Wednesday, January 12, 2011

Pratyahaar( प्रत्याहार)


अष्टांग योग का पांचवा चरण
प्रत्याहार योग का पांचवां चरण है। पहले चार चरण यम, नियम, आसन और प्राणायाम हैं । योग मार्ग का साधक जब यम (मन के संयम), नियम (शारीरिक संयम) रखकर एक आसन में स्थिर बैठकर अपने वायु रूप प्राण पर नियंत्रण सीखता है, तब उसके विवेक को ढंकने वाले अज्ञान का अंत होता है। तब जाकर मन प्रत्याहार और धारणा के लिए तैयार होता है।सूक्ष्म साधना का सोपान- प्रत्याहारचेतना, शरीर और मन से ऊपर उठकर अपने स्वरूप में रुक जाने की स्थिति है प्रत्याहार। प्राणायाम तक योग साधना आंखों से दृष्टिïगोचर होती है। प्रत्याहार से साधना का रूपांतरण होता है और साधना सूक्ष्मतर होकर मानसिक हो जाती है। प्रत्याहार का अर्थ है- एक और आहरण यानि खींचना। प्रश्न उठता है किसका खींचा जाना? मन का। योग दर्शन के अनुसार मन इंद्रियों के माध्यम से जगत के भोगों के पीछे दौड़ता है। बहिर्गति को रोक उसे इंद्रियों के अधीन से मुक्त करना, भीतर की ओर खींचना प्रत्याहार है।

मन का प्रशिक्षण मन क्या है? यह विचारों, कल्पनाओ, अनुभवों और इच्छाओं का समूह है। सामान्यत: हम अपना जीवन इसी स्तर पर जीते हैं। विचारों के परे अस्तित्व की हमें खबर भी नहीं होती। प्राणायाम से जब हम स्थिर होते हैं, तब स्थिर हुए चंचल मन को उसके रूप में स्थित करने का कार्य प्रत्याहार में होता है। अपने मूल स्वरूप को प्राप्त होने से मन का बाह्यï ज्ञान नहीं रह जाता। योग दर्शन में उल्लेख है-तत: परमा वश्यतेन्द्रियाणाम्। -2/55अर्थात् उस प्रत्याहार से इंद्रियां पूरी तरह से वश में हो जाती हैं।

प्रत्याहार की साधना का मार्गस्वामी विवेकानंद ने प्रत्याहार की साधना का सरल मार्ग बताया है। वे कहते हैं मन को संयत करने के लिए--कुछ समय चुपचाप बैठें और मन को उसके अनुसार चलने दें।-मन में विचारों की हलचल होगी, बुरी भावनाएं प्रकट होंगी। सोए संस्कार जाग्रत होंगे। उनसे विचलित न होकर उन्हें देखते रहें।-धैर्यपूर्वक अपना अभ्यास करते रहें।-धीरे-धीरे मन के विकार कम होंगे और एक दिन मन स्थिर हो जाएगा तथा उसका इंद्रियों से संबंध टूट जाएगा।

सूक्ष्म साधना का सोपान- प्रत्याहार
प्रत्याहार योग का पांचवां चरण है। पहले चार चरण यम, नियम, आसन और प्राणायाम हैं । योग मार्ग का साधक जब यम (मन के संयम), नियम (शारीरिक संयम) रखकर एक आसन में स्थिर बैठकर अपने वायु रूप प्राण पर नियंत्रण सीखता है, तब उसके विवेक को ढंकने वाले अज्ञान का अंत होता है। तब जाकर मन प्रत्याहार और धारणा के लिए तैयार होता है।
चेतना, शरीर और मन से ऊपर उठकर अपने स्वरूप में रुक जाने की स्थिति है प्रत्याहार। प्राणायाम तक योग साधना आंखों से दृष्टिगोचर होती है। प्रत्याहार से साधना का रूपांतरण होता है और साधना सूक्ष्मतर होकर मानसिक हो जाती है।
प्रत्याहार का अर्थ है- एक और आहरण यानि खींचना। प्रश्न उठता है किसका खींचा जाना? मन का।
योग दर्शन के अनुसार मन इंद्रियों के माध्यम से जगत के भोगों के पीछे दौड़ता है। बहिर्गति को रोक उसे इंद्रियों के अधीन से मुक्त करना, भीतर की ओर खींचना प्रत्याहार है।

