ये बात ध्यान रखें। पैर पर पैर रखकर न बैठें।

पूजा में शिवलिंग पर ये 6 चीजें जरुर चढ़ाएं, क्योंकि...
भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना जाता है। इसीलिए शास्त्रों में बताया गया है कि जल व पंचामृतधारा से शिवजी का अभिषेक करने से शिवजी की कृपा प्राप्त होती है। अभिषेक करते समय ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में दिये गए मंत्र बोले जाते हैं। रूद्राष्टाध्यायी मंत्रों का भी उल्लेख मिलता है।

जल में दूध मिला कर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है। विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और चीनी से अलग-अलग अथवा सब को मिला कर पंचामृत से भी अभिषेक किया जाता है। लेकिन हर धारा से अभिषेक का विशेष फल प्राप्त होता है। इसीलिए अलग-अलग वस्तुओं की धारा से शिवजी का अभिषेक किया जाता है।

कहते हैं भगवान शिव को दूध की धारा से अभिषेक करने से मूर्ख भी बुद्धिमान हो जाता है, घर की कलह शांत होती है।

जल की धारा: जल की धारा से अभिषेक करने से विभिन्न कामनाओं की पूर्ति होती है।

घृत घी की धारा से अभिषेक करने से वंश का विस्तार, रोगों का नाश तथा नपुंसकता दूर होती है।

इत्र की धारा से भोग की वृद्धि होती है।

शहद से टी बी रोग का नाश होता है।

ईख से आनंद की प्राप्ति होती है।

गंगाजल से भोग एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसीलिए माना जाता है कि सावन में सारे सुखों की प्राप्ति के लिए इन छ: चीजों से शिवजी का अभिषेक जरूर करना चाहिए।
इस तिथि पर ऐसे नहाने से पितर देवता देते स्थाई धन, क्योंकि...
सभी प्रकार के सुखों को प्राप्त करने के लिए सभी देवी-देवताओं की कृपा जरूरी है। भगवान की कृपा से पहले हमें हमारे पितरों को भी प्रसन्न चाहिए। शास्त्रों के अनुसार पितर अप्रसन्न हैं तो देवी-देवता भी हमारी पूजा स्वीकार नहीं करते हैं।

ऐसा माना जाता है कि सोमवार 21 नवंबर को पितरों को प्रसन्न करने का श्रेष्ठ दिन है। इस दिन शास्त्रों के अनुसार बताई गई विधि से स्नान करें। इस विधि से नहाने से आपको पितरों की कृपा प्राप्त होगी और पैसों से जुड़ी सभी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी।

सोमवार को पितरों के श्राद्ध हेतु श्रेष्ठ दिन है। आप ब्रह्म मुहूर्त में उठें। उठने के बाद नित्य कर्मों से निवृत्त हो जाएं और नहाने के लिए किसी पवित्र नदी, तालाब पर जा सकते हैं। नदी में नाभि तक पानी उतरें। यहां दक्षिण की ओर मुख करके खड़े हो जाएं। अब दोनों हाथों में जल भरकर वापस नदी में छोड़ दें। इसके साथ ही प्रार्थना करें कि यह जल हमारे पितरों को प्राप्त हो। इस प्रकार यह जल पितरों को प्राप्त हो जाएगा और वे तृप्त हो जाएंगे। यदि आपके घर के आसपास कोई नदी या तालाब नहीं है तो यह उपाय घर में भी किया जा जा सकता है। इसके लिए किसी बड़े बर्तन का उपयोग किया जा सकता है। शेष प्रक्रिया पूर्ववत ही रहेगी।
मोटापा कम करने के लिए पहनते हैं ये अंगूठी, क्योंकि...
आज के समय में सर्वाधिक लोगों की समस्या है मोटापा। असंतुलित खान-पान और अनियमित दिनचर्या के चलते अत्यधिक वजन बढऩे की शिकायत आम बात हो गई है। समय पर ध्यान न दिया जाए तो यह बीमारी काफी बढ़ जाती है। तब इससे मुक्ति पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।

कई लोग मोटापे से मुक्ति के लिए डॉक्टर्स आदि के क्लिनिक में चक्कर लगाने के बाद भी सकारात्मक परिणाम प्राप्त नहीं कर पाते हैं। इस समस्या से निजात पाने का ज्योतिष में सटीक और कारगर उपाय बताया जाता है। ज्योतिष के अनुसार मोटापे की समस्या ग्रह दोष से भी संबंधित होती है।

जो व्यक्ति मोटापे से मुक्ति चाहता है उसे अनामिका अंगुली (रिंग फिंगर) में रांगे की अंगूठी पहनें। अंगूठी पहनने के लिए सर्वश्रेष्ठ दिन रविवार है। किसी भी रविवार के दिन थोड़ा सा काला धागा अपनी अनामिका अंगुली पर लपेट लें। इसके बाद रांगे की धातु से बनी अंगूठी को पहन लें। अंगूठी इस प्रकार पहनें कि वह काला धागा दिखाई न दें।

यह प्रयोग काफी कारगर है। इस प्रकार रांगे की अंगूठी पहनने के साथ मोटापे की समस्या से जल्दी ही मुक्ति मिलेगी। इसके साथ ही डॉक्टर्स आदि द्वारा बताई गई टिप्स का भी पालन करें। अपनी दिनचर्या नियमित करें और खान-पान में विशेष ध्यान रखें। अत्यधिक वसा वाली खाना ना खाएं। व्यायाम करें। जल्द ही मोटापे निजात मिलेगी।

ऐसे मरने वालों के लिए कोई पूजा नहीं होती, क्योंकि...
जीवन का अंतिल अटल सत्य है मौत। जिस व्यक्ति ने जन्म लिया है उसे एक अवश्य ही मृत्यु को प्राप्त होना है। शास्त्रों में बताया गया है हर व्यक्ति का मृत्यु का समय पूर्व निश्चित है। इसके साथ ही यह पहले से ही निर्धारित है कि कौन व्यक्ति किस प्रकार मृत्यु को प्राप्त होगा।

वेद-पुराण के अनुसार सब कुछ पूर्व निश्चित है लेकिन व्यक्ति के कर्म से ही प्रारब्ध बनता है। कर्म जैसे होंगे वैसा ही भाग्य बनेगा। इसी वजह से यदि कोई व्यक्ति परमात्मा के दिए जीवन दान का गलत उपयोग करता है तो निश्चित ही इसके बुरे फल प्राप्त होते हैं। यदि कोई व्यक्ति किसी भी कारण से आत्महत्या जैसा पाप करता है तो शास्त्रों में ऐसे लोगों के लिए किसी भी प्रकार का श्राद्ध कर्म वर्जित बताया गया है।

विष्णुस्मृति के अनुसार जो व्यक्ति अग्रि, जल, विष से मृत्यु को प्राप्त होता है या किसी भी कारण से आत्महत्या करता है तो उसके लिए अशौच एवं श्राद्ध-तर्पण का विधान नही है। यदि इस प्रकार मृत लोगों के लिए श्राद्ध-तर्पण या अन्य सात्विक पूजन किया जाता है तो इसका पुण्य उनको मिलता नहीं है। इन्हीं कारणों से आत्महत्या जैसे कृत्य को घोर पाप की श्रेणी में रखा गया है। किसी भी परिस्थिति में इस ओर कदम नहीं बढ़ाना चाहिए।

शनिवार को जूते चोरी हो जाना क्यों माना जाता है शुभ?
ऐसे तो चोरी होना आपके धन की हानि दर्शाता है लेकिन कई बार चोरी को शुभ भी माना जाता है। खासतौर पर अगर शनिवार को चमड़े के जूते चोरी हो जाएं तो उसे बहुत शुभ माना जाता है। कई लोग शनि मंदिरों में जूते छोड़ भी देते हैं, इसे शुभ माना जाता है। आखिर शनिवार को जूते चोरी हो जाने से क्या लाभ होता है? क्यों ऐसा माना जाता है कि चमड़े के जूते चोरी हो जाएं तो सारी परेशानी उसके साथ चली जाती हैं?

वास्तव में यह मान्यता ज्योतिषीय आधार पर प्रचलित है। ज्योतिष शास्त्र में शनि को क्रूर और कठोर न्यायप्रिय ग्रह माना गया है। शनि जब किसी के विपरित होता है तो उस व्यक्ति को जी-तोड़ मेहनत के बाद भी फल थोड़ा ही मिलता है। जिसकी कुंडली में साढ़े साती, ढैया हो, या जिसकी राशि में शनि अच्छे स्थान पर न हो, उसे यह खास परेशानी होती है। शनिवार शनि का दिन माना जाता है। हमारे शरीर के अंग भी ग्रहों से प्रभावित होते हैं। त्वचा (चमड़ी) और पैर में शनि का वास माना जाता है, इनसे संबंधित चीजें शनि के लिए दान की जाती हैं और इनकी बीमारियां भी शनि से संबंधित होती हैं।

चमड़ा और पैर दोनों ही शनि से प्रभावित होते हैं, इस कारण चमड़े के जूते अगर शनिवार को चोरी हो जाएं तो मानना चाहिए कि हमारी परेशानी कम होने जा रही हैं। शनि अब ज्यादा परेशान नहीं करेगा। कई लोग इसी कारण से शनिवार को शनि मंदिरों में जूते भी छोड़कर आते हैं ताकि शनि उनके कष्ट कम कर दें।

घर के मंदिर में भगवान की कितनी मूर्तियां रखनी चाहिए?
हमारे जीवन की हर एक समस्या का निवारण मात्र भगवान की प्रार्थना से ही संभव है। कर्मों के साथ ही भगवान की कृपा प्राप्त होने पर मुश्किल कार्य भी आसानी से पूर्ण हो जाता है। सुख-शांति बनी रहे इसके लिए सभी के घरों में भगवान का एक मंदिर अवश्य ही रहता है। घर के मंदिर में कौन से भगवान की कितनी प्रतिमाएं रखनी चाहिए? इस संबंध में शास्त्रों में आवश्यक निर्देश दिए गए हैं।

सभी के घरों में भगवान के लिए भी यथाशक्ति अलग घर या मंदिर अवश्य होता है। मंदिर में अपने इष्ट देव की मूर्ति, तस्वीर, पूजा का अन्य सामान रखा जाता है। भगवान की मूर्तियों की संख्या के संबंध में ये विशेष बातें शास्त्रों में बताई गई हैं-

- घर के मंदिर में श्रीगणेश की 3 प्रतिमाएं नहीं होना चाहिए। गणपति की मूर्ति होना जरूरी है लेकिन इनकी मूर्तियों की संख्या 3 नहीं होना चाहिए। गणेशजी की मूर्तियों की संख्या 3 अशुभ मानी जाती है।

- मंदिर में दो शिवलिंग नहीं होना चाहिए तथा शिवलिंग अंगूठे के आकार का होना चाहिए। घर के मंदिर में एक ही शिवलिंग रखना श्रेष्ठ फल देता है। एक से अधिक शिवलिंग रखना शास्त्रों के अनुसार वर्जित है।

- किसी भी देवी या माताजी की 3 प्रतिमाएं नहीं रखें। इनकी संख्या भी 3 नहीं होना चाहिए।

ठंड के दिनों में ये चार काम नहीं करना चाहिए, क्योंकि...
साल में तीन ऋतुएं प्रमुख मानी गई हैं। वर्षा ऋतु, ग्रीष्म ऋतु और शीत ऋतु। इन तीनों में ऋतुओं में से शीत ऋतु स्वास्थ्य की दृष्टि की काफी महत्वपूर्ण है। ठंड के दिनों स्वास्थ्य संबंधी नियमों का पालन किया जाए तो वर्षभर व्यक्ति स्फूर्तिवान और ऊर्जावान बने रह सकता है।

इसी वजह से इन दिनों कुछ ऐसे कार्य बताए गए हैं जो हमें नहीं करना चाहिए। किसी भी व्यक्ति को पूर्ण रूप से स्वस्थ रहने के लिए ठंड के दिनों में जल्दी सो जाना चाहिए। इस समय में देर रात तक जागने से सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अत: देर रात नहीं जागना चाहिए।

जल्दी सोने के बाद सुबह जल्दी उठ भी जाना चाहिए। सूर्योदय के बाद उठने से दिनभर आलस्य बने रहता है। यदि सुबह जल्दी उठने की आदत रहेगी तो आपके जीवन से आलस्य हट जाएगा। हमेशा तरोताजा दिखाई देंगे। काफी लोगों को आदत होती है कि वे दिन में भी सोते हैं।

शीत ऋतु में दिन के समय सोना वर्जित किया गया है। इससे आलस्य में बढ़ोतरी होती है साथ ही यह स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा नहीं है। दिन में सोने से मोटापे की समस्या हो सकती है।

ऐसा माना जाता है कि शीत ऋतु में स्वास्थ्य पर सही ध्यान दिया जाए तो पूरे सालभर पर उसका अच्छा प्रभाव दिखाई देता है। इसी वजह से ठंड के दिनों सेहत बनाने पर अधिक जोर दिया जाता है।

घर का ऐसा दरवाजा बिगाड़ सकता है आपकी किस्मत, क्योंकि...
हमारे घर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं दरवाजे। क्या आप जानते हैं दरवाजे किस्मत चमका भी सकते हैं और बिगाड़ भी सकते हैं। जी हां किसी भी घर के लिए यह जरूरी है कि दरवाजे किसी भी प्रकार से टूटे हुए नहीं होना चाहिए।

घर के दरवाजे सुंदर और आकर्षक होने चाहिए। इसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों की कारण मौजूद हैं। दरवाजे ही हमारे घर की वास्तविक स्थिति बता देते हैं। यदि किसी व्यक्ति के घर के दरवाजे टूटे हुए हैं तो अधिकांश परिस्थितियों में ऐसा होता है कि उस घर की आर्थिक स्थिति सही नहीं रहती है। टूटे दरवाजे नकारात्मक ऊर्जा को अधिक सक्रिय कर देते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह रोक देते हैं। ऐसे घर में रहने वाले लोगों के विचार भी नेगेटिव ही रहते हैं।

ऐसे दरवाजे की वजह से किसी भी कार्य को करने से पहले उस कार्य में असफलता का ख्याल पहले हमारे दिमाग में आता है। जिससे आत्मविश्वास में कमी आती है और कार्य बिगडऩे की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। वास्तु के अनुसार भी टूटे दरवाजे वास्तु दोष उत्पन्न करते हैं। धर्म के अनुसार देखा जाए तो महालक्ष्मी उसी घर में सदैव निवास करती हैं जिस घर में साफ-सफाई, स्वच्छता के साथ ही सुंदरता भी हो। यदि घर में प्रवेश कराने वाला दरवाजा ही टूटा हुआ होगा तो ऐसे घर में महालक्ष्मी की कृपा की कमी रहती है। इन्हीं कारणों के चलते हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि घर के सभी दरवाजे सुंदर और व्यवस्थित रहें।

मंदिर जाने का समय नहीं मिलता है तो क्या करना चाहिए...
किसी भी समस्या का निराकरण मात्र भगवान के दर्शन से हो जाता है। हर पल बढ़ते मानसिक तनाव को दूर करने के लिए मंदिर से अच्छा अन्य कोई स्थान नहीं है। भगवान के सामने पहुंचकर मन को शांति मिलती है और कुछ देर के लिए व्यक्ति भगवान का ध्यान करता है। इन्हीं शुभ कारणों को देखते हुए मंदिर की इच्छा अधिकांश लोगों की रहती है। आजकल लगभग हर इंसान की व्यस्तता इतनी बढ़ गई है कि वह भगवान के दर्शन के लिए किसी मंदिर तक नहीं जा रहा है। जानिए... इस परिस्थिति में क्या करना चाहिए?

शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति मंदिर जाने में असमर्थ है तो उसे घर के मंदिर में ही भगवान की विधिवत पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा यदि कहीं भी जाते समय रास्ते में मंदिर का शिखर दिखाई दे तो उसे प्रणाम अवश्य करना चाहिए। इन दो उपाय से भी उतना ही पुण्य प्राप्त होता है जितना किसी मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन करने से प्राप्त होता है।

आजकल काफी लोग समय अभाव के कारण मंदिर जाने में असमर्थ हैं। उनके लिए यह उपाय सर्वश्रेष्ठ है। इससे उन पर भगवान की कृपा भी बनी रहेगी और जीवन की परेशानियों से निजात भी मिलेगी। प्रतिदिन घर में ही भगवान की विधिवत पूजा करने से घर का वातावरण भी पवित्र होता है। हमारे आसपास की समस्त नकारात्मक शक्तियां नष्ट हो जाती हैं। मन प्रसन्न रहता है और भगवान के दर्शन से जो सुख प्राप्त होता है उससे दिनभर ऊर्जा बनी रहती है।

जब भी कोई आपके पैर छुए तो जरूर करें ये दो काम, क्योंकि...
हिंदू परंपराओं में से एक परंपरा है सभी उम्र में बड़े लोगों के पैर छुए जाते हैं। इसे बड़े लोगों का सम्मान करना समझा जाता है। जिन लोगों के पैर छुए जाते हैं उनके लिए शास्त्रों में कई नियम भी बनाए हैं। यदि कोई आपके पैर छुता है तो आपको क्या करना चाहिए, जानिए...

उम्र में बड़े लोगों के पैर छुने की परंपरा काफी प्राचीन काल से ही चली आ रही है। इससे आदर-सम्मान और प्रेम के भाव उत्पन्न होते हैं। साथ ही रिश्तों में प्रेम और विश्वास भी बढ़ता है। पैर छुने के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक कारण दोनों ही मौजूद हैं। जब भी कोई आपके पैर छुए तो सामान्यत: आशीर्वाद और शुभकामनाएं तो देना ही चाहिए, साथ भगवान का नाम भी लेना चाहिए।

जब भी कोई आपके पैर छुता है तो इससे आपको दोष भी लगता है। इस दोष से मुक्ति के लिए भगवान का नाम लेना चाहिए। भगवान का नाम लेने से पैर छुने वाले व्यक्ति को भी सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं और आपके पुण्यों में बढ़ोतरी होती है। आशीर्वाद देने से पैर छुने वाले व्यक्ति की समस्याएं समाप्त होती है, उम्र बढ़ती है।

किसी बड़े के पैर क्यों छुना चाहिए?
पैर छुना या प्रणाम करना, केवल एक परंपरा या बंधन नहीं है। यह एक विज्ञान है जो हमारे शारीरिक, मानसिक और वैचारिक विकास से जुड़ा है। पैर छुने से केवल बड़ों का आशीर्वाद ही नहीं मिलता बल्कि अनजाने ही कई बातें हमारे अंदर उतर जाती है। पैर छुने का सबसे बड़ा फायदा शारीरिक कसरत होती है, तीन तरह से पैर छुए जाते हैं। पहले झुककर पैर छुना, दूसरा घुटने के बल बैठकर तथा तीसरा साष्टांग प्रणाम। झुककर पैर छुने से कमर और रीढ़ की हड्डी को आराम मिलता है। दूसरी विधि में हमारे सारे जोड़ों को मोड़ा जाता है, जिससे उनमें होने वाले स्ट्रेस से राहत मिलती है, तीसरी विधि में सारे जोड़ थोड़ी देर के लिए तन जाते हैं, इससे भी स्ट्रेस दूर होता है। इसके अलावा झुकने से सिर में रक्त प्रवाह बढ़ता है, जो स्वास्थ्य और आंखों के लिए लाभप्रद होता है। प्रणाम करने का तीसरा सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे हमारा अहंकार कम होता है। किसी के पैर छुना यानी उसके प्रति समर्पण भाव जगाना, जब मन में समर्पण का भाव आता है तो अहंकार स्वत: ही खत्म होता है। इसलिए बड़ों को प्रणाम करने की परंपरा को नियम और संस्कार का रूप दे दिया गया।

किसी के मरने के बाद ये पढ़ना चाहिए, क्योंकि...
हिंदू शास्त्रों के अनुसार जन्म-मृत्यु एक ऐसा चक्र है जो अनवरत चलता रहता है। जीवन के मृत्यु तो आएगी ही। जन्म से मृत्यु तक हमें कई कार्य करने होते हैं। प्राचीन ऋषि-मुनियों और विद्वानों ने कई परंपराएं बनाई गई हैं जिनका पालन करना काफी हद तक अनिवार्य बताया गया है। हमारे जीवन के साथ-साथ मृत्यु के बाद की भी हमसे जुड़ी कुछ परंपराएं होती हैं जिनका पालन हमारे परिवार वालों को करना पड़ता है। इन्हीं परंपराओं में से एक है घर के किसी सदस्य की मृत्यु के बाद गरुड़ पुराण सुनी जाती है। किसी पंडित से से गरुड़ पुराण पढ़वाई जाती है और घर के सभी सदस्य इसका श्रवण करते हैं।

परिवार के किसी भी सदस्य की मृत्यु के बाद घर में गरुड़ पुराण सुनने की प्रथा है। इसका सभी के यहां अनिवार्य रूप पालन किया जाता है। गरुड़ पुराण में जन्म-मृत्यु से जुड़े सभी सवालों के जवाब हैं। जिन्हें जानना सभी के लिए आवश्यक है। इसी वजह से मृत्यु के पश्चात सभी को गरुड़ पुराण का ज्ञान दिया जाता है ताकि सभी जीवित लोग जीवन में अच्छा कार्य करें। सभी जानते हैं कि जो जैसा करता है उसे उसका वैसा ही फल मिलता है। यही बात गरुड़ पुराण में बताई गई है।

ऐसी मान्यता है कि गरुड़ पुराण के श्रवण से मरने वाले व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलती है क्योंकि गरुड़ पुराण पगड़ी आदि रस्मों के दिन तक पढ़ी जाती है। शास्त्रों के अनुसार पगड़ी रस्म तक मरने वाले की आत्मा उसी के घर में निवास करती है और वह भी यह पुराण सुनती है। गरुड़ पुराण श्रवण का धार्मिक महत्व यही है कि मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति मिले और उसे मोक्ष मिल सके।

गरुड़ पुराण के अनुसार हमारे कर्मों का फल हमें हमारे जीवन में तो मिलता ही है परंतु मरने के बाद भी कार्यों का अच्छा-बुरा फल मिलता है। इसी वजह से इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए घर के किसी सदस्य की मृत्यु के बाद का अवसर निर्धारित किया गया ताकि उस समय हम जन्म-मृत्यु से जुड़े सभी सत्य जान सके और मृत्यु वश बिछडऩे वाले सदस्य का दुख कम हो सके।

लोग ताविज क्यों पहनते हैं?
अक्सर देखने में आता है कि कई लोग गले में काले रंग के धागे में किसी धातु या लाल-काले रंग के कपड़े का टुकड़ा पहनते हैं। यही ताविज कहलाता है। सामान्यत: सभी छोटे बच्चों को तो अनिवार्य रूप से ताविज बांधा जाता है। कई लोग ताविज बांधने को अंधविश्वास मानते हैं परंतु ऐसा नहीं है। इसके स्वास्थ्य संबंधी कई फायदे भी होते हैं।

ताविज बांधने की परंपरा हर धर्म में मानी जाती है। यह अति प्राचीनकालीन प्रथा है। जिसे आज भी अधिकांश लोग मानते हैं। ताविज बांधने से बुरी नजर नहीं लगती है। वहीं कई लोग मंत्रों से सिद्ध किए ताविज धारण करते हैं। मंत्रों की शक्ति से सभी भलीभांति परिचत हैं। किसी सिद्ध संत या महात्मा द्वारा अपनी मंत्र शक्ति से ताविज बनाकर दिए जाते हैं। यह ताविज बीमारियों से निजात पाने के लिए बनवाए जाते हैं।

ताविज में एक काला धागा होता है। इस धागे में किसी कपड़े में या धातु की छोटी सी डिबिया होती है। इस कपड़े या डिबिया में कोई मंत्र लिखा भोज पत्र, भभूती, सिंदूर के साथ कई लोग इसमें तांत्रिक वस्तुएं भी रखते हैं।

मान्यता है कि ताविज के प्रभाव से वातावरण में मौजूद नकारात्मक शक्तियां हमें प्रभावित नहीं कर पाती। साथ ही ताविज का धागा हमें दूसरों की बुरी नजर से बचाता है। ताविज का मंत्र लिखा भोज पत्र या भगवान की भभूति या सिंदूर आदि मंत्रों के बल सिद्ध किए होते हैं जो धारण करने वाले व्यक्ति के लिए शुभ रहते हैं।

गुरुवार को सांई बाबा के दर्शन करना चाहिए, क्योंकि...
सांई बाबा एक ऐसे फकीर हैं जिन्हें हर धर्म के लोग बड़ी श्रद्धा से पूजते हैं। सभी जाति और धर्म इनके प्रति पूर्ण विश्वास रखते हैं। गुरुवार के दिन बड़ी संख्या में सांई भक्त उनके दर्शन के लिए सांई बाबा के मंदिर पहुंचते हैं।

सांई की आराधना किसी भी विशेष मुहूर्त या वार को की जा सकती है परंतु गुरुवार को इनकी पूजा का विशेष महत्व माना गया है। गुरुवार को इनकी आराधना का इतना महत्व क्यों हैं? इस संबंध में यही तथ्य है कि गुरुवार गुरु का दिन माना जाता है। सभी धर्मों में गुरु का खास स्थान माना जाता है, गुरु ही हमें आदर्श जीवन जीने के सूत्र बताता है। गुरु ही सही राह पर चलने की प्रेरणा देता है। साईं बाबा ने हमेशा सभी को आदर्श और उच्च जीवन जीने की प्रेरणा दी है। इसी वजह से इन्हें बड़ी संख्या श्रद्धालु अपना गुरु मानते हैं। साथ ही ऐसा माना जाता है कि इनकी आराधना से जल्द ही हमारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। साईं के मंदिर में सभी धर्मों के लोगों के लिए समभाव रखा जाता है। गुरुवार गुरु का दिन होने की वजह से साईं बाबा को गुरु मानने वाले सभी भक्त इस दिन बाबा के मंदिर जाते हैं।

साईं बाबा के मंत्र सबका मालिक एक यही बताता है कि परमात्मा एक है और वही हम सभी का पालन-पोषण करता है। इसी मंत्र की वजह से वे सर्वधर्म के लोगों के लिए भगवान और गुरु के समान ही हैं।

रात में ऐसी झाडिय़ों के पास नहीं जाना चाहिए, क्योंकि...
वैसे तो पेड़-पौधे हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी हैं लेकिन कुछ ऐसे पौधे या झाडिय़ां हैं जिनके पास रात के समय नहीं जाना चाहिए। कई लोगों के घरों के आसपास या रास्ते में या पार्क में मेहंदी की झाडिय़ां होती हैं। रात के समय इनके पास नहीं जाना चाहिए, इसके पीछे कई कारण हैं।

इस संबंध में बुजुर्ग और कई धार्मिक लोगों का मानना है कि मेहंदी की झाडिय़ों के आसपास नकारात्मक शक्तियां अधिक सक्रीय रहती हैं। नकारात्मक शक्तियां यानि अदृश्य बुरी ताकतें। मेहंदी की झाडिय़ों से निकलने वाली गंध ऐसी नेगेटिव एनर्जी को काफी बढ़ा देती हैं। रात के समय ये काफी अधिक शक्तिशाली हो जाती हैं। कमजोर लोगों पर इसका बुरा प्रभाव बहुत जल्दी पड़ जाता है। इसकी वजह से मानसिक संतुलन बिगड़ सकता है और दूसरी बीमारियां भी हो सकती हैं।

पुराने समय में ऐसा माना जाता था कि मेहंदी की झाडिय़ों के आसपास बुरी आत्माएं रहती हैं जो रात के समय बलशाली होकर हमें नुकसान पहुंचा सकती है। अत: इनसे दूर रहने में ही भलाई है। इन्हीं कारणों के चलते इसे घर में नहीं लगाना चाहिए। इसे अशुभ माना जाता है।

सभी जानते हैं कि रात के समय पेड़-पौधों की श्वसन क्रिया मनुष्य के समान हो जाती है। पेड़ पौधे भी रात के समय ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं। ऐसे में यदि रात के समय झाडिय़ों के आसपास जाते हैं तो वहां कार्बनडाई ऑक्साइड गैस काफी अधिक मात्रा में हो सकती है। जिससे वहां जाने वाले व्यक्ति को सांस ग्रहण करने में परेशानी हो सकती है। यदि हमें पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिलती है तो यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ही है। अत: इन्हीं कारणों से रात के समय मेहंदी की झाडिय़ों के आसपास नहीं जाना चाहिए।

हमें कब और क्यों नहीं सोना चाहिए?
अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी है पर्याप्त नींद लेना। नींद के समय के संबंध में जरा सी गड़बड़ी के कई बुरे परिणाम झेलना पड़ सकते हैं। नींद के समय को लेकर शास्त्रों में भी कई महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं। इन बातों को परंपराओं से जोड़ा गया है ताकि व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना न करना पड़े।

शास्त्रों के अनुसार शाम के समय सोना वर्जित किया गया है। स्वास्थ्य संबंधी कारणों के अलावा शास्त्रों के अनुसार कुछ बातें हैं जिनके आधार पर सोने के लिए यह समय वर्जित किया गया है। ऐसा माना जाता है कि शाम के समय धन की देवी महालक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और जो लोग उन्हें इस सोते दिखते हैं उस पर वे कृपा नहीं रखती है। ऐसे में लक्ष्मी की कृपा के बिना व्यक्ति को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जीवन स्तर बुरी तरह प्रभावित होता है।

