Friday, August 27, 2010

Nitya Pooja(नित्य-पूजा)

नित्य-पूजा
मंत्र का अर्थ इस प्रकार है कि-जिसका मनन करने से संसार का यथार्थ स्वरूप विदित हो, भव-बन्धनों से मुक्ति मिले और जो सफलता के मार्ग पर अग्रसर करे उसे ‘मन्त्र’ कहते हैं। इसी प्रकार ‘जप’ का अर्थ है- ‘ज’ का अर्थ है, जन्म का रुक जाना और ‘प’ का अर्थ है, पाप का नाश होना। इसीलिए पाप को मिटाने वाले और पुनर्जन्म प्रक्रिया रोकने वाले को ‘जप’ कहा जाता है। मन्त्र शक्ति ही देवमाता- कामधेनु है, परावाक् देवी है, विश्व-रूपिणी है, देवताओं की जननी है। देवता मन्त्रात्मक ही हैं। यही विज्ञान है। इस कामधेनु रूपी वाक्-शक्ति से हम जीवित हैं। इसके कारण ही हम बोलते और जानते हैं। मन्त्र-विद्या के महान सामर्थ्य को यदि ठीक तरह समझा जा सके और उसका समुचित प्रयोग किया जा सके तो यह आध्यात्मिक प्रयास, किसी भी भौतिक उन्नति के प्रयास से कम महत्वपूर्ण और कम लाभदायक सिद्ध नहीं हो सकता। मन्त्र की शक्ति का विकास जप से होता है।

मन्त्रों की रचना विशिष्ट पद्धति से मन्त्र-शक्ति के विशेषज्ञ अनुभवी महात्माओं द्वारा की हुई होती है। उनका अर्थ गहन होता है और मन्त्र-शास्त्र के नियमों के अनुसार ही अक्षर जोड़कर मन्त्र बनाये जाते हैं और ये मन्त्र परम्परा जप के कारण से सिद्ध और अमोघ फलदायक होते हैं। ऐसे मन्त्रों को साम्प्रदायिक रीति से ग्रहण करके विशेष पद्धति से उनका जप करना होता है। पुस्तकों से मन्त्रों को पढ़ लेने मात्र से कोई विशेष लाभ नहीं होता। कुछ साधक पुस्तकों में से कोई भी मन्त्र पढ़कर कुछ दिन उसका जाप करते हैं और कुछ लाभ ना होता देखकर उसे छोड़ देते हैं और इसी तरह नये-नये मन्त्र जपते रहते हैं और फायदा ना मिलने पर निराश होते हैं। कुछ साधक कई मन्त्र एक साथ ही जपते हैं, पर इससे भी उन्हे कोई लाभ नहीं होता। कुछ साधक माला जपने को मन्त्र जाप समझते हैं और माला को यन्त्रवत् घुमाकर यह समझते हैं कि हमने हजरों या लाखों की सँख्या में जाप कर लिया, पर इतने जाप का प्रभाव पुछिये तो वह नहीं के बराबर होता है।

मन्त्र जाप में माला का महत्त्व अधिक नहीं होता। स्मरण दिलाना और जाप सँख्या का मालूम होना, ये ही दो काम ही माला के हैं। माला स्वयं में पवित्र होती है। इसलिए साधक इसे धारण भी करते हैं। कुछ साधक माला को सम्प्रदाय का चिन्ह और पाप-नाश का साधन भी मानते हैं।

मन्त्र जाप का अधिकार दीक्षा-विधि से ही प्राप्त होता है, यह वैदिक नियम है। इसलिये किसी योग्य गुरू से ही मन्त्र की दीक्षा लेकर ही जाप करना चाहिये। शैव-वैष्णवादि सम्प्रदायों में अनादि-काल से ही दीक्षा-विधि चली आ रही है। बहुत से व्यक्ति दीक्षा लेने को सही नहीं मानते, पर यह उनकी भूल है। कुछ साधकों कि तो यह हालत होती है कि वह मन्त्र तो किसी अन्य देवता का जपते हैं और ध्यान किसी अन्य देवता का करते हैं। इससे सिद्धि कैसे मिलेगी? यद्यपि भगवान तो एक ही है, तो भी उनके अभिव्यक्त रूप तो अलग-अलग हैं।

अपनी अभिरुचि के अनुसार, परन्तु शास्त्र-विधि को छोड़े बिना किसी भी मार्ग का अवलम्बन करने से हमें शीघ्र फल की प्राप्ति होती है। इसलिऐ मन्त्र-दीक्षा, विधि-विधान से ही लेनी चाहिये। मन्त्र-दीक्षा के लिये शुभ-समय, पवित्र-स्थान और चित्त में उत्साह होने की बड़ी आवश्यकता है। मन्त्र-दीक्षा लेने के पश्चात मन्त्र-जाप को प्रतिदिन एक निश्चित संख्या में अवश्य जपें।