मन का प्रशिक्षण है प्रत्याहार
मन क्या है? यह विचारों, कल्पनाओ,अनुभवों और इच्छाओं का समूह है। सामान्यत: हम अपना जीवन इसी स्तर पर जीते हैं। विचारों के परे अस्तित्व की हमें खबर भी नहीं होती। प्राणायाम से जब हम स्थिर होते हैं, तब स्थिर हुए चंचल मन को उसके रूप में स्थित करने का कार्य प्रत्याहार में होता है। अपने मूल स्वरूप को प्राप्त होने से मन का बाह्य ज्ञान नहीं रह जाता। योग दर्शन में उल्लेख है-
तत: परमा वश्यतेन्द्रियाणाम्। -2/55
अर्थात् उस प्रत्याहार से इंद्रियां पूरी तरह से वश में हो जाती हैं।

प्रत्याहार की साधना का मार्ग
स्वामी विवेकानंद ने प्रत्याहार की साधना का सरल मार्ग बताया है। वे कहते हैं मन को संयत करने के लिए-
-कुछ समय चुपचाप बैठें और मन को उसके अनुसार चलने दें।
-मन में विचारों की हलचल होगी, बुरी भावनाएं प्रकट होंगी। सोए संस्कार जाग्रत होंगे। उनसे विचलित न होकर उन्हें देखते रहें।
-धैर्यपूर्वक अपना अभ्यास करते रहें।
-धीरे-धीरे मन के विकार कम होंगे और एक दिन मन स्थिर हो जाएगा तथा उसका इंद्रियों से संबंध टूट जाएगा।

चंचलता दूर होती है प्रत्याहार से
अष्टांग योग का पांचवा चरण है प्रत्याहार। आसन और प्राणायाम के बाद प्रत्याहार का अभ्यास किया जाता है। प्रत्याहार से इन्द्रियों को वश में किया जाता है। अष्टांग योग के इस अंग से मन की चंचलता दूर होकर आत्मसंयम का विकास होता है। प्रत्याहार में मन को समेटकर उसे विचारों और चिंतन में लगाया जाता है।
शरीर की 5 ज्ञान इन्द्रियां है। इन पांच ज्ञानेंद्रियां में कान सुनने के लिए, आंख देखने के लिए, जीभ स्वाद चखने के लिए, नाक गन्ध आदि को सूंघने के लिए और त्वचा स्पर्श करने के लिए है। मनुष्य के पांच कर्म है, जिसमें बोलना, पकडऩा, घूमना और सन्तानोत्पत्ति आते हैं। मनुष्य के इन कर्मों को पूरा करने के लिए पांच कर्म इन्द्रियां है, जिसमें मुख, हाथ-पैर, गुदा और उपस्थ है। शरीर की पांच कर्म इन्द्रियां है, जिसका नियंत्रण मन के द्वारा होता है। मन ही है, जो इन इन्द्रियों को अपने वास्तविक कर्म से भटकाता रहता है। ज्ञानेन्द्रियां, कर्म इन्द्रियां और मन ही मनुष्य के दु:खों का कारण है। प्रत्याहार से ही सभी इंद्रियों पर नियंत्रण किया जाता है।