स्वास्थ्य की दृष्टि से भी शाम के समय सोना हानिकारक ही है। इस समय सोने से आलस्य बढ़ता है और अपच की समस्या होती है। शरीर में अत्यधिक फेट बढ़ता है जिससे मोटापा बढऩे का खतरा रहता है। रात के समय नींद ठीक से नहीं आती है जिससे पूरे दिन आलस्य बना रहता है। कार्यों में गति नहीं बन पाती है। मानसिक तनाव बढ़ सकता है। इन्हीं कारणों के चलते शाम के समय सोने के लिए मना किया जाता है।

इस बीमारी में मरीज को जूते क्यों सुंघाते हैं?
कुछ बीमारियां ऐसी हैं जिन्हें पुराने समय में ऊपरी बाधा या भूत या हवा का प्रकोप समझा जाता था। जबकि यह अंधविश्वास का ही एक रूप है। ऐसी बीमारियों में से एक है मिर्गी का दौरा आना।

मिर्गी का दौरा एक ऐसी बीमारी है जिसमें रोगी का मस्तिष्क नियंत्रण से लगभग बाहर हो जाता है, उसे कुछ होश नहीं रहता, मुंह से सफेद झाग निकलने लगते हैं। जब यह दौरा आता है तो व्यक्ति का दिमाग संतुलन से बाहर हो जाता है जिससे शरीर लडख़ड़ाने लगता है। हाथ-पैर झटके खाने लगते हैं, रोगी गिर जाता है, बेहोश हो जाता है।

पुराने समय में जब किसी को मिर्गी का दौरा आता था तो उसे जूते सुंघाते थे। तब ऐसा माना जाता था कि यह किसी हवा का प्रकोप है और चमड़े के जूते और पसीने की बदबू से व्यक्ति ऊपरी बाधा के चंगुल से आजाद हो जाता है। इसी सोच की वजह से प्रभावित व्यक्ति को जूते सुंघाए जाते थे। इसे एक टोटके की भांति समझा जाता था। आज भी कई बुजूर्ग ऐसा ही मानते हैं।

आज के युग में मिर्गी के संबंध ऐसा माना जाता है कि यह एक बीमारी है और इसका इलाज दवाइयों से किया जा सकता है। इसके लिए मरीज को जूते नहीं सुंघाना चाहिए। मिर्गी को अपस्मार के नाम से जाना जाता है। स्वास्थ्य संबंधी लापरवाही के चलते यह बीमारी होने की पूरी संभावनाएं रहती हैं।

जब भी किसी को मिर्गी का दौरा आए तो रोगी को जूता नहीं सुंघाएं इससे संक्रमण फैल सकता है। ऐसी परिस्थिति में रोगी को किसी साफ एवं स्वस्थ स्थान पर लेटा देना चाहिए। सिर के नीचे तकिया लगाएं, रोगी के कपड़े ढीले कर दें। यदि मरीज के मुंह से झाग निकल रहे हैं तो उसे साफ करें। सामान्यत: यह दौरा कुछ समय पर स्वत: ठीक हो जाता है लेकिन इसका उचित उपचार किया जाना चाहिए।

लड़कियों की तरह लड़कों को भी छिदवाना चाहिए कान...
शास्त्रों के अनुसार कई संस्कार बताए गए हैं जिनका निर्वहन करना धर्म और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण बहुत फायदेमंद रहता है। इन सभी संस्कारों को धर्म से जोड़ा गया है ताकि व्यक्ति धर्म के नाम इनका पालन करता रहे। इन्हीं महत्वपूर्ण संस्कारों में से एक है कर्णछेदन संस्कार।

सामान्यत: केवल लड़कियों के कान छिदवाने की परंपरा है लेकिन प्राचीन काल में लड़कों के भी कान छिदवाए जाते थे। आजकल काफी हद तक लड़कों के कान छिदवाने की परंपरा लगभग बंद ही हो गई है लेकिन कुछ लड़के फैशन के नाम पर जरूर कान छिदवाते हैं। पुराने समय में लड़कियों की तरह लड़कों के भी कान छिदवाते थे और उनके कानों में कुंडल भी पहनाए जाते थे।

इस परंपरा के पीछे स्वास्थ्य संबंधी कारण हैं। कान छिदवाने और कानों में बाली पहनने से मस्तिष्क के दोनों भागों के लिए एक्यूप्रेशर और एक्यूपंचर का काम होता है। दिमाग के कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती है। साथ ही कानों में बाली पहनने से कई रोगों से लडऩे की शक्ति भी बढ़ती है।

इन स्वास्थ्य संबंधी कारणों के अतिरिक्त इसके धार्मिक महत्व भी है। मनुष्य जीवन के प्रमुख 16 संस्कारों में कणछेदन संस्कार भी शामिल है। अत: प्राचीन काल में इसका निर्वहन अवश्य किया जाता था।

लड़कियों को बोलते समय ध्यान रखनी चाहिए ये 16 बातें, क्योंकि...
किसी भी परिवार के लिए स्त्री मान-सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रतीक होती हैं। इसी वजह से स्त्रियों का विशेष ध्यान रखा जाता है। शास्त्रों के अनुसार प्राचीन काल से ही महिलाओं के लिए कई नियम बनाए गए हैं ताकि घर-परिवार की मान-सम्मान और प्रतिष्ठा सदैव बनी रह सके।

स्त्रियों के संबंध में माना जाता है कि वे बोलती बहुत हैं। अत: शास्त्रों में बताया गया है कि स्त्रियों को बोलते समय इन सोलह बातों का खास ध्यान रखना चाहिए-

1. स्त्रियों को बहुत ज्यादा नहीं बोलना चाहिए।

2. बिल्कुल चुप भी नहीं रहना चाहिए।

3. समय-समय पर बोलना चाहिए।

4. दो लोग यदि बात कर रहे हैं तो उनके बीच में बिना पूछे नहीं बोलना चाहिए।

5. बिना सोचे-विचारे कोई बात नहीं करना चाहिए।

6. बोलने में शीघ्रता नहीं करनी चाहिए।

7. ऊट-पटांग बात नहीं करना चाहिए।

8. उलाहना भरी और मतभेदी बात नहीं करना चाहिए।

9. हमेशा धर्म युक्त और यथार्थ बात करनी चाहिए।

10. दूसरे लोगों को जो बातें बुरी लगती हैं वे बात कभी नहीं बोलना चाहिए।

11. किसी को भी ताना नहीं मारना चाहिए, ना ही व्यंग्य करना चाहिए।

12. अनावश्यक हंसी और दिल्लगी नहीं करना चाहिए।

13. दूसरों की बुराई नहीं करना चाहिए।

14. सच, कोमल, मधुर वाणी रखना चाहिए।

15. अपने मुख से ही स्वयं की प्रशंसा नहीं करना चाहिए।

16. बात करते समय किसी भी प्रकार की जिद नहीं करना चाहिए।

मोक्षदा एकादशी 6 को, पुनर्जन्म से मुक्ति दिलाता है यह व्रत
मार्गशीर्ष (अगहन) मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहते हैं। इस दिन श्रद्धालु व्रत के साथ भगवान दामोदर की पूजा करते हैं। इस बार यह एकादशी 6 दिसंबर, मंगलवार को है।

धर्म ग्रंथों के अनुसार महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन मोहग्रस्त हो गया था तब भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश देकर अर्जुन के मोह का निवारण किया था। उस दिन मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी थी तभी से इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है।

शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान दामोदर की विधि-विधान से पूजा करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोक्षदा एकादशी पर श्रीकृष्ण द्वारा कहे गए गीता के उपदेश से जिस प्रकार अर्जुन का मोहभंग हुआ था, वैसे ही इस एकादशी के प्रभाव से व्रती को लोभ, मोह, द्वेष और समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है।

पद्म पुराण में ऐसा उल्लेख आया है कि इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से जाने-अनजाने में किए गए सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, पुनर्जन्म से मुक्ति मिलती है और पितरों को सद्गति मिलती है। माना जाता है कि इस व्रत की केवल कथा सुनने से ही हजारों यज्ञ का फल मिलता है।

रोड पर मिली ऐसी चीजें घर नहीं लाना चाहिए, क्योंकि
अक्सर ऐसा होता है कि कहीं जाते समय रोड पर कोई चीज पड़ी दिखाई देती है। कभी-कभी ये चीजें आपके काम की भी होती हैं। ऐसे में आपका मन होता है कि रोड पर पड़ी उस चीज को उठा लिया जाए। लेकिन ऐसा करने से पहले ध्यान रखें कि यदि वस्तु लौहे की हो तो उस दिन शनिवार नहीं होना चाहिए।

शनिवार के दिन लौहे की वस्तु रोड पर पड़ी दिखाई दे तो उसे घर लेकर नहीं आना चाहिए। शनिवार शनि का दिन है और लौहा शनि से ही संबंधित धातु है। अत: शनिवार के दिन ऐसा लौहा घर लेकर आना अशुभ माना गया है। ऐसा करने पर शनि दोष बढ़ता है।

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि अशुभ फल देने वाला है और वह शनिवार के दिन ऐसे लौहे की वस्तु घर ले आता है तो उसे शनि के कोप का सामना करना पड़ता है। इस दिन शनि से संबंधित वस्तुएं दान करना चाहिए। इससे शनि का दोष शांत होता है। शनि को सबसे क्रूर ग्रह माना जाता है क्योंकि इन्हें न्यायाधीश का पद प्राप्त है। न्यायाशीश होने के कारण ये ही हमें हमारे कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। यदि किसी व्यक्ति ने जाने-अनजाने कोई पाप कर्म किया है तो शनि देव ऐसे कर्मों के लिए दण्ड अवश्य देते हैं।

मुहर्रम सिखाता है उसूलों पर कायम रहना
इस्लाम में रमजान की ही तरह मुहर्रम का महीना भी खुदा की इबादत के लिए बहुत खास माना जाता है। इस्लामी कैलंडर यानी हिजरी संवत में मुहर्रम के महीने से ही साल की शुरुआत होती है। मुस्लिम धर्मावलंबी इस महीने की दस तारीख को हजरत मोहम्मद साहब के नवासे (हजरत फातिमा के बेटे) इमाम हुसैन और उनके साथ शहीद हुए 71 लोगों को कुर्बानी को याद करते हैं।

इमाम हुसैन अपने उसूलों के लिए शहीद हुए थे। मुहर्रम का आयोजन उस शहादत की भावना को जगाए रखने का एक माध्यम है। मुहर्रम नेकी और कुर्बानी का पैगाम देता है। इस्लाम धर्मावलंबी इस महीने में अल्लाह की इबादत में खुद को समर्पित करते हैं। इस महीने में कोई मनोरंजक कार्यक्रम और विवाह आदि भी मुस्लिम समाज में नहीं होते। मोहर्रम इस माह की दस तारीख को मनाया जाता है, क्योंकि यही दिन शहादत का है।

इस्लाम मानने वाले विभिन्न समुदायअलग-अलग तरीकों से इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं। कुछ समुदायताजियों के माध्यम से उन्हें याद करते हैं और इस दिन एक जुलूस के रूप में इकट्ठे हो कर कर्बला तक जाते हैं। कुछ समुदाय रात भर जाग कर नफ्ली नमाज पढ़ कर अपने दिलों को उनकी याद से रोशन करते हैं।

मुहर्रम: रोजे भी रखते हैं इस पवित्र महीने में
इस्लाम में मुहर्रम का माह खुदा की इबादत व इमाम हुसैन की शहादत की याद करने का है। मुस्लिम धर्मावलंबी इस माह की नौ व दस तारीख को रोजे भी रखते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इन दिनों में रोजा रखने से बीते समय के सभी गुनाहों से छुटकारा मिलता है।

इस्लाम के मानने वाले मुहर्रम माह की दस तारीख को शहीदों की याद के रूप में तथा इस्लाम के प्रति अपने समर्पण को दर्शाते हैं और साथ ही यह दुआ भी करते हैं कि रब उन्हें भी नेकी, समर्पण व कुर्बानी के जज्बे से सराबोर रखे। जंग को हराम समझे जाने वाले इस माह को शहरूल्लाह व शहरूल अम्बिया भी कहा जाता है।

फारूक-ए-आजम के दौर से इस माह को हिजरी साल का पहला महीना मुकर्रर किया गया है। इस माह में अल्लाह तआला ने इन्सानियत को वजूद बख्शा है। इस्लामी ग्रंथों के अनुसार चार माह जिलकअदा, जिलहिज्जा, मुहर्रम व रजब को हुरमत वाले महीने कहा जाता है।

जानिए, क्यों निकाले जाते हैं ताजिए
मुहर्रम मुस्लिम कैलेण्डर का पहला महीना है। यह पर्व मूलत: इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाता है। सऊदी अरब में मक्का में कर्बला की घटना की याद में यह पर्व मनाया जाता है जिसमें अल्लाह के देवदूत मोहम्मद साहब की पुत्री फातिमा के दूसरे बेटे इमाम हुसैन का निर्दयतापूर्वक कत्ल कर दिया गया था।

यजीद की सेना के विरुद्ध जंग लड़ते हुए इमाम हुसैन के पिता हजरत अली का संपूर्ण परिवार मौत के घाट उतार दिया गया था और मुहर्रम के दसवे दिन इमाम हुसैन भी इस युद्ध में शहीद हो गए थे। मुहर्रम के दसवें दिन ही मुस्लिम संप्रदाय द्वारा ताजिए निकाले जाते हैं। लकड़ी, बांस व रंग-बिरंगे कागज से सुसज्जित ये ताजिए हजरत इमाम हुसैन के मकबरे के प्रतीक के रूप में माने जाते हैं।

इसी जुलूस में इमाम हुसैन के सैन्य बल के प्रतीकस्वरूप अनेक शस्त्रों के साथ युद्ध की कलाबाजियां दिखाते हुए चलते हैं। मुहर्रम के जुलूस में लोग इमाम हुसैन के प्रति अपनी संवेदना दर्शाने के लिए बाजों पर शोक-धुन बजाते हैं और शोक गीत(मर्शिया) गाते हैं। मुस्लिम संप्रदाय के लोग शोकाकुल होकर विलाप करते हैं और अपनी छाती पीटते हैं। इस प्रकार इमाम हुसैन की शहादत की याद में यह पर्व मनाया जाता है।

क्या आप जानते हैं, कर्बला का पहला शहीद कौन था?
इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम इमाम हुसैन की याद दिलाता है। इमाम हुसैन ने खुदा की राह पर चलते हुए बुराई के खिलाफ कर्बला की लड़ाई लड़ी थी, जिसमें इमाम हुसैन अपने साथियों के साथ शहीद हुए थे। इस लड़ाई की सबसे पहला शहीद था इमाम हुसैन का छ: माह का बेटा अली असगर।