महर्षि-पातञ्जलि ने अपने योग-सूत्रों में मन्त्र-सिद्धि को माना है, और यह कहा है कि इष्ट-मन्त्र के जाप से इष्ट-देव के दर्शन सम्भव होते हैं। प्रणव(ॐ) मुख्य मन्त्र है और उसके अर्थ की भावना करते हुऐ उसका जाप करने से सिद्धि प्राप्त होती है, यह महर्षि-पातञ्जलि बतलाते हैं।

प्रणव-जाप का महत्व भगवान-मनु ने भी बतलाया है। कारण, प्रणव वेदों का मूल हैं। श्रुति में भी प्रणव की महिमा गायी गयी है। प्रणव के बाद गायत्री-मन्त्र का महत्व है। यह वैदिक मन्त्र है और सभी ने इसकी महिमा बतलाई है। यह मन्त्र सब सिद्धियों को देने वाला है, और द्विज-जातिमात्र को इसका अधिकार है।

इसके बाद विभिन्न मन्त्र आते हैं और इन्हीं का आजकल विशेष प्रचार-प्रसार है। कारण, इनका उच्चारण सुगम है और इनका अर्थ भी जल्दी समझ में आ जाता है। नियम-आदि भी कोई विशेष नहीं हैं। किन्तु इन मन्त्रो का जाप करने वाले ही बता सकते है कि उन्हे किताना फायदा मिला है। मन्त्र चाहे वैदिक हो, पौराणिक हो या तान्त्रिक हो, बिना नियम के किसी भी मन्त्र का कोई फायदा नहीं है। जो साधक निष्काम-भक्ति एवं मोक्ष-प्राप्ति को अपना लक्ष्य मानते है, उन के लिऐ कोई विशेष नियम नहीं है, परन्तु जो साधक सकाम भक्ति, भौतिक सुखों कि प्राप्ति एवं सिद्धि प्राप्ति हेतु मंत्र-साधना करना चहाते हैं या करते हैं, उनके लिऐ नियम बहुत आवश्यक है।

मन्त्र-जाप में नियमों का अर्थ ये नहीं है कि आप हठ-योग के कठिन आसनों एवं मुद्राओं का प्रयोग करे। हमने अपने सालो के अनुभव में यह पाया कि साधक थोड़े से साधारण नियम और सबसे जरूरी- मन्त्रों का लयबद्ध होना, इसके द्वारा साधक बहुत कम समय में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। हमने अनेकों साधकों को ये प्रयोग करवाये, जिससे उन्हे बहुत ही ज्यादा लाभ हुआ। पहले जो वो अपने तरीके से साधना करते थे, और उस साधना से अनेकों साधकों को अनेकों प्रकार कि मानसिक और शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। जहाँ वह लम्बे-चोड़े विधानों में उलझ हुऐ थे, वहीं हमारे द्वारा बताऐ हुऐ नियमों से उनकी तमाम परेशानी हमेशा-हमेशा के लिऐ समाप्त हो गई। सभी साधकों के हितों का ख्याल रखते हुऐ, पहली बार हम उन सभी नियमों और तरीकों को लिख रहे है, जो आज तक न तो कहीं लिखे गऐ और न ही कोई भी गुरू अपने शिष्यों को बताना चाहता है। हम अपने सभी साधकों के लिये सबसे सरल कुछ विधान लिख रहें हैं। आप अपनी सुविधा के अनुसार उनका चुनाव कर सकते है।

पहला विधान-
1 पद्मासन या सुखासन में बैठें।
2 अपने दायें हाथ को घी का दीपक एवं जल का पात्र (लोटा) रखें।
3 गुरू मन्त्र का 5 बार जाप करें।
4 गणेश मंत्र का 5 बार जाप करें।
5 गायत्री मंत्र का 28/108 बार जाप करें।
6 अपने इष्ट के मंत्र का आवश्यकता अनुसार जाप करें।
7 अपने इष्ट देव की आरती करें।
8 क्षमा प्रार्थना एवं शान्ति पाठ करें।

दूसरा विधान-
1 पद्मासन या सुखासन में बैठें।
2 अपने दायें हाथ को घी का दीपक एवं जल का पात्र (लोटा) रखें।
3 गुरू मन्त्र का 5 बार जाप करें।
4 गणेश मंत्र का 5 बार जाप करें।
5 रक्षा मंत्र का 11 बार जाप करें।
6 नवग्रह मंत्र का 3 बार जाप करें।
7 गायत्री मंत्र का 28/108 बार जाप करें।
8 अपने इष्ट के मंत्र का आवश्यकता अनुसार जाप करें।
9 अपने इष्ट देव की आरती करें।
10 क्षमा प्रार्थना स्तुति एवं शान्ति पाठ करें।