हमारी सभी बुराइयों को दूर करता है प्रत्याहार
जिस प्रकार कछुआ अपने अंगों को समेटकर अपने अन्दर कर लेता है, उसी तरह योगी प्रत्याहार के अभ्यास के द्वारा अपनी इन्द्रियों और मन को समेटकर अपने अन्दर कर लेता है।
योग शास्त्र में हमारे जीवन के संबंध में बताया गया है कि मनुष्य का शरीर एक रथ के समान है तथा आत्मा इसकी स्वामी है। हमारा मन इस रथ को चलाने वाला सारथी है। इस शरीर रूपी रथ को खींचने वाले घोड़े हमारी 5 इन्द्रियां ही है। जिस तरह सारथी के अनुसार ही घोड़े रास्ते पर चलता रहता है, उसी तरह मन के कहने पर 5 इन्द्रियां अपना काम करती है।हमारा मन जब हमारे शरीर को अच्छा कर्म करने का आदेश देता है, तो वह अच्छे कर्म करता है और बुरे कार्य करने का आदेश देता है, तो बुरे कर्म करता है। अत: मन के बुरे विचारों को दूर कर इन्द्रियों को अच्छे कर्म में लगाना ही प्रत्याहार है। काम, क्रोध, लोभ, मोह और घमण्ड शरीर के 5 विकार है, जो आत्मा में बुरे विकार उत्पन्न करते हैं। इसे मनुष्य का शत्रु माना गया है तथा मन से इन विकारों को दूर रखना ही प्रत्याहार है।

कैसे होता है मन शांत?
मन में आने वाले अशुद्ध विचारों को रोकना ही प्रत्याहार है। इसके लिए हमें अपनी इंद्रियों को वश में करना होता है। जब इंद्रियां वश में हो जाती है तभी ही हमारा मन शांत और विचार शुद्ध हो जाते हैं।
यदि आंखें किसी वस्तु को देखना चाह रही हैं और उस समय आप कोई किताब पढऩे लगे तो इससे पहली आंखों को अपना भोग न मिलने से उनकी शक्ति कम हो जाएगी और वह शांत हो जाएगी।
जब भी हमारा मन बुरे विचारों की ओर दौड़े तो उस समय उन विचारों के दोषों पर विचार करने से मन शांत हो जाएगा। जैसे आपकी जीभ किसी स्वादिष्ट भोजन को चखने के लिए लालायित हो तो उस समय उससे उत्पन्न होने वाली हानि या रोग के बारे में सोचे। ऐसा करने से मन में उस विषय के प्रति सभी लालसा खत्म हो जाएगी और प्रत्याहार की ओर मन लगने लगेगा।

बहुत कठिन है मन को वश में करना
हमारा मन बहुत चंचल होता है, पलभर में कहीं भी पहुंच जाता है। मन हर क्षण कुछ न कुछ सोचता रहता है। इसी वजह से इसे वश में कर पाना बहुत मुश्किल कार्य है लेकिन नियमित अभ्यास से मन को वश में किया जा सकता है।अष्टांग योग के पांचवे अंग प्रत्याहार से मन को वश में किया जा सकता है। प्राणायाम के अभ्यास से प्रत्याहार में सिद्धि मिलती है, क्योंकि प्राणायाम से मन भी शांत व स्थिर हो जाता है। जिससे हमारा मन इधर-उधर नहीं भटकता।

प्रत्याहार की सबसे शक्तिशाली साधना वैराग्य है। वैराग्य मन की वह अवस्था होती है, जिसमें इन्द्रियों को अपने ओर आकर्षित करने वाले वस्तुओं के प्रति घृणा का भाव उत्पन्न किया जाता है। जब मन में वैराग्य का भाव पैदा होता है, तब इन्द्रियां स्वयं ही विषय की ओर जाना बन्द कर देती है। अपने इन्द्रियों को वश में करने का वैराग्य ही सबसे अच्छा साधन माना गया है। योग शास्त्र में कहा गया है कि मन को वश में बहुत कठिन कार्य है परंतु नियमित अभ्यास से हमारा चित्त नियंत्रित किया जा सकता है।

No comments:

Post a Comment