जब याजीदी फौज ने कर्बला की बस्ती के पास बहने वाली फुरात नदी के पानी पर पहरा लगा दिया गया तो इमाम हुसैन के साथियों तथा परिवार का पानी के बिना बुरा हाल हो गया लेकिन नेकी की राह से नहीं हटे। इमाम हुसैन के 6 माह के बेटे अली असगऱ का जब प्यास से बुरा हाल हो गया तब अली असगऱ की मां सय्यदा रबाब ने इमाम से कहा की इसकी तो किसी से कोई दुश्मनी नहीं है शायद इसको पानी मिल जाए। जब इमाम हुसैन बच्चे को लेकर निकले और याजीदी फौज से कहा की कम से कम इसको तो पानी पिला दो।

इसके जवाब में याजीद के फौजी हरमला ने इस 6 माह के बच्चे के गले का निशाना लगा कर ऐसा तीर मारा कि हजऱत अली असगऱ के हलक को चीरता हुआ इमाम हुसैन के बाज़ू में जा लगा। बच्चे ने बाप के हाथ पर तड़प कर अपनी जान दे दी। इमाम हुसैन के काफिले का यह सबसे नन्हा व पहला शहीद था।

10 मुहर्रम को उजड़ गई थी कर्बला की बस्ती
कर्बला का नाम सुनते ही मन खुद-ब-खुद कुर्बानी के ज़ज्बे से भर जाता है। जब से दुनिया का वजूद कायम हुआ है तब से लेकर अब तक न जानें कितनी बस्तियां बनी और उजड़ गई लेकिन कर्बला की बस्ती के बारे में ऐसा कहते हैं कि यह बस्ती सिर्फ 8 दिनों में ही तबाह कर दी गई।

2 मुहर्रम 61 हिजरी में कर्बला में इमाम हुसैन के काफिले को जब याजीदी फौज ने घेर लिया तो हुसैन साहब ने अपने साथियो से यहीं खेमे लगाने को कहा और इस तरह कर्बला की यह बस्ती बसी।

इस बस्ती मे इमाम हुसैन के साथ उनका पूरा परिवार और चाहने वाले थे। बस्ती के पास बहने वाली फुरात नदी के पानी पर भी याजीदी फौज ने पहरा लगा दिया। 7 मुहर्रम को बस्ती में जितना पानी था सब खत्म हो गया। 9 मुहर्रम को याजीदी फौज के कमांडर इब्न साद ने अपनी फौज को हुक्म दिया दुश्मनों पर हमला करने के लिए तैयार हो जाए। उसी रात इमाम हुसैन ने अपने साथियों को इकट्ठा किया। तीन दिन का यह भूखा, प्यासा कुनबा रात भर इबादत करता रहा।

इसी रात (9 मुहर्रम की रात) को इस्लाम में शबे आशूर के नाम से जाना जाता है। दस मुहर्रम की सुबह इमाम हुसैन ने अपने साथियों के साथ नमाज़-ए फज्र अदा किया। इमाम हुसैन की तरफ से सिर्फ 72 ऐसे लोग थे जो मुक़ाबले मे जा सकते थे। यजीद की फौज और इमाम हुसैन के साथियों के बीच युद्ध हुआ जिसमें इमाम हुसैन अपने साथियों के साथ नेकी की राह पर चलते हुए शहीद हो गए। और इस तरह कर्बला की यह बस्ती 10 मुहर्रम को उजड़ गई ।

घर से निकलने से पहले कुछ मीठा जरुर खाना चाहिए, क्योंकि...
कहा जाता है कि किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले मुंह मीठा करना चाहिए, कोई मिठाई या दही, शकर खाना चाहिए। यह परंपरा भी पुराने समय से ही चली आ रही है। आज भी कई लोग घर से निकलने के पूर्व कुछ मीठा खाते हैं।

हम जब भी किसी परीक्षा या किसी शुभ कार्य के लिए घर से निकलते हैं तो हमारे बुजुर्ग कुछ मीठा खाकर जाने की बात कहते हैं। आखिर इससे फायदा क्या होता है?

ऐसा माना जाता है मीठा खाकर कुछ भी कार्य करने से हमें सफलता मिलती है। मीठा खाने से हमारा मन शांत रहता है। हमारे विचार भी मिठाई की तरह ही मीठे हो जाते हैं। हमारी वाणी में मिठास आ जाती है। यदि हमारा मन किसी दुखी करने वाली बात में उलझा हुआ है और हम मीठा खा लेते हैं तुरंत ही मन प्रसन्न हो जाता है। मीठा खाने के बाद हम किसी भी कार्य को ज्यादा अच्छे से कर सकते हैं।

साथ ही घर से निकलते समय मीठा खाने से हमारे सभी नकारात्मक विचार समाप्त हो जाते हैं और हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। कुछ लोग दही और शकर खाकर किसी भी शुभ कार्य की शुरूआत करते हैं। दही में खटास होती है और शकर में मिठास। इस खट्टे-मीठे स्वाद से हमारा मन तुरंत ही दूसरे सभी बुरे विचारों से हट जाता है। मीठा खाने से रक्त संचार बढ़ जाता है। एनर्जी मिलती है।

शुभ कार्य के पहले मीठा खाना चाहिए परंतु ज्यादा मीठा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

मंदिर में जब भी बैठे तो ध्यान रखें ये बात, क्योंकि...
वैसे तो हिंदू धर्म के अनुसार ईश्वर कण-कण में विराजमान हैं, हर जीव में परमात्मा निवास करते हैं। ईश्वर की साक्षात् अनुभूति के लिए मंदिर या देवालय बनाए गए हैं। वहीं हमारे घरों में भी भगवान के लिए अलग स्थान रखा जाता है। जहां देवी-देवताओं की प्रतिमाएं या चित्र रखे जाते हैं। जब भी श्रद्धालु कोई मनोकामना लेकर देवालयों में जाते हैं तो वहां कुछ समय बैठते अवश्य है। मंदिर में कैसे बैठना चाहिए इस संबंध में भी विद्वानों द्वारा कुछ बातें बताई गई हैं।

ऐसा माना जाता है कि मंदिरों में ईश्वर साक्षात् रूप में विराजित होते हैं। किसी भी मंदिर में भगवान के होने की अनुभूति प्राप्त की जा सकती है। भगवान की प्रतिमा या उनके चित्र को देखकर हमारा मन शांत हो जाता है और हमें सुख प्राप्त होता है। मंदिर में भगवान का ध्यान लगाने के लिए बैठते समय ध्यान रखना चाहिए कि हमारी पीठ भगवान की ओर न हो। इसे शुभ नहीं माना जाता है। मंदिर में कई दैवीय शक्तियां का वास होता है और वहां सकारात्मक ऊर्जा हमेशा सक्रीय रहती है। यह शक्ति या ऊर्जा देवालय में आने वाले हर व्यक्ति के लिए होती है। यह हम पर ही निर्भर करता है कि हम वह शक्ति कितनी ग्रहण कर पाते हैं। इन सभी शक्तियों का केंद्र भगवान की प्रतिमा ही होती है जहां से यह सभी सकारात्मक ऊर्जा संचारित होती रहती है। ऐसे में यदि हम भगवान की प्रतिमा की ओर पीठ करके बैठ जाते हैं तो यह शक्ति हमें प्राप्त नहीं हो पाती। इस ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए हमारा मुख भी भगवान की ओर होना आवश्यक है।

भगवान की ओर पीठ करके नहीं बैठना चाहिए इसका धार्मिक कारण भी है। ईश्वर को पीठ दिखाने का अर्थ है उनका निरादर। भगवान की ओर पीठ करके बैठने से भगवान का अपमान माना जाता है। इसी वजह से ऋषिमुनियों और विद्वानों द्वारा बताया गया है कि हमारा मुख भगवान के सामने होना चाहिए, पीठ नहीं।

इन दो भगवान की पीठ के दर्शन नहीं करना चाहिए, क्योंकि...
हमारे धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि देवी-देवताओं के दर्शन मात्र से हमारे सभी पाप अक्षय पुण्य में बदल जाते हैं। फिर भी श्री गणेश और विष्णु की पीठ के दर्शन वर्जित किए गए हैं।

गणेशजी और भगवान विष्णु दोनों ही सभी सुखों को देने वाले माने गए हैं। अपने भक्तों के सभी दुखों को दूर करते हैं और उनकी शत्रुओं से रक्षा करते हैं। इनके नित्य दर्शन से हमारा मन शांत रहता है और सभी कार्य सफल होते हैं।
गणेशजी को रिद्धि-सिद्धि का दाता माना गया है। इनकी पीठ के दर्शन करना वर्जित किया गया है। गणेशजी के शरीर पर जीवन और ब्रह्मांड से जुड़े अंग निवास करते हैं। गणेशजी की सूंड पर धर्म विद्यमान है तो कानों पर ऋचाएं, दाएं हाथ में वर, बाएं हाथ में अन्न, पेट में समृद्धि, नाभी में ब्रह्मांड, आंखों में लक्ष्य, पैरों में सातों लोक और मस्तक में ब्रह्मलोक विद्यमान है। गणेशजी के सामने से दर्शन करने पर उपरोक्त सभी सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त हो जाती है। ऐसा माना जाता है इनकी पीठ पर दरिद्रता का निवास होता है। गणेशजी की पीठ के दर्शन करने वाला व्यक्ति यदि बहुत धनवान भी हो तो उसके घर पर दरिद्रता का प्रभाव बढ़ जाता है। इसी वजह से इनकी पीठ नहीं देखना चाहिए। जाने-अनजाने पीठ देख ले तो श्री गणेश से क्षमा याचना कर उनका पूजन करें। तब बुरा प्रभाव नष्ट होगा।

वहीं भगवान विष्णु की पीठ पर अधर्म का वास माना जाता है। शास्त्रों में लिखा है जो व्यक्ति इनकी पीठ के दर्शन करता है उसके पुण्य खत्म होते जाते हैं और धर्म बढ़ता जाता है।
इन्हीं कारणों से श्री गणेश और विष्णु की पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए।

चंद्र ग्रहण के समय खाना नहीं चाहिए, क्योंकि...
हमारे धर्म शास्त्रों में सूर्य व चंद्र ग्रहण के दौरान कई बातों का ध्यान रखने के लिए कहा गया है। ग्रहण के दौरान विशेष तौर पर भोजन करना निषिद्ध माना गया है। 10 दिसंबर 11 को चंद्र ग्रहण होने जा रहा है अत: इस दिन ध्यान रखें ये बात।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ग्रहण के दौरान खाद्य वस्तुओं, जल आदि में सुक्ष्म जीवाणु एकत्रित हो जाते हैं जिनसे वह दूषित हो जाते हैं इसीलिए इनमें कुश (एक विशेष प्रकार की घास) डाल दी जाती है ताकि कीटाणु कुश में एकत्रित हो जाएं और उन्हें ग्रहण के बाद फेंका जा सके। कुश के अलावा तुलसी पत्र भी डालने की परंपरा हिंदू धर्म में है। चूंकि ग्रहण से हमारी जीवन शक्ति का ह्रास होता है और तुलसी पत्र में विद्युत शक्ति व प्राण शक्ति सबसे अधिक होती है इसलिए भोजन पर ग्रहण का प्रभाव समाप्त करने के लिए भोजन तथा पेय पदार्थों में तुलसी के पत्र डालते हैं।

शास्त्रों के अनुसार ग्रहण के समय भोजन करने से सुक्ष्म जीव पेट में जाने से रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। वैज्ञानिक शोधों से भी यह ज्ञात हुआ है कि ग्रहण काल के दौरान मनुष्य की पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है जिसके कारण अपच, अजीर्ण आदि शिकायतें हो सकती हैं। भारतीय धर्म विज्ञानियों का मानना है कि सूर्य व चंद्र ग्रहण लगने के 10 घंटे पूर्व ही उसका कुप्रभाव शुरू हो जाता है, जिसे सूतक काल कहते हैं।

सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए, क्योंकि...
अक्सर शुभ अवसरों पर गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामचरितमानस के सुंदरकांड का पाठ करने का महत्व माना गया है। ज्यादा परेशानी हो, कोई काम नहीं बन रहा हो, आत्मविश्वास की कमी हो या कोई और समस्या कई ज्योतिषी और संत भी लोगों को ऐसी स्थिति में सुंदरकांड का पाठ करने की राय देते हैं। आखिर रामचरितमानस के सारे छह कांड छोड़कर केवल सुंदरकांड का ही पाठ क्यों किया जाता है?

वास्तव में रामचरितमानस के सुंदरकांड की कथा सबसे अलग है। संपूर्ण रामचरितमानस भगवान राम के गुणों और उनकी पुरुषार्थ से भरे हैं। सुंदरकांड एकमात्र ऐसा अध्याय है जो भक्त की विजय का कांड है। मनोवैज्ञानिक नजरिए से देखा जाए तो यह आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति बढ़ाने वाला कांड है।

हनुमान जो कि जाति से वानर थे, वे समुद्र को लांघकर लंका पहुंच गए और वहां सीता की खोज की। लंका को जलाया और सीता का संदेश लेकर लौट आए। यह एक आम आदमी की जीत का कांड है, जो अपनी इच्छाशक्ति के बल पर इतना बड़ा चमत्कार कर सकता है। इसमें जीवन में सफलता के महत्वपूर्ण सूत्र भी हैं। इसलिए पूरी रामायण में सुंदरकांड को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि यह व्यक्ति में आत्मविश्वास बढ़ाता है।

गर्भवती स्त्री को नहीं देखना चाहिए ग्रहण, क्योंकि...
शनिवार, 10 दिसंबर 2011 को साल का आखिरी चंद्र ग्रहण पड़ रहा है। हिंदू धर्म के अनुसार ग्रहण काल के संबंध में कई कार्यों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया गया है। इन्हीं वर्जित कार्यों में से एक है गर्भवती स्त्रियों द्वारा ग्रहण को देखना।

विद्वानों और विज्ञान के अनुसार किसी भी गर्भवती स्त्री को घर से बाहर न निकलने की सलाह दी जाती है। ग्रहण काल के दौरान चंद्र से निकलने वाली किरणें हम पर बुरा ही प्रभाव भी डालती हैं। इन किरणों से बचना सभी के लिए जरूरी है, खासकर गर्भवती स्त्रियों के लिए। ऐसा माना जाता है यह किरणें गर्भ में पल रहे शिशु के लिए बहुत अधिक खतरनाक हो सकती हैं।

साथ ही तंत्र-मंत्र और टोने-टोटके के जानकारों का ऐसा मानना है कि इस काल में बुरी शक्तियां अत्यधिक बलशाली हो जाती है। यहां बुरी शक्तियां से आशय बुरी आत्माओं से है। यह शक्तियां गर्भ में पल रहे बच्चों के लिए तथा गर्भवती स्त्रियों के लिए भी अशुभ है। स्त्रियों के बाहर निकलने पर यह बुरी आत्माएं उन पर प्रभाव डालने का प्रयास करती हैं। जो कि काफी खतरनाक होता है। इसी वजह से गर्भवती स्त्रियों को ग्रहण काल के दौरान घर के अंदर रहने की सलाह दी जाती है। ग्रहण के समय वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा सक्रिय रहती है जो कि कमजोर लोगों पर बुरा प्रभाव डालती है। गर्भवस्था के दौरान स्त्री का शरीर बहुत कमजोर हो जाता है। ऐसे में स्त्रियों इन बुरे प्रभावों से बचने के लिए घर में ही रहना जरूरी है। यदि ग्रहण के दौरान बाहर निकलना भी पड़े तो ध्यान रखें कि किसी भी परिस्थिति में सूर्य को न देखें और पूरी सावधानी रखना चाहिए।

ग्रहण के समय मंदिर क्यों बंद रहते हैं?
ग्रहण काल में मंदिर या सभी देव स्थानों के पट बंद कर दिए जाते हैं। जब तक ग्रहण रहता है मंदिर में किसी भी व्यक्ति को भगवान के दर्शन प्राप्त नहीं होते। ऐसा क्यों होता है कि ग्रहण के पूरे समय तक मंदिर बंद ही रहते हैं?