तीसरा विधान-
1 पद्मासन या सुखासन में बैठें।
2 अपने दायें हाथ को घी का दीपक एवं जल का पात्र (लोटा) रखें।
3 आचमन और संकल्प करें।
4 गुरू मन्त्र का 5 बार जाप करें।
5 श्री संकटनाशन गणेशस्तोत्रम् का 1 बार पाठ करें।
6 श्रीबटुक भैरव अष्टोत्तरशत नामावलिः का 1 बार पाठ करें।
7 नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें।
8 गायत्री मंत्र का 108 बार जाप करें।
9 अपने इष्ट के मंत्र का आवश्यकता अनुसार जाप करें।
10अपने इष्ट देव की आरती करे एवं पुष्पाँजलि करें।
11 क्षमा प्रार्थना स्तुति एवं शान्ति पाठ करें।

पूजा से संबधित विभिन्न मन्त्र
आचमन मंत्र
निम्न मंत्र का जाप करके तीन बार जल पीये एवं हाथ धो ले।
॥शन्नो देवीर अभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शंयोरभि स्त्रवन्तु नः॥

संकल्प-मन्त्र
हाथ में जल लेकर निम्न मन्त्र को पढ़कर संकल्प करें।
ॐ विष्णुर्विष्णुविर्ष्णुः ॐ तत्सत् अद्यैतस्य विष्णोराज्ञया जगत् सृष्टि कर्मणि प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणो द्वितीय परार्द्वे श्रीश्वेत वाराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे तत् प्रथम चरने जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे अमुक क्षेत्रे अमुक स्थाने बौद्धावतारे अमुक नाम संवत्सरे उत्तरायणे/दक्षिणायने अमुक ॠतौ अमुक मासे अमुक पक्षे अमुक तिथौ अमुक वासरे अमुक गौत्रे अमुक नाम शर्मा/वर्मा/गुप्तोऽहं धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्राप्ति अर्थे अमुक देव (अपने इष्ट देव या जिस देव की पूजा करनी हो उसके नाम का उच्चारण करें।) पूजनम् करिष्ये।
संकल्प मंत्र को पढ़कर हाथ का जल भूमि पर छोड़ दे।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ गुरू मन्त्र ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ श्री गुरूवे नमः ॥
या
ॐ गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु गुरूदेवो महेश्वरः।
गुरूर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरूवे नमः॥

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ श्रीगणेश मन्त्र ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ श्री गणेशाय नमः ॥
या
ॐ गणानाम् त्वा गणपतिम् हवामहे प्रियाणाम्।
त्वा प्रियपतिम् हवामहे निधीनाम् त्वा निधिपतिम् हवामहे वसोमम्।
आहम जानि गर्ब्भधम् त्वम् अजासि गर्ब्भधम्॥
या
ॐ नमो गणेभ्यो गणपतिभ्यश्य वो नमो नमो व्रातेभ्यो व्रातपतिभ्यश्च वो नमो नमो गृत्सेभ्यो गृत्सपतिभ्यश्य
वो नमो नमो विरूपेभ्यो विश्वरूपेभ्यश्च वो नमः॥

ॐ ॐ ॐ ॥ श्री संकटनाशन गणेशस्तोत्रम् ॥ ॐ ॐ ॐ

प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुष्कामार्थ सिद्धये॥१॥
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्।
तृतीयं कृष्ण-पिंगलाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्॥२॥
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥३॥
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥४॥

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ रक्षा मन्त्र ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ खं ब्रह्म नमः॥
या
ॐ ॐ ॐ ॥ श्रीबटुक भैरवाष्टोत्तर शतनामवलिः ॥ ॐ ॐ ॐ