शास्त्रों के अनुसार ग्रहण को अशुद्ध माना जाता है तथा इस अवधि में पडऩे वाली छाया सभी को अपवित्र कर देती है। हिंदु धर्म में ऐसी मान्यता है कि ग्रहण काल से सूतक लग जाता है और जब तक ग्रहण रहता सूतक समाप्त नहीं होता। इस सूतक में देवी-देवताओं के दर्शन करने पर पाप की बढ़ोतरी होती है और पुण्य घटता है। इसी वजह से इस ग्रहण के समय देवी-देवताओं के दर्शन वर्जित किए गए हैं।

ग्रहण के बाद सभी देवस्थानों का शुद्धिकरण किया जाता है, मंदिरों में अच्छे से साफ-सफाई की जाती है, पूरे मंदिर परिसर को पवित्र किया जाता है, इसके बाद ही मंदिर के पट श्रद्धालुओं के खोले जाते हैं। ग्रहण के बाद मंदिर की ही तरह हमें घर के मंदिर में विराजित भगवान को भी स्नान कराना चाहिए। इसके बाद पूरे घर को गंगा जल से पवित्र करना चाहिए। इससे घर के वातावरण में फैली सभी नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है। सकारात्मक वातावरण निर्मित होता है।

बेडरुम में भगवान की फोटो नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि...
हमारी धार्मिक मान्यताओं में एक यह भी है कि अपने शयनकक्ष यानी बेडरूम में भगवान की कोई प्रतिमा या तस्वीर नहीं लगाई जाती। केवल स्त्री के गर्भवती होने पर बालगोपाल की तस्वीर लगाने की छूट दी गई है। आखिर क्यों भगवान की तस्वीर अपने शयनकक्ष में नहीं लगाई जा सकती है? इन तस्वीरों से ऐसा क्या प्रभाव होता है कि इन्हें लगाने की मनाही की गई है?
वास्तव में यह हमारी मानसिकता को प्रभावित कर सकता है। इस कारण भगवान की तस्वीरों को मंदिर में ही लगाने को कहा गया है, बेडरूम में नहीं। चूंकि बेडरूम हमारी नितांत निजी जिंदगी का हिस्सा है जहां हम हमारे जीवनसाथी के साथ वक्त बिताते हैं। बेडरूम से ही हमारी सेक्स लाइफ भी जुड़ी होती है। अगर यहां भगवान की तस्वीर लगाई जाए तो हमारे मनोभावों में परिवर्तन आने की आशंका रहती है। यह भी संभव है कि हमारे भीतर वैराग्य जैसे भाव जाग जाएं और हम हमारे दाम्पत्य से विमुख हो जाएं। इससे हमारी सेक्स लाइफ भी प्रभावित हो सकती है और गृहस्थी में अशांति उत्पन्न हो सकती है। इस कारण भगवान की तस्वीरों को मंदिर में ही रखने की सलाह दी जाती है।

जब स्त्री गर्भवती होते है तो गर्भ में पल रहे बच्चे में अच्छे संस्कारों के लिए बेडरूम में बाल गोपाल की तस्वीर लगाई जाती है। ताकि उसे देखकर गर्भवती महिला के मन में अच्छे विचार आएं और वह किसी भी दुर्भावना, चिंता या परेशानी से दूर रहे। मां की अच्छी मानसिकता का असर बच्चे के विकास पर पड़ता है।

क्या महिलाओं के लिए जरूरी है घूंघट?
वैसे तो आज के आधुनिक युग में अधिकांश महिलाओं को घूंघट या पर्दा करना पसंद नहीं होता है। लेकिन प्राचीन काल में इस प्रथा का सख्ती से पालन कराया जाता था। आज भी कई गांवों और घरानों में महिलाओं के लिए पर्दा प्रथा लागू है। आखिर महिलाओं को पर्दा में क्यों रखा जाता था? इसके पीछे कई कारण मौजूद हैं।

पर्दा प्रथा को भारतीय परंपरा में अनुशासन और सम्मान की दृष्टि से लिया जाता है। घर की बहुओं को परिवार के बड़ों के आगे घूंघट निकालना होता है, ग्रामीण क्षेत्रों में तो यह अनिवार्य है साथ ही कई महानगरीय परिवारों में भी ऐसा चलन है।

सवाल यह है कि भारतीय परंपरा में घूंघट कब और कैसे आया? क्या सनातन समय से यह परंपरा चली आ रही है या फिर कालांतर में यह प्रचलन बढ़ा है? वास्तव में घूंघट हिंदुस्तान पर आक्रमण करने वाले आक्रमणकारियों की ही देन है। पहले राज्यों में आपसी लड़ाइयां और फिर मुगलों का हमला। इन दो कारणों ने भारत में पूजनीय दर्जा पाने वाले महिला वर्ग को पर्दे के पीछे कर दिया। भारतीय महिलाओं की सुंदरता से प्रभावित आक्रमणकारी अत्याचारी होते जा रहे थे। महिलाओं के साथ बलात्कार और अपहरण की घटनाएं बढऩे लगीं तो महिलाओं की सुंदरता को छिपाने के लिए घूंघट का इजाद हो गया।

पहले यह आक्रमणकारियों से बचने के लिए था, फिर परिवार में बड़ों के सम्मान के लिए और धीरे से इसने अनिवार्यता का रूप धारण कर लिया। आक्रमणकारी चले गए, देश आजाद हो गया लेकिन महिलाओं के चेहरों पर घूंघट रह गया। आज समय के साथ यह प्रथा विलुप्त होती जा रही है। बड़े शहरों में यह प्रथा लगभग बंद ही हो गई है जबकि गांवों में आज भी इसका पालन किया जाता है।

हमें हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए, क्योंकि...

कलयुग में हनुमानजी की भक्ति सबसे सरल और जल्द ही फल प्रदान करने वाली मानी गई है। श्रीराम के अनन्य भक्त श्री हनुमान अपने भक्तों और धर्म के मार्ग पर चलने वाले लोगों की हर कदम मदद करते हैं। सीता माता के दिए वरदान के प्रभाव से वे अमर हैं और किसी ना किसी रूप में अपने भक्तों के साथ रहते हैं।

हनुमानजी को मनाने के लिए सबसे सरल उपाय है हनुमान चालीसा का नित्य पाठ। हनुमानजी की यह स्तुति का सबसे सरल और सुरीली है। इसके पाठ से भक्त को असीम आनंद की प्राप्ति होती है। तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा बहुत प्रभावकारी है। इसकी सभी चौपाइयां मंत्र ही हैं। जिनके निरंतर जप से ये सिद्ध हो जाती है और पवनपुत्र हनुमानजी की कृपा प्राप्त हो जाती है।

यदि आप मानसिक अशांति झेल रहे हैं, कार्य की अधिकता से मन अस्थिर बना हुआ है, घर-परिवार की कोई समस्यां सता रही है तो ऐसे में सभी ज्ञानी विद्वानों द्वारा हनुमान चालीसा के पाठ की सलाह दी जाती है। इसके पाठ से चमत्कारिक फल प्राप्त होता है, इसमें को शंका या संदेह नहीं है। यह बात लोगों ने साक्षात् अनुभव की होगी की हनुमान चालीसा के पाठ से मन को शांति और कई समस्याओं के हल स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं। साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ करने के लिए कोई विशेष समय निर्धारित नहीं किया गया है। भक्त कभी भी शुद्ध मन से हनुमान चालीसा का पाठ कर सकता है।

बुरी नजर से बचने के लिए घर के बाहर लगाना चाहिए काली मटकी...
कभी-कभी ऐसा होता है कि सबकुछ अच्छा चल रहा होता है और अचानक ही अच्छा समय बुरे समय में बदल जाता है। घर में क्लेश, अशांति और आर्थिक तंगी पैर पसार लेती है। परिवार में कोई सदस्य अचानक बीमार हो जाता है। ज्योतिष के अनुसार इस प्रकार के बुरे प्रभाव बुरी नजर के कारण हो सकते हैं। बुरी नजर से बचने के लिए घर के बाहर काली मटकी लगाई जा सकती है।

वैसे तो सभी को अपना घर सुंदर और अच्छा लगता हैं और इन सुंदर और आकर्षक घर को दूसरों की बुरी नजर भी लग सकती हैं। ऐसे में अधिकांश घरों पर काली मटकी लगी दिखाई देती है। यह मटकी क्यों लगाई जाती है?

काली मटकी लगाने के संबंध में ऐसी मान्यता है कि इसे लगाने से किसी की बुरी नजर आपके घर पर नहीं लगेगी। घर पर बुरी नजर लगने का मतलब घर में कुछ अमंगल हो सकता है, घर के किसी सदस्य के साथ कुछ अनहोनी हो सकती है। वहीं बुरी संभावनाओं से बचने के लिए घरों के बाहर काली मटकी लगाई जाती है।

बुरी नजर या ईष्र्या की भावना के साथ जब कोई आपके घर की ओर देखता है तो उस वक्त यह मटकी उस नजर को, उसके बुरे प्रभाव को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। जिससे आपके घर पर होने वाला बुरा प्रभाव वहीं समाप्त हो जाता है। इस प्रकार घर की ओर बढ़ रहे बुरे प्रभाव स्वत: नष्ट हो जाती हैं।

क्यों और कैसे बर्तन घर में नहीं रखना चाहिए?
आपके घर में बर्तन बता देते हैं कि आप किस स्तर का जीवन यापन कर रहे हैं। इसी वजह से आजकल डिजाइनर बर्तनों का क्रेज बढ़ रहा है। इसी क्रेज के चलते कई घरों में पुराने या टूटे-फूटे बर्तन में संभालकर अलग रख दिए जाते हैं, जो कि अशुभ माना जाता है। इससे घर में दरिद्रता बढ़ती है और कई तरह की हानि उठाना पड़ती है।

हमेशा से ही इस बात पर जोर दिया जाता है कि घरों में टूटे-फूटे बर्तन नहीं रखने चाहिए, ना ही कभी ऐसे बर्तनों में भोजन करना चाहिए। इस संबंध में धार्मिक तथ्य यह है कि ऐसा करने से ईश्वर की कृपा प्राप्त नहीं होती। जो व्यक्ति टूटे-फूटे बर्तनों में भोजन करता है उससे लक्ष्मी रूठ जाती है और उसके घर में दरिद्रता पैर पसार लेती है। ऐसा होने पर कई प्रकार के आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ता है।

टूटे-फूटे बर्तनों को वास्तुशास्त्र द्वारा भी अशुभ माना गया है। जिस घर में ऐसे बर्तन रखे जाते हैं वहां वास्तुदोष रहता है। ऐसे में वास्तुदोष दूर करने के लिए बहुत से अन्य उपाय करने के बाद भी यह दोष दूर नहीं होता है। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा सक्रीय हो जाती है। घर से सभी टूटे-फूटे, बेकार बर्तनों को दूर कर देना चाहिए। इससे वास्तु दोष समाप्त होता है और घर में सब अच्छा होने लगता है।

बेकार बर्तन में भोजन करने से हमारे विचार नकारात्मक बनते हैं। जैसे बर्तनों में हम खाना खाते हैं हमारा स्वभाव भी वैसा ही बन जाता है। इसी वजह से अच्छे और साफ बर्तनों में भोजन करें। इससे आपके विचार भी शुद्ध होंगे और सकारात्मक ऊर्जा का शुभ प्रभाव आप पर पड़ेगा।

घर की महिलाओं को एक साथ लाल रंग की ड्रेस नहीं पहनना चाहिए, क्योंकि...
घर-परिवार में सुख और शांति सदैव बनी रहे, इसके लिए परिवार के सदस्यों द्वारा कई प्रकार के प्रयास किए जाते हैं। फिर भी कई घरों में काफी तनाव और मनमुटाव जैसी स्थितियां निर्मित हो जाती हैं। शास्त्रों के अनुसार सामान्य जीवन में अपनाने हेतु कई छोटे-छोटे उपाय बताए गए हैं जिनसे घर-परिवार में महिलाओं के झगड़े समाप्त हो जाते हैं।

आजकल किसी भी परिवार में महिलाओं के बीच आपसी तनाव होना सामान्य सी बात है। परिवारों में सास-बहु के झगड़े, भाभी-ननद की अनबन और अन्य रिश्तों में महिलाओं के झगड़ों की वजह से पुरुषों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में विवाद समाप्ति के लिए महिलाओं को समझना जरूरी है। इसके साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि घर की महिलाएं एक साथ एक ही दिन लाल रंग की ड्रेस न पहनें।

सभी जानते है लाल रंग उग्रता को बढ़ाता है। यदि अधिक गुस्से के स्वभाव वाला इंसान लाल रंग का उपयोग अधिक करता है तो उसका स्वभाव और अधिक क्रोध वाला हो जाता है। ऐसे में यदि सभी महिलाएं एक साथ एक समय में लाल रंग की ड्रेस पहनती है तो ऐसी संभावनाएं बनी रहती है कि उनके बीच और अधिक विवाद की स्थितियां निर्मित हो सकती हैं। इन्हीं कारणों के चलते शास्त्रों के अनुसार महिलाओं को एक साथ लाल रंग कपड़े नहीं धारण करना चाहिए। सभी महिलाओं के कपड़ों का रंग एक-दूसरे से भिन्न होगा तो ज्यादा सकारात्मक प्रभाव रहता है। लाल रंग से मिलते-जुलते रंग पहने जा सकते हैं।