ॐ ह्रीं भैरवो भूतनाथाशच भूतात्मा भूतभावन।
क्षेत्रज्ञः क्षेत्रपालश्च क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट्॥१॥
श्मशान वासी मांसाशी खर्पराशी स्मरांतकः।
रक्तपः पानपः सिद्धः सिद्धिदः सिद्धिसेवित॥२॥
कंकालः कालशमनः कलाकाष्टातनु कविः।
त्रिनेत्रो बहुनेत्रश्च तथा पिंगल-लोचनः॥३॥
शूलपाणिः खङ्गपाणिः कंकाली धूम्रलोचनः।
अभीरूर भैरवीनाथो भूतपो योगिनीपतिः॥४॥
धनदो अधनहारी च धनवान् प्रतिभानवान्।
नागहारो नागपाशो व्योमकेशः कपालभृत्॥५॥
कालः कपालमाली च कमनीयः कलानिधिः।
त्रिलोचनो ज्वलन्नेत्रः त्रिशिखी च त्रिलोचनः॥६॥
त्रिनेत्र तनयो डिम्भशान्तः शान्तजनप्रियः।
बटुको बहुवेशश्च खट्वांगो वरधारकः॥७॥
भूताध्यक्षः पशुपतिः भिक्षुकः परिचारकः।
धूर्तो दिगम्बरः शूरो हरिणः पांडुलोचनः॥८॥
प्रशांतः शांतिदः शुद्धः शंकर-प्रियबांधवः।
अष्टमूर्तिः निधीशश्च ज्ञान-चक्षुः तपोमयः॥९॥
अष्टाधारः षडाधारः सर्पयुक्तः शिखिसखः।
भूधरो भुधराधीशो भूपतिर भूधरात्मजः॥१०॥
कंकालधारी मुण्डी च नागयज्ञोपवीतवान्।
जृम्भणो मोहनः स्तम्भी मारणः क्षोभणः तथा॥११॥
शुद्धनीलांजन प्रख्यो दैत्यहा मुण्डभूषितः।
बलिभुग् बलिभुङ्नाथो बालो अबालपराक्रमः॥१२॥
सर्वापित्तारणो दुर्गे दुष्टभूत-निषेवितः।
कामी कलानिधि कान्तः कामिनी वशकृद् वशी॥१३॥
जगद् रक्षा करो अनन्तो माया मंत्र औषधीमयः।
सर्वसिद्धिप्रदो वैद्यः प्रभविष्णुः करोतु शम्॥१४॥
ॐ ॐ ॐ ॥ इति श्री बटुकभैरवाष्टोत्तरशतनामं समाप्तम् ॥ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ नवग्रह मन्त्र ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ब्रह्मा मुरारिः त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमि-सुतो बुधश्च।
गुरूश्च शुक्रः शनि राहु केतवेः सर्वे ग्रहाः शान्तिः करा भवन्तु॥
ॐ सुर्यः शौर्यमथेन्दुर उच्च पदवीं सं मंगलः सद् बुद्धिं च बुधो
गुरूश्च गुरूतां शुक्रः सुखं शं शनिः राहुः बाहुबलं करोतु सततं
केतुः कुलस्यः उन्नतिं नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु
मम ते सर्वे अनुकूला ग्रहाः॥

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ नवग्रहस्तोत्रम् ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

जपा कुसुम संकाशं काश्यपेयं महद्युतिम्।
तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ॥१॥
दधि शंख तुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम्।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोः मुकुट भूषणम्॥२॥
धरणी गर्भ संभूतं विद्युत्कान्ति समप्रभम्।
कुमारं शक्ति हस्तं च मंगलं प्रणमाम्यहम्॥३॥
प्रियंगु कलि काश्यामं रूपेणा प्रतिमं बुधम्।
सौम्यं सौम्य गुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम्॥४॥
देवानां च ऋषीणां च गुरुं काञ्चन संनिभम्।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्॥५॥
हिम कुन्द मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्।
सर्व शास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम्॥६॥
नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छाया मार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥७॥
अर्ध कायं महावीर्यं चन्द्र आदित्य विमर्दनम्।
सिंहिका गर्भ संभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्॥८॥
पलाश पुष्प संकाशं तारका ग्रह मस्तकम्।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्॥९॥
इति व्यास मुखोद् गीतं यः पठेत् सुसमाहितः।
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्न शान्तिर भविष्यति॥१०॥
नर नारी नृपाणां च भवेद् दुःस्वप्न नाशनम्।
ऐश्वर्यं अतुलं तेषाम् आरोग्यं पुष्टि वर्धनम्॥११॥
गृह नक्षत्रजाः पीडाः तस्कराग्नि समुद् भवाः।
ताः सर्वाः प्रशमं यान्ति व्यासो ब्रू तेन संशयः॥१२॥
ॐ ॐ ॐ ॥ इति श्रीव्यास विरचितं नवग्रहस्तोत्रं संपूर्णम् ॥ ॐ ॐ ॐ


ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ गायत्री मंत्र ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ भुर्भुवः स्वः तत् सवितुर वरेण्यम्
भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ क्षमा-प्रार्थना ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरम्।
यत् पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे॥

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ शान्तिः पाठ ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ द्यौः शान्तिः अन्तरिक्षं शान्तिः पृथिवी शान्तिः आपः शान्तिः ओषधयः शान्तिः। वनस्पतय: शान्तिः विश्वेदेवाः शान्तिः ब्रह्म शान्तिः सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि॥
यतो यतः समीहसे ततो नो अभयम् कुरू।
शम् नः कुरू प्रजाभ्यो अभयम् नः पशुभ्यः॥
--------------------- ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ ------------------------------------------- ॥ सुशान्तिर्भवतु ॥ ---------------------

जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK

2 comments:

  1. Replies
    1. आपकी टिप्पणि बहुमूल्य हैं,अपने भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार..

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