हल्के में न लें भूलने की आदत,ये हो सकती है जानलेवा बीमारी का इशारा!
बहुत अधिक वजन बढऩा घटना या बार-बार भूलना ये कुछ ऐसी समस्याएं हैं। जिन्हें लोग सामान्य तरीके से लेते हैं। वजन बढ़ जाता है तो उसे घटाने की कोशिश करने लगते हैं, घटता है तो बढ़ाने की। लेकिन बहुत कम लोग इस बात पर ध्यान देते हैं कि ये किसी तरह की बीमारी के कारण भी हो सकते हैं। ये लक्षण थाइरॉइड के इशारे हो सकते हैं। वैसे तो थाइरॉइड ज्यादातर खानदानी पाया जाता है।

लेकिन आयोडीन की कमी, खान-पान में अव्यवस्थित व्यवस्था, चिंता जैसी वजह भी इस बीमारी का कारण बनती है। थाइरॉइड भी दो तरह की होती है हाइपो और हाइपर। हाइपो में वजन बढऩे लगता है और भूख कम लगती है। हाथ- पांव में सूजन आ जाती है।
मरीज सुस्ती और सर्दी से परेशान रहता है। उसका किसी काम में मन नहीं लगता। कभी-कभी मासिक स्त्राव और याददाश्त में कमी हो सकती है। हाइपोथाइरोडिज्म ऐसी स्थिति है, जब थाइरॉइड हार्मोन का स्त्राव बहुत ही कम मात्रा में होता है। ऐसी स्थिति में शरीर में भोजन की ऊर्जा को रासायनिक प्रक्रिया में बदलने की गति धीमी हो जाती है। आमतौर पर यह बीमारी पकड़ में नहीं आती। इसके लक्षणों को अन्य रूप में लिया जाता है। इसके उल्टे हाइपर में मरीज का वजन कम हो जाता है और भूख ज्यादा लगती है। मानसिक तनाव की शिकायत होती है। एकाग्रता में कमी, धड़कन और बीपी बढऩे की शिकायत हो जाती है।

थाइरॉइड का कार्य मानव शरीर के अंदर इन दोनो हार्मोन्स को सही मात्रा में पहुंचाना है, जिसके घटने या बढने से महिलाओं के अंदर बांझपन और पीरियड्स के बढऩे जैसी दिक्कतें पैदा हो जाती है। इस तरह से हमें पता चलता है कि थाइरॉइड का काम हर्मोन्स को नियत्रंण रखना होता है। थाइरॉइड द्वारा निकलने वाला हार्मोन्स टी-3 और टी-4 घटने या बढऩे वाली क्रिया को थाइरॉइड डिसआर्डर कहते हैं।

इस चमत्कारी पेड़ का पूजते हैं, क्योंकि...
पीपल के वृक्ष को हिंदुओं में देवताओं का निवास स्थान बताया गया है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देवता पीपल में निवास करते हैं। मृत हिंदू के लिए एक घट पीपल की शाखाओं में बांधा जाता है। सोमवती अमावस्या को सौभाग्यवती स्त्रियां पीपल का पूजन कर अपने पति की लंबी आयु के लिए करती है। महात्मा बुद्ध ने पीपल के नीचे बैठकर ही ज्ञान प्राप्त किया था। इसलिए उसे 'बोधिवृक्ष भी कहा जाता है।

आयुर्वेद में भी पीपल का कई औषधि के रूप में प्रयोग होता है। श्वास, तपेदिक, रक्त-पित्त,विषदाह,भूख बढ़ाने के लिए यह वरदान है। शास्त्रों में भी पीपल को बहुपयोगी माना गया है तथा उसका धार्मिक महत्व बनाकर काटने का निषेध किया गया है।हिंदू और बौद्ध धर्म में इसको सबसे ज्यादा मान्यता प्राप्त है। केवल भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी इसको पवित्र माना जाता है। तिब्बत में 'लालचंड, नेपाल में 'बंगलसिमा, बर्मा में 'स्याम, श्रीलंका में इसका 'शोलबो नाम से पुकारते हैं। बुद्ध जनता इसे 'बोधिवृक्ष कहती है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में इसे स्वयं अपने ही समान कहा है।

ध्यान रखें ऐसी मूर्तियों की पूजा नहीं करना चाहिए, क्योंकि...
शास्त्रों के अनुसार कण-कण में परमात्मा विद्यमान है। फिर भी भगवान की आराधना में हमारा ध्यान या मन पूरी तरह से लगा रहे इसके लिए मूर्तियों की पूजा की जाती है। मूर्तियों की पूजा के संबंध में एक बात ध्यान रखने योग्य है कि यदि कोई मूर्ति किसी प्रकार से खंडित हो जाए तो उसकी पूजा नहीं करना चाहिए।

ईश्वर की भक्ति में भगवान की मूर्ति का अत्यधिक महत्व है। प्रभु की मूर्ति देखते ही भक्त के मन में श्रद्धा और भक्ति के भाव स्वत: ही उत्पन्न हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार भगवान की प्रतिमा पूर्ण होना चाहिए कहीं से खंडित होने पर प्रतिमा पूजा योग्य नहीं मानी जाती है। खंडित मूर्ति की पूजा को अपशकुन माना गया है। प्रतिमा की पूजा करते समय भक्त का पूर्ण ध्यान भगवान और उनके स्वरूप की ओर ही होता है। अत: ऐसे में यदि प्रतिमा खंडित होगी तो भक्त का सारा ध्यान उस मूर्ति के उस खंडित हिस्से पर चले जाएगा और वह पूजा में मन नहीं लगा सकेगा। जब पूजा में मन नहीं लगेगा तो व्यक्ति की भगवान की ठीक से भक्ति नहीं कर सकेगा और वह अपने आराध्य देव से दूर होता जाएगा। इसी बात को समझते हुए प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों ने खंडित मूर्ति की पूजा को अपशकुन बताते हुए उसकी पूजा निष्फल ठहराई गई है।

लक्ष्मी के साथ गणेश और सरस्वती की पूजा भी करना चाहिए...
धन की देवी महालक्ष्मी की पूजा के साथ-साथ श्री गणेश और देवी सरस्वती की भी पूजा करना चाहिए। महालक्ष्मी के आशीर्वाद से भक्त को धन, यश, मान-सम्मान प्राप्त होता है। धन की प्राप्ति के लिए खासतौर पर लक्ष्मी पूजा का महत्व है। मां लक्ष्मी के साथ गणेशजी और सरस्वतीजी की पूजा करने पीछे धार्मिक कारण है।

लक्ष्मी धन की देवी हैं तो श्री गणेश रिद्धि और सिद्धि के देवता हैं। वहीं मां सरस्वति बुद्धि अथवा विद्या की देवी हैं। लक्ष्मी की कृपा मतलब धन की प्राप्ति तभी हो सकती है जब श्रीगणेश और सरस्वति की कृपा भी प्राप्त हो। क्योंकि धन कमाने के लिए बुद्धि की भी आवश्यकता होती है। प्रखर बुद्धि वाले व्यक्ति ही अधिक धन प्राप्त कर सकते हैं। अच्छी विद्या के लिए मां सरस्वति की आराधना की जाती है। इन्हीं के आशीर्वाद से हमें ज्ञान की प्राप्ति होती है और इस ज्ञान से ही सभी सुख-समृद्धि और मान-सम्मान प्राप्त होता है।

श्री गणेश रिद्धि और सिद्धि के देवता माने जाते हैं। इनकी कृपा से ही हर व्यक्ति के घर में बरकत अर्थात् समृद्धि हमेशा बनी रहती है। हमारे जीवन कभी धन अभाव न हो और सभी सुख प्राप्त होते रहे, इसके लिए श्री गणेश की पूजा की जानी चाहिए। इसी वजह से महालक्ष्मी के साथ-साथ श्री गणेश और सरस्वतिजी की पूजा की जाती है।

किस दिन और क्यों तेल घर लेकर नहीं आना चाहिए?
शनिदेव की आराधना का दिन है शनिवार। इस दिन शनिदेव के अशुभ फल को शांत करने एवं शुभ फल को बनाए रखने के लिए विभिन्न पूजन आदि कर्म किए जाते हैं। साथ ही इस दिन के लिए कई नियम भी बनाए गए हैं जिससे शनिदेव का बुरा प्रभाव हम पर न पड़े। इन्हीं नियमों में से एक है कि शनिवार के दिन घर में तेल खरीदकर नहीं लाना चाहिए।

शनि को न्यायधिश माना गया है। इसी वजह से यह काफी कठोर ग्रह है। इसकी क्रूरता से सभी भलीभांति परिचित हैं। इसी वजह से सभी का प्रयत्न रहता है कि शनि देव किसी भी प्रकार से रुष्ट ना हो। शनि गलत कार्य करने वालों को मॉफ नहीं करता। जिसका जैसा कार्य होगा उसे शनि वैसा ही फल प्रदान करता है। ज्योतिष के अनुसार शनि के कोप से बचने के लिए ऐसे कई कार्य मना किए गए हैं जो शनिवार के दिन हमें नहीं करने चाहिए। इन्हीं कार्यों में से एक कार्य यह वर्जित है कि शनिवार को घर में तेल लेकर नहीं आना चाहिए। क्योंकि तेल शनि को अतिप्रिय है और शनिवार को तेल का दान किया जाना चाहिए। इस दिन तेल घर लेकर आने से शनि का बुरा प्रभाव हम पर पड़ता है। यदि घर के किसी सदस्य पर शनि की अशुभ दृष्टि हो तो उसके लिए यह और भी अधिक बुरा फल देने वाला सिद्ध होगा। इन बुरे प्रभावों से बचने के लिए शनिवार के दिन घर में तेल लेकर न आए बल्कि तेल का दान करें और शनि देव को तेल अर्पित करें।

भगवान की आरती ऐसे ही करना चाहिए...
हमारी प्राचीन परंपरा के अनुसार भगवान को प्रसन्न करने के लिए आरती की जाती है और ये आरतियां राग में गाई जाती हैं। आरतियां राग में ही क्यों गाई जाती है? इसके पीछे धार्मिक कारण तो है साथ ही इसका वैज्ञानिक कारण भी है।

आरतियां राग में करने के पीछे धार्मिक कारण यही है कि संगीतमय आरती भगवान को भी प्रसन्न कर देती है। सही संगीत हर स्थिति में मन को सुकून देने वाला ही होता है। हमारे धर्म ग्रंथों में कई प्रसंग ऐसे आते हैं जहां भगवान की प्रार्थना में विभिन्न वाद्ययंत्रों के साथ-साथ उनकी स्तुति को सही सुर में गाया जाता है। ऐसे स्तुति गान से देवी-देवता तुरंत ही प्रसन्न हो जाते हैं। ऐसा माना जाता है।

प्रतिदिन प्रात: काल सही सुर-ताल के साथ आरती करना हमारे स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है। सही सुर में गायन करने से हमारे शरीर का पूरा सिस्टम प्रभावित होता है। हमें ऊर्जा मिलती है, रक्त संचार बढ़ जाता है। आरती गान को योगा की तरह ही देखा जा सकता है। इससे हमारी आवाज साफ और सुरीली हो जाती है। नियमित आरती करने वाले लोगों की आवाज में अलग ही आकर्षण पैदा हो जाता है। साथ ही गले से संबंधित कई रोग हमेशा दूर ही रहते हैं। इनके अलावा भी कई अन्य स्वास्थ्य संबंधी लाभ हैं। लाभों को देखते हुए ही आरतियां राग में गाने की परंपरा शुरू की गई है।

शाम के समय भी करना चाहिए भगवान की पूजा...
सभी दुखों के निवारण के लिए स्वयं की मेहनत के अतिरिक्त भगवान की भक्ति सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। भगवान की पूजा से सभी प्रकार की परेशानियों का निराकरण सहज ही हो जाता है। सामान्यत: काफी लोगों द्वारा सुबह के समय भगवान का विधिवत पूजन किया जाता है लेकिन शास्त्रों के अनुसार शाम के समय भी भगवान की पूजा, आरती की जानी चाहिए।

शाम के समय भगवान की पूजा करना को संध्या पूजन कहते हैं। ग्रंथों में संध्या पूजन का विशेष महत्व बताया गया है। संध्या का शाब्दिक अर्थ संधि का समय है यानि जहां दिन का समापन और रात शुरू होती है, उसे संधिकाल कहा जाता है।

ज्योतिष के अनुसार दिनमान को तीन भागों में बांटा गया है- प्रात:काल, मध्याह्न और सायंकाल। संध्या पूजन के लिए प्रात:काल का समय सूर्योदय से छह घटी तक, मध्याह्न 12 घटी तक तथा सायंकाल 20 घटी तक जाना जाता है। एक घटी में 24 मिनट होते हैं। प्रात:काल में तारों के रहते हुए, मध्याह्न में जब सूर्य मध्य में हो तथा सायं सूर्यास्त के पहले संध्या करना चाहिए।

संध्या पूजन क्यों जरूरी है?
नियमपूर्वक संध्या करने से पापरहित होकर ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। रात या दिन में जो विकर्म हो जाते हैं, वे त्रिकाल संध्या से नष्ट हो जाते हैं। संध्या नहीं करने वाला मृत्यु के बाद कुत्ते की योनि में जाता है। संध्या नहीं करने से पुण्यकर्म का फल नहीं मिलता। समय पर की गई संध्या इच्छानुसार फल देती है। घर में संध्या वंदन से एक, गो-स्थान में सौ, नदी किनारे लाख तथा शिव के समीप अनंत गुना फल मिलता है।

मृत्यु के बाद यह क्रिया होना बहुत जरूरी है, क्योंकि...
हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद मृतक का दाह संस्कार किया जाता है अर्थात मृत देह अग्नि को समर्पित की जाती है। दाह संस्कार के समय की जाने वाली एक अनिवार्य प्रथा है कपाल क्रिया। दाह संस्कार के समय कपाल क्रिया क्यों की जाती है? इसका वर्णन गरुड़ पुराण में मिलता है।

गरुड़ पुराण के अनुसार अनुसार जब शवदाह के समय मृतक के सिर पर घी की आहुति दी जाती है। इसी क्रिया को कपाल क्रिया कहते हैं। इस क्रिया के पीछे अलग-अलग मान्यताए हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार कपाल क्रिया के बाद ही मृत व्यक्ति के प्राण शरीर से पूरी तरह स्वतंत्र होते हैं और नए जन्म की क्रिया आगे बढ़ती है।

एक अन्य मान्यता है कि सिर पर घी डालकर इसलिए जलाया जाता है ताकि वह अधजला न रह जाए अन्यथा अगले जन्म में वह अविकसित रह जाता है। हमारे शरीर के प्रत्येक अंग में विभिन्न देवताओं का वास होने की मान्यता का विवरण श्राद्ध चंद्रिका में मिलता है। चूंकि सिर में ब्रह्मा का वास माना गया है इसलिए शरीर को पूर्ण रूप से मुक्ति प्रदान करने के लिए कपाल की जाती है।

वहीं इस क्रिया के पीछे यह भी एक कारण है कि सिर की हड्डी काफी मजबूत होती है और वह आसानी से जलती नहीं है। सिर को अग्नि में भस्म होने में भी समय लगता है। अत: दाह संस्कार के समय घी डालने से वह आसानी से जल जाती है।

भोलेनाथ ने सिर पर चंद्र क्यों धारण किया है?
शिव, शंकर, भोलेनाथ, महादेव, महाकाल आदि असंख्य नामों से पूजे जाते हैं भोलेभंडारी। इनका एक नाम शशिधर भी है। शिवजी अपने मस्तक पर चंद्र को धारण किया है इसी वजह से इन्हें शशिधर के नाम से भी जाना जाता है। भोलेनाथ ने मस्तक पर चंद्र को क्यों धारण कर रखा है?
इस संबंध में शिव पुराण में उल्लेख है कि जब देवताओं और असुरों द्वारा समुद्र मंथन किया गया, तब 14 रत्नों के मंथन से प्रकट हुए। इस मंथन में सबसे विष निकला। विष इतना भयंकर था कि इसका प्रभाव पूरी सृष्टि पर फैलता जा रहा था परंतु इसे रोक पाना किसी भी देवी-देवता या असुर के बस में नहीं था। इस समय सृष्टि को बचाने के उद्देश्य से शिव ने वह अति जहरीला विष पी लिया। इसके बाद शिवजी का शरीर विष प्रभाव से अत्यधिक गर्म होने लगा। शिवजी के शरीर को शीतलता मिले इस वजह से उन्होंने चंद्र को धारण किया।

चंद्र को धारण कर क्या संदेश देते हैं शिव?
शिवजी को अति क्रोधित स्वभाव का बताया गया है। कहते हैं कि जब शिवजी अति क्रोधित होते हैं तो उनका तीसरा नेत्र खुल जाता हैं तो पूरी सृष्टि पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। साथ ही विषपान के बाद शिवजी का शरीर और अधिक गर्म हो गया जिसे शीतल करने के लिए उन्होंने चंद्र आदि को धारण किया। चंद्र को धारण करके शिवजी यही संदेश देते हैं कि आपका मन हमेशा शांत रहना चाहिए। आपका स्वभाव चाहे जितना क्रोधित हो परंतु आपका मन हमेशा ही चंद्र की तरह ठंडक देने वाला रहना चाहिए। जिस तरह चांद सूर्य से उष्मा लेकर भी हमें शीतलता ही प्रदान करता है उसी तरह हमें भी हमारा स्वभाव बनाना चाहिए।

भूत के सपने आते हैं तो पलंग के नीचे रखें उल्टा तवा, क्योंकि...
अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी है पर्याप्त नींद। स्वस्थ जीवन के कम से कम 6 घंटे की प्रतिदिन लेना आवश्यक है। अन्यथा आलस्य बना रहता है और बीमारियां होने की संभावनाएं बनती हैं। नींद पूरी न होने के पीछे कारण हो सकते हैं। इन कारणों में से एक है बुरे या डरावने सपने आना।

यदि किसी व्यक्ति को बुरे या भयानक सपने दिखाई देते हैं जिनकी वजह से नींद खुल जाती है तो निश्चित ही यह स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इस अवस्था से बचने के लिए ज्योतिष के अनुसार एक टोटका या उपाय बताया गया है। इसके अनुसार रात को सोते समय या नींद में सपने देखकर यदि भय लगता हो तो पंलग के नीचे रोटी बनाने के तवा को उल्टा करके रख दें। इस उपाय से निश्चित ही बुरे सपने आना बंद हो जाएंगे। पलंग के नीचे तवा रखने से हमारे आसपास के वातावरण में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा निष्क्रिय हो जाती है। इसी नकारात्मक ऊर्जा की वजह से बुरे सपने दिखाई देते हैं। इन बुरी शक्तियां के प्रभाव में होने से हमारा दिमाग इस प्रकार की बातों को ही सोचता है। पलंग के नीचे तवा रखने पर इन विचारों पर विराम लगता है और नींद अच्छी आती है।

इसके साथ ही रात को सोते समय भगवान या इष्ट देवता का नाम लेकर सोना चाहिए। इस उपाय से भी बुरे सपने आना बंद हो जाते हैं और नींद अच्छी आती है।

मंगलवार को क्यों और किसे चढ़ाना चाहिए लाल फूल...
मंगल की पूजा में कुछ चीजें आवश्यक मानी गई हैं। भात यानी चावल, लाल गुलाल, कुंकुं, लाल गुलाब ये चीजें ऐसी हैं जो मंगल की पूजा में अनिवार्य मानी गई हैं। कहा जाता है मंगल को यह वस्तुएं चढ़ाने से वे व्यक्ति के अनुकुल असर करते हैं। आखिर फूलों में लाल गुलाब ही मंगल को क्यों प्रिय है?लाल गुलाब न हो तो लाल रंग का कोई दूसरा फूल भी उन्हें चढ़ाया जा सकता है। आखिर लाल फूल खासतौर पर गुलाब ही मंगल को क्यों चढ़ाया जाता है?

मंगल अग्नि का कारक ग्रह है। उसका स्वरूप लाल है। मंगल लाल कपड़े, लाल फूल आदि से प्रसन्न होते हैं। मंगल किसी राशि में खराब स्थान पर बैठा हो, विपरित राशि में बैठा हो तो व्यक्ति को उनके क्रोध का शिकार होना पड़ता है। मंगल जब ठीक नहीं हो तो उन्हें शीतल यानी ठंडी प्रकृति की चीजें चढ़ाई जाती हैं। जैसे भात, गुलाब, दही, दूध आदि। गुलाब मंगल ग्रह के लिए सबसे श्रेष्ठ फूल है।

यह लाल रंग का होता है जो मंगल के रंग को दर्शाता है और दूसरा इसकी प्रकृति शीतल मानी गई है। गुलाब का रंस और गंध दोनों ही मानव शरीर को ठंडक देने वाले माने गए हैं। गर्मियों में गुलाब का शरबत भी बनाया जाता है जो मानव शरीर में शीतलता प्रदान करता है। मंगल ग्रह को लाल गुलाब चढ़ाने से उसके रंग का लाभ तो मिलता ही है, मंगल के क्रूर स्वभाव में शीतलता आती है और फूल चढ़ाने वाले से वह क्रूर दृष्टि हटाने लगते हैं।

जानिए, श्री गणेश के इन 8 रूपों से जुड़ी अनूठी बातें
श्री गणेश मंगलकारी देवता माने गए हैं। पुराणों में श्री गणेश को ही परब्रह्म कहा गया है। पंचतत्वों से बने चल-अचल संसार में वह प्राणों के लिये जरूरी जल तत्व के देवता भी माने गए हैं। इस दृष्टि से प्राणों के विघ्रों को दूर करने के कारण भी श्री गणेश विघ्रहर्ता भी कहलाती हैं। विघ्रेश्वर गणेश की महिमा इस बात से भी प्रकट होती है कि हिन्दू धर्म के पंचदेवों में कल्याणकर्ता शिव, दुर्गतिनाशिनी दुर्गा, आनंददाता श्री विष्णु और साक्षात् देवता सूर्य की पूजा से भी पहले श्री गणेश की पूजा की जाती है।

पुराणों के मुताबिक भगवान गणेश अलग-अलग 8 रूपों में भक्तों की विघ्रनाश व मंगल की कामना पूरी करते हैं, जो गणेश के 8 अवतारों के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। जानिए, श्री गणेश के ऐसे ही अद्भुत 8 अवतारों से जुड़ी अनूठी बातें और उनकी उपासना से सांसारिक जीवन की कौन-सी इच्छा पूरी होती है-

1.वक्रतुण्ड - श्री गणेश के इस रूप में मुड़ी हुई सूंड होती है। यह तमाम बाधाओं और कलह का नाश करते हैं।

2.एकदंत - इस रूप में श्री गणेश का एक ही दांत होता है। यह लालच, अहंकार, आसक्ति और दंभ को चूर करते हैं। यह बुद्धिदाता होते हैं।

3. महोदरा - श्री गणेश के इस रूप में बडे उदर यानी पेट वाले होते हैं, जो सुख-समृद्धि और आनंद देते हैं। भूमि-संपत्ति संबंधी बाधा को दूर करते हैं।

4. गजानन - श्री गणेश इस रूप का अर्थ होता है हाथी जैसे मुख वाले धन, दौलत, ऐश्वर्य और कार्य दक्षता और सिद्धि देते हैं। यह शांत और पुरूषार्थी बनाते हैं।

5. लम्बोदर - श्री गणेश के इस रूप का अर्थ होता है- लम्बे पेट वाले। क्रोध व अधर्म को अंत करते हैं।

6. विकट - विपदाओं व संकट के साथ शत्रुभय दूर करते हैं। यह संकटनाशक रूप माना जाता है।

7. विघ्रराज - इस रूप में गणेश कमल के फूल पर विराजित होते हैं। सभी विघ्रों का नाश करते हैं और शुभ कार्यों में आने वाली बाधाओं को दूर रखते हैं।

8. धूम्रवर्ण - श्री गणेश इस रूप में धुएं की तरह रंगवाले होते हैं। हर काम में सफलता देते हैं। दुष्प्रवृत्तियों का नाश करते हैं। ग्रहदोष शांति के लिए इनकी पूजा का महत्व है।

ये आसान उपाय रखते हैं ईर्ष्या, क्रोध और भय से दूर
आज के भागदौड़ भरे दौर में असंतुलित जीवनशैली से मानवीय स्वभाव व व्यवहार में एक दोष छोटे या बड़े रूप में सबसे ज्यादा उजागर होता है। यह दोष है - क्रोध। क्रोध और भय ही ईर्ष्या का बड़ा कारण भी बनते हैं।

धर्म की नजर से क्रोध षट्विकारों यानी छ: विकार या दोषों में एक है, जो किसी भी व्यक्ति के पतन का कारण बन सकता है। धर्मशास्त्रों में क्रोध से होने वाले पापों को नरक में जाने का कारण बताना भी दरअसल, व्यावहारिक जीवन में गुस्से से मिलने वाले गहरे दु:खों को भोगने की ओर संकेत भी है।

खासतौर पर आज के युवाओं में सहनशीलता की कमी व क्रोध की बात करें तो इसके पीछे कम समय में बहुत ज्यादा पाने की लालसा या व्यग्रता भी है। जिससे मकसद को पाने के लिए अपनाए छोटे रास्ते जब कारगर नहीं होते तो उससे मिली नाकामी, कुण्ठा और निराशा क्रोध के रूप में प्रकट होती है।

ऐसी व्यग्रता या क्रोध पर काबू करने के लिए शास्त्रों के यहां बताए जा रहे उपाय बेहद फायदेमंद साबित हो सकते हैं। जानिए कुछ ऐसे ही उपाय जिनसे ईर्ष्या, क्रोध व भय काबू में रहते हैं -

धर्मग्रंथ महाभारत में क्रोध से बचने का बेहतर सूत्र बताते हुए लिखा गया है कि -

अक्रोधेन जयते क्रोधम् यानी क्रोध न कर ही क्रोध पर विजय पाना श्रेष्ठ उपाय है।

इसी तरह क्रोध से बचने का एक अच्छा उपाय है - मौन। शास्त्र कहते हैं मौनिन: कलह नास्ति यानी मौन को अपनाने और महत्व समझने वाले व्यक्ति कलह से दूर रहता है। दरअसल, भय से मौन होना कमजोरी होता है। किंतु जब मौन द्वारा बुरे विचार, कटु वाणी और बुरे भावों पर काबू कर किसी बात का सही पहलू जानने, समझने, विचारने और हल निकालने पर ध्यान लगाएं तो यह न केवल क्रोध, ईर्ष्या और भय से दूर रखता है, बल्कि अच्छे नतीजों का कारण भी बन सकता है।

इस तरह सरल शब्दों में कहें तो व्यक्तित्व, चरित्र, ऊर्जा, विचार और कर्म को क्रोध के बुरे असर से बचाने के लिये शास्त्रों के इन सूत्रों से क्रोध को काबू करने के साथ ही समय के साथ संतुलन बनाना भी सीखें और समझें।

हर युवा इस बात पर दे ध्यान..वरना जवानी में हो जाएंगे बूढ़े
शास्त्रों में संयम व मर्यादाओं में रहकर कर्तव्यों को पूरा करने व जीवन के लक्ष्य पाने के लिए इंसानी उम्र को चार भागों में बांटा गया है। जिसे आश्रम व्यवस्था के रूप में भी जाना जाता है। जिनमें ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम के जरिए जीवन के चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को पाने का सही तरीका नियत किया गया है।

जीवन के लिए जरूरी 4 पुरुषार्थ असल में एक-दूसरे को साधने वाले होते हैं। किंतु सांसारिक जीवन के नजरिए से अर्थ यानी भोगे जाने वाले सुख, धन, दौलत व संपत्ति की खास अहमियत है। धन को धर्म और काम के रास्ते मोक्ष पाने का अहम जरिया भी माना गया है।

यही कारण है कि ब्रह्मचर्य व गृहस्थाश्रम के दौरान, जबकि हर इंसान उम्र और शारीरिक तौर पर ज्यादा बलवान व ऊर्जावान होता है, धन अर्जित करने की नजरिए से बेहद अहम माना है। उम्र की यह अवस्था युवाकाल भी कहलाती है।

युवाकाल में धन कमाना वर्तमान और भविष्य के लिए कितना जरूरी है, शास्त्रों में बताई नीचे लिखी बात उजागर करती है। लिखा गया है कि -

गतवयसामपि पुंसांयेषामर्था: भवन्ति ते तरुणा:।

अर्थेन तु ये हीनां वृद्धास्ते यौवनेपिस्यु:।।

यह श्लोक इंसानी जीवन में धन का महत्व उजागर करते हुए संदेश देता है कि जो बुढ़ापे में भी धनवान है, वे बूढ़े होकर भी युवा के समान है। वहीं जो युवाकाल में निर्धन रहते है, उन युवाओं पर बुढ़ापा हावी हो जाता है।

इस तरह यहां खासतौर पर युवाओं को इस बात को हमेशा ध्यान रखने की सीख है कि युवावस्था में धन कमाने की हर संभव कोशिश करें। ऐसे धन को अर्जित करने के तरीके भी सही व न्यायपूर्ण हो। जिससे धन के साथ सुख, शांति और यशस्वी जीवन की चाहत पूरी हो। धर्म के नजरिए से ऐसा धन कमाने का संकल्प ही हर पुरुषार्थ को एक के बाद एक आसानी से पाना संभव बना देगा। अन्यथा धन का अभाव कुण्ठा, निराशा, हताशा व असफलता से पैदा चिंता और व्याकुलता से सौंदर्य के साथ उम्र को घटाता चला जाएगा।

खबरदार! अगर घर-गृहस्थी में घट रही हों ये 6 बातें
शास्त्रों में गृहस्थ जीवन को धर्म पालन का अहम पड़ाव माना गया है। क्योंकि गृहस्थी में भी हर मुखिया कार्य, व्यवहार व आचरण में धर्म भावों जैसे सत्य, अहिंसा, प्रेम, क्षमा या परोपकार को अपनाकर ही परिजनों में भी स्नेह, संवेदना, मेलजोल, सहयोग और एकजुटता की भावना को कायम रख सकता है।

सुख-शांति के ऐसे वातावरण के लिए जरूरी है कि हर मुखिया हर वक्त किसी भी विषय, बात या मसले को लेकर ऐसे निष्पक्ष फैसले लेता रहे, जिससे कोई भी पक्ष आहत न हो और हल भी निकलता रहे। किंतु कार्य, जिम्मेदारियों और वक्त के साथ तालमेल के अभाव में अनेक अवसरों पर गृहस्थी में तनाव, विवाद, अशांति और कटुता के हालात परिवारिक दशा को बिगाडऩे लगते हैं।

शास्त्रों में घर-परिवार की दुर्दशा का कारण बनने वाली वाली 6 ऐसी ही बातों से हर इंसान को सावधान रहने की सीख दी गई है, जो घर में घटते दिखाई दे तो परिवार के हित व रक्षा के लिए हर गृहस्थ को चौकन्ना होकर वक्त रहते जरूरी कदम उठाना चाहिए। जानिए ऐसी ही 6 बातें, लिखा गया है कि -

कुले कलङ्क: कवले कदन्नता सुत: कुबुद्धि: र्भवने दरिद्रता।

रुज: शरीरे कलहप्रिया प्रिया गृहागमे दुर्गतय: षडेते।।

इस श्लोक में सरल शब्दों में घर-गृहस्थी को बदहाल करने वाली 6 बातों की ओर संकेत हैं -

- अगर परिवार या कुल पर कलंक लगाने वाली कोई बात पैदा हो,

- घर में अशुद्ध या अपवित्र भोजन हो,

- घर में दरिद्रता यानी तंगहाली, आलस्य या पैसों का अभाव हो,

- बुद्धिदोष से पुत्र गलत संगत और आचरण करने लगे,

- स्वयं या परिजन बीमारियों से घिरने लगे,

- पत्नी स्वाभाविक कारणों या मनमुटाव से कलह करने लगे।

जानिए, कितनी तरह के तिलक लगाने की है परंपरा...
भारतीय संस्कृति में तिलक लगाने की परंपरा अति प्राचीन है। प्रारंभ से ही माना जाता है कि मस्तस्क पर तिलक लगाने से व्यक्ति का गौरव बढ़ता है। हिंदू संस्कृति में एक पहचान चिन्ह का काम करता है तिलक।

तिलक केवल धार्मिक मान्यता नहीं है बल्कि इसके पीछे कई वैज्ञानिक कारण भी हैं। तिलक केवल एक तरह से नहीं लगाया जाता। हिंदू धर्म में जितने संतों के मत हैं, जितने पंथ है, संप्रदाय हैं उन सबके अपने अलग-अलग तिलक होते हैं। आइए जानते हैं कितनी तरह के होते हैं तिलक। सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं।

शैव- शैव परंपरा में ललाट पर चंदन की आड़ी रेखा या त्रिपुंड लगाया जाता है।

शाक्त- शाक्त सिंदूर का तिलक लगाते हैं। सिंदूर उग्रता का प्रतीक है। यह साधक की शक्ति या तेज बढ़ाने में सहायक माना जाता है।

वैष्णव- वैष्णव परंपरा में चौंसठ प्रकार के तिलक बताए गए हैं। इनमें प्रमुख हैं- लालश्री तिलक-इसमें आसपास चंदन की व बीच में कुंकुम या हल्दी की खड़ी रेखा बनी होती है।

विष्णुस्वामी तिलक- यह तिलक माथे पर दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनता है। यह तिलक संकरा होते हुए भोहों के बीच तक आता है।

रामानंद तिलक- विष्णुस्वामी तिलक के बीच में कुंकुम से खड़ी रेखा देने से रामानंदी तिलक बनता है।

श्यामश्री तिलक- इसे कृष्ण उपासक वैष्णव लगाते हैं। इसमें आसपास गोपीचंदन की तथा बीच में काले रंग की मोटी खड़ी रेखा होती है।

अन्य तिलक- गाणपत्य, तांत्रिक, कापालिक आदि के भिन्न तिलक होते हैं। कई साधु व संन्यासी भस्म का तिलक लगाते हैं।

जानिए, पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व व कथा
पुत्रदा एकादशी व्रत है। धर्म शास्त्रों के अनुसार यह व्रत उत्तम पुत्र की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इसकी कथा इस प्रकार है-
पूर्वकाल में भद्रावतीपुरी में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम चम्पा था। उनके यहां कोई संतान नहीं थी इसलिए दोनों पति-पत्नी सदा चिन्ता और शोक में रहते थे। शोकमग्न होकर एक दिन राजा सुकेतुमान घोड़े पर सवार होकर वन में चले गये। वहां घुमते-घुमते राजा को दोपहर हो गई। तब राजा को भूख और प्यास सताने लगी। वे पानी की खोज में इधर-उधर भटकने लगे।

तभी उन्हें वन में एक सरोवर दिखाई दिया। सरोवर के तट पर बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे थे। राजा ने घोड़े से उतरकर सभी मुनियों को वंदना की। राजा की स्तुति सुनकर मुनि अति प्रसन्न हुए और बोले- राजन। हम लोग तुम पर प्रसन्न हैं। तुम अपने मन की बात हमें बताओ। राजा बोले- मुनिजन आप लोग कौन हैं, तथा यहाँ किस कार्य के लिए एकत्रित हुए हैं? मुनि बोले- राजन। हम लोग विश्वेदेव हैं। यहाँ स्नान के लिए आए हैं।

माघ मास निकट आया है। आज से पाँचवें दिन माघ का स्नान आरम्भ हो जायेगा।

आज ही पुत्रदा नाम की एकादशी है, जो व्रत करने वाले मनुष्यों को पुत्र देती है। राजा ने कहा- विश्वेदेवगण। यदि आप लोग मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे पुत्र दीजिये। मुनि बोले- राजन। आज पुत्रदा नाम की एकादशी है। इसका व्रत बहुत विख्यात है। तुम आज इस उत्तम व्रत का पालन करो। भगवान की कृपा से तुम्हें पुत्र अवश्य प्राप्त होगा।

इस प्रकार उन मुनियों के कहने से राजा ने पुत्रदा एकादशी व्रत का पालन किया। फिर द्वादशी को पारण करके मुनियों के चरणों में बारंबार मस्तक झुकाकर राजा अपने घर आये। कुछ ही दिनों बाद रानी चम्पा ने गर्भधारण किया। उचित समय आने पर रानी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट किया तथा वह प्रजा का पालक हुआ।

पुत्रदा एकादशी 5 को, योग्य पुत्र के लिए करें यह व्रत
पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। इस एकादशी का महत्व पुराणों में वर्णित है। इस बार यह एकादशी 5 जनवरी, गुरुवार को है। इस व्रत को करने से योग्य पुत्र की प्राप्ति होती है। पुत्रदा एकादशी का महत्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। उसके अनुसार-

इस चर और अचर संसार में पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। इस एकादशी पर भगवान नारायण की पूजा की जाती है। पुत्रदा एकादशी के दिन नाम-मंत्रों का उच्चारण करके फलों के द्वारा भगवान नारायण का पूजन करें। नारियल के फल, सुपारी, नींबू, अनार, आँवला, लौंग, बेर तथा विशेषत: आम के फलों से भगवान नारायण की पूजा करें। इसी प्रकार धूप दीप से भी भगवान की अर्चना करें।

पुत्रदा एकादशी की रात्रि को वैष्णव पुरुषों के साथ जागरण करना चाहिए। जागरण करने वाले को जिस फल की प्राप्ति होति है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने से भी नहीं मिलता। जो पुत्रदा एकादशी का व्रत करते हैं, वे इस लोक में पुत्र पाकर मृत्यु के पश्चात् स्वर्गगामी होते हैं। इस माहात्म्य को पढऩे और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है।

घर में हमेशा रहना चाहिए खुश्बू, क्योंकि...
आज के समय में ज्यादा से पैसा या धन कमाने की इच्छा सामान्यत: सभी की है। इसी वजह से लोग कड़ी मेहनत करते हैं। ज्यादा पैसा कमाने के लिए जहां मेहनत और भाग्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं वहीं आपके घर का वास्तु भी कार्य करता है। यदि घर में कोई वास्तु दोष है तो अधिक पैसा कमाने बनाने में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि घर में नकारात्मक ऊर्जा अधिक सक्रिय रहेगी तो वहां रहने वाले लोगों को मानसिक तनाव के साथ ही धन संबंधी परेशानियां झेलना पड़ती है। नेगेटिव एनर्जी से हमारे विचार और सोच भी नकारात्मक हो जाती है। जिससे कार्यों में सफलता प्राप्त होने की संभावनाएं काफी कम हो जाती है। ऐसे में जरूरी है कि हमारे आसपास फैली नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर सकारात्मक ऊर्जा को सक्रिय किया जाए। घर में पॉजिटिव माहौल बनाने के लिए सबसे अच्छा ऊपाय है घर को सुगंधित बनाया जाए। घर में ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे कमरे, कीचन, हॉल आदि का वातावरण महकने लगे। इसके लिए आप अगरबत्ती, इत्र, परफ्यूम आदि का इस्तेमाल कर सकते हैं।

यदि आपके घर में शीत की वजह से अथवा अन्य किसी कारण से बदबू आती है तो इस संबंध तुरंत कोई उपाय करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जिस स्थान पर गंदगी या दुर्गंध रहती है उस स्थान धन की देवी महालक्ष्मी, सहित सभी देवी-देवता छोड़ देते हैं। वहां दरिद्रता और बुरी शक्तियां सक्रिय हो जाती है। इसी वजह से घर में सफाई रखनी चाहिए और वातावरण सुगंधित होना चाहिए। जहां सुगंध होती है वहां सकारात्मक ऊर्जा रहती है और वहीं महालक्ष्मी का वास होता है।

तिजोरी में रखना चाहिए एक सुपारी क्योंकि ये बढ़ाती है पैसा
तिजोरी जहां पैसा, ज्वेलरी और अन्य बेशकीमती वस्तुएं रखी जाती है। अत: यह जगह बहुत ही पवित्र और सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर होनी चाहिए। जिससे कि घर में बरकत बनी रह सके और पैसों की कभी कमी न आए। यदि तिजोरी के आसपास कोई नकारात्मक शक्तियां सक्रिय हैं तो उस घर में कभी भी पैसों कमी कभी पूरी नहीं हो सकेगी। ऐसे में शास्त्रों के अनुसार कुछ उपाय बताए गए हैं।

तिजोरी में हमेशा पैसा ही पैसा भरा रहे, धन की देवी महालक्ष्मी की कृपा सदैव आप पर बनी रहे, इसके लिए एक छोटा सा उपाय अपनाएं। शास्त्रों के अनुसार श्रीगणेश रिद्धि और सिद्ध के दाता है। कोई भी भक्त नित्य श्रीगणेश का ध्यान करता है तो उसे कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं सताती। श्रीगणेश को प्रसन्न करने के लिए कई उपाय हैं। प्रतिदिन गणेशजी की विधिवत पूजा करें और किसी भी शुभ मुहूर्त में विशेष पूजा करें। पूजन में गणेशजी के प्रतीक स्वरूप सुपारी रखी जाती है। बस यही सुपारी पूजा पूर्ण होने के बाद अपनी तिजोरी में रख दें।

पूजा में उपयोग की गई सुपारी में श्रीगणेश का वास होता है। अत: यह तिजोरी में रखने से तिजोरी के आसपास के क्षेत्र में सकारात्मक और पवित्र ऊर्जा सक्रिय रहेगी जो नकारात्मक शक्तियों को दूर रखेगी। पूजा में उपयोग की जाने वाली सुपारी बाजार में मात्र 1 रुपए में ही प्राप्त हो जाती है लेकिन विधिविधान से इसकी पूजा कर दी जाए तो यह चमत्कारी हो जाती है। जिस व्यक्ति के पास सिद्ध सुपारी होती है वह कभी भी पैसों की तंगी नहीं देखता, उसके पास हमेशा पर्याप्त पैसा रहता है।

पूजा में जरुरी है कलाई पर ऐसा धागा बांधना, क्योंकि...
हिंदू धर्म में पूजन कर्म के दौरान पंडित हाथ में लाल धागा जरूर बांधते हैं। इस रक्षासूत्र या मौली कहा जाता है। इसके क्रिया के बिना पूजा-अर्चना संपन्न नहीं मानी जाती है।हिंदू धर्म में कई रीति-रिवाज तथा मान्यताएं हैं। इन रीति-रिवाजों तथा मान्यताओं का सिर्फ धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक पक्ष भी है। जो वर्तमान समय में भी एकदम सटीक बैठता है।

हिंदू धर्म में प्रत्येक धार्मिक पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन में पंडित हमारे दाएं हाथ में मौली (एक धार्मिक धागा) बांधी जाती है। शास्त्रों का ऐसा मत है कि मौलि बांधने से त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है। ब्रह्मा की कृपा से कीर्ति, विष्णु से बल मिलता है और शिव दुर्गुणों का विनाश करते हैं। इसी प्रकार लक्ष्मी से धन, दुर्गा से शक्ति एवं सरस्वती की कृपा से बुद्धि प्राप्त होती है।

शरीर विज्ञान की दृष्टि से अगर देखा जाए तो मौलि बांधना उत्तम स्वास्थ्य भी प्रदान करती है। चूंकि मौलि बांधने से त्रिदोष- वात, पित्त तथा कफ को नियंत्रित करता है। मौलि का शाब्दिक अर्थ है सबसे ऊपर, जिसका तात्पर्य सिर से भी है। शंकर भगवान के सिर पर चंद्रमा विराजमान है इसीलिए उन्हें चंद्रमौलि भी कहा जाता है। मौलि बांधने की प्रथा तब से चली आ रही है जब दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए वामन भगवान ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था।

क्रमश:...

जